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ददद दददददद [ददददददद] - दददद दददददद

24 ¹¸÷¸Ÿ ¸£, 1992— ˆ¾Å¥¸½¿”£ ‡ˆÅ ¸¸£ ¹ûÅ£ ¨¸ú Ÿ ... mangal.doc · Web view[उपन य स] - स रज प रक श 24 स तम बर, 1992।

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देस बि�राना[उपन्यास]

- सूरज प्रकाश

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24 सिसतम्�र, 1992। कैलेंडर एक �ार बि�र वही महीना और वही तारीख दशा# रहा है। सिसतम्�र और 24 तारीख। हर साल यही होता है। यह तारीख मुझे सि'ढ़ाने, परेशान करने और वो स� याद दिदलाने के सिलए मेरे सामने पड़ जाती है जिजसे मैं बि�लकुल भी याद नहीं करना 'ाहता। आज पूर े 'ौदह �रस हो जायेंगे मुझे घर छोड़े हुए या यूं कहूं बिक इस �ात को आज 'ौदह साल हो जायेंगे ज� मुझे घर से बिनकाल दिदया गया था। बिनकाला ही तो गया था। मैं कहां छोड़ना 'ाहता था घर। छूट गया था मुझसे घर। मेरे न 'ाहने के �ावजूद। अगर दारजी आधे- अधूरे कपड़ों में मुझे धक्के मार कर घर से �ाहर बिनकाल कर पीछे से दरवाजा �ंद न कर देते तो मैं अपनी मज> से घर थोड़े ही छोड़ता। अगर दारजी 'ाहते तो गुस्सा ठंडा होने पर कान पकड़ कर मुझे घर वाबिपस भी तो ले जा सकते थे। मुझे तो घर से कोई नाराज़गी नहीं थी। आखिखर गोलू और बि�ल्लू सारा समय मेरे आस-पास ही तो मंडराते रहे थे। घर से नाराज़गी तो मेरी आज भी नहीं है। आज भी घर, मेरा प्यारा घर, मेरे �'पन का घर मेरी रगों में �हता है। आज भी मेरी सांस-सांस में उसी घर की खुश�ू र'ी �सी रहती है। रोज़ रात को सपनों में आता है मेरा घर और मुझे रुला जाता है। कोई भी तो दिदन ऐसा नहीं होता ज� मैं घर को लेकर अपनी गीली आंखें न पोंछता होऊं। �ेशक इन 'ौदह �रसों में कभी घर नहीं जा पाया लेबिकन कभी भी ऐसा नहीं हुआ बिक मैंने खुद को घर से दूर पाया हो। घर मेरे आसपास हमेशा �ना रहा है। अपने पूरेपन के साथ मेरे भीतर सिसतार के तारों की तरह �जता रहा है। कैसा होगा अ� वह घर !! जो कभी मेरा था। शायद अभी भी हो। जैसे मैं घर वाबिपस जाने के सिलए हमेशा छटपटाता रहा लेबिकन कभी जा नहीं पाया, हो सकता है घर भी मुझे �ार-�ार वाबिपस �ुलाने के सिलए इशारे करता रहा हो। मेरी राह देखता रहा हो और बि�र बिनराश हो कर उसने मेरे लौटने की उम्मीदें ही छोड़ दी हों।मेरा घर. हमारा घर .. हम स� का घर... जहां �े�े थी, गोलू था, बि�ल्लू था, एक छोटी-सी �हन थी - गुड्डी और थे दारजी...। कैसी होगी �े�े .. .. पहले से 'ौदह साल और �ूढ़ी.. ..। और दारजी.. .. ..। शायद अ� भी अपने ठीये पर �ैठे-�ैठे अपने औजार गोलू और बि�ल्लू पर �ें क कर मार रहे हों और स�को अपनी धारदार गासिलयों से छलनी कर रहे हों.. । गुड्डी कैसी होगी.. ज� घर छूटा था तो वो पां' �रस की रही होगी। अ� तो उसे एमए वगैरह में होना 'ाबिहये। दारजी का कोई भरोसा नहीं। पता नहीं उसे इतना पढ़ने भी दिदया होगा या नहीं। दारजी ने पता नहीं बिक गोलू और बि�ल्लू को भी नहीं पढ़ने दिदया होगा या नहीं या अपने साथ ही अपने ठीये पर बि�ठा दिदया होगा..। रब्� करे घर में स� राजी खुशी हों..।एक �ार घर जा कर देखना 'ाबिहये.. कैसे होंगे स�.. क्या मुझे स्वीकार कर लेंगे!! दारजी का तो पता नहीं लेबिकन �े�े तो अ� भी मुझे याद कर लेती होगी। ज� दारजी ने मुझे धक्के मार कर दरवाजे के �ाहर धकेल दिदया था तो �े�े बिकतना-बिकतना रोती थी। �ार-�ार दारजी के आगे हाथ जोड़ती थी बिक मेरे दीपू को जिजतना मार-पीट लो, कम से कम घर से तो मत बिनकालो। �ेशक वो मार, वो टीस और वो घर से बिनकाले जाने की पीड़ा अ� भी तकली� दे रही है, आज के दिदन कुछ ज्यादा ही, बि�र भी सो'ता हूं बिक एक �ार तो घर हो ही आना 'ाबिहये। देखा जायेगा, दारजी जो भी कहेंगे। यही होगा ना, एक �ार बि�र घर से बिनकाल देंगे। यही सही। वैसे भी घर मेरे बिहस्से में कहां सिलखा है..। �ेघर से बि�र �ेघर ही तो हो जाऊंगा। कुछ भी तो नहीं बि�गडे़गा मेरा।

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तय कर लेता हूं, एक �ार घर हो ही आना 'ाबिहये। वे भी तो देखें, जिजस दीपू को उन्होंने मार-पीट कर आधे-अधूरे कपड़ों में नंगे पैर और नंगे सिसर घर से बिनकाल दिदया था, आज कहां से कहां पहुं' गया है। अ� न उसके सिसर में दद# होता है और न ही रोज़ाना सु�ह उसे �ात बि�ना �ात पर दारजी की मार खानी पड़ती है।पास �ुक देखता हूं। का�ी रुपये हैं। �ैंक जा कर तीस हजार रुपये बिनकाल लेता हंू। पां'-सात हज़ार पास में नकद हैं। का�ी होंगे।

स�के सिलए ढेर सारी शॉपिपंग करता हंू। �ैग में ये सारी 'ीजें लेकर मैं घर की तर� 'ल दिदया हंू। हँसी आती है। मेरा घर.... घर... जो कभी मेरा नहीं रहा.. सिस�# घर के अहसास के सहारे मैंने ये 'ौदह �रस काट दिदये हैं। घर... जो हमेशा मेरी आँखों के आगे जिझलमिमलाता रहा लेबिकन कभी भी मुकम्मल तौर पर मेरे सामने नहीं आया। याद करने की कोसिशश करता हंू। इस �ी' बिकतने घरों में रहा, हॉस्टलों में भी रहा, अकेले कमरा लेकर भी रहता रहा लेबिकन कहीं भी अपने घर का अहसास नहीं मिमला। हमेशा लगता रहा, यहां से लौट कर जाना है। घर लौटना है। घर तो वही होता है न, जहां लौट कर जाया जा सके। जहां जा कर मुसाबिVरी खत्म होती हो। पता नहीं मेरी मुसाबि�री क� खत्म होगी। �ं�ई से देहरादून की सत्रह सौ बिकलोमीटर की यह दूरी पार करने में मुझे 'ौदह �रस लग गये हैं, पता नहीं इस �ार भी घर मिमल पाता है या नहीं।

