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तौरेतो-इंजील · tauret-o-injīlkīsehat TheTrustworthinessofTauretandInjil byBakhtullahKhan (Urdu—Hindiscript) ©2017ChashmaMedia publishedandprintedby GoodWord,NewDelhi

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  • तौरेतो-इंजीलक

    सेहतब तु लाह ख़ान

  • tauret-o-injīl kī sehat

    The Trustworthiness of Tauret and Injilby Bakhtullah Khan(Urdu—Hindi script)

    © 2017 Chashma Mediapublished and printed byGood Word, New Delhi

    for enquiries or to request more copies:[email protected]

  • अज़ीज़ क़ारी! मग़ रबी ममा लक म ब त-सी बात क़ा बले-मज़ मत ह। लोग मग़ रब से आनेवाली फ म देखते ए कान कोहाथ लगाकर कहते ह क अ लाह हम ऐसी चीज़ से बचाए रखे।इसके अलावा ट वी मग़ रबी क़ौम का ऐसा तज़- ज़दगी दखातारहता है जस पर कसी क़ म क कोई पाबंद नह और जोसरासर ख़ुदग़रज़ी और अना-पर ती का इज़हार है। अख़लाक़अक़दार बलकुल ढ ली ढाली ह। इस तरह लोग के ज़हन मयह बात बैठ गई है क मग़ रब अख़लाक़ और द नी लहाज़से तन जल का शकार और ज़वालपज़ीर है। तब ख़तरा है कयह नापसंद दा अना सर ईसाई ईमान क पैदावार समझे जाए।ँले कन ऐसा ख़याल बड़ी बेइनसाफ़ का हा मल है। अगर इसलामीममा लक म पाई जानेवाली मुआशरती बुराइय को इसलाम केमुतरा दफ़ क़रार दे दया जाए तो वैसी ही बेइनसाफ़ होगी।

  • 2तो फर हम कस तरह फ़ैसला कर सकते ह क हक़ क़ और

    स चा ईसाई ईमान या है? या कोई कसौट , कोई मेयार है जोहम यह फ़ैसला करने म मदद दे सके?

  • 1कलाम :स चे ईमान क कसौट

    ज़रा तस वुर कर क चार तरफ़ तारीक छाई ई है। इस तारीकम एक अलाव रोशन है। अलाव क झुलसा देनेवाली तेज़ गरमी केबाइस कोई नज़द क जाने क जुरत नह करता क मबादा जलजाए। थोड़ी थोड़ी देर बाद अलाव से चगा रयाँ उड़ती ह। उड़करआग से र र प ँचती और तारीक म रोशनी फैलाती ह। फरज़मीन परआ गरती ह। कभी कभी वह सूखी घास या सूखे झाड़-

  • 4झंकाड़ पर जा गरती ह तो उन मआग भड़क उठती है। फर एकऔर आग या अलाव जलने लगता है।तौरात और इंजीले-शरीफ़ गोया इ ह चगा रय का रकाड ह

    जो अ लाह तआलाक ज़ातक भड़कती ई पाक ज़गी से सा दर। वह सतहे-ज़मीन पर आ गर और ख़ुदा के पैग़ाम-रसान के

    दल म जलने लग । इस तजरबे से वह स त हैरतज़दा ए। इनकेदल और दमाग़ छलक उठे और उनक ज़बान खुल ग ता कउस पैग़ाम का एलान कर जो उनको मला है। पाक न व ते ऐसेही इलाही मुकाशफ़ात पर मु त मल ह।चुनाँचे सफ़ तौरेत और इंजीले-शरीफ़ क तालीमात ही फ़ैसला

    कर सकती ह क हक़ क़ ईसाई ईमान या है। आइए एक मसालपर ग़ौर कर। फ़ज़ कर क एक आदमी ख़ुद को ईसाई कहता है।वह चोरी करते ए पकड़ा जाता है। या इस बात से ईसाई द नको ग़लत ठहराना मुना सब होगा? हर गज़ नह ! सफ़ उस श सका अपना ईमान ग़लत ठहरेगा, य क तौरात तो वा ज़ह तौर परफ़रमाती है क चोरी करना मना है।

  • 2कलाम क तहरीफ़नामुम कन

    तौरात और इंजीले-शरीफ़ क सेहत के ख़लाफ़ उमूमन दोएतराज़ात पेश कए जाते ह। एक तो कहा जाता है क इस मतहरीफ़ यानी र ो-बदल आ है। ऐसे लोग के नज़द क अहले-कताब ने असल तालीमात छुपाने के लएअपने न व त को तोड़-मरोड़कर पेश कया है। सरे, इस ख़याल का इज़हार कया जाताहै क क़राने-मजीद ने इंजीले-शरीफ़ को मनसूख़ कर दया है।

  • 6तहरीफ़े-ल ज़ी का इलज़ामशु से नह लगाया गयाअगर तहरीफ़ कोई मु तनद दलील होती तो इसलाम के शु ही सेइसका वसी पैमाने पर ज़ होता। ले कन दलच प बात यह है कतहरीफ़े-ल ज़ी के वा ज़ह इलज़ामात उन कताब म ही मलते हजो 1000 ई. के बाद ही लखी ग ।नव सद के तीन नामवर मुस फ़ न से ईसाई मज़हब केख़लाफ़ कताब क़लमबंद यानी अली बन र बन अत-तबरी,1अल-क़ा सम बन इ ाहीम अल-हसनी2औरअमर बन बहर उल-जा हज़3 से। ले कन तीन सफ़ तहरीफ़े-मानवी का ज़ करतेह। तहरीफ़े-मानवी से या मुराद है? इससे वह फ़रमाना चाहते थेक मतन के मान को बदल दया गया यानी मतन को ग़लत रंग मपेश कया गया है। याद रहे क इनक कताब ईसाइय के दाव कोझुटलाने के लए लखी गई ह। सरे मुस फ़ न पर भी यही बात

    1 कताबुद-द न वद-दौला2अर-रद अलान-नसारा3 रसाला फ़र-रद अलान-नसारा

  • 7सा दक़ आती है। कोई नह तहरीफ़े-ल ज़ी का इलज़ाम लगाताहै।1तहरीफ़े-ल ज़ी के बारे म पहला वा ज़ह हवाला 1000 ई. के

    बाद के मुस लम मुस फ़ न क तहरीर म ही मलता है। उनकामश र नुमाइंदा अंदलुस का इ न हज़म है।2 तहरीफ़े-ल ज़ी सेया मुराद है? इस म फ़ज़ कर लया जाता है क न सफ़ मतलबब क मतन भी बगाड़ा गया है।

    हा सले-कलामआमदे-इसलाम के चार सौ साल बाद ही लोगतौरातऔर इंजीले-शरीफ़ पर तहरीफ़े-ल ज़ीका इलज़ामलगाने लगे। मुराद यह है कअपनेसुनहरी दौर म मुसलमान ने ईसाइय पर यहइलज़ाम न लगाया। तो या यह जायज़ है कमौजूदा ज़माने म यह एतराज़ उठाया जाए?

