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    चतुथ अ याय : जगदीश चं के उप यास म दिलत िवमश

    4.1 ामीण समाज के अ त वरोध

    क) वण व था के िवकृत चेहरे क पहचान

    ख) सामािजक उ पीड़न और भूिम संघष

    4.2 शहरी समाज और दिलत जीवन

    4.3 स ांत दिलत का शेष दिलत के ित दृि कोण

    4.4 दिलत राजनीित का व प

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    4.1 ामीण समाज के अ त वरोध

    क) वण- व था के िवकृत चेहरे क पहचान :-

    ‘धरती धन न अपना’, ‘जमीन अपनी तो थी’, ‘नरक कु ड म बास’ जैसे

    उप यास के रचनाकार जगदीश चं क रचना मकता क साथकता हदी ही नह

    स पूण भारतीय उप यास सािह य म भिव य म भी बनी रहेगी य क उ ह ने

    अपने इन जैसे िलिखत लगभग सभी उप यास म ‘‘भारतीय समाज के उस उपेि त

    वग का अ यंत यथाथ िच तुत कया ह,ै जो इस समय राजनीितक े म भी

    च चत है व सािह य म भी। उसे दिलत सािह य के अ तगत नए ढंग से प रभािषत

    कया जा रहा है। इन चचा से भारतीय समाज के इस सवािधक उ पीिड़त वग

    क जीवन प रि थितयाँ तो भले ही अभी ब त अिधक न बदली ह , ले कन

    सािह य व अ य मा यम से उनके जीवन पर समाज का यान क त करने के जो

    यास आर भ ए ह, उसम आने वाले दशक म उनके उ पीड़न क मौजूदा ू रता

    को जारी रख पाना उनके उ पीड़को के िलए मुि कल अव य हो जाएगा।’’1

    जगदीश चं के उप यास क कथा-संरचना, दिलत क सम या को

    उनक सामािजक संरचना के िविभ तर पर प रभािषत करती है। जैसे उनके

    उप यास ‘धरती धन न अपना’। हालाँ क इस उप यास के कािशत होने पर

    अिधकतर आलोचक ने इस उप यास को दिलत जीवन दृि के आधार पर नह

    देखा। इसे आमतौर पर सांमती सामािजक व था म कृिष व था क यथाथ

    ि थित के प म देखा गया। रमेश कंुतल मेघ ने इसे ‘धरती के दुिखयार का

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    समाजा थक द तावेज कहा तो सुधीश पचौरी ने इसे भारत क सामंती कृिष

    व था पर ट पणी’ के प म अ कत कया। परंतु बाद म ‘‘िजस कार

    अमृतलाल नागर के ‘ना यौ ब त गोपाल’ के छपने पर इसे भंगी या मेहतर जाित

    के जीवन पर क त उप यास के प म देखा गया वैसे ‘धरती धन न अपना’ को

    चमार जाित के जीवन पर क त उप यास के प म देखा गया।’’2

    जगदीश चं के उप यास म वण- व था क िवकृत ि थित को सामािजक

    रीितय और आ थक सम या के अंत वरोध के बीच से उकेरा गया है। इस म

    म हम ‘धरती धन न अपना’ म गाँव म चौध रय के भेदभावपूण अमानवीय

    वहार को देख सकते ह। जब इस उप यास म चौधरी हरनाम सह जीत ूनाम के

    ह रजन िवरादरी के ि को, अपने खेत क फसल नुकसान करने के आरोप म,

    उसक जाित को कु े के िवशेषण से नवाजता है तो इससे वण- व था क संरचना

    म शोषणगत अिभ ाय अपने आप प हो जाते ह। चौधरी हरनाम सह ारा

    ोध म दए गए व क ‘‘सच-सच बता दो। नह तो सारे मुह ले को इसी

    चौगान म नंगा िलटाकर जूते लगाऊँगा।’’3 वणगत दबदबे को प कर देता है।

    इस तरह के अनेक उदाहरण इस उप यास म भरे पड़े ह िजससे वण- व था के

    िवकृत व प क पहचान होती है।

    इस तरह ‘‘गाँव म चौध रय (बड़े जाट -जम दार ) का दबदबा, छ ू राम

    ारा महाजनी या सूदखोरी के प म शोषण, वयं चमादड़ी म मंगू जैसे जम दार

    के चाटुकार व अपने समुदाय के दु मन, चमार को गैर इंसानी जीवन जीने पर

  • 102

    मजबूर करना, उनसे छूआछूत का अमानवीय वहार करना, ितरोध करने पर

    सामािजक बिह कार करना, खेत म ाकृितक कम के िलए जाना भी बंद करना

    आ द प रि थितय का ‘धरती धन न अपना’ म बड़े िव तार से यथाथ अंकन कया

    गया है।’’4 आलोचक डॉ. चमनलाल के उपरो कथन से ये बात पु हो जाती है

    क इसम वण व था क ू रता एवं उससे उ प सामािजक, सां कृितक, आ थक

    एवं राजनीितक िवसंगितय का ापक एवं सू म िच ण िमलता है।

    इस उप यास के मु य पा काली का ान के साथ ेम- करण इसी

    व था क बिल चढ़ता है। अपने ेम संबंध क िनयित से अनिभ काली फर से

    गाँव छोड़कर भागने के िलए मजबूर होता है। इस तरह से उसका ‘‘गाँव से पहला

    गमन पेट क खाितर था तो दूसरा गमन सं कृित व सामािजक उ पीड़न के

    फल व प।’’5

    इस कार जगदीश चं ारा रिचत उप यास यी के पहले भाग ‘धरती धन

    न अपना’ म उप यासकार ने पंजाब के एक छोटे से गाँव को क म रखकर

    भारतीय ामीण जीवन क ऐसी त वीर पेश क है िजसम इस प रवेशगत जीवन

    का कोई प अछूता नह रह पाया है। इस उप यास के अंत म काली जो अनेक

    भीतरी वण आध रत समाज के दबाव के चलते गाँव छोड़ने के िलए िववश हो

    जाता है।

    इसी यी के दूसरे भाग ‘नरक कु ड म बास’ क कहानी जाित आधा रत

    समीकरण पर न होकर शहरी जीवन के िवकृत चेहरे क पहचान कराती है।

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    ले कन इस यी के अि तम ख ड ‘जमीन अपनी तो थी’ म जाितगत समीकरण का