देहरादून �स अडे्ड पर उतरा हूं। यहां से मच्छी �ाजार एक - डेढ़ बिकलोमीटर पड़ता है। तय करता हंू, पैदल ही घर जाऊं..। हमेशा की तरह गांधी स्कूल का 'क्कर लगाते हुए। सारे �ाज़ार को और स्कूल को �दले हुए रूप में देखने का मौका भी मिमलेगा। सब्जी मंडी से होते हुए भी घर जाया जा सकता है, रास्ता छोटा भी पडे़गा लेबिकन �'पन में हम मंडी में आवारा घूमते सांडों की वजह से यहां से जाना टालते थे। आज भी टाल जाता हूं। गांधी स्कूल के आस पास का नक्शा भी पूरी तरह �दला हुआ है। गांधी रोड पर ये हमारी बिप्रय जगह खुशीराम लाइब्रेरी, जहां हम राजा भैया, 'ंदा मामा और पराग वगैरह पढ़ने आते थे और इन पबित्रकाओं के सिलए अपनी �ारी का इंतज़ार करते रहते थे। पढ़ने का संस्कार हमें इसी लाइब्रेरी ने दिदया था। आगे बिहमालय आम#स की दुकान अपनी जगह पर है लेबिकन उसके ठीक सामने दूसरी मंजिज़ल पर हमारी पां'वीं कक्षा का कमरा पूरी तरह उजाड़ नज़र आ रहा है। पूरे स्कूल में सिस�# यही कमरा सड़क से नज़र आता था। इस कमरे में पूरा एक साल गुज़ारा है मैंने। मेरी सीट एकदम खिखड़की के पास थी और मैं सारा समय नी'े �ाज़ार की तर� ही देखता रहता था। हमारी इस कक्षा पर ही नहीं �ल्किल्क पूरे स्कूल पर ही पुरानेपन की एक गाढ़ी-सी परत जमी हुई है। पता नहीं भीतर क्या हाल होगा। गेट हमेशा की तरह �ंद है। स्कूल के �ाहर की बिकता�ों की सारी दुकानें या तो �ुरी तरह उदास नज़र आ रही हैं, या बि�र उनकी जगह कुछ और ही बि�कता नज़र आ रहा है। स्कूल के आगे से गुज़रते हुए �'पन के सारे बिकस्से याद आते हैं। पूरे �ाज़ार में सभी दुकानों का नकशा �दला हुआ है। एक वक्त था ज� मैं यहां से अपने घर तक आँखें �ंद करके भी जाता तो �ता सकता था, �ाज़ार में दोनों तर� बिकस-बिकस 'ीज़ की दुकानें हैं और उन

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पर कौन-कौन �ैठा करते हैं। लेबिकन अ� ऐसा नहीं हो सकता। एक भी परिरसि'त 'ेहरा नजर नहीं आ रहा है। आये भी कैसे। सभी तो मेरी तरह उम्र के 'ौदह पड़ाव आगे बिनकल 'ुके हैं। अगर मैं �दला हूं तो और लोग भी तो �दले ही होंगे। वे भी मुझे कहां पह'ान पा रहे होंगे। ये नयी सब्जी मंडी.. बिकशन 'ा'ा की दुकान.. उस पर पुराना सा ताला लटक रहा है। ये मिमशन स्कूल..। सारी दुकानें परिरसि'त लेबिकन लोग �दले हुए। सिसंधी स्वीट शाप के तीन बिहस्से हो 'ुके हैं। तीनों ही बिहस्सों में अनजाने 'ेहरे गल्ले पर �ैठे हैं।अपनी गली में घुसते ही मेरे दिदल की धड़कन तेज हो गयी है। पता नहीं इन 'ौदह �रसों में क्या कुछ �दल 'ुका होगा इस ढहते घर में .. या मकान में ...। पता नहीं स�से पहले बिकससे सामना हो....गली के कोने में सतनाम 'ा'े की पर'ून की दुकान हुआ करती थी। वहां अ� कोई जवान लड़का वीबिडयो गेम्स की दुकान सजाये �ैठा है। पता नहीं कौन रहा होगा। त� पां' छः साल का रहा होगा। इन्दर के दरवाजे से कोई जवान-सी औरत बिनकल कर अज#न पंसारी की दुकान की तर� जा रही है। अज#न 'ा'ा खुद �ैठा है। वैसा ही लग रहा है जैसे छोड़ कर गया था। उसने मेरी तर� देखा है लेबिकन पह'ान नहीं पाया है। ठीक ही हुआ। �ाद में आ कर मिमल लूंगा। मेरी इच्छा है बिक स�से पहले �े�े ही मुझे देखे, पह'ाने।

अपनी गली में आ पहुं'ा हंू। पहला घर मंगाराम 'ा'े का है। मेर े खास दोस्त नंदू का। घर बि�लकुल �दला हुआ है और दरवाजे पर बिकसी मेहर'ंद की पुरानी सी नेम प्लेट लगी हुई है। इसका मतल� नंदू वगैरह यहां से जा 'ुके है। मंगाराम 'ा'ा की तो कोतवाली के पास नहरवाली गली के सिसरे पर छोले भटूरे की छोटी-सी दुकान हुआ करती थी। उसके सामने वाला घर गामे का है। हमारी गली का पहलवान और हमारी सारी नयी शरारतों का अगुआ। उससे अगला घर प्रवेश और �ंसी का। हमारी गली का हीरो - प्रवेश। उससे कभी नजदीकी दोस्ती नहीं �न पायी थी। उनका घर-�ार तो वैसा ही लग रहा है। प्रवेश के घर के सामने खुशी भाई साह� का घर। वे हम स� �च्चों के आदश# थे। अपनी मेहनत के �ल�ूते ही पूरी पढ़ाई की थी। सारे �च्चे दौड़- दौड़ कर उनके काम करते थे। स�से रोमां'कारी काम होता था, स�की नज़रों से �'ा कर उनके सिलए सिसगरेट लाना। सिसख होने के कारण मुझे इस काम से छूट मिमली हुई थी।अगला घर �ोनी और �ौ�ी का है। उनके पापा सरदार राजा सिसंह अंकल। हमारे पूरे मौहल्ले में सिसV# वहीं अंकल थे। �ाकी स� 'ा'ा थे। पूरी गली में स्कूटर भी सिस�# उन्हीं के पास था।

ये सामने ही है मेरा घर......। मेरा छूटा हुआ घर .. ..। हमारा घर.. भाई हरनाम सिसहां का शहतूतों वाला घर....। गुस्स े म ें कुछ भी कर �ैठन े वाला सरदार हरनामा .... तरखाण .... हमार े घर का शहतूत...का पेड़..... हमारे घर.. .. हरनामे के घर की पह'ान ...। तीन गली पहले से यह पह'ान शुरू हो जाती.. ..। हरनामा तरखाण के घर जाना है? सीधे 'ले जाओ .. आगे एक शहतूत.. का पेड़ आयेगा। वही घर है तरखाण का ....। 14 मच्छी �ाज़ार, देहरादून। घर को मोह से, आससिक्त से देखता हंू। घर के �ाहर वाली दीवार जैसे अपनी उम्र पूरी कर 'ुकी है और लगता है, �स, आज कल में ही बिवदा हो जाने वाली है। टीन के पतरे वाला दरवाजा वैसे ही है। �े�े त� भी दारजी से कहा करती थी - तरखाण के घर टीन के पतरे के दरवाजे शोभा नहीं देते। कभी अपने घर के सिलए भी कुछ �ना दिदया करो।

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मैं हौले से सांकल �जाता हूं। सांकल की आवाज थोड़ी देर तक खाली आंगन में गूंज कर मेर े पास वाबिपस लौट आयी है। दो�ारा सांकल �जाता हंू। मेरी धड़कन �हुत तेज हो 'ली है। पता नहीं कौन दरवाजा खोले.... ।

- कोण है.. । ये �े�े की ही आवाज हो सकती है। पहले की तुलना में ज्यादा करुणामयी और लम्�ी तान सी लेते हुए....