    1मसलन अल-अंबारी, अल-मातुरीद , हसन बन ऐयूब, अल-बा क़लानी,अल-हमज़ानी वग़ैरा।2 कताबुल- फ़सल फ़ल- मलल वल-अहवा वन- नहल

  • 8लातादाद क़द म क़लमी नुसख़़का इ फ़ाक़एकआमख़याल यह है क चूँ क बाज़ मक़ामात पर पाक न व तके मुख़त लफ़ मसौद म क़दरे इ तलाफ़ात नज़र आते हइस लए ज़ा हर है क अहले- कताब ने तौरेत और इंजीले-शरीफ़के मतन म द तअंदाज़ी क है।ले कन ज़रा सोच ल। यह नुसख़े़ कई ममा लक म बखरे पड़े

    थे। कौन इन सबको तबद ल कर सकता था? नीज़, तौरात औरइंजीले-शरीफ़ के हज़ार क़द म मसौद पर बड़ी अक़-रेज़ी,बारीकबीनी और एह तयात से तहक़ क़ क गई है। इस तहक़ क़का नतीजा यह नकला है क इन मसौद क अकस रयत बलकुलक़ा बले-एतमाद है। इन म इ तलाफ़ात नहायत मामूली नौईयतके ह। इसके अलावा इन मसौद का बड़ी एह तयात से मुक़ाबलाकरने से उलमा कताबत क इन मामूली ग़ल तय को ब त हदतक र करने के क़ा बल हो गए ह। बाक़ जो रह गई ह वह इतनीमामूली ह क तौरेतऔर इंजीले-शरीफ़ क तालीमात पर बलकुलअसरअंदाज़ नह हो सकत । इस लए उनको नज़रंदाज़ कया जासकता है।1

    1दे खए सेहते-कुतुबे-मुक़ सा सफ़हा 30-44।

  • 9नाक़ा बले-मोतबर न क़ाद कआरा नामंज़ूरयह आम रवाज हो गया है क आज़ादख़याल ईसाई उलमा कआरा को तहरीफ़ के सबूत के तौर पर पेश कया जाए। दलील यहद जाती है क जब ईसाई उलमा भी कहते ह क कलाम के मतनम ग़ल तयाँ और तज़ादात मौजूद ह तो इससे यह हक़ क़त ज़ा हरहोती है क इस म र ो-बदल हो गया है। ले कन बु नयाद सतहपर यह दलील ब त आसानी से र हो जाती है। यह तो ऐसे हीहै जैसे कोई ग़ैरमुस लम सलमान शद या कसी आज़ादख़यालमु लमान मुस फ़ के हवाले से कहे क इससे सा बत होता है कक़राने-शरीफ़ म तहरीफ़ हो चुक है।

    कलाममइसलामी तालीमकह मौजूद नहतहरीफ़ के इलज़ाम के पीछे या ख़याल है? ख़याल यह है कय दय और ईसाइय ने जान-बूझकर मुक़ स मतन को बदलडाला ता क इसलामक उन तालीमातको छुपा दया जाएजो शुसे कलाम के अंदर मौजूद थ । मोत रज़ीन का कहना है क अहले-कताब सफ़ तहरीफ़ करके ही अपनी ग़लत तालीमात को क़ायम

  • 10रख सकते थे। सरे ल ज़ म तहरीफ़ के नज़ रए का मक़सद यहहै क कलाम को ग़ैरमोतबर ठहराकर इस दावे के लए रा ता खोलदे क असल मतन म इसलामी तालीमात पाई जाती थ । हाँ, कुछका दावा है क आज तक पाक न व त म इसलामी जौहर यामग़ज़ छुपा आ है मसलन क लमा, इसलाम क आमद के बारे मपेशगोइयाँ वग़ैरा।ले कन अगर ग़ौर से देखा जाए तो मालूम होता है क इसलामी

    तालीमात का जौहर या मग़ज़कलाम मकह से अख़ज़ नह होता।यह ऐसा ही है क मग़ज़ क तलाश म याज़ को छ लते जाए।ँ उसेकाटते जाएँ और छ लते जाएँ तो मग़ज़ क सूरत म या मलताहै? कुछ भी नह ! इसके बरअ स कलाम क तालीमात एक कुलपर मु त मल ह जसे तक़सीम नह कया जा सकताऔर जसकाइसलामी तालीमात से कोई ता लुक़ नह । अगरचे चंद एक नकातम सतही मुशाबहत ज़ र नज़र आती है।मसाल के तौर पर अल-मसीह क तसलीब ही को ली जए।

    मग़ रबी मुअ रख़ीन म से कड़ी से कड़ी तंक़ द करनेवाला भी अल-मसीह क मसलू बयत से इनकार नह करता। इंजीले-शरीफ़ मतसलीब के बारे म बकसरत हवाले मौजूद ह जो क ब त वा ज़हह। चूँ क यह हवाले कलाम के मुख़त लफ़ न व त म मलते हजो मुख़त लफ़ अफ़राद ने मुख़त लफ़ औक़ात म लखे, इस लए

  • 11सबके सब हवाल को इतनी उ दगी से तबद ल करना मुम कन हीन था क उन म कह कोई तज़ाद बाक़ न रहे।कई दफ़ा दावा कया जाता है क पाक न व त ने इसलाम क