    आधुिनक व प दखलाई देता है जहाँ काली साम ती संबंध से बाहर आकर

    जालंधर के अध-साम तीय, अध-पूँजीवादी हालत का िशकार है। इसम वण य एवं

    वग य संबंध का िब कुल नया प उभरकर सामने आता है। एक तरीके से ‘‘भारत

    के असंतुिलत आ थक िवकास, पूंजीवाद के िवकृत प के िनमाण और सामंती त व

    ने पूंजीवादी व अफसरशाही त व से गठजोड़ ारा दिलत कसान के शोषण व

    ाचार के अकूत फैलाव का िच वतं ता के पहले दो-ढाई दशक के स दभ को

    रचा गया है। उप यास यी के इस अि तम भाग म दिलत वग के एक अ यज

    िह से को बनाकर सुिवधाभोगी सामंती पूंजीवादी त व का अंग बनाने क

    दुखद गाथा भी है।’’6

    इस उप यास म ‘‘राजनीितक े म सेठ राम काश जैसे दिलत नेता व

    शासिनक े म कुलतार सह जोहल जैसे अिधकारी कस कार ि गत लाभ

    ा करने के िलए अपने वग से ोह करते ह और कस कार नौक रय का

    आर ण दिलत वग के भीतर एक ऐसे सफेदपोश तबके को पैदा कर रहा है जो

    अपनी ही वग पृ भूिम से कट कर सुिवधाभोगी व शोषक वग का िह सा बनने म

    फरख महसूस करता है व यह िह सा अपनी जाितगत पहचान तक िछपाना चाहता

    है। कस कार सहका रता, भूिम सुधार काय म गाँव के बड़े जम दार ने अपने

    िहत सुरि त रखने के िलए असफल बनाए और गरीब कसान दिलत क दशा

    पहले-सी बनी रही।’’7

  • 104

    इस उप यास म मु य प से चमार जाित को वण- व था के िशकार के

    प म िचि त कया गया है। वण- व था का दंश इस जाित म ज म लेने वाले

    नंद सह के ारा धम प रवतन के बावजूद भी बना रहता है। उसे चमार कहे जाने

    पर ोध आता है य क इस गाँव म कु े को भी चमार कहा जाता है। धम-

    प रवतन क ि थित म भी उसे अपमािनत करते ए चौधरी कहता है क ‘‘वाह!

    वाह! नंद सह तेरे िसर पर स ग तो नह उग आए। ओ पगला तू जो भी बन जा,

    रहेगा तो चमार ही। हमारे समाज म जाित का िनणय ज म से होता ह,ै न क कम

    से। अगर तुझे चमार कहलाना अ छा न लगता हो कसी और माँ के पेट से ज म

    लेता।’’8 इसम िवकट प रि थितय म धा मक उपदेशक का भी असली चेहरा

    सामने आया है। बाढ़ आने पर िह दू ा ण और िसख जम दार चमार को अपने

    कु से पानी लेने क इजाजत नह देते। यहाँ तक क ईसाई धमगु क प ी

    हडप प को उस समय ताला लगा देती है जब एक चमार का ब ा वहाँ ट ी कर

    देता है और चमार ी उसे अपने हाथ से ही साफ कर देती है।

    इस तरह से हम देखे तो इनके उप यास म वण- व था का िवकृत व प

    अनेक तर पर दखाई देता है। इनके उप यास जाित- व था के िशकार चमार

    क अनेक सम या क तरफ हमारा यान आक षत कराते है, जो सामािजक,

    आ थक व सां कृितक िवसंगितय के प म ई ह। जनतांि क- व था भी

    वण- व था क जन िवरोधी नीितय का ही साथ देती नज़र आती है। नीची

    जाित के लोग को यह बार-बार अहसास कराया जाता है क जम दार और लाला

    जैसे लोग तु हारे अ दाता ह िजसके चलते नीची जाित के लोग ‘कंिडशंड

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    मानिसकता’ म जीने के आ द हो गए ह िजससे वे असंग ठत रहते ह और वण-

    व था पर आधा रत िवकृत- व था के िशकार होते ह।

    ख) सामािजक उ पीड़न और भूिम संघष :-

    जगदीश चं का उप यास संसार जमीनी हक कत से जुड़ा आ है। इनके

    उप यास म खासतौर पर दिलत जीवन से जुड़े अनेक संग सामािजक प रवेश क

    ज टलता के साथ ए है। अगर इनक तुलना ेमचंद से क जाए तो

    अितशयोि न होगी। जहाँ ेमचंद ने गोदान नामक उप यास म होरी जैसे च र

    को छोटे कसान से मजदूर होते दखाया है। वह ‘धरती धन न अपना’ उप यास म

    जगदीश चं ने ‘भूिमहीन दिलत’ को च र के प म उभारा है। इसम ‘‘काली का

    िच ण दिलत जीवन का खाका बदलने क संघष गाथा है परंतु वहाँ के िपछड़े

    लोग को उसी तरह याय नह िमलता जैसे सूरदास को नह िमलता।’’9

    जगदीश चं को हम गहरी मानवीय संवेदना पर आधा रत िव दृि के

    लेखक के प म देख सकते ह। मनु य से अपने लगाव से ही उनका स पूण लेखन

    े रत ह।ै उनक रचना मकता के क म सबसे पहले मनु य ह,ै फर कुछ और

    िजसका ापक एवं गहरा िच ण उनके उप यास यी म काली नामक च र के

    प म दखता है। इन उप यास म ‘‘काली िवषम सामािजक-आ थक-राजनीितक-

    सां कृितक प रि थितय के उ पीड़न का िशकार च र ह,ै ले कन उसका मानवीय

    सारत व इन िवषम प रि थितय के ितरोध म है। िवषम प रि थितय व काली

  • 106

    के इनके ितरोध के घात- ितघात से ही पूरा उप यास प रचिलत है। इसी घात-

    ितघात से ि टश इंिडया और वतं भारत क सामािजक-राजनीितक-आ थक

    व था भी अपने सहज प से उघड़ती चली आयी है और लेखक को कही भी

    व था पर अपनी ओर से ट पणी करने या उसक ा या करने क ज रत नह

    पड़ती। ि टश इंिडया से वतं भारत म सं मण इतना सहज और वाभािवक है

    क गाँव के आम आदमी को तो यह भी पता नह चलता क कब वह ि टश इंिडया

    म रह रहा था और कब से वतं भारत का नाग रक बनकर वतं होगा? ’’10

    इस देश म उन लोग का अभाव कभी नह रहा जो यह समझाते और समझते

    रहे ह क य द अं ेज का आगमन इस देश क धरती पर न होता तो यह देश

    अंधिव ास समाज म ढ़ हो चूं क रीितय और अवै ािनक सोच म िघरा रहकर

    कभी इनसे मु नह हो पाता। यहाँ तक क भारत के पास सां कृितक चेतना नाम

    क कोई चीज भी नह होती। ले कन इस तरह क मा यता रखने वाले लोग को

    यह बात यान म रखनी चािहए क ‘‘ऐतरेय ा ण म ईसा के एक हजार साल

    पहले से ही कह दया गया था क मेहनतकश लोग अपने हाथ काम करके सं कृित

    को गढ़ते ह। ऐतरेय ा ण ंथ है िजसके रचियता ऐतरेय महीतास कुलीन वग के

    नह थे। वे इतरक नामक दासी के पु थे। गोरखनाथ के योग िश ा का असर

    लगभग पाँच सौ साल तक रहा (धूनी का धुआ, रागेंय राघव)। सां य शा पर डेढ़

    सौ साल तक बहस चली जो क अं ेजी क देन नह थी। भारतीय सं कृित म

    अपनी राख से जीवन शि ा करने का िववेक और िह मत रही है।’’11

    भारतीय समाज क इस सां कृितक परंपरा का गहरा ान जगदीश चं के

    पास था। अथशा का गहरा एवं ापक ान और मा सवादी दृि से यु होने

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    के चलते उ ह सामािजक-सां कृितक परंपरा के प रवतन के ित गहरा यक न था।

    इसीिलए ‘‘काली क भूिमहीन दया के िलए उ ह ने जमीन के बंटवारे, पैतृक

    जमीन, कानून क िनगाह िनयं ण आ द का गहराई से अ ययन कर डाला था। भू-

    वािमय का वहार और दंभ िजसे अं ेज पोिषत कर गए थे ओर स ा प रवतन

    के बाद भी वहार म कसी बुिनयादी प रवतन का नह होना ‘कभी न छोड़े खेत’