- मैं केया कोण है इस वेल्ले....। मेरे �ोल नहीं �ूटते। क्या �ोलूं और कैसे �ोलूं। �े�े दरवाजे के पास आ गयी है। जिझर> में से उसका �ेहद कमज़ोर हो गया 'ेहरा नज़र आता है। आंखों पर 'श्मा भी है। दरवाजा खुलता है। �े�े मेरे सामने है। एकदम कमज़ोर काया। मुझे 'ंुमिधयाती आंखों से देखती है। मेरे �ैग की तर� देखती है। असमंजस में पूछती हैं - त्वानु कोण 'ाइदा ऐ �ाऊजी.. ..?मैं एकदम �ुक्का �ाड़ कर रोते हुए उसके कदमों में ढह गया हूं, - �े�े.. �े�े.. मैंनू मा� कर दे मेरिरये �े�े.... मैं मैं .. ।मेरा नाम सुनने से पहले ही वह दो कदम पीछे हट गयी है.. हक्की-�क्की सी मेरी तर� देख रही है। मैं उसके पैरें में बिगरा लहक - लहक कर बिह'बिकयां भरते हुए रो रहा हूं - मैं तेरा �ावरा पुत्तर दीपू .. ..दीपू । मेरे आंसू ज़ार ज़ार �ह रहे हैं। 'ौदह �रसों से मेरी पलकों पर अटकेध आंसुओं ने आज �ाहर का रास्ता देख सिलया है। �े�े घुटनों के �ल �ैठ गयी है.. अभी भी अबिवश्वास से मेरी तर� देख रही है..। अ'ानक उसकी आंखों में पह'ान उभरी है और उसके गले से ज़ोर की 'ीख बिनकली है, - ओये.. मेरे पागल पुत्तरा. तूं अपणी अन्नी मां नूं छड्ड के बिकत्त्थे 'ला गया सैं.. हाय हो मेरेया रब्�ा। तैनूं असी उडीक उडीक के अपणिणयां अक्खां रणित्तयां कर लइयां। मेरेया सोणेया पुत्तरां। रब्� तैनूं मेरी वी उम्मर दे देवे। तूं जरा वी रैम नीं बिकत्ता अपणी �ुड्डी मां ते के ओ जींदी है के मर गयी ए...।वह आंसुओं से भरे मेरे 'ेहरे को अपने दोनों कमज़ोर हाथों में भरे मुझे स्नेह से 'ूम रही है। मेरे �ालों में हाथ �ेर रही है और मेरी �लायें ले रही है। उसका गला रंुध गया है। अभी हम मां-�ेटे का मिमलन 'ल ही रहा है बिक मौहल्ले की दो-तीन औरतें �े�े का रोना - धोना सुन कर खुले दरवाजे में आ जुटी हैं। हमें इस हालत में देख कर वे सकपका गयी हैं।�े�े से पूछ रही है - की होया भैंजी .. स� खैर तां है नां....!!

- तूं खैर पुछ रई हैं बिवमसिलये ..अज तां रब्� साडे उत्ते बिकन्ना मेहर�ान हो गया नीं। वेखो वे भसिलये लोको, मेरा दीपू बिकन्ने सि'र �ाद अज घर मुड़ के आया ए। मेरा पुत्त इस घरों रेंदा कलप्दा गया सी ते अज बिकन्ने सि'र �ाद वल्ल के आया ए। हाय कोई छेत्ती जाके ते इदे दारजी नूं ते ख�र कर देवो। ओ कोई जल्दी जा के खण्ड दी डब्�ी लै आवे। मैं सारेयां दा मूं मिमट्ठा करा देवां। ... आजा वे मेरे पुत्त मैं तेरी नजर उतार दवां .। पता नीं बिकस भैडे़ दी नज्जर लग गई सी। हम दोनों का रो-रो कर �ुरा हाल है। मेरे मुंह से एक भी शब्द नहीं �ूट रहा है। इतने �रसों के �ाद मां के आं'ल में जी भर के रोने को जी 'ाह रहा है। मैं रोये जा रहा हूं और मोहल्ले की सारी औरतें मुंह में दुपटे्ट द�ाये हैरानी से मां �ेटे का यह अद्भतु मिमलन देख रही हैं। बिकसी ने मेरी तर� पानी का बिगलास �ढ़ा दिदया है। मैंने बिह'बिकयों के �ी' पानी खत्म बिकया है।

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ख�र पूरे मोहल्ले में बि�जली की तेजी से �ैल गयी है। वरांडे में प'ासों लोग जमा हो गये हैं। �े�े ने मेरे सिलए 'ारपाई बि�छा दी है और मेरे पास �ैठ गयी है। एक के �ाद एक सवाल पूछ रही है। अ'ानक ही घर में व्यस्तता �ढ़ गयी है। स� के स� मेरे खाने पीने के इंतजाम में जुट गये हैं। कभी कोई 'ाय थमा जाता है तो कोई मेरे हाथ में गुड़ का या मिमठाई का टुकड़ा धर जाता है। मेरे आसपास अच्छी खासी भीड़ जुट आयी है और मेरी तर� अजी� - सी बिनगाहों से देख रही है। कुछेक �ुजुग# भी आ गये हैं। �े�े मुझे उनके �ारे में �ता रही है। मैं बिकसी - बिकसी को ही पह'ान पा रहा हंू। बिकसी का 'ेहरा पह'ाना हुआ लग रहा है तो बिकसी का नाम याद - सा आ रहा है। मोहल्ले भर के 'ा'ा, ताए, मामे, मामिमयां वरांडे में आ जुटे हैं और मुझसे तरह -तरह के सवाल पूछ रहे हैं। मुझे सूझ नहीं रहा बिक बिकस �ात का क्या जवा� दिदया जाये। मैं �ार-�ार बिकसी न बिकसी �ुजुग# के पैरों में मत्था टेक रहा हूं। स� के स� मुझे अध�ी' में ही गले से लगा लेते हैं। मुझे नहीं मालूम था मैं अभी भी अपने घर परिरवार के सिलए इतने मायने रखता हंू। तभी �े�े मुझे उ�ारती है - वे भले लोको, मेरा पुत्त बिकन्ना लम्�ा स�र कर के आया ए। उन्नू थोड़ी सि'र अराम करन देओ। सारिरयां गल्लां हुणी ता ना पुच्छो !! वेखो तां बिव'ारे दा बिकन्ना जेयां मूं बिनकल आया ए..।�े�े ने बिकसी तरह स�को बिवदा कर दिदया है लेबिकन लोग हैं बिक मानते ही नहीं। कोई ना कोई कुण्डी खड़का ही देता है और मेरे आगे कुछ न कुछ खाने की 'ीज रख देता है। हर कोई मुझे अपने गले से लगाना 'ाहता है, अपने हाथों से कुछ न कुछ खिखलाना ही 'ाहता है। बि�र ऊपर से उनके सवालों की �रसात। मेरे सिलए अड़ोस-पड़ोस की 'ासि'यां ताइयां दसिसयों कप 'ाय दे गयी है और मैंने कुछ घूंट 'ाय पी भी है बि�र भी �े�े ने मेरे सिलए अलग से गरम -गरम 'ाय �नायी है। मलाई डाल के। �े�े को याद रहा, मुझे मलाई वाली 'ाय अच्छी लगती थी। �'पन में हम तीनों भाइयों में 'ाय में मलाई डलवाने के सिलए होड़ लगती थी। दूध में इतनी मलाई उतरती नहीं थी बिक दोनों टाइम तीनों की 'ाय में डाली जा सकेध। �े�े 'ाय में मलाई के सिलए हमारी �ारी �ांधती थी।

�े�े पूछ रही है, मैं कहां से आ रहा हूं और क्या करता हंू। �हुत अजी�-सा लग रहा है ये स� �ताना लेबिकन मैं जानता हंू बिक ज� तक यहां रहंूगा, मुझे �ार �ार इन्हीं सवालों से जूझना होगा। �े�े को थोड़ा-�हुत �ताता हूं बिक इस �ी' क्या क्या घटा। मैंने अपनी �ात पूरी नहीं की है बिक �े�े खुद �ताने लगी है - गोलू तां �ारवीं करके ते पक्की नौकरी दी तलाश कर रेया ए। कदी कदी छोटी मोटी नौकरी मिमल वी जांदी ए ओनंू। अज कल 'कराता रोड ते इक रेबिडमेड कपडे़यां दी हट्टी ते �ैंदा ए ते पन्दरा सोलां सौ रपइये लै आंदा ए। अते बि�ल्लू ने तां दसवीं वीं पूरी नीं बिकत्ती। कैं दा सी - मेरे तें नीं होंदी ए बिकता�ी पढ़ाई.. अजकल इस सपेर पाट# दी दुकान ते �ैंदा ऐ। उन्नू वी हजार �ारा सौं रपइये मिमल जांदे हन। तेरे दारजी वी दिढल्ले रैंदे ने। �ेशक तैंनू गुस्से बिव' मार बिपट के ते घरों कड दिदत्ता सी पर तैनूं मैं की दस्सां, �ाद बिव' �ोत रोंदे सी। कैं दे सी...। अ'ानक �े�े 'ुप हो गयी है। उसे सूझा नहीं बिक आगे क्या कहे। उसने मेरी तर� देखा है और �ात �दल दी है। मैं समझ गया हूं बिक वह दारजी की तर�दारी करना 'ाह रही थी लेबिकन मेरे आगे उससे झूठ नहीं �ोला गया। लेबिकन मैं जान�ूझ कर भी 'ुप रहता हंू। �े�े आगे �ता रही ह ै - तैंनू असीं बिकन्ना ढंूढेया, तेरे बिपचे्छ बिकत्थे बिकत्थे नीं गये, पर तूं तां इन्नी जई गल ते साडे कोल नराज हो के कदी मुढ़ के वी नीं आया बिक तेरी �ुड्डी मां जींदी ए की मर गई ए। मैं तां रब्� दे अग्गे अठ अठ हंजू रोंदी सी बिक इक वारी मैंनू मेरे पुत्त नाल मिमला दे। मैं �े�े की �ात ध्यान से सुन रहा हंू।