    आमद क पेशगोइयाँ क ह। ले कन आज तक यह बात सा बतनह क जा सक । जब भी सयाक़ो- सबाक़ का मुतालआ कयाजाता है तो पता चलता है क यह पेशगोई कसी और श स यावा क़ये के बारे म है। मसलन दावा कया जाता है क यूह ा16:12-15 पैग़ंबरे-इसलाम क पेशख़बरी है। ले कन अगर इनआयात के सयाक़ो- सबाक़ का बग़ौर जायज़ा लया जाए तोवा ज़ह हो जाता है क यह ल-क़दस् के आने का बयान करतीह।1

    अल-मसीह ख़ुद कलामे-ख़ुदा हैयूह ा रसूल फ़रमाते ह,

    कलाम इनसान बनकर हमारे दर मयान रहाइश-पज़ीर आ। (यूह ा 1:14)

    इस आयत का या मतलब है? कलाम भला कैसे इनसान बनसकता है? कलाम तो कलाम ही होता है। मुम कन है यह आला1मुलाहज़ा फ़रमाएँ फ़ार लीत अज़ वक लफ़ ए. सह।

  • 12दज का न व ता हो जस म इलाही ख़यालात क़लमबंद ह । होसकता है यह नया का बेहतरीन कलाम हो। ले कन रहेगा कलामही—एक बेजान चीज़। चुनाँचे कलाम जानदार शै भला कैसे बनसकता है?सयाक़ो- सबाक़ पढ़ने से पता चलता है क कलाम से मुराद

    ईसा अल-मसीह है। यानी अल-मसीह म ख़ुदा का अज़ली कलामइनसान बन गया। इसे समझने म कुछ उलझन पैदा हो सकती है,और य न हो? जब इनसान अ लाह क ज़ात के भेद का खोजलगाने लगता है तो उसका ना-तवाँ दमाग़ चकराने लगता है। इसतस वुर को बेहतर तौर से समझने के लएआइए हम एक मसालपर तव जुह द।एक बीज अपने आप म बेजान दखाई देता है। ले कन बीज

    के अंदर पौदे क तमाम सफ़ात मौजूद ह। जब हम उसे ज़रख़ेज़ज़मीन म बो देते ह तो या होता है? शु म तो लगता है जैसेकुछ नह हो रहा। फर आ ह ता आ ह ता बीज क श लो-सूरतबदलती है। एक क पल फूट नकलती है जो धूप क तरफ़ बढ़नाशु कर देती है। जड़ बढ़ने लगती ह जो म से नमी और ख़ुराकख चती ह। बलआ ख़र बीज दखाई भी नह देता ब क एकसरस ज़ो-शादाब पौदा आँख को फ़रहत प ँचाने लगता है। उसपर फूलआते हऔर फर उसका लज़ीज़फल देखकर मुँह म पानीभर आता है। बीज तो मर गया मगर उसके वसीले से ज़दगी क

  • 13एक हैरतअंगेज़ श ल पैदा हो गई। जो चीज़ कसी व त बेजानदखाई देती थी अब उसक अपनी असल मा हयत अमली तौर सेदखाई देने लगी है।कलामे-ख़ुदा यानी अल-मसीह कस तरह इनसान बनकर हमारे

    दर मयान रहाइश-पज़ीर आ? बीज क तरह वह ज़मीन कतारीक म लगाया गया और उसके साथ एक हो गया। मरकरउसने नई ज़दगी पैदा क यानी वह अबद ज़दगी जसे हर वहश स हा सल करता है जो अल-मसीह पर ईमान ले आता है।अल-मसीह के बारे म पाक न व त क दज-ज़ैल इबारत का यहीमतलब है,

    वह जो अ लाह क सूरत पर था नह समझता थाक मेरा अ लाह के बराबर होना कोई ऐसी चीज़है जसके साथ ज़बरद ती चमटे रहने क ज़ रतहै। नह , उसने अपने आपको इससे मह म करकेग़लाम क सूरत अपनाई और इनसान क मा नदबन गया। श लो-सूरत म वह इनसान पाया गया।उसने अपने आपको प त कर दया और मौत तकताबे रहा, ब क सलीबी मौत तक।( फ़ ल पय 2:6-8)

  • 14कलामे-ख़ुदा ने अल-मसीह म इनसानी ज़ात के साथ एक होकरमौत क सलतनत म दा ख़ल होने का तारीक और ददनाक सफ़रशु कर दया। कलामे-ख़ुदा का इलाही बीज इनसान क तारीकऔर फ़ानी ज़मीन म दबा दया गया यहाँ तक क उसने सलीब परजान दे द । या यही अख़ीर या ख़ातमा था? ज़ा हरी तौर से तोज़ र। ले कन मौत क सलतनत के अंदर ज़दगी देने का अमलपहले ही शु कया जा चुका था। मरकर बीज ने नई ज़दगी पैदाकर द । यह नई ज़दगी गुनाह म गरे ए इनसान क कमज़ोरज़दगी से बलकुल फ़रक़ है, य क उसका मसदर अ लाह हीहै। यह ज़दगी दायमी ज़दगी के च मे से हमेशा जारी रहती है।यह ज़दगी हर उस श स को अता होती है जो अपनी ज़दगीअल-मसीह के सुपुरद कर देता है।इससे हम तौरेत और इंजीले-शरीफ़ क मा हयत के बारे म या

    नतीजा अख़ज़ कर सकते ह? अगर अल-मसीह फ़ल-हक़ क़तख़ुदा का कलाम है तो पाक न व त का करदार या है? या वहभी अ लाह से ना ज़ल ए ह? उनक या अह मयत है?