    उप यास का आधार बनता ह।ै’’12

    ` वाधीनता आंदोलन म गरीब क म के कसान और मजदूर वग भारतीय

    राजनीित क मु यधारा बन चुके थे। इनके समावेशी िवकास क दशा म अनेक

    काय ए। इस शोिषत वग के लोग के िलए वाम दल , ेड यूिनयन और कसान

    सभा ने भारतीय प रदृ य म कई अिभयान चलाए। इसका गहरा भाव

    रचनाकार पर भी पड़ा। िजसका प रणाम ेमचंद एवं उनके समय के रचनाकार

    म मुख प से उभरकर सामने आया, िजससे िमक एवं भूिमहीन मजदूर कसी

    न कसी प म उनक रचना म िमलते ह। ेमचंद और उनक परंपरा के इस

    वैिश को जगदीश चं ने अपने उप यास म सहेजा ही नह संरि त भी कया

    है। इनके उप यास अनाचार, अ याचार, शोषण और शि के अितवाद के

    रोमांचक और यथाथ िच क िनहायत ामािणक तुितय के बावजूद हम

    भावुकता म बहने नह देते बि क हम व था तथा शासन तं क असमथता और

    लाचारी के ित, शि के अितवाद के ित, उसक ू रता और अमानवीयता के

    ित, ोध और आवेश को जगाते ह। हमम बेचैनी पैदा करते ए आ मसा ा कार

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    क भावना पैदा करते ह य ेभावनाएं बार-बार उठाती ह क आिखर शोषण क