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अ'ानक पूछ �ैठता हूं - स' दसीं �े�े, दारजी वाकई मेरे वास्ते रोये सी? वेख झूठ ना �ोलीं। तैनूं मेरी सौं। �े�े अ'ानक मिघर गयी है। मेरी आंखों में आंखें डाल कर देखती है। उसकी कातर बिनगाहें देख कर मुझे पछतावा होने लगता है - ये मैं क्या पूछ �ैठा !! अभी तो आये मुझे घंटा भर भी नहीं हुआ, लेबिकन �े�े ने मुझे उ�ार सिलया है और दारजी का स' बि�ना लाग लपेट के �यान कर दिदया है। यह स' उस स' से बि�लकुल अलग है जो अभी अभी �े�े �यान कर रही थी। शायद वह इतने अरसे �ाद आये अपने �ेटे के सामने कोई भी झूठ नहीं �ोलना 'ाहती। वैसे भी वह झूठ नहीं �ोलती कभी। शायद इसीसिलए उससे ये झूठ भी नहीं �ोला गया है या यंू कहंू बिक स' छुपाया नहीं गया है।�े�े अभी दारजी के �ारे में �ता ही रही है बिक मैंने �ात �दल दी है और गुड्डी के �ारे में पूछने लगता हूं। वह खुश हो कर �ताती है - गुड्डी दा �ीए दा पैला साल है। बिवच्चों बि�मार पै गई सी। बिव'ारी दा इक साल मारेया गया। कैं दी ए - मैं सारिरयां दी कसर कल्ले ई पूरी करां गी। �ड़ी सोणी ते स्याणी हो गई ए तेरी भैण। पूरा घर कल्ले संभाल लैंदी ए। पैले तां तैनूं �ोत पुछदी सी..�ेर होली होली भुल गयी..। �स कालेजों आंदी ही होवेगी।मुझे तसल्ली होती है बिक 'लो कोई तो पढ़ सिलख गया। खासकर गुड्डी को दारजी पढ़ा रहे हैं, यही �हुत �ड़ी �ात है। अभी हम गुड्डी की �ात कर ही रहे हैं बिक ज़ोर से दरवाजा खुलने की आवाज आती है। मैं मुड़ कर देखता हूं। स�ेद सलवार कमीज में एक लड़की दरवाजे में खड़ी है। सांस �ूली हुई। हाथ में ढेर सारी बिकता�ें और आंखों में �ेइन्तहां हैरानी। वह आंखें �ड़ी �ड़ी करके मेरी तर� देख रही है। मैं उसे देखते ही उठ खड़ा होता हूं - गुड्डी ..! मैं ज़ोर से कहता हूं और अपनी �ाहें � ठला देता हंू।वह लपक कर मेरी �ाहों में आ गयी है। उसकी सांस धौंकनी की तरह तेज 'ल रही है। �हुत जोर से रोने लगी है वह। �ड़ी मुल्किश्कल से रोते रोते - वीर.. . जी.... वीर जी.. ..! ही कह पा रही है। मैं उसके कंधे थपथपा कर 'ुप कराता हंू। मेरे सिलए खुद की रुलाई रोक पाना मुल्किश्कल हो रहा है। �े�े भी रोने लगी है।�ड़ी मुल्किश्कल से हम तीनों अपनी रुलाई पर का�ू पाते हैं। तभी अ'ानक गुड्डी भाग कर रसोई में 'ली गयी है। �ाहर आते समय उसके हाथ में थाली है। थाली में मैली, 'ावल और टीके का सामान है। वह मेरे माथे पर टीका लगाती है और मेरी �ांह पर मौली �ांधती है। उसकी स्नेह भावना मुझे भीतर तक णिभगो गयी है। �े�े मुग्ध भाव से ये स� देखे जा रही है। गुड्डी जो भी कहती जा रही है, मैं वैसे ही करता जा रहा हंू। ज� उसने अपने सभी अरमान पूरे कर सिलये हैं तो उसने झुक कर पूरे आदर के साथ मेरे पैर छूए हैं।मैं उसके सिसर पर 'पत लगा कर आशीषें देता हंू और भीतर से �ैग लाने के सिलए कहता हंू। वह भारी �ैग उठा कर लाती है। उसके सिलए लाये सामान से उसकी झोली भर देता हंू। वह हैरानी से सारा सामान देखती रह जाती है - ये स� आप मेरे सिलए लाये हैं।

- तुझे बिवश्वास नहीं है? - बिवश्वास तो है लेबिकन इतना खर'ा करने की क्या जरूरत थी? उसने वाकॅमैन के ईयर �ोन तुंत

ही कानों से लगा सिलये हैं।- ओये �ड़ी आयी खर'े की 'ा'ी, अच्छा एक �ात �ता - तू रोज़ ही इस तरह भाग कर

कॉलेज से आती है?

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- अगर रोज रोज मेरे वीरजी आयें तो मैं रोज़ ही कॉलेज से भाग कर आऊं।वह गव# से �ताती है - अभी मैं सड़क पर ही थी बिक बिकसी ने �ताया - ओये घर जा कुबिड़ये, घर से भागा हुआ तेरा भाई वाबिपस आ गया है। �हुत �ड़ा अ�सर �न के। एकदम ग�रू जवान दिदखता है। जा वो तेरी राह देख रहा होगा। पहले तो मुझे बिवश्वास ही नहीं हुआ बिक हमारा वीर भी कभी इस तरह से वाबिपस आ सकता है। मैंन े सो'ा बिक हम भी तो देखें बिक कौन ग�रू जवान हमार े वीरजी �न कर आये हैं जिजनकी तारी� पूरा मौहल्ला कर रहा है। ज़रा हम भी देखें वे कैसे दिदखते हैं। बि�र हमने सो'ा, आखिखर भाई बिकसके हैं। स्माट# तो होंगे ही। मैंने ठीक ही सो'ा है ना वीर जी....!

- �ातें तो तू खू� �ना लेती है। कुछ पढ़ाई भी करती है या नहीं?जवा� �े�े देती है - सारा दिदन कता�ां बिव' सिसर खपांदी रैंदी ए। बिकन्नी वारी केया ए इन्नू - इन्ना ना पढे़या कर। तूं केड़ी कलकटरी करणी ए, पर ऐ साडी गल सुण लवे तां गुड्डी नां बिकसदा?अभी �े�े उसके �ार े में यह �ात �ता ही रही है बिक वह मुझे एक डायरी लाकर दिदखाती है। अपनी कबिवताओं की डायरी।मैं हैरान होता हंू - हमारी गुड्डी कबिवताए ंभी सिलखती है और वो भी इस तरह के माहौल में।पूछता हंू मैं - क� से सिलख रही है?