  • 15पाक न व ते कलामे-ख़दाक गवाही देते हपाक न व त क अह मयत इस म है क यह कलामे-ख़ुदा यानीअल-मसीह क गवाही देते ह। इनका वा हद मक़सद ज म से भरीई नया म अ लाह क नजात क गवाही देना है जैसा क पौलुसरसूल अपने शा गद तीमु थयुस से फ़रमाता है,

    औरआपबचपनसे मुक़ ससहीफ़ से वा क़फ़ह।अ लाह का यह कलामआपको वह हकमत अताकर सकता है जो मसीह ईसा पर ईमान लाने सेनजात तक प ँचाती है। य क हर पाकन व ता अ लाह के ह से वुजूद म आया है औरतालीम देने, मलामत करने, इसलाह करने औररा तबाज़ ज़दगी गुज़ारने क तर बयत देने के लएमुफ़ द है। कलामे-मुक़ स का मक़सद यही है कअ लाह का बंदा हर लहाज़ से क़ा बल और हरनेक काम के लए तैयार हो।(2 तीमु थयुस 3:15-17)

    पाक साहाइफ़ का मुकाशफ़ा एक नाक़ा बले-यक़ न मो जज़ा है,य क क़ा दरे-मुतलक़ ने इस म भी अपने आपको प त कया।

  • 16उसने अपने इलाही ख़यालात न बय के ज़हन म डाले, और यउनका बयान मह द इनसान क ज़बानऔर मुहावरे म होने दया।हाँ, अ लाह तआला ने कमज़ोर इनसान केअलफ़ाज़को इ तेमालकया। इस तरह वह कई स दय से अपने लोग क राहनुमाई औरअपनी मरज़ी उन पर ज़ा हर कर रहा है।हम पाक न व त को एक ख़ूबसूरत त वीर से तशबीह दे सकते

    ह। जब हम उस पर नगाह डालते ह तो ब त-सी पेचीदा औरख़ूबसूरत तफ़ासील देख सकते ह। इन तफ़ासील म हम कई बारकोईख़ास मफ़ म दखाई नह देता। ले कनजब इन तफ़ासीलकोएक साथ देखते ह तो हम कलामे-ख़ुदा अल-मसीह कलासानी सूरत नज़र आती है।

  • 3तौरेतो-इंजील क तनसीख़नामुम कन

    अकसर कहा जाता है क जस तरह इंजीले-शरीफ़ ने तौरेत कोमनसूख़ कया है उसी तरह क़राने-मजीद ने इंजीले-मुक़ स कोमनसूख़ कर दया है। ले कन तनसीख़ के क़वायद क से सफ़अहकाम ही एक सरे को मनसूख़ कर सकते ह। इस उसूल केमुता बक़ कलाम म मज़कूर मक़ूले, वा क़यात और नज़म मनसूख़नह हो सकत ।

  • 18आइए इस दावे का जायज़ा ल क आया क़रानी अहकाम ने

    इंजील के अहकाम को मनसूख़ कर दया है क नह ।

    मसीह से मूसवी श रयत मनसूख़ न आअल-मसीह पहाड़ी वाज़ म फ़रमाते ह,

    यह न समझो क म मूसवी शरीअत और न बयक बात को मनसूख़करनेआया ँ। मनसूख़करनेनह ब क उनक तकमील करने आया ँ। मतुमको सच बताता ँ, जब तक आसमानो-ज़मीनक़ायम रहगे तब तक शरीअत भी क़ायम रहेगी—न उसका कोई हरफ़, न उसका कोई ज़ेर या ज़बरमनसूख़ होगा जब तक सब कुछ पूरा न हो जाए।जो इन सब-से छोटे अहकाम म से एक को भीमनसूख़ करे और लोग को ऐसा करना सखाएउसे आसमान क बादशाही म सब-से छोटा क़रारदया जाएगा। इसके मुक़ाबले म जो इन अहकामपर अमल करके इ ह सखाता है उसे आसमानक बादशाही म बड़ा क़रार दया जाएगा। य कम तुमको बताता ँ क अगर तु हारी रा तबाज़ी

  • 19शरीअत के उलमा और फ़री सय क रा तबाज़ीसे यादा नह तो तुम आसमान क बादशाही मदा ख़ल होने के लायक़ नह । (म ी 5:17-20)

    यहाँ साफ़ तौर पर फ़रामाया गया है क इंजील और तौरात कइकाई है। इंजील के फ़रमान तौरात के फ़रमान मनसूख़ नह करतेब क अल-मसीह शरीअत क तकमील करने आया। यह कसतरह?जो तक़ाज़े मूसवी शरीअत ने कए वह हज़रत ईसा ने पूरे कए।

    वही का मल इनसान थे। उन म गुनाह पाया नह जाता था। न सफ़यह ब क उ ह ने अपनी जान क़रबानी के तौर पर पेश करने सेअपने ऊपर वह सज़ा उठाई जसे गुनाहगार इनसान को भुगतनाथा। इससे उ ह ने शरीअत क तकमील क ।ले कन ईसाई तौरात के कई एकअहकाम पर अमल नह करते।

    यह य ?

    मसीह मआ रज़ी अहकाम का इ ततामतौरेत के उन सूमाती और अदालती अहकाम पर अमलकरने कज़ रत नह जनका ता लुक़ ख़ास इसराईल से है। गो यह क़ायमह ले कन उनका इतलाक़ इसराईल पर ही मह द है।

  • 20अ लाह ने यह बात नहायत च का देनेवाले अलफ़ाज़ म पतरस

    रसूल को समझाई,अगले दन पतरस दोपहर तकरीबन बारह बजे आकरने के लए छत पर चढ़ गया। उस व तकुरने लयुस के भेजे ए आदमी याफ़ा शहर केक़रीब प ँच गए थे। पतरस को भूक लगी औरवह कुछ खाना चाहता था। जब उसके लए खानातैयार कया जा रहा था तो वह व द क हालतम आ गया। उसने देखा क आसमान खुल गयाहै और एक चीज़ ज़मीन पर उतर रही है, कतानक बड़ी चादर जैसी जो अपने चार कोन से नीचेउतारी जा रही है। चादर म तमाम क़ म के जानवरह : चार पाँव रखनेवाले, रगनेवाले और प रदे। फरएक आवाज़ उससे मुख़ा तब ई, “उठ, पतरस।कुछ ज़बह करके खा!”पतरस ने एतराज़ कया, “हर गज़ नह

    ख़ुदावंद, मने कभी भी हराम या नापाकखाना नहखाया।”ले कन यहआवाज़ बारा उससे हमकलाम ई,

    “जो कुछ अ लाह ने पाक कर दया है उसे नापाकक़रार न दे।” यही कुछ तीन मरतबा आ, फर

  • 21चादर को अचानकआसमान पर वापस उठा लयागया। (आमाल 10:9-16)