    मानिसकता से भारतीय समाज कब तक मु होगा।

    उनके उप यास 'धरती धन न अपना' म चमार के सामािजक उ पीड़न क

    ि थितय का बेबाक और बारीक िच ण आ है। उ ह ने इस उप यास म

    ‘‘घोड़ेवाहा के चमार क ासदी को जदगी को उसक सारी ज टलता और

    अंत वरोध के साथ हमारे सामने पेश कया है। चमार के जीवन का यह नरक

    िसफ चौध रय ारा ही रचा आ नह है एक बड़ी सीमा तक खुद चमार अपने

    जीवन के इस नरक के ा ह। उनक दा ण गरीबी उनक जड़ता, उनका अ ान,

    उनक देहध मता, उनके अपने सं कार सब िज मेदार ह उस नरक रचना के।

    जगदीश चं ने बड़ी साफगोई से चौध रय के शि तं के बर स चमार के मन-

    मि त क के भीतर िव मान नरक के इन कारक का खुलासा कया है।’’13

    इस उप यास म जब जीतू क िपटाई करने के बाद चौधरी हरनाम सह

    ारा कही गई धमक भरी बात क ‘‘चमार िसर पर चढ़ते जा रहे ह। इनका

    दमाग खराब हो गया है। इ हे सीधा करना ही पड़ेगा।’’14 के ित या व प

    गाँव के लोग चौधरी और छ ूशाह के चले जाने के बाद या तो जीतू को दोष देते ह

    या दबी ई जबान से चौधरी क दबंग वृि का रोना रोते ह। उप यासकार उस

    ित या का िच इस तरह ख चता ह-ै ‘‘उनके जाते ही लोग क गंूगी जबान

    फर से बोलने लग । कोई जीतू को दशं दे रहा था तो कोई चौधरी क यादती का

    दबी जबान म रोना रो रहा था।’’15 लोग ारा इस तरह सोचना ामीण जीवन

  • 109

    म सामािजक शोषण क संरचना का यथाथ परक खुलासा है िजस के चलते शोषण

    के सामने घ टत होने के बावजूद आ ोश क जगह काली के मन म अिन य क

    भावना ही उ प होती दखती है। उप यास का यह अंश देिखए िजसम लेखक ने

    काली के अिन य क भावना का सू म िच ण कया है लेखक िलखता है क

    ‘‘काली क समझ म नह आ रहा था क चौधरी हरनाम सह ने जीतू को य

    मारा। उसने चौध रय से वयं भी लड़कपन म कई बार मार खायी थी और वह

    हर बार उसे मामूली बात समझकर भूल जाता था। इस बात पर उसे कभी शम

    महसूस नह होती थी। ले कन जीतू को मार पड़ने पर उसे ब त दुख था, ब त

    ोध आ रहा था। वह घर आ दीवार के सहारे जमीन पर ही बैठ गया और खोया-

    सा छत क ओर देखने लगा। हाथ एक-दूसरे से उलझने लगे और दाई टांग अपने

    आप ही िहलने लगी।’’16

    इस उप यास म गांव क व था का जो िच ण ह,ै उसम ''चौध रय ारा

    दिलत के सामािजक बिह कार, इनसे बेगार लेने आ द क ि थितय म उनक

    सहायता के िलए न कोई पंचायत ह,ै न कोई कानूनी सहायता, ना ही कोई

    राजनीितक या धा मक शि ही उनक मदद को आती है। कई क युिन ट

    ल फाजी और शाि दक तलवारबाजी करते ह, ले कन संघषरत लोग क कोई

    ावहा रक मदद नह करते। कामरेड टहल सह और डॉ. िबशनदास जैसे लोग

    मा सवादी ल फाजी म शेर ह, ले कन न उ ह पेट क भूख का अहसास है िजसके

    कारण दिलत या मजदूर संघष टूट के कगार पर ह,ै न उ ह उस छूआछूत क चुभन

    है िजससे दिलत का खेत को ाकृितक कम तक के िलए जाना ब द है। इसाई

  • 110

    पादरी को उ ह इसाई बनाने म अिधक दलच पी ह ैन क भूख से िबलखते ब

    को अ -जल देने म। और पंचायत तो है ही चौध रय क । अफसर कोई दूर-दूर

    तक नह ह,ै जो दिलत को उनक बनती दहाड़ी ही दला सके। 'धरती धन न

    अपना’ म ि टश इंिडया म दिलत क यह ि थित थी।’’17 एक कार से ि टश

    शासन व था ने सामंत के साथ गठजोड़ करके दिलत का सामािजक उ पीड़न

    गांव क समाज व था के कई तर पर कया।

    इसके िवपरीत जगदीश चं का उप यास 'नरक कु ड म बास’ म आजादी

    मजदूर वग को दूसरे तरीके के धोखे क ि थित म डाल देती है। गांव छोड़कर

    शहर क ओर भागे ए मजदूर, कसान जैसी पृ भूिम के लोग के मन म अनेक

    सुनहरी क पनाएँ रहती ह। शहर को लोग एक ऐसी जगह के प म देखते ह जहाँ

    उनके िलए रोजी-रोटी क तमाम स भावनाएँ मौजूद हो। ले कन जब वे इस शहर

    के संसार म वेश करते ह तो उ ह पता चलता है क यह एक ऐसी जगह है जो

    तमाम बेकस लोग के सपन को अपनी झोली म समेटकर, जदगी क लड़ाई म

    उ ह िनह था छोड़ देती है। और इस कार अपने घर, अपने बीबी-ब से दूर

    होकर वे िजस यातना से गुजरते ह और अपने अि त व क र ा के िलए उ ह

    भयानक संघष करना पड़ता है उसी का मा मक आ यान है यह ‘नरक कंुड म बास’,

    जो आजादी के बाद घ टत आ थक-सामािजक बदलाव का जीवंत द तावेज है।

    एक कार से ामीण समाज व था म समािजक उ पीड़न के िशकार लोग के

    शोषण के अ य आयाम पर काश डालता है जहाँ शोषण एक नए धोखे के प म

    आता है।

  • 111

    जगदीश चं के उप यास का अ ययन करने पर यह लगता ह ै क यह दिलत

    एवं आम जन-जीवन के सामािजक-शोषण के अनेक आयाम को परत-दर-परत

    खोलने वाले रचना मक द तावेज ह। उनक औप यािसक ृंखला क अगली कड़ी

    ‘‘जमीन अपनी तो थी’ म गांव के गरीब कसान व दिलत के साथ यही धोखा

    दूसरे प म दोहराया जाता है। भारत चूं क कृिष धान देश है और देश क स र

    ितशत जनता गांव म रहकर कृिष धान व था पर आि त है और चूं क

    ि टश इंिडया म गांव क आंत रक व था पर बड़े जम दार , सामंत का

    दबदबा रहा और ि टश शासन ने उ ह अपने प म रखने के िलए कसान व

    अ य गरीब तबक का शोषण-उ पीड़न करने क अबाध छूट दे रखी थी।..... 'जमीन

    अपनी तो थी’ म पहले दो ख ड से अिधक गहन, िवशाल व ती प म वतं

    भारत क बन रही समाज व था का यथाथ िच तुत कया गया है। कथा

    के म यहाँ काली ही ह,ै अपनी तमाम चा रि क िवशेषता के साथ, ले कन इस

    उप यास का फलक ब त िव तृत है। इसम काली का ि गत संघष ही नह ह,ै

    एक पूरी समाज व था का िनमाण व उ ाटन भी है।’’18

    आजादी के बाद भी चौध रय , सरदार , महाजन क यादती अपने पुराने

    सं कार प म बैठी ई ह ैइसीिलए 'जमीन अपनी तो थी’ उप यास म जब ये लोग

    काली को उसक ही दुकान पर अपमािनत करते है। तब वह हत भ रह जाता है।

    िशवद काली पर ं य करता है जो क पूरी चमार जाित के उपर लागू होता है।

    वह मुरारी लाल को सुनाते ए कहता ह-ै ‘‘चाचा सरकार को या हो गया ह।ै