- तीन 'ार साल से। बि�र उसने एक और �ाइल दिदखायी है। उसमें स्थानीय अख�ारों और कॉलेज मैगजीनों की कतरनें हैं। उसकी छपी कबिवताओं की। गुड्डी की तरक्की देख कर सुकून हुआ है। �े�े ने बि�ल्लू और गोलू की जो तस्वीर खीं'ी है उससे उन दोनों की तो कोई खास इमेज नहीं �नती।गुड्डी मेरे �ारे में ढेर सारे सवाल पूछ रही है, अपनी छोटी छोटी �ातें �ता रही है। �हुत खुश है वह मेरे आने से। मैं �ैग से अपनी डायरी बिनकाल कर देखता हंू। उसमें दो एक एटं्रीज ही हैं। डायरी गुड्डी को देता हंू - ले गुड्डी, अ� तू अपनी कबिवताए ंइसी डायरी में सिलखा कर।इतनी खू�सूरत डायरी पा कर वह �हुत खुश हो गयी है। तभी वह डायरी पर मेरे नाम के नी'े सिलखी बिडबि}यां देख कर 'ौंक जाती है,

- वीरजी, आपने पीए' डी की है?- हां गुड्डी, खाली �ैठा था, सो'ा, कुछ पढ़ सिलख ही लें। - हमें �नाइये मत, कोई खाली �ैठे रहने से पीए' डी थोडे़ ही कर लेता है। आपके पास तो कभी

Vुस#त रही भी होगी या नहीं, हमें शक है। स' �ताइये ना, कहां से की थी?- अ� तू जिज़द कर रही है तो �ता देता हंू। एमटैक में युबिनवर्सिसंटी में टॉप करने के �ाद मेरे सामने

दो ऑ�र थे - एक �हुत �ड़ी बिवदेशी कम्पनी में �दिढ़या जॉ� या अमेरिरका में एक युबिनवर्सिसंटी में पीए' डी के सिलए स्कॉलरसिशप। मैंने सो'ा, नौकरी तो ज़िज़ंदगी भर करनी ही है। लगे हाथों पीए' डी कर लें तो वाबिपस बिहन्दुस्तान आने का भी �हाना �ना रहेगा। नौकरी करने गये तो पता नहीं क� लौटें। आखिखर तुझे ये डायरी, ये वॉक मैन और ये सारा सामान देने तो आना ही था ना...। मैंने उसे संक्षेप में �ताया है।

- ज� अमेरिरका गये होंगे तो खू� घूमे भी होंगे? पूछती है गुड्डी। अमेरिरका का नाम सुन कर �े�े भी पास सरक आयी है।

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- कहा ं घूमना हुआ। �स, हॉस्टल का कमरा, गाइड का कमरा, क्लास रूम, लाइब्रेरी और कैं टीन। आखिखर में ज� स� लोग घूमने बिनकले थे तभी दो 'ार जगहें देखी थीं।हँसते हुए कहती है वह - वहां कोई गोरी पसंद नहीं आयी थी?मैं हँसता हूं - ओये पगसिलये। ये �ाहर की लड़बिकयां तो �स ए ÿ वेई होती हैं। हम लोगों के लायक थोडे़ ही होती हैं। तू खुद �ता अगर मैं वहा से कोई मेम शेम ले आता तो ये �े� मुझे घर में घुसने देती?यह सुन कर �े�े ने तसल्ली भरी ठंडी सांस ली है। कम से कम उसे एक �ात का तो बिवश्वास हो गया है बिक मैं अभी कंुवारा हंू।गुड्डी आ}ह करती ह ै - वीरजी कुछ सिलखो भी तो सही इस पर.. म ैं अपनी सारी सहेसिलयों को दिदखाऊंगी।

- ठीक है, गुड्डी, तेरे सिलए मैं सिलख भी देता हंू।मैं डायरी में सिलखता हूं

- अपनी छोटी, मोटी, दुलारी और प्यारी �हन गुड्डी कोजो एक मेले के 'क्कर में मुझसे बि�छ�ड़ गयी थी।'दीप'

डायरी ले कर वह तुंत ही उसमें पता नहीं क्या सिलखने लग गयी है। मैं पूछता हूं तो दिदखाने से भी मना कर देती है।

आंगन में 'ारपाई पर लेटे लेटे गुड्डी से �ातें करते-करते पता नहीं क� आंख लग गयी होगी। अ'ानक शोर-शरा�े से आंख खुली तो देखा, दारजी मेरे सिसरहाने �ैठे हैं। पहले की तुलना में �ेहद कमज़ोर और टूटे हुए आदमी लगे वे मुझे। मैं तुंत उठ कर उनके पैरों पर बिगर गया हूं। मैं एक �ार बि�र रो रहा हंू। मैं देख रहा हंू, दारजी मेरे सिसर पर हाथ �ेरते हुए अपनी आंखें पोंछ रहे हैं। उन्हें शायद �े�े ने मेरी राम कहानी सुना दी होगी इससिलए उन्होंने कुछ भी नहीं पूछा। सिस�# एक ही वाक्य कहा है - तेरे बिहस्से बिव' घरों �ार जा के ई आदमी �नण सिलखेया सी। शायद रब्� नूं ऐही मंज़ूर सी।मैंने सिसर झुका सिलया है। क्या कहंू। �े�े मुझे अभी �ता ही 'ुकी है घर से मेरे जाने के �ाद का दारजी का व्यवहार। मुझे �े�े की �ात पर बिवश्वास करना ही पडे़गा। दारजी मेरे सिलए कुछ भी कर सकते हैं। ये �ूढ़ा जिजद्दी आदमी, जिजसने अपने गुस्से के आगे बिकसी को भी कुछ नहीं समझा। �े�े �ता रही थी - जद तैनंू अदे्ध अधूरे कपडेयां बिव' घरों कडेया सी तां दारजी कई दिदनां तक इस गल्ल नूं मनण लई त्यार ई नईं सन बिक इस बिव' उन्नादी कोई गलती सी। ओ ते सारेयां नूं सुणा-सुणा के ए ही कैं दे रये - मेरी तर�ों दीपू कल मरदा ए, तां अज मर जावे। सारेयां ने एन्ना नूं समझाया सी - छोटा �च्चा ए। बिव'ारा बिकत्थे मारेया मारेया बि�रदा होवेगा। लेकन तेरे दारजी नईं मन्ने सी। ओ तां पुलस बिव' रपोट कराण वी नईं गए सन। मैं ई हत्थ जोड़ जोड़ के तेरे मामे नूं अगे भेजया सी लेकन ओ वी उत्थों खाली हत्थ वापस आ गया सी। पुलस ने जदों तेरी �ोटो मंग्गी तां तेरा मामा उत्थे ई रो पेया सी - थानेदारजी, उसदी इक अध �ोटो तां है, लम्मे केशां वाली जूड़े दे नाल, लेकन उस नाल बिकदां पता 'लेगा दीपू दा ..। ओ ते केस कटवा के आया सी इसे लई तां गरमागरमी बिव' घर छड्ड के नठ गया ए..।