    दज-बाला हवाले म अ लाह तआला पतरस रसूल को हर क़ म केवहजानवरखाने का म देता है जनको तौरेत ने नापाक ठहरायाहै। बु नयाद तौर पर इस रोया का ता लुक़ नापाक जानवर कोखाने से न था, ब क ख़ास मक़सद य दय और ग़ैरय दय केबाहमी ता लुक़ को ज़ा हर करना था। य दय को म था कग़ैरक़ौम से कसी क़ म क रफ़ाक़त न रख। चुनाँचे वह उनसेर रहते थे और उनके साथ खाना तक नह खाते थे। यह मईसा अल-मसीह क आमद तक क़ायम रहा, य क हर व त यहख़तरा रहता था क ग़ैरक़ौम के साथ मेल-जोल के बाइस य दअपना ईमान छोड़ बैठगे। अं बया उ ह बारहा इस ख़तरे से आगाहकरते आए थे।पतरस रसूल क रोया ने यह सब कुछ बदल डाला। अल-मसीह

    अपने शा गद को साफ़ और वा ज़ह म दे चुका था क सारीनया म जाकर अ लाह का कलाम फैलाओ। यह रोया इस म

    क तसद क़ करती है। चुनाँचे उसे देखते ही रसूल का पहला क़दमयह था क जाकर एक ग़ैरय द ख़ानदान को बप त मा दे।

  • 22इस फ़रमान का एक अहम नतीजा यह नकला क वह तमामसूमाती अहकाम जो इसराईली क़ौम पर मह द थे आ रज़ीसा बत ए। उन पर अमल करने क ज़ रत न रही।

    मुह बत का म नामनसूख़ताहम तौरेत और इंजीले-शरीफ़ के अहकाम एक ग़ैरमुंक़ समइकाई ह जसको कभी मनसूख़ नह कया जा सकता। यह इकाईतौरेत क दो मरकज़ी आयात म साफ़ नज़र आती है।

    रब अपने ख़ुदा से अपने पूरे दल, अपनी पूरी जानऔर अपनी पूरी ताक़त से यार करना।(इ तसना 6:5)

    अपने पड़ोसी से वैसी मुह बत रखना जैसी तू अपनेआपसे रखता है। (अहबार 19:18)

    अब अहम बात यह है क ईसा अल-मसीह ने ख़ुद इन आयातक मरक ज़यत क तसद क़ क । एक दन एक य द आलम नेअल-मसीह से पूछा,

  • 23“उ ताद, शरीअत म सब-से बड़ा म कौन-साहै?”ईसा ने जवाब दया, “‘रब अपने ख़ुदा से अपने

    पूरे दल, अपनी पूरी जान और अपने पूरे ज़हन सेयार करना।’ यह अ वल और सब-से बड़ा महै। और सरा म इसके बराबर यह है, ‘अपनेपड़ोसी से वैसी मुह बत रखना जैसी तू अपनेआपसे रखता है।’ तमाम शरीअत और न बय कतालीमात इन दो अहकाम पर मबनी ह।” (म ी22:36-40)

    यहाँ अल-मसीह ने अहकाम के बारे म एक अहम उसूल बयानकया है। तमाम अहकाम को वाह वह इंजील के ह वाह तौरेतके, इन दो अहकाम म समोया गया है क ख़ुदा से और अपनेहम जस इनसान से मुह बत रखो। द गर तमाम अहकाम सानवीहै सयत के हा मल ह और इ ह दो अहकाम से सा दर ए ह।तौरात के सूमाती अहकाम के पीछे भी यही दो अहकाम ह। चूँ कमसीह के बाद उनक ज़ रत न रही इस लए वह ईसाई क ज़दगीम कोई अह मयत नह रखते।ज़रा तस वुर कर क आम का एक बीज ज़मीन म बोया जाता

    है। ब त ज द एक स ज़ क पल नकलेगी। वह बढ़ती जाएगी।

  • 24उसक शाख़ नकलगी। फर उस पर बौर आएगा औरबलआ ख़र वह फल देने लगेगा। इसी तरह तौरेत और इंजीलके सानवी अहकाम इन दो मरकज़ी अहकाम से नकले ह। इन मबाज़ आ रज़ी ह जो कसी ख़ास दौर तक मह द थे, जैसा कग़ैरय दय से मेल-जोल न रखने का मज़कूरा म या खाने-पीने क पाबं दयाँ। ले कन मुह बत के यह दोन म चूँ क पाकन व त के जौहर का ह सा ह इस लए न तो बदल सकते ह औरन मनसूख़ ही हो सकते ह। चुनाँचे पड़ोसी से मुह बत रखने केम के बारे म पौलुस रसूल फ़रमाता है क

    कसी के भी क़ज़दार न रह। सफ़ एक क़ज़ है जोआप कभी नह उतार सकते, एक सरे से मुह बतरखने का क़ज़। यह करते रह य क जो सर सेमुह बत रखता है उसने शरीअत के तमाम तक़ाज़ेपूरे कए ह। मसलन शरीअत म लखा है, “क़ लन करना, ज़ना न करना, चोरी न करना, लालच नकरना।” और द गर जतने अहकाम ह इस एक हीम म समाए ए ह क “अपने पड़ोसी से वैसी

    मुह बत रखना जैसी तू अपने आपसे रखता है।”जो कसी से मुह बत रखता है वह उससे ग़लत

  • 25सुलूक नह करता। य मुह बत शरीअत के तमामतक़ाज़े पूरे करती है। (रो मय 13:8-10)

    इसी तरह यूह ा रसूल याद दलाता है क मुह बत का म कोईनया म नह है,

    अज़ीज़ो, म आपको कोई नया म नह लखरहा, ब क वही पुराना म जो आपको शु सेमला है। यह पुराना म वही पैग़ाम है जो आपनेसुन लया है। (1 यूह ा 2:7)

    यही वह पैग़ाम है जो आपने शु से सुन रखा है,क हम एक सरे से मुह बत रखना है।(1 यूह ा 3:11)

    ग़रज़ यही है पाक न व त क शरीअत : अ लाह और द गरइनसान से मुह बत। और यही म ख़ुद अल-मसीह से तकमीलतक प ँच गया। इलाही मुह बत का जो पैग़ाम तौरेत और इंजीले-शरीफ़ म शु से आ ख़र तक मलता है वह अल-मसीह म उ जतक प ँच गया। अब हमारा फ़ज़ है क मुह बत क इस राह परचल। कस तरह?