    पहले इनके िलए सरकारी नौक रयाँ अलग कर द । बाक लड़के दन-रात पढ़ माँ-

  • 112

    बाप ढेर से पए खच कर। फर भी वे बेकार घूम। और इनके लड़के........ कसी

    तरह तरले हौके से पास हो जाएँ। सरकारी नौकारी इनके घर आ जाती है।’’19

    इससे यह बात जािहर होती है क सवण लोग को, दिलत का सामािजक उ थान

    हो इस बात क जरा भी खुशी नह है।

    इसके बाद जब मुरारीलाल ‘पु ज मन खतरािनयाँ ते िबच-िवय

    बाहमािणया’ँ के बदले कहावत बनाकर कहता है क ‘पु ज मन चमा रयाँ ते िबच-

    िबच सैसिणयाँ (एक अनुसूिचत कबीला) बाक सब फंडर, तब काली अपमािनत

    महसूस करते ए इस बात का ित उ र देते ए कहता है क ‘‘शाह जी बुरा मत

    मानाना............सच कड़वा होता है।................ शाह जी, अगर आपको िव ास

    होता क सरकार सचमुच हम जमीन दे रही है तो आप इस तरह मेरा माखौल नह

    उड़ाते। गांव से छोटा मािलक भी आए तो आप उसका सौ आदर-स कार करते ह।

    मोहताजी के िलए भी तैयार हो जाते ह। गरीब, नताने-दताड़े का माखैल उड़ाने म

    या मजा। िजसक जननी के कोख क जगह नासूर हो उसके साथ ठ ा य ।’’20

    काली का यह ित उ र, एक तरीके से अपनी सामािजक अि मता को बचाए रखने

    के िलए संघष का वर है िजसम वािभमान का पुट एवं अपमान के ित िवरोध

    का भाव है।

    इसके बाद जब काली अपना दुख-दद नंद सह को सुनाता है तो उसके अ दर

    भी इस बात को लेकर ोध उ प होता है ले कन दिलत वण के होने क वजह से

    जो उसके स पूण ि व क ‘साइकोलॉिजकल कंिडश नग’ ई ह,ै उसक वजह से

  • 113

    उसका गु सा यादा देर तक कायम नह रह पाता है और वह स दय क गुलामी

    क वजह को बेबसी के भाव के प म करते ए कहता है ‘‘पता नह कब से

    ऐसा चलता आ रहा है। जब से होश संभाला है, यही सब देखा-सुना और झेला है।

    जब भी अ याचार, यादती का िवरोध कया, चौधरी, सरदार, महाजन भड़क उठे

    जैसे अनहोनी हो रही हो।’’21 नंद सह क यह सोच इस बात का माण है क

    दिलत वग का सामािजक उ पीड़न इतने ापक तर पर आ है क वह अपने

    सामािजक अि त व और अि मता को बचाए रखने के िलए खुलकर सोच भी नह

    पा रहा है। हालां क उसके अ दर िव ोह का भाव पनपता है ले कन वह कसी

    िवजन म पांत रत नह हो पाता है िजससे क सामािजक उ पीड़न के िव

    संघष को एक साथक दशा िमल सके।

    सामािजक शोषण के िव काली भी सोचता है िजससे आजादी के बाद क

    सामािजक वतं ता पर ब त बड़ा िच न लगता है। उसे गांव म चौध रय के

    अहं का मतलब तो समझ म आता है य क जमीन पर उनका वष से अिधकार

    रहा है ले कन बाज़ार- व था म भी काली जैसे तमाम दिलत का शोषण हो रहा

    है। ये बात उसे समझ म नह आती। उसका मानना है क ‘‘यहाँ सब दुकानदार है।

    अपना माल और नर बेचने के िलए बैठे ह। ले कन हमारे ित उनके मन म घृणा

    और िवरोध य ह? भूिम सुधार क खबर पर वे नाराज य ह?...... ितल

    िमलाए य ह? सरकार ह रजन को जमीन देगी तो उनका तो कोई नुकसान नह

    है।’’22 काली के अ दर क यह सोच आजाद भारत म सामािजक वतं ता क पोल

  • 114

    खोल देती है िजसम बाज़ार- व था म बराबरी एवं भूिम सुधार कानून के ित

    सवण के रवैये क तीखी आलोचना क गई है।

    उप यास का शीषक ‘जमीन अपनी तो थी’ एक खास तरह के भूिमहीन

    दिलत वग क था को करता है य क ‘‘नई सरकार ने उसे जमीन दी तो

    सही, वह उसके नाम चढ़ी भीत, चाहे वह बंजर जमीन ही य न रही हो, ले कन

    यहाँ उसका दुखांत यह है क उसी के वग के अिधकारी उससे धोखे से जमीन छीन

    लेते ह और कोरे कागज पर उससे ह ता र करवा कर जमीन उससे खरीद कर

    अपने नाम करवा लेते ह। गांव क को-आपरे टव सोसायटी, िजसक कायका रणी

    का सद य काली भी है, का तमाम धन बड़े जम दार ही इ तेमाल करते ह।’’23

    रचनाकार ने अपने इस औप यािसक ख ड म िजन तेरह चमार प रवार को

    सरकार ारा दी गई बंजर भूिम को िजसके ारा धोखे से हड़पते ए दखाया है

    वह कोई और नह बि क उ ह के बीच से िनकलकर अफसर बना कुलतार सह

    जौहल ह इसके अलावा काली का बेटा भी आई.ए.एस. अिधकारी बना गया है

    िजसे अपने िपता के जमीन लूट जाने का दद, बेवजह लगता है। ले कन काली के

    अ दर अभी भी वो अहसास बरकरार ह ैजो अपनी जड़ को नह भूलता। उसके

    अ दर ‘‘समाज म सामा य दिलत का दजा ऊंचा न उठने से उसे अस तोष है, उसके

    बेटे को तो मंिजल िमल गई है, ले कन काली का थान तो अपने दिलत भाई-बंधु

    के बीच है। अफसर बेटे क कोठी म नौकर -चाकर से सेवा करवाने म उसे चैन

    नह है। इसिलए वह अपनी प ी पाशी के साथ गठड़ी उठाकर गांव चल देता ह,ै

    जो बेटे के िलए अब रंक है।’’24

  • 115

    इस उप यास क कथाव तु ामीण प रवेश म घ टत सामािजक उ पीड़न,

    भूिम संघष का रचना मक ौरा तो है ही इसके अलावा इसे दिलत िवरोधी

    मानिसकता का उप यास भी माना जा सकता है य क दिलत के बीच से ही

    अफसर बना आदमी ही दिलत का शोषण करता है। इसके अित र इसे इस प

    म भी देखा जा सकता है क ‘‘दिलत वग से भी जब कुछ लोग सुिवधाभोगी जीवन

    के दायरे म दािखल हो जाते ह तो वे अपने वग िहत को छोड़कर नए वग िहत से

    अपने को जोड़ लेते ह। सेठ राम काश जो एक तर पर काशीराम जैसे नेता का

    ित प लगते ह, भी दिलत वग म वाथ का िहत साधन करते ह, उ ह जौहल

    आ द अफसर के िहत का याल है, न क काली आ द उ पीड़न के िशकार दिलत

    का।’’25

    ‘जमीन अपनी तो थी’ म जहाँ दिलत का शोषण सामंत के बर स दखाया

    गया है वह ‘कभी न छोड़े खेत’ म सामंत क आपसी लड़ाई के बीच दिलत एवं

    आम जन के सामािजक उ पीड़न को िचि त कया गया है। इस उप यास क

    कथाव तु का आरंिभक आधार वतं ता के बाद बदलते ए ामीण समाज म

    जम दार वग के कसान म सामंतवादी अवशेष अ स के प म बचे सं कार के

    कारण गुटबंदी और हसक संघष से जुड़ा आ है। उप यासकार ने ‘‘गांव के दो बड़े

    कसान प रवार -नंबरदार और नीलोवािलय के म य पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आने