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मुझे ज� �े�े ये �ात �ता रही थी तो जैसे मेरी पीठ पर �'पन में दारजी की मार के सारे के सारे जख्म टीस मारने लगे थे। अ� भी दारजी के सामने �ैठे हुए मैं सो' रहा हूं - अगर मैं त� भी घर से न भागा होता तो मेरी ज़िज़ंदगी ने क्या रुख सिलया होता। ये तो तय है, न मेरे बिहस्से में इतनी पढ़ाई सिलखी होती और न इतना सुकून। त� मैं भी गोलू बि�ल्लू की तरह बिकसी दुकान पर सेल्समैनी कर रहा होता।मैं दारजी के साथ ही खाना खाता हंू। खाना जिजद करके गुड्डी ने ही �नाया है। �े�े ने उसे छेड़ा है - मैं लख कवां, कदी ते दो �ुलके सेक दिदत्ता कर। पराये घर जावेंगी तां की करेंगी लेकन कदी रसोई दे नेडे़ नईं आवेगी। अज वीर दे भाग जग गये हन बिक साडी गुड्डी रोटी पका रई ए। �े�े भी अजी� है। ज� तक गुड्डी नहीं आयी थी उसकी खू� तारी�ें कर रही थी बिक पूरा घर अकेले संभाल लेती है और अ� ...।खाना खा कर दारजी गोलू और बि�ल्लू को ख�र करने 'ले गये हैं।मैं घर के भीतर आता हूं। सारा घर देखता हूं। घर का सामान देखते हुए धीरे-धीरे भूली बि�सरी �ातें याद आने लगी हैं। याद करता हूं बिक त� घर में क्या क्या हुआ करता था। कुल मिमला कर घर में पुरानापन है। जैसे अरसे से बिकसी ने उसे जस का तस छोड़ रखा हो। �ेशक इस �ी' रंग रोगन भी हुआ ही होगा लेबिकन बि�र भी एक स्थायी बिकस्म का पुरानापन होता है 'ीजों में, माहौल में और कपड़ों तक में, जिजसे झाड़ पोंछ कर दूर नहीं बिकया जा सकता। हां, एक �ात जरूर लग रही है बिक पूरे घर में गुड्डी का स्पश# है। हलका-सा युवा स्त्राú स्पश#। उसने जिजस 'ीज को भी झाड़ा पोंछा होगा, अपनी पसंद और 'यन की नैसर्गिगंक महक उसमें छोड़ती 'ली गयी होगी। यह मेरे सिलए नया ही अनुभव है। �ड़े कमरे में एक पैनासोबिनक के पुराने से स्टीरिरयो ने भी इस �ी' अपनी जगह �ना ली है। एक पुराना ब्लैक एडं व्हाइट टीवी भी एक कोने में बिवराजमान है। ज� गया था तो टीवी त� शहर में पूरी तरह आये ही नहीं थे। टीवी 'ला कर देखता हूं। खरा� है।�ंद कर देता हंू। सो'ता हंू, जाते समय एक कलर टीवी यहां के सिलए खरीद दंूगा। अ� तो घर-घर में कलर टीवी हैं।छोटे कमरे में जाता हंू। हम लोगों के पढ़ने सिलखने के �ालतू सामान रखने का कमरा यही होता था। हम भाइयों और दोस्तों के सारे सीके्रट अणिभयान यहीं पूरे बिकये जाते थे क्योंबिक दारजी इस कमरे में �हुत कम आते थे। इसी कमरे में हम कं'े छुपाते थे, लूटी हुई पतंगों को दारजी के डर से अलमारी के पीछे छुपा कर रखते थे। गुल्ली डंडा तो खैर दारजी ने हमें कभी �ना कर दिदये हों, याद नहीं आता। मुझे पता है, अल्मारी के पीछे वहां अ� कुछ नहीं होगा बि�र भी अल्मारी के पीछे झांक कर देखता हंू। नहीं, वहां कोई पतंग नहीं है। ज� गया था त� वहां मेरी तीन 'ार पतंगें रखी थीं। एक आध 'रखी मांझे की भी थी।रात को हम स� इकटे्ठ �ैठे हैं। जैसे �'पन में �ैठा करते थे। �ड़े वाले कमरे में। स� के स� अपनी अपनी 'ारपाई पर जमे हुए। त� इस तरह �ैठना सिस�# सर्दिदंयों में ही होता था। �े�े खाना �नाने के �ाद कोयले वाली अंगीठी भी भीतर ले आती थी और हम 'ारों भाई �हन दारजी और �े�े उसके 'ारों तर�

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�ैठ कर हाथ भी सेंकते रहते और मंूग�ली या रेवड़ी वगैरह खाते रहते। रात का यही वक्त होता था ज� हम भाई �हनों में कोई झगड़ा नहीं होता था।अ� घर में गैस आ जाने के कारण कोयले वाली अंगीठी नहीं रही है। वैसे सद� अभी दूर है लेबिकन स� के स� अपनी अपनी 'ारपाई पर खेस ओढे़ आराम से �ैठे हैं। मुझे �े�े ने अपने खेस में जगह दे दी है। पता नहीं मेरी अनुपस्थिस्थबित में भी ये जमावड़े 'लते रहते थे या नहीं।स�की उत्सुकता मेरी 'ौदह �रस की यात्रा के �ारे में बिवस्तार से सुनने की है ज�बिक मैं यहां के हाल 'ाल जानना 'ाहता हूं।�ैसला यही हुआ है बिक आज मैं यहां के हाल 'ाल सुनूंगा और कल अपने हाल �ताऊंगा। वैसे भी दिदन भर बिकस्तों में मैं स�को अपनी कहानी सुना ही 'ुका हंू। ये �ात अलग है बिक ये �ात सिसV# मैं ही जानता हंू बिक इस कहानी में बिकतना स' है और बिकतना झूठ।शुरूआत �े�े ने की है। बि�रादरी से..। इस �ी' कौन-कौन पूरा हो गया, बिकस-बिकस के बिकतने-बिकतने �च्चे हुए, शादिदयां, दो-'ार तलाक, दहेज की वजह से एकाध �हू को जलाने की ख�र, बिकसने नया घर �नाया और कौन-कौन मोहल्ला छोड़ कर 'ले गये और गली में कौन-कौन नये �सने आये। बिकस के घर में �हू की शक्ल में डायन आ गयी है जिजसने आते ही अपने मरद को अपने �स में कर सिलया है और मां-�ाप से अलग कर दिदया है, ये और ऐसी ढेरों ख�रें �े�े की बिपटारी में से बिनकल रही हैं और हम स� मजे़ ले रहे हैं। अभी �े�े ने कोई �ात पूरी नहीं की होती बिक बिकसी और को उसी से जुड़ी और कोई �ात याद आ जाती है तो �ातों का सिसलसिसला उसी तर� मुड़ जाता है।मैं गोलू से कहता हंू - तू �ारी �ारी से �'पन के स� सासिथयों के �ारे में �ताता 'ल।वह �ता रहा है - प्रवेश ने �ीए करने के �ाद एक होटल में नौकरी कर ली है। अं}ेजी तो वह तभी से �ोलने लगा था। आजकल राजपुर रोड पर होटल मीडो में �ड़ी पोस्ट पर है। शादी करके अ� अलग रहने लगा है। ऊपर जाखन की तर� घर �नाया है उसने।

- �ंसी इसी घर में है। हाल ही में शादी हुई है उसकी। मां-�ाप दोनों मर गये हैं उनके।- और गामा?

मुझे गामे की अगुवाई में की गयी कई शरारतें याद आ रही हैं। दूसरों के �गी'ों में अमरूद, ली'ी और आम तोड़ने के सिलए हमारे }ुप के सारे लड़के उसी के साथ जाते थे।बि�ल्लू �ता रहा है - गामा �े'ारा ग्यारहवीं तक पढ़ने के �ाद आजकल सब्जी मंडी के पास गरम मसाले �े'ता है। वहीं पर पक्की दुकान �ना ली है और खू� कमा रहा है।

- दारजी, ये नंदू वाले घर के आगे मैंने बिकसी मेहर'ंद की नेम प्लेट देखी थी। वे लोग भी घर छोड़ गये हैं क्या? मैं पूछता हंू।

- मंगाराम बि�'ारा मर गया है। �हुत �ुरी हालत में मरा था। इलाज के सिलए पैसे ही नहीं थे। मज�ूरन घर �े'ना पड़ा। उसके मरने के �ाद नंदू की पढ़ाई भी छूट गयी। लेबिकन मानना पडे़गा नंदू को भी। उसने पढ़ाई छोड़ कर �ाप की जगह कई साल तक ठेला लगाया, �ाप का काम आगे �ढ़ाया और अ� उसी ठेले की �दौलत नहरवाली गली के सिसरे पर ही उसका शानदार होटल है। बिवजय नगर की तर� अपना घर-�ार है और 'ार आदमिमयों में इज्जत है।

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- मैं आपको एक मजेदार �ात �ताती हंू वीर जी।ये गुड्डी है। हमेशा समझदारी भरी �ातें करती है।

- 'ल तू ही �ोल दे पहले। ज� तक मन की �ात न कह दे, तेरे ही डकार ज्यादा अटके रहते हैं। बि�ल्लू ने उसे छेड़ा है।

- रहने दे �ड़ा आया मेरे डकारों की सि'ंता करने वाला। और तू जो मेरी सहेसिलयों के �ारे में खोद खोद के पूछता रहता है वो...। गुड्डी ने �दला ले सिलया है।बि�ल्लू ने लपक कर गुड्डी की 'ुदिटया पकड़ ली है - मेरी झूठी 'ुगली खाती है। अ� आना मेरे पास पंज रपइये मांगने।गुड्डी सि'ल्लायी है - देखो ना वीरजी, एक तो पंज रपइये का लाल' दे के ना मेरी सहेसिलयों ....। बि�ल्लू शरमा गया है और उसने गुड्डी के मुंह पर हाथ रख दिदया है - देख गुड्डी, ख�रदार जो एक भी शब्द आगे �ोला तो।स� मजे ले रहे हैं। शायद ये उन दोनों के �ी' का रोज का बिकस्सा है।