  • 26मुह बत क राह पर कस तरह चलना है?बु नयाद तौर पर इस मका ता लुक़ख़ुदा क ज़ातसे है। इसकासरच मा उसी क ज़ात है।और चूँ कअ लाह मुह बत है इस वजहसे मुह बत का म कभी मनसूख़ नह हो सकता। चुनाँचे मुह बतके म के बाइस ईमानदार का फ़ज़ है क बला- लहाज़े-मज़हबऔर नसल हर इनसान क मदद करे। बेशुमार ईसाई ह पताल,सेहत और तर क़ के मनसूबे इस हक़ क़त के गवाह ह।बेशक नेक और अ छाई क इस राह को समझना तो आसान

    है, मगर इस पर सा बतक़दमी से चलना मु कल ही है। य कहर एक से मुह बत रखना इनसानी स र त के ख़लाफ़ है। इनसानइन दो म को कैसे पूरा कर सकता है?कलाम फ़रमाता है क इनसान अपनी ताक़त से इस म को

    पूरा नह कर सकता, य क उसक फ़तरत गुनाहआलूद है।वह अज़-हद को शश के बावुजूद हमेशा नाकाम ही रहेगा। चुनाँचेपौलुस रसूल बड़े ख से बयान करता है,

    जो नेक काम म करना चाहता ँ वह नह करताब क वह बुरा काम करता ँ जो करना नहचाहता। अब अगर म वह काम करता ँ जो म नह

  • 27करना चाहता तो इसका मतलब है क म ख़ुद नहकर रहा ब क वह गुनाह जो मेरे अंदर बसता है।हाँ, अपने बा तन म तो म ख़ुशी से अ लाह क

    शरीअत को मानता ँ। ले कन मुझे अपने आज़ाम एकऔर तरह क शरीअत दखाई देती है, ऐसीशरीअत जो मेरी समझ क शरीअत के ख़लाफ़लड़कर मुझे गुनाह क शरीअत का क़ैद बना देतीहै, उस शरीअत का जो मेरे आज़ा म मौजूद है।हाय, मेरी हालत कतनी बुरी है! मुझे इस बदन सेजसका अंजाम मौत है कौन छुड़ाएगा?(रो मय 7:19-24)

    इन अलफ़ाज़ म इस मायूसी का इज़हार है जो इनसान को शरीअतपूरी करने क को शश म पेश आती है। तो इस मसले का हल याहै? पौलुस रसूल अगले जुमले म इसका हल पेश करता है,

    ख़ुदा का शु है जो हमारे ख़ुदावंद ईसा मसीह केवसीले से यह काम करता है। (रो मय 7:25)

  • 28ल-कदस् क मदद

    शरीअत को पूरा करने म अल-मसीह कस तरह इनसान क मददकरता है? यूह ा रसूल बड़ी तफ़सील से इसक वज़ाहत करताहै :

    अज़ीज़ो, आएँ हम एक सरे से मुह बत रख।य क मुह बत अ लाह क तरफ़ से है, और जोमुह बत रखता है वह अ लाह से पैदा होकर उसकाफ़रज़ंद बन गया है और अ लाह को जानता है। जोमुह बत नह रखता वह अ लाह को नह जानता,य क अ लाह मुह बत है। इस म अ लाह कमुह बत हमारे दर मयानज़ा हर ई कउसने अपनेइकलौते फ़रज़ंद को नया म भेज दया ता कहम उसके ज़रीए जए।ँ यही मुह बत है, यह नहक हमने अ लाह से मुह बत क ब क यह कउसने हमसे मुह बत करके अपने फ़रज़ंद को भेजदया ता क वह हमारे गुनाह को मटाने के लएक फ़ारा दे। (यूह ा 4:7-10)

    अ लाह क मुह बत ही ईमानदार केआमालक बु नयाद है। जसतरह सरच मे के बग़ैर च मा ख़ु क हो जाता है इसी तरह ईमानदारक मुह बत ख़ुदा पर मुनह सर होती है। यह बात ईसाई ईमान के

  • 29तीसरे भेद यानी ल-क़दस् से मुंस लक है। अ लाह का हईमानदार के दल म दा ख़ल होता है और उसे अंदर से तबद लकरना शु कर देता है। वह उसको मुह बत से मामूर कर देता है।यह नह क अब ईमानदार का मल बन गया है। इस नया म

    तो जीते जी वह गुनाहगार ही रहता है। ले कन ल-क़दस् उसकेदल म काम करते ए ख़ुदा क राह परआगे बढ़ने म उसक मददकरता है, उसी राह पर जो उसे फ़रदौस तक प ँचाती है।

    ल-क़दस् अ लाह क ज़ात के भेद का एक जुज़ है। उसकमा रफ़त अ लाह इनसान के दल म काम करता और उनकोबदल देता है। उसके वसीले से ख़ुदा क मुह बत ईमानदार केदल म उनडीली जाती है। उसके वसीले से आज भी अ लाहतआला नया म सरगरमे-अमल है।

    तसलीस का भेदयह तालीम क अ लाह सालूस है आ लम के उलझे ए ज़हन सेनह नकली ब क यह अ लाह तआला के नजात के उस काम सेवा ज़ह आ है जो वह इस नया म करता है। यह उस मुकाशफ़ेके ऐन मुता बक़ है जो उसने कलाम म अता कया है।

  • 30तसलीस का मतलब हर गज़ यह नह क तीन उक़नूम अलग

    अलग तीन ख़ुदा ह, ब क इसका मतलब यह है क क़ा दरे-मुतलक़ क एक ज़ात म तीन अलग अलग अक़ानीम ह।या यह बात नामुम कन है? ज़रा ग़ौर कर क कायनात म