    वाली दु मनी को कथावृ का के - बद ुमाना है। वतं ता के उपरांत ामीण

    जीवन म सामंती सं कार म किचत ास नह आ, वे पूंजीवादी वाथिल सा के

    साथ और ित ंि ता के साथ जुड़ जाने के कारण और बीभ स हो गये। चार-छह

  • 116

    उपल के िबगड़ जाने पर करतारा को जान से मार देना, यह या और ठाकुर क

    चेतना का प रणाम नह , अिपतु चेतना से िवमुख होकर मुदा सामंती आन-बान पर

    मर िमटने वाला दंभ है।’’26

    इन दोन गुट के म य होने वाले संघष क पृ भूिम म जसवंत कौर नाम क

    ी भी है, अथात ‘जन’ और ‘जमीन’ दोन । इस बात क ओर संकेत करते ए

    िमलखा सह कहता है क ‘‘जन ( ी) और जमीन जाट कौम क सबसे बड़ी दौलत

    है। एक उसके िलए आदमी जनती है और दूसरी अनाज। इन दोन के पीछे ये

    जान देते ह।’’27

    इन दोन सामंत प रवार के आपसी संघष एवं अ याचार से आम आदमी

    पीिड़त है। इनक दु मनी िजतना आम आदमी का शोषण करती ह,ै उसी तरह

    अगर ये िमल जाएँ तो और भी आम जन का जीना दूभर हो सकता है। इनके संघष

    म गांव के उपेि त दिलत एवं गरीब लोग इसी के चलते बुरी तरह भािवत होते

    ह। इनके संघष म वंिचत सह का किमजागर ग भीर प से घायल होता है और

    िगर तार हो जाता है।

    इसके अलावा दोन प मुकदमे के दौरान झूठी गवाही करने के िलए एक

    दिलत युवक शंकर पर दबाव डालते ह। ले कन शकंर गवाही देने से मना करता है

    य क उसक आ मा इस बात के िलए उसे िध ारती ह।ै पर भगवान सह उसक

    इस बात पर यान नह देता वह कहता है क गरीब आदमी का मन या कहता है

  • 117

    इस बात का कोई अथ नह है- ‘‘मन तो कई काम करने का नह मानता, ले कन वे

    करने पड़ते ह। और फर गरीब आदमी का मन कैसा?’’28

    इसके बाद उसे दूसरे प वाले (वंिचत सह) बुलाते ह। यहाँ भी उसे अनेक

    तरीके के लाभ का लालच देकर गवाही करने के िलए कहा जाता है ले कन वह यहाँ

    भी इनकार कर देता है। तब सरदार वंिचत सह भी अपने सामंती सं कार के

    अनु प उसे मारने क धमक देते ए कहता है ‘‘तेरी यह मजाल क मेरा कहा

    टाले?................उतर जा थड़े से, नह तो मार-मार कर तेरी चमड़ी उधेड़

    लंूगा।’’29 इन औप यािसक व पर यान दया जाए तो य बात साफ है क

    ‘‘सामंती व था म गरीब आदमी और उसक आ मा का कोई मृ यु नह ह,ै वह

    सामंतो का दास है। वे जब चाह जैसे चाह, उसका इ तेमाल कर सकते ह।’’30

    शंकर जैसे गरीब, शोिषत, पीिड़त, दिलत लोग क मजबूरी क ओर

    फे मल अपने कथन के मा यम से इशारा करते ए कहता ह-ै ‘‘दूसरे, हम सबका

    गुजारा इ ह लोग के िसर पर है। इनके खेत सूख जाएं , फसल न हो, हल न चल

    तो सबसे पहले तुम लोग भूख मरोगे। मेहनत-मजदरूी के िलए दर-दर भटकोगे।

    इनके हल चलते ह तो तु हे काम िमलता है। अपना रोजगार के िलए इनके

    रोजगार क चलता रखना ब त ज री है।’’31 इससे ये पता चलता है क दिलत

    का सामािजक उ पीड़न इसिलए होता है य क इनके पास खेत नह है अथात

    आ थक प से आ मिनभर नह ह। इ ह अपनी जीिवका के िलए दूसरे के खेत म

    काम करना पड़ता है।

  • 118

    कमजोर लोग िसफ सामंत से ही पीिड़त नह ह बि क पुिलस वाल से भी

    पीिड़त ह। वे शंकर के उपर सरकारी गवाह बनने का दबाव बनाते ह, उसे पीिड़त

    करते ह। उसके इनकार करने पर उसे झूठे मुकदम म फंसाने क धमक देते ए

    कहते ह ‘‘इसका नाम भी फसा दय म िलख द । दस-प ह दन हवालात म रहने

    के बाद यह वादा मुआफ गवाह बनने के िलए िम त करेगा। साला जात का कमीन

    ह,ै ले कन अकड़ पठान जैसी है।’’32

    इस कार यह प हो जाता है क इस उप यास म सामंत के आपसी

    संघष म दिलत वग का भी शोषण गहरे प म होता है। कुल िमलाकर जगदीश

    चं के उप यास म सामािजक उ पीड़न और भूिम संघष का यथाथपरक िच

    तुत कया गया है जो थानीयता के साथ संपूण भारतीय वाङमय क सामािजक

    िव ूपता को करता है।

    4.2 शहरी समाज और दिलत जीवन :-

    आज भी हमारे सामािजक एवं राजनैितक जीवन का ढांचा गरीब सवहारा

    मजदूर को समाज के अिभ िह से के प् म सावजिनक प से वीकृित नह

    दान करता। एक समय ऐसा था जब म य वग इनके बारे म सोचने और संघष

    करने के िलए तैयार रहता था ले कन आज वह भी इतना आ मक त हो गया है क

    खुद के बारे म ही वह पूरी तरह से चितत रहता दखाई देता ह।ै उसे आम जन के

    शोषण से कोई लेना देना नह ह।ै एक समय ऐसा था जब ‘‘मालती और मेहता के

    मा यम से ेमचंद ने जो सपना देखा था, वह आज पूरी तरह िबखर गया है। वो

  • 119

    गोबर को स मान का जीवन देने का यास तो करते ह ले कन आज के शहर इन

    लोग को डाल के टूटे प के अित र शायद कुछ नह समझते। शायद यही सोच

    हम, हमारे समाज को पुराणपंथी िवचार, अवै ािनक िच तन और संवेदनहीन

    बना रहा है। जब हमारी सोच म बृहत मानव समाज भारत का आदमी, उसक

    पीड़ा, उसके संघष, अमानवीय ि थित को बदलने क छटपटाहट नह होगी ऐसे

    म म यवग ित यावादी, पुन थानवादी िवचार का ही संवाहक अिधक

    बनेगा।’’33

    इस तरह के िवचार के िव जगदीश चं ने हदी सािह य म दिलत के

    शोषण से संबंिधत लेखन के बड़े गैप को भरते ए 1972 म ‘धरती धन न अपना’