- तूं वी इन्नां पागलां दे 'क्कर बिव' पै गेया ए।ं ऐ ते इन्ना दोवां दा रोज दा रोणा ऐ। �े�े इतनी देर �ाद �ोली है।

- असी ते सोइये हुण। गोलू ने अपने सिसर के ऊपर 'ादर खीं' ली है। गप्प�ाजी का सिसलसिसला यहीं टूट गया है।�ाकी स� भी उ�ासिसयां लेने लगे हैं। तभी बि�ल्लू ने टोका है - लेबिकन वीरा, आपके बिकस्से तो रह ही गये ।

- अ� कल सुनना बिकस्से। अ� मुझे भी नींद आ रही है। कहते हुए मैं भी �े�े की 'ारपाई पर ही मुड़ी-त�ड़ी हो कर पसर गया हूं। �े� े मेर े �ालों म ें उंगसिलया ं बि�रा रही है। 'ौदह �रस �ाद �े� े के ममताभरे आं'ल में आंखें �ंद करते ही मुझे तुंत नींद आ गयी है। बिकतने �रस �ाद सुकून की नींद सो रहा हंू।

देख रहा हूं इस �ी' �हुत कुछ �दल गया है। �हुत कुछ ऐसा भी लग रहा है जिजस पर समय के कू्रर पंजों की खरों' तक नहीं लगी है। स� कुछ जस का तस रह गया है। घर में भी और �ाहर भी.. । दारजी �हुत दु�ले हो गये हैं। अ� उतना काम भी नहीं कर पाते, लेबिकन उनके गुस्से में कोई कमी नहीं आयी है। कल �े�े �ता रही थी - �चे्च जवान हो गये हैं, शादी के लायक होने को आये लेबिकन अभी भी उन्हें जलील करने से �ाज नहीं आते। उनके इसी गुस्से की वजह से अ� तो कोई मोया }ाहक ही नहीं आता।गोलू और बि�ल्लू अपने अपने धंधे में बि�जी है। �े�े ने �ताया तो नहीं लेबिकन �ातों ही �ातों में कल ही मुझे अंदाजा लग गया था बिक गोलू के सिलए कहीं �ात 'ल रही है। अ� मेरे आने से �ात आगे �ढे़गी या ठहर जायेगी, कहा नहीं जा सकता। अ� �े�े और दारजी उसके �जाये कहीं मेरे सिलए .. .. नहीं यह तो गलत होगा। �े�े को समझाना पडे़गा।

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ये गोलू और बि�ल्लू भी अजी� हैं। कल पहले तो तपाक से मिमले, थोड़ी देर रोये-धोये। ज� मैंने उन्हें उनके उपहार दे दिदये तो �हुत खुश भी हुए लेबिकन ज� �ाद में �ात'ीत 'ली तो मेरे हाल'ाल जानने के �जाये अपने दुखडे़ सुनाने लगे। दारजी और �े�े की 'ुगसिलयां खाने लगे। मैं थोड़ी देर तक तो सुनता रहा लेबिकन ज� ये बिकस्से �ढ़ने लगे तो मैंने �रज दिदया - मैं ये स� सुनने के सिलए यहां नहीं आया हूं। तुम्हारी जिजससे भी जो भी सिशकायतें हैं, सीधे ही बिनपटा लो तो �ेहतर। इतना सुनने के �ाद दोनों ही उठ कर 'ल दिदये थे। रात को �ेशक थोड़ा-�हुत हंसी मज़ाक कर रहे थे, लेबिकन सवेरे-सवेर े ही तैयार हो कर - अच्छा वीरजी, बिनकलते हैं, कहते हुए दोनों एक साथ ही दरवाजे से �ाहर हो गये हैं। गुड्डी के भी कॉलेज का टाइम हो रहा है, और बि�र उसने स� सहेसिलयों को भी तो �ताना है बिक उसका स�से प्यारा वीर वाबिपस आ गया है।हँसती है वह - वीरजी, शाम को मेरी सारी सहेसिलयां आपसे मिमलने आयेंगी। उनसे अच्छी तरह से �ात करना।मैं उसकी 'ुदिटया पकड़ कर खीं' देता हंू - पगसिलये, मैंने तेरी सारी सहेसिलयों से क्या बि�याह र'ाना है जो अच्छी तरह से �ात करंू। ले ये दो सौ रुपये। अपनी सारी सखिखयों को मेरी तर� से आइसक्रीम खिखला देना। वह खुशी-खुशी कॉलेज 'ली गयी है।

छत पर खड़े हो कर 'ारों तर� देखता हंू। हमार े घर से सटे �सिछत्तर 'ा'े का घर। मेर े हर वक्त के जोड़दार जोगी, जोबिगन्दर सिसंह का घर। उनके के टूटे-�ूटे मकान की जगह दुमंजिजला आलीशान मकान खड़ा है। �ाकी सारे मकान कमो�ेश उन्हीं पुरानी दीवारों के कंधों पर खडे़ हैं। कहीं-कहीं छत पर एकाध कमरा �ना दिदया गया है या दिटन के शेड डाल दिदये गये हैं।नी'े उतर कर �े�े से कहता हूं - जरा �ाजार का एक 'क्कर लगा कर आ रहा हूं। वापसी पर नंदू की दूकान से होता हुआ आउं गा।€मैं गसिलयां गसिलयों ही बितलक रोड की तर� बिनकल जाता हूं और वहां से पि�ंदाल की तर� से होता हुआ 'कराता रोड मुड़ जाता हूं। कनाट प्लेस के �दले हुए रूप को देखता हुआ 'कराता रोड और वहां से घूमता-घामता घंटाघर और बि�र वहां से पलटन �ाज़ार की तर� बिनकल आया हंू। यूं ही दोनों तरV की दुकानों के �ोड# देखते हुए टहल रहा हंू। मिमशन स्कूल के ठीक आगे से गुज़रते हुए �'पन की एक घटना याद आ रही है। त� मैं एक पपीते वाले से यहीं पर बिपटते-बिपटते �'ा था। हमारी कक्षा के प्रदीप अरोड़ा ने नई साइबिकल खरीदी थी। मेरा अच्छा दोस्त था प्रदीप। राजपुर रोड पर रहता था वो। घर दूर होने के कारण वह खाने की आधी छुट्टी में खाना खाने घर नहीं जाता था �ल्किल्क स्कूल के आस-पास ही दोस्तों के साथ 'क्कर काटता रहता था। मैं खाना खाने घर आता था लेबिकन आने-जाने के 'क्कर में अकसर वाबिपस आने में देर हो ही जाती थी। इससिलए कई �ार प्रदीप अपनी साइबिकल मुझे दे देता। इस तरह मेरे दस- पद्रह मिमनट �' जाते तो हम ये समय भी एक साथ गुज़ार पाते थे। साइबिकल 'लानी त� सीखी ही थी। एक दिदन इसी तरह मैं खाना खा कर वाबिपस जा रहा था बिक मिमशन स्कूल के पास भीड़ के कारण �ैलेंस बि�गड़ गया। इससे पहले बिक मैं साइबिकल से नी'े उतर पाता, मेरा एक हाथ पपीतों से भरे एक हथठेले के हत्थे पर पड़ गया। मेरा पूरा वजन हत्थे पर पड़ा और मेरे बिगरने के साथ ही ठेला खड़ा होता 'ला गया। सारे पपीते ठेले पर से सड़क पर लुढ़कते आ बिगरे। पपीते वाला �ूढ़ा मुसलमान वहीं बिकसी }ाहक से �ात कर रहा था। अपने पपीतों

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का ये हाल देखते ही वह गुस्से से कांपने लगा। मेरी तो जान ही बिनकल गयी। साइबिकल के नी'े बिगरे-बिगरे ही मैं डर के मारे रोने लगा। बिपटने का डर जो था सो था, उससे ज्यादा डर प्रदीप की साइबिकल सिछन जाने का था। वहां एक दम भीड़ जमा हो गयी थी। इससे पहले बिक पपीते वाला मुसलमान मेरी साइबिकल छीन कर मुझ पर हाथ उठा पाता, बिकसी को मेरी हालत पर तरस आ गया और उसने मुझे तेजी से खड़ा बिकया, साइबिकल मुझे थमायी और तुंत भाग जाने का इशारा बिकया। मैं साइबिकल हाथ में सिलये सिलये ही भागा था।उस दिदन के �ाद कई दिदन तक मैं मिमशन स्कूल वाली सड़क से ही नहीं गुजरा था। मुझे पता है, पपीते के ठेले वाला वह �ूढ़ा मुसलमान इतने �रस �ाद इस समय यहां नहीं होगा लेबिकन बि�र भी �लों के सभी ठेले वालों की तर� एक �ार देख लेता हंू।