    कतनी बात मंतक़ लहाज़ से नामुम कन ह। आज तक सायंसपूरे तौर पर नह समझ सकती क रोशनी या है। सायंसदानमुख़त लफ़ मॉडल क मदद से इसक वज़हत करने क को शशकरते ह। ले कन कोई मॉडल भी पूरे तौर पर वा ज़ह नह करसकता क रोशनी का अमल य और कैसे नुमा होता है। तोभी हर सा हबे-नज़र श स रोशनी के असरात को देख सकताऔर उसे इन असरात का तजरबा होता है। रोशनी के वसीले सेहम देख सकते ह। तक़रीबन हर जानदार चीज़ को ज़दा रहने केलए रोशनी क ज़ रत होती है।फ़ज़ कर क कसी ने कभी रोशनी नह देखी। वह कहता हैक रोशनी मंतक़ तौर पर मुम कन ही नह , य क रोशनी केजो मॉडल सायंसदान इ तेमाल करते ह वह आपस म मुतज़ादलगते ह। इसके अलावा हम अभी तक रोशनी क मा हयत पूरेतौर पर नह समझ सकते। या इस तंक़ द करनेवाले क दलीलयह सा बत करती ह क रोशनी का कोई वुजूद नह ? हर गज़ नह !जसने रोशनी का तजरबा कया है वह उसक दलील पर हँसेगा।

  • 31क़ा दरे-मुतलक़ क ज़ात पर इस बात का कस क़दर यादा

    इतलाक़ होता है। अ लाह के बारे म ब त-सी ऐसी बात ह जनकोहम कभी समझ नह पाएगँे। तसलीस क तालीम भी एक मॉडलहै जससे ज़मीन पर ख़ुदा क नजात क सरगर मय क वज़हतकरने क को शश क गई है। तसलीस का अक़ दा अ लाह के भेदक उसी क़दर वज़हत करता है जस क़दर उसने ख़ुद को इनसानपर मुनक शफ़ कया है।ला ज़म है क इनसान इस मुक़ स भेद के सामने सर झुकाए

    औरशु गुज़ारीऔर एहतरामो-अक़ दत के साथ दलकोअ लाहक तरफ़ उठाए जसने अपने साथ हमारा मेल- मलाप कराने केलए सब कुछ कया है।अल-मसीह के वसीले से इनसान को नई ज़दगी मलती है। अब

    वह अपने गुनाह का क़ैद नह रहता ब क ख़ुदा का फ़रज़ंद औरफ़रदौस का वा रस बन जाता है। इस है सयत म वह अ लाह कमरज़ी के मुता बक़ ज़दगी गुज़ारने क को शश करता है। अबवह अपने जज़बात और अपनी वा हशात का ग़लाम नह रहताब क आज़ाद हो जाता है। ख़ुदा क शरीअत ही यानी मुह बतका म उसक राहनुमा होती है। और वह ल-क़दस् क मददसे इस शरीअत का इतलाक़ अपनी ज़दगी के हर शोबे पर करनेको आज़ाद होता है। इसी वजह से स चे ईसाई को कसी ख़ासज़ा बताए-हयात क ज़ रत नह रहती, य क वह अ लाह क

  • 32मरज़ी पर चलने क को शश करता है, मगर ग़लाम क नह ब कफ़रज़ंद क है सयत से।

    कलाम मनसूख़ नह हो सकताअबसवाल यह है क या इसलामी अहकाम ने तौरातऔर इंजीले-शरीफ़ के अहकाम को मनसूख़ कर दया है क नह ?हम देख चुके ह क तौरात और इंजीले-मुक़ स के बु नयाद

    अहकाम ख़ुदा और द गर इनसान से मुह बत ह। इसके ज़मनअख़लाक़ अहकाम भी आते ह। सफ़ और सफ़ इसराईल केसूमाती अहकामआ रज़ी थे।अगर म ख़ुदा और द गर इनसान सेमुह बत रखूँ तो न दग़ाबाज़ी क ँ गा, न ज़ना। म वह कुछ करनेक सर-तोड़ को शश क ँ गा जो ख़ुदा और द गर इनसान कोपसंद हो। इस नाते से मुह बत का म सब-से सादा मगर सब-से मु कल म है। पहाड़ पर हमारे आक़ा के फ़रमान कतनेशवार ह (म ी 5-7)! मसलन

    तुमने यह म सुन लया है क ‘ ज़ना न करना।’ले कन म तु ह बताता ँ, जो कसी औरत को बुरीवा हश से देखता है वह अपने दल म उसकेसाथ ज़ना कर चुका है। अगर तेरी बा आँख तुझे

  • 33गुनाह करने पर उकसाए तो उसे नकालकर फकदे। इससे पहले क तेरे पूरे ज म को जह ुम मडाला जाए बेहतर यह है क तेरा एक ही उज जातारहे।औरअगर तेरा दहना हाथ तुझे गुनाह करने परउकसाए तो उसे काटकर फक दे। इससे पहले कतेरा पूरा ज म जह ुम म जाए बेहतर यह है कतेरा एक ही उ व जाता रहे। (म ी 5:27-30)

    यह म पहाड़ी वाज़ के द गर अहकाम क तरह कभी मनसूख़नह हो सकता, य क वह अख़लाक़ अहकाम के ज़मन आजाता है। ग़ौर क जए क हमारे आक़ा ने तौरात का यह ममनसूख़ न कया ब क उसे मज़ीद स त कर दया। दल म ज़नाकरने का ख़याल ही सज़ाए-मौत के लायक़ है।सवाल यह है क अगर यह इतना मु कल है तो या कोई

    कामयाब हो सकता है? पूरे तौर पर तो नह । ले कन जस तरहफ़रमाँबरदार बेटा अपने बाप क मरज़ी पूरी करने क को शशकरता है इसी तरह ईसा का पैरोकार ल-क़दस् क मदद सेको शशकरता है क अपनेआसमानी बाप क मरज़ी पूरी करे। बेटेको कसी लंबे-चौड़े ज़ा बताए-अख़लाक़ क ज़ रत नह होती।अपने बाप के साथ गहरे और मज़बूत ता लुक़ के बाइस वह अपनेदलक गहराइय म उसक मरज़ी को जानता है। हज़ क़येल नबी