    क रचना क जो भूिमहीन दिलत के जीवन के ामािणक द तावेज क तरह है।

    इसके लगभग बीस साल बाद (1994) म ‘नरक कु ड म बास’ को िलखकर उ ह ने

    यथाथ के नए तर का उ ाटन कया। इस उप यास म वे ‘‘भूिमहीन और दिलत

    ि क समाज म या ि थित है- उसका िविवध आयाम से िच ण करते ह।

    काली क िनयित ि क नह , सवहारा क िनयित ह ैिजसे न गांव स मान का

    जीवन दे रहे ह और न शहर। वे नरक-दर-नरक भटक रहे ह। आज दिलत

    राजनीित तो हो रही है उनक भावना तक से खेला जा रहा है। उनके आ थक

    और सामािजक मुि के यास ब त कम हो रहे ह। राजनीित खेल, खेल रहे ह।

    जो दिलत म स प और म यवग िवकिसत आ है वह अपना सामािजक और

    राजनीितक वच व कायम करने के िलए उनक भावना से खेल रहा है। दिलत

  • 120

    से दिलत क राजनीित करने वाले, उनके और पराये दोन ही तरह के लोग एक

    ू र मजाक कर रहे है।’’34

    यह उप यास मु य प से गांव के भीतरी और बाहरी दबाव से उ प

    नरक य ि थित को झेल रहे काली के शहर पलायन क कहानी है। उप यास म

    इसी बदु से कहानी शु होती है। काली शहर काम क तलाश म जाता है ले कन

    यहाँ भी उसे िनराशा हाथ लगती है, कारण यह है क िबना कसी जान-पहचान के

    शहर म कोई काम नह देता है। इस सच का उ ाटन करते ए िम ी यान काली

    से कहता है क ‘‘शहर म हर परदेसी को चोर-उच ा समझा जाता है। काम उसी

    को िमलता है िजसका कोई अपना सरनामा हो, कोई अता-पता हो, कोई वाली-

    वा रस हो। वहाँ तो लोग गली के बाहर के कु े को भी टुकड़ा नह डालते, परदेसी

    को काम के िलए घर म कैसे घुसने दगे।’’35

    काली शहर म काम न िमलने के कारण मजदूर से भी गई गुजरी ि थित म

    प ँच जाता है य क उसके मजदूर होने का भी कोई मतलब इस शहर म नह है।

    इसके चलते काली भूखमरी क ि थित म भीखा रय के साथ सेठ र चं ारा

    आयोिजत भोज म जाता है जहाँ उससे अ छी ि थित पशु-पि य क दखती है।

    इस स य से -ब- होकर वह जान जाता है क आदमी क घर-गांव के िबना कोई

    पहचान नह ह,ै उसका कोई वतं अि त व नह है। मंडी म रेखा ख चने वाला

    िछ बू इस बात पर गहराई से काश डालते ए कहता है क ‘‘देख पहलवान, जड़

    से उखड़ा पेड़ जड़ सूख जाता है। घर घाट से िबछड़ा आ आदमी ज दी ही अपना

  • 121

    आपा खो बैठता है। मर-खप जाता है। पशु को क ले के िबना और आदमी को घर-

    गांव के िबना कोई पहचान नह है।’’36

    इसके बाद काली को िछ बू मंडी म आधी मजदूरी पर काम दला देता है।

    तब काली भी उसी क तरह ापा रय को मंडी का माल प ँचाता है। इस काम

    को करने के दौरान ही उसे चोर समझा जाने लगता है। ापा रय को उस पर

    शक होने लगता है क ये रा ते म माल िनकाल लेते ह। इस झूठे शक पर ं य

    करते ए कालू उसे समझाता है क ‘‘सब चलता है। गरीब आदमी क ज रत भी

    चोरी है और बड़े आदमी क चोरी उसका शौक समझी जाती है।’’37 कुछ समय के

    बाद काली पुनः बेरोजगार होता है। उसक आ मा म आ यहीनता और िमक

    जीवन क बेबसी घर कर जाती है। जब वह नए काम क तलाश म मांझा के साथ

    चमड़े के कारखाने म जाता है तो कारखाने के साथ-साथ उसके फोरमैन ारा

    उसका अता-पता पूछा जाना नरक य ि थित का अहसास उसके अंदर भर देते है।

    काली उस फोरमैन क बात पर ं य करते ए कहता है क ‘‘फोरमैन जी, गरीब

    आदमी का या अता-पता हो सकता है। अता-पता तो जमीन न जायदाद से बनता

    है। पि य का अता-पता कौन बताएगा। जहाँ दाना दुनका, रोटी-टु ड़, काम-

    काज िमल गया, वही अता-पता बन जाता है।’’38 ये कथन काली के साथ-साथ

    िमक जीवन क पीड़ा को करती है जो क इस जीवन के यथाथ को उजागर

    करता है।

    काली को काम पर रखने के बावजूद भी फोरमैन उसके ारा कए जाने

    वाले काम क क ठनाई एवं उससे ा होने वाली यूनतम मजदूरी क ओर संकेत

  • 122

    करते ए कहता है क ‘‘तेरी जवानी को देख तो जी चाहता है तुझे तुर त जवाब दे

    दू ँ य क यह काम अ छे-भले आदमी को कुछ साल म ही खा जाता है। खुजली-

    खा रश तो दो-तीन माह के बाद शु हो जाती है। िजस आदमी के हाथ-पांव, बाजू-

    टांगे नमक शीरे, चूने और छीलन के पानी म रहगे, सारा दन मोठा म छर काटेगा,

    उसक जदगी या होगी तू आप सोच सकता है। फर उजरत भी यादा नह है।

    बारह घंटे के बाद अ छे सधे ए कारीगर को पये सवा-डेढ़ िमलते ह। नौिसिखए

    को तो पये बारह आने से यादा नह िमलेगा। या खाएगा और या इलाज पर

    लगाएगा...........। ले कन जब तेरी गरीबी क ओर झांकता ँ तो इतनी उजरत भी

    ब त लगती है।’’39

    इन सब बात के बावजूद भी काली सड़ी-गली, ताजा क म क खाल को

    नमक से धो कर साफ करने के काम को वीकार कर लेता है। काली को नौकारी

    देने के कारण मांझा फोरमैन का आभार करते ए कहता है क ‘‘यारा,

    ज रत मंद क मदद करने, भूखे को रोटी देने और बेसहारा को आसरा देना ब त

    बड़ा पु य माना जाता है ले कन बेकार को रोजगार देना या दलाना सबसे बड़ा

    पु य है।’’40 यह व भारत म आजादी के बाद लोकतं आने के बावजूद

    बेरोजगारी क भयावह सम या पर सोचने के िलए मजबूर करता है।

    इस उप यास म काली का च र शहर प ँच कर बेरोजगारी झेलने वाल के

    प म िवकिसत आ है जो शहरी समाज म दिलत जीवन क ि थितय क ओर

    संकेत करता है। एक कार से ‘‘वह मेहनती और लगनशील तथा अपने काम के

  • 123

    ित ईमानदार युवक है। मंडी से काम छूटने के बाद वह पुनः बेरोजगार हो जाता

    है। उसे िनराशा होती है जो क मानव मन क वाभािवकता है। वह चमड़े के

    कारखाने म काम करना ारंभ कर देता है। वह उस नारक य वातावरण म िनरंतर

    अपने आप संघष करता है। इससे उसक संघषशीलता का पता चलता है।’’41

    इस तरह यह उप यास शहरी समाज म दिलत जीवन के प र े य को

    प रभािषत करता नज़र आता है। इसम ‘‘दिलत और मजदूर क अनेक सम याएँ

    अपने यथाथ प म उभरकर आयी ह। शहर म रोजगार क तलाश म आने वाले

    ि य को िनराशा ही हाथ लगती है। इस बेरोजगारी और मजबूरी का लाभ

    पूँजीपित वग अिधक से अिधक उठाता है। शहर म इसी बेरोजगारी के कारण उ ह

    पशु क जगह काम करना पड़ता है जो िनःसंदेह मानव जीवन के िलए, हमारी

    व था के िलए घातक है। कारखान म सड़ी-गली पशु क खाल को उ ह हाथ

    से रगड़-रगड़ कर धोना पड़ता है िजससे वे अ सर घातक िबमा रय के िशकार हो

    जाते ह जो उ ह सीधे मौत के मुहं म ले जाती ह। ये उनक िववशता है जो उ ह इस

    बीभ स वातावरण म काय करने के िलए मजबूर करती है।’’42

    4.3 सं ांत दिलत का शेष दिलत के ित दृि कोण :-

    जगदीश चं ने िजस उप यास यी क रचना क है उसम धरती धन न

    अपना और नरक कु ड म बास के िव तार क पृ भूिम म ‘‘भारतीय दिलत समाज

    क अव था-दुराव था को उसके िविवध चरण म िवकासा मक प मे पकड़ने का

  • 124

    भाव िछपा था। आजादी के पहले का घोड़ेवाहा का दिलत काली ‘धरती धन न

    अपना’ से जब ‘नरक कु ड म बास’ के तहत सामने आता है तो युग ि थितय का

    प रवतन ही साफ लि त नह होता, इस प रवतन के संबंधगत और भावगत

    पाकार भी पकड़ म आने लगते ह।’’43

    इससे इतर वतं ता के प ात के भारतीय समाज म ‘‘दिलत वग के उभार

    के अनेक सकारा मक पहलु के साथ-साथ कुछ ऐसे पहलू भी उभरने शु हो गए

    थे, िजनम ित यावादी वृि य के बीज िछपे थे।’’44 जगदीश चं का यह

    मानना था क ‘‘नरक कु ड म बास’ के आिखरी ख ड म काली अपने साथी

    मजदूर का छोटा-मोटा लीडर ज र बनता है पर मजदूर से एिलएनेट हो रहा ह ै

    य क वे उसे मािलक का िप ठू समझते ह।’’45 उपरो दृि कोण क अिभ ि

    उनके उप यास यी के तीसरे उप यास ‘जमीन अपनी तो थी’ म ई ह।ै इसम

    ‘‘काली अब िनरे साम तीय स ब ध से बाहर आकर जालंधर के अध साम तीय,

    अध-पूँजीवादी हालात का िशकार ह,ै यहाँ उसका शोषण करने वाले टेनरीज के

    उसी के वग से स ब ध रखने वाले मािलक ही नह , दिलत का नेतृ व करने का

    दावा करने वाले उनके अपने राजनेता भी ह।’’46

    इस उप यास तक आते-आते काली का ि व काफ साहसी, भय से

    रिहत, सामािजक अ याय के िव ोध करने म स म, अपने के ित

    उ साह एवं गव क भावना से ओत- ोत है ले कन वह इस उप यास म अपने बेटे के

  • 125

    ारा अवसरवादी रवैया अपनाए जाने पर अपने समाज के ित कत भावना के

    भाव को टूटते ए देखने वाला िववश पा भी है।

    इस उप यास म ‘‘नरक कु ड म बास वाली िवसंगितयाँ और िवरोधाभास

    गहराते ह। काली िववाह कर लेता है। एक प ा मकान भी उसे िमल जाता है।

    उसके आस पास के दिलत के बीच से एक नया आरि त सुिवधा संप वग समूह

    उभर रहा है जो सी लग ए ट क वजह से अनुसूिचत जाितय को भूिम आबं टत

    करता आ दरअसल उनका नामलेवा होता आ भी, उ ह के शोषण पर उता

    दखाई देता है। काली ऐसे दिलत अफसरशाह के िखलाफ लड़ता है, पर तु यह

    लड़ाई उसे जेल के करीब ले जाकर पुनः एक असफल आदमी क तरह रहा करवा

    के अकेला छोड़ देती है। दिलत का संघष इस उप यास म पूरी तरह एक आ म-

    ं य का प ले लेता है।.......जगदीश चं इसे गहराते ए अंततः यहाँ तक ले

    आते ह क काली का अपना बेटा आई.ए.एस. करके अफसरशाह म शािमल हो

    जाता है और एक तरह से उ ही अफसरशाह का िहमायती भी िजनसे लड़ता आ

    काली जेल के स खच के करीब प ँचता है। काली का बेटा जानता है क अफसर

    क आपसी लड़ाई कसी नतीजे पर नह प ँच सकती इसिलए वह ब त समझदार

    आदमी क तरह वहार करता है। यह समझदारी दिलत के आ म- ं य क

    चरम प रणित है।’’47

    उपरो व को हम चू ीलाल ारा बाबू रामनाथ, जो गांव ह रजन

    क दशा को लेकर काफ चितत दखाई देते है को समझाते ए वतमान लोकतं

    पर ं य करते ए कहता है क ‘‘बाबू जी अब तो है ही ध ा राज। इस काम म

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    अकेला कुलतार सह ही नह है। कोई िवरला ह रजन अफसर और लीडर बचा