  • 34क क़द म नबु वत का यही मतलब है। ख़ुदा ने उसक मा रफ़तफ़रमाया,

    तब म तुमह नया दल ब शकर तुम म नई हडाल ँगा। म तु हारा संगीन दल नकालकर तु हगो त-पो त का नरम दल अता क ँ गा। य कम अपना ही ह तुम म डालकर तु ह इस क़ा बलबना ँगा क तुम मेरी हदायात क पैरवी और मेरेअहकाम पर यान से अमल कर सको।( हज़ क़येल 36:26-27)

    ज़रा तस वुर कर क एक घर म एक आदमी और उसका नौकरक़यामपज़ीर ह। जब मा लक को सफ़र पर जाना है तो याकरेगा? वह नौकर को वा ज़ह अहकाम देगा क उसे या याकरना है। मसलन क बाग़ीचे को व त पर पानी देना है, कु ेको इतना खाना डालना है, बल अदा करने ह वग़ैरा। तस वुरकर क यही काम वह अब अपने बेटे को बताता है। वह बेटे सेभी वही बात कहेगा, मगर फ़रक़ या होगा? अगर बेटे के साथएतमाद और मुह बत का र ता हो तो उसक आवाज़ और लहजेम फ़रक़ होगा। उसके हाथ और चेहरे के इशारे फ़रक़ ह गे। वहअपने बेटे को म नह देगा ब क मुह बत से नसीहत करेगा।वह जानता है क मेरा बेटा मेरी हदायात पर अमलकरेगा, य क

  • 35जो कुछ मेरा है वह मेरे बेटे का भी है। उसे अपने बेटे क नगरानीके लए कसी को मुक़रर करने क ज़ रत नह क देखे क कोईग़लत काम तो नह कर रहा। यह है सयत है प के ईसाई क । वहशरीअत के बंधन से आज़ाद होकर दल से अ लाह क मरज़ी परचलना चाहता है। इस वजह से ईसाई नु ताए-नज़र से इंजील केअहकाम क मनसूख़ीवाली बात बेमानी है, य क इलाही मुह बतक दायमी शरीअत क मनसूख़ी तो हो ही नह सकती।अल-मसीह ने एक बार फ़रमाया,

    कसीआदमी के दो बेटे थे। इन म से छोटे ने बाप सेकहा, ‘ऐ बाप, मीरास का मेरा ह सा दे द।’ इस परबाप ने दोन मअपनी मल कयत तक़सीमकर द ।थोड़े दन के बाद छोटा बेटा अपना सारा सामानसमेटकर अपने साथ कसी र-दराज़ मु क म लेगया। वहाँ उसने ऐयाशी म अपना पूरा मालो-मताउड़ा दया। सब कुछ ज़ाया हो गया तो उस मु क मस त काल पड़ा। अब वह ज़ रतमंद होने लगा।नतीजे म वह उस मु क के कसी बा शदे के हाँ जापड़ा जसने उसे सुअर को चराने के लए अपनेखेत म भेज दया। वहाँ वह अपना पेट उनफ लय

  • 36से भरने क शद द वा हश रखता था जो सुअरखाते थे, ले कन उसे इसक भी इजाज़त न मली।फर वह होश मआया। वह कहने लगा, मेरे बाप

    के कतने मज़ र को कसरत से खाना मलता हैजब क म यहाँ भूका मर रहा ँ। म उठकर अपनेबाप के पास वापस चला जाऊँगा और उससेक ँगा, ‘ऐ बाप, मने आसमान का और आपकागुनाह कया है। अब म इस लायक़ नह रहा कआपका बेटा कहलाऊँ। मेहरबानी करके मुझेअपने मज़ र म रख ल।’ फर वह उठकर अपनेबाप के पास वापस चला गया।ले कन वह घर से अभी र ही था क उसके

    बाप ने उसे देख लया। उसे तरस आया और वहभागकर बेटे के पास आया और गले लगाकर उसेबोसा दया। बेटे ने कहा, ‘ऐ बाप, मनेआसमानकाऔर आपका गुनाह कया है। अब म इस लायक़नह रहा क आपका बेटा कहलाऊँ।’ ले कन बापने अपने नौकर को बुलायाऔरकहा, ‘ज द करो,बेहतरीन सूट लाकर इसे पहनाओ। इसके हाथ मअंगूठ और पाँव म जूते पहना दो। फर मोटा-ताज़ाबछड़ा लाकर उसे ज़बह करो ता क हम खाएँ और

  • 37ख़ुशी मनाए,ँ य क यह मेरा बेटा मुरदा था अबज़दा हो गया है, गुम हो गया था अब मल गया है।’इस पर वह ख़ुशी मनाने लगे। (लूक़ा 15:11-24)

    यह है ईसाई ईमान का पैग़ाम। पैग़ाम यह नह क कसी नए याबेहतर मजमुआए-अहकाम क पैरवी करो। यह इसआज़ाद औरख़ुशी का पैग़ाम है क अ लाह बाप ने मुझे क़बूल कर लया औरअपनी बाह म ले लया है। यह है हक़ क़ आज़ाद । यह है हक़ क़तकमीले-आरज़ू। काश अज़ीज़ क़ारी को भी इसका तजरबा हो!

    1 कलाम : सच्चे ईमान की कसौटी2 कलाम की तहरीफ़ नामुमकिनतहरीफ़े-लफ़्ज़ी का इलज़ाम शुरू से नहीं लगाया गयालातादाद क़दीम क़लमी नुसख़़ों का इत्तफ़ाक़नाक़ाबिले-मोतबर नक़्क़ादों की आरा नामंज़ूरकलाम में इसलामी तालीम कहीं मौजूद नहींअल-मसीह ख़ुद कलामे-ख़ुदा हैपाक नविश्ते कलामे-ख़दा की गवाही देते हैं

    3 कलाम की तनसीख़ नामुमकिनमसीह से मूसवी शरियत मनसूख़ न हुआमसीह में आरिज़ी अहकाम का इख़्तिताममुहब्बत का हुक्म नामनसूख़मुहब्बत की राह पर किस तरह चलना है?रूहुल-क़ुद्स की मददतसलीस का भेदकलाम मनसूख़ नहीं हो सकता