    होगा जो इस लूट म शािमल नह है।........और यही लोग िबरादरी के िलए इंसाफ

    क दुहाई इस तरह देते ह, जैसे धमराज क नािभ से ज मे ह ।’’48 इस बात पर

    ं य करते ए बाबू रामनाथ कहते ह क ‘‘चू ीलाल जमाना ब त बदल गया है।

    और के िलए दुहाई अपनी कमाई का साधन बन गई है।’’49

    काली का बेटा ान काश जो पढ़ा िलखा सं ा त दिलत वग से ह,ै को अपने

    बाप के ारा जमीन के िलए हाय-तौबा करना फजूल क बात लगती है य क वह

    सोचता है क ‘‘जमीन िमली गई, तो या उस पर खेती करगे? दुकान-ेमकान छोड़

    बंजर म जा बैठगे।’’50 उसक माँ ारा भी जमीन को इ त स मान से जोड़ने पर

    भी ान काश इनकार करते ए ितउ र देता है क ‘‘शहर म इतने लोग रहते

    ह। उनके पास जमीन नह ह। या उनक इ त- ित ा नह ह?ै’’51 इस तरह

    हर कार क दलील के बावजदू ान काश जमीन और ित ा म सीध ेसंबंध को

    समझने म असमथ दखाई देता है िजससे उसक दृि सामा य दिलत क भूिमहीन

    ि थित से उपजी सम या क तरफ नह जाने पाती है।

    आगे भी यही ि थित दखती है, जब जमीन के िलए संघष करते व पुिलस

    वाले उसे पकड़ के ले जाते ह तब यह खबर सुनकर क उसका बाप जेल म ह,ै वह

    शम महसूस करने लगता है। हांला क अपने बाप के ित एक बेबसी का भाव

    उ प होता है ले कन साथ-साथ अपने बाप क करतूत पर आ ोश भी इसके मन

    म उठता है। इसके बाद जब ान काश आई.ए.एस. अिधकारी बन जाता है तो

  • 127

    वह काली ारा जमीन के मामले म दलच पी लेने पर िब कुल नाखुश नजर आता

    है। वह काली क बात पर असहमित जताते ए कहता है क ‘‘डैडी, जब वह

    कानून क िगर त म नह आया, तो म या कर सकता ँ।.....वैसे आप जमीन के

    पीछे य पड़े ह। अगर िमल भी जाए तो या आप उस बंजर म खेती करने

    जाएँगे।’’52

    ले कन काली जमीन म फर दलच पी जताते ए उससे अपनी आ मीयता

    कट करता है तब ान काश अपनी नाराजगी जािहर करते ए कहता है क ''म

    तो यही क ँगा क आप इस मामले को भूल जाए।’’53 इस बात से काली को यह

    अहसास हो गया क उसका लड़का बड़ा अफसर बनने के बाद अपनी जड़ को भूल

    गया है इसिलए वह इन सब बात पर यान नह देता।

    इस उप यास के अंत म एक ऐसी घटना घ टत होती है िजससे सं ांत दिलत

    का आम दिलत लोग और अपनी जाित के ित या वैचा रक भावना है, प हो

    जाता है। जब काली अपने आई.ए.एस. बेटे के दो त जाज के खराब हो रहे अ छे

    महंगे जूते क तरफ संकेत करते ए उसके मर मत करते क िहदायत देता है तो

    इस िहदायत को सुनकर ान काश अवाक् रह जाता है। उप यासकार िलखता है

    क ‘‘अपने िपता क बात सुनकर ान काश हत भ रह गया। गु से और शम से

    उसका चेहरा और कपोल सुख हो गए। उसक यह दशा देखकर बाक लोग भौच े

    रह गए।’’54 अपने बेटे क शकल देखकर काली को इस बात का अहसास हो गया

    क कुछ गड़बड़ी मने कर दी है, तभी तो ान अनायास उठकर चला गया। जब

  • 128

    ान ने अपने िपता को देखा तो ोध से जलते ए कहा ‘‘मेरे दो त को या यह

    बताना ज री था क तुम चमार हो, मोची का काम करते हो........ कसी ने

    सलाह मांगी थी?.........आप मेरे दो त के बीच य बैठना चाहते ह?......यह जूते

    क दुकान नह । आई.ए.एस. अफसर क कोठी है।’’55 ान काश के ये कथन इस

    बात को सािबत करते है क उसे गांव, गांव क जमीन से तो घृणा है ही, इन सबसे

    यादा उसे अपनी जाित से घृणा है जो क दिलत म यवग य चेतना को उजागर

    करता है। फर भी काली का ि व डगमगाता नह है य क वह मानता है क

    ‘‘जहाँ अिधकार नह , वहाँ स मान भी नह और ऐसे थान पर आदमी का जीवन

    क ड़े-मकौड़े से भी नीच होता है।’’56

    एक कार से यह उप यास दिलत जीवन के अ दर से पैदा हो रहे सं ांत

    म यवग य चेतना के लोग का शेष दिलत के ित दृि कोण को उजागर करता है।

    काली क इस उप यास के अंत म जो ि थित होती है उस पर न हसँा जा सकता है

    और न रोया ही जा सकता है। उसका और उसक जाित क अि मता को सबसे

    यादा ठेस उसका बेटा ही प ँचाता है य क वह शहरी एवं सं ांत म यवग य

    दिलत क चेतना से त है। जो क एक नए सामािजक संकट क तरफ संकेत तो

    है ही वतमान समय के दिलत यथाथ का व प भी है।

    4.4 दिलत राजनीित का व प :-

    जगदीश चं के उप यास म दिलत राजनीित का व प जहाँ वतं ता के

    पूव अं जे ारा िन मत क गयी जम दारी क ू र शोषण व था के मा यम से

    आ ह वह वतं ता के बाद क लोकतांि क व था एवं महानगरीय

  • 129

    जीवन के मायाजाल म उलझकर गुम सा हो गया है जहाँ व था के ज टल

    अंत वरोध म उसक अहमीयत अपने मूल से कटकर सुिवधाभोगी होने के िलए

    अिभश है जो क अपने अि मता क पहचान को कंुद कर देन ेक शत पर ा

    होता दखाई देता है। एक तरह से ‘‘धरती धन न अपना’ म जगदीश चं ने दो

    वलंत स य को िवशेषतः रेखां कत कया था। यथाथ बोध के एक छोर पर यह

    असहायता है क चौधरी और कमीन के मुकाबले गलती हमेशा कमीन क होती है

    और दूसरे छोर पर दिलत आ ोश का यह उभार है क हर चीज क एक हद होती

    और मजीवी भी प थर के बने ए न होकर हाड़-मांस के इंसान ह।’’57

    वह ‘‘नरक कु ड म बास’ न केवल ‘धरती धन अपना’ क कथा का िव तार

    ह,ै अिपतु बोध और संवेदना के तर पर भी इसम सहज फैलाव िमलता है। यह

    उप यास शहर के प रवेश म काली सरीखे दिलत -उ पीिड़त क िनयित का

    लोमहषक बयान है। असहायता और आ ोश का ं इस उप यास म भी ब त

    जगह घेरता है। गरीब आदमी के िलए तो बेहतर जदगी का व देखना भी पाप

    होता ह-ै यह सच उप यास के अंितम अंश म काली के कटु अनुभव से छनकर आया

    है।’’58 यह कटु स य आजादी के बाद के मूलभूत कारण और त व क खोज के म

    म आजादी पर हावी होती जनिवरोधी नीितय को िन मत करने वाली

    व था को रेखां कत करता है।

    आजादी के नाम पर इस तरह छले जाने का अहसास एक कार से

    राजनी