आगे कोतवाली के पास ही नंदू का होटल है।'लो, एक शरारत ही सही। अच्छी 'ाय की तल� भी लगी हुई है। नंदू के हेटल में ही 'ाय पी जाये। एक }ाहक के रूप में। परिर'य उसे �ाद में दंूगा। वैसे भी वह मुझे इस तरह से पह'ानने से रहा।नंदू काउंटर पर ही �ैठा है। 'ेहरे पर रौनक है और संतुष्ट जीवन का भाव भी। मेरी ही उम्र का है लेबिकन जैसे �रसों से इसी तरह धंधे करने वाले लोगों के 'ेहरे पर एक तरह का मिघसी हुई रकम वाला भाव आ जाता है, उसके 'ेहरे पर भी वही भाव है। �हुत ही अच्छा �नाया है होटल नंदू ने। �ेशक छोटा-सा है लेबिकन उसमें पूरी मेहनत और कलात्मक अणिभरुसि' का पता 'ल रहा है। दुकान के �ाहर ही �ोड# लगा हुआ है - आउटडोर कैटेरिरडग अंडर टेकन।

वेटर पानी रख गया है। मैं 'ाय का आड#र देता हंू। 'ाय का पेमेंट करने के �ाद मैं वेटर से कहता हंू बिक ज़रा अपने साह� को �ुला लाये। एक आउटडोर कैटरिरडग का आड#र देना हैै। नंदू भीतर आया है। हाथ में मीनू काड# और आड#र �ुक है - कबिहये साह�, कैसी पाट� देनी है आपको? उसने �हुत ही आदर से पूछा है।

- �ैठो। मैंने उसे आदेश दिदया है।उसके 'ेहरे का रंग �दला है और वह संको' करते हुए �ैठ गया है।मैं अपने को भरसक नाम#ल �नाये रखते हुए उससे पूछता हंू

- आपके यहां बिकस बिकस्म की पाट� का इंतजाम हो सकता है?वह आराम से �ैठ गया है - देखिखये साह�, हम हर तरह की आउटडोर कैटेरिरैंग के आड#र लेते हैं। आप सिस�# हमें ये �ता दीजिजये बिक पाट� क�, कहां और बिकतने लोगों के सिलए होनी है। �ाकी आप हम पर छोड़ दीजिजये। मीनू आप तय करेंगे या..वह अ� पूरी तरह दुकानदार हो गया है - आप को बि�लकुल भी सिशकायत का मौका नहीं मिमलेगा। वेज, नॉन-वेज और आप जैसे खास लोगों के सिलए हम पि�ंक्स पाट� का भी इंतजाम करते हैं।तभी उसे ख्याल आता है - आप कॉ�ी लेंगे या ठंडा?

- थैंक्स। मैंने अभी ही 'ाय पी है।

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- तो क्या हुआ? एक कॉ�ी हमारे साथ भी लीजिजये। वह वेटर को दो कॉ�ी लाने के सिलए कहता है और बि�र मुझसे पूछता है

- �स, आप हमें अपनी ज़रूरत �ता दीजिजये। क� है पाट� ?- ऐसा है खुराना जी बिक पाट� तो मैं दे रहा हूं लेबिकन सारी 'ीजें, मीनू, जगह, तारीख मेहमान

आप पर छोड़ता हंू। स� कुछ आप ही तय करेंगे। मैं आपको मेहमानों की सिलस्ट दे दंूगा। उनमें से बिकतने लोग शहर में हैं, ये भी आप ही देखेंगे और उन्हें आप ही �ुलायेंगे और ....।

- �ड़ी अजी� पाट� है, खैर, आप बि�क्र न करें। आप शायद �ाहर से आये हैं। हम आपको बिनराश नहीं करेंगे। तो हम मीनू तय कर लें ..?

- उसकी कोई ज़रूरत नहीं है, आप �ाद में अपने आप देख लेना।मैं �ड़ी मुल्किश्कल से अपनी हँसी रोक पा रहा हंू। नंदू को �ेवकू� �नाने में मुझे �हुत मज़ा आ रहा है। उसे समझ में नही आ रहा है बिक ये पाट� करेगा कैसे...।कॉ�ी आ गयी है। आखिखर वह कहता है - आप कॉ�ी लीजिजये और मेहमानों के नाम पते तो �ताइये ताबिक मैं उन्हें आपकी तर� से इन्वाइट कर सकंू,.. या आप खुद इन्वाइट करेंगे? वह सा�-सा� परेशान नज़र आ रहा है।

- ऐसा है बिक बि�लहाल तो मैं अपने एक खास मेहमान का ही नाम �ता सकता हंू। आप उससे मिमल लीजिजये, वही आपको स�के नाम और पते �ता देगा। मैं उसकी परेशानी �ढ़ाते हुए कहता हूं।

- ठीक है वही दे दीजिजये। उसने सरंडर कर दिदया है।- उसका नाम है नंद लाल खुराना, कक्षा 7 डी, रोल नम्�र 27, गांधी स्कूल।

यह सुनते ही वह कागज पैन छोड़ कर उठ खड़ा हुआ है और हैरानी से मेरे दोनों कंधे पकड़ कर पूछ रहा है - आप .. आप कौन हैं ? मैं इतनी देर से लगातार कोसिशश कर रहा हूं बिक इस तरह की बिनराली पाट� के नाम पर आप ज़रूर मुझसे शरारत कर रहे हैं। कौन हैं आप, ज़रूर मेरे �'पन के और सातवीं क्लास के ही दोस्त रहे होंगे..!मैं मुस्कुरा रहा हंू - पह'ानो खुद !वह मेरे 'ेहरे-मोहरे को अच्छी तरह देख रहा है। अपने सिसर पर हाथ मार रहा है लेबिकन उसे समझ नहीं आ रहा, मैं कौन हो सकता हंू।वह याद करते हुए दो-तीन नाम लेता है उस वक्त की हमारी क्लास के �च्चों के। मैं इनकार में सिसर बिहलाता रहता हंू। उसकी परेशानी �ढ़ती जा रही है। अ'ानक उसके गले से 'ीख बिनकली है - आप .. आप गगनदीप, दीप.. दीपू..!वह लपक कर सामने की कुस> से उठ कर मेरी तर� आ गया है और ज़ोर-ज़ोर से रोते हुए तपाक से मेरे गले से लग गया है। वह रोये जा रहा है। �ोले जा रहा है - आप कहां 'ले गये थे। हमें छोड़ कर गये और एक �ार भी मुड़ कर नहीं देखा आपने। स' माबिनये, आपके आने से मेरे मन पर रखा बिकतना �ड़ा �ोझ उतर गया है। हम तो मान �ैठे थे बिक इस जनम में तो आपसे मिमलना हो भी पायेगा या नहीं।मैं भी उसके साथ सु�क रहा हंू। रो रहा हंू। अपने मन का �ोझ हलका कर रहा हंू।

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रोते रोते पूछता हूं - क्यों �े क्या �ोझ था तेरे मन पर। और ये क्या दीप जी दीप जी लगा रखा है ? - स' कह रहा हूं ज� आप गये थे, तुम .. ..तू गया था तो हम स� के स� तेरे 'ारों तर� भीड़

लगा कर खडे़ थे। तुझे रोते-रोते सु�ह से दोपहर हो गयी थी। हम स� �ी'-�ी' में घर जा कर खाना भी खा आये थे लेबिकन तुझे खाने को बिकसी ने भी नहीं पूछा था। तेरे घर से तो खाना क्या ही आता। तेरे भाई भी तो वहीं खड़े थे। सिस�# मैं ही था जो बि�ना बिकसी को �ताये तेर े सिलए खाने का इंतज़ाम कर सकता था। तेरे सिलए अपने �ाऊ की हट्टी से एक प्लेट छोले भटूरे ही ला देता। लेबिकन हम स� �च्चों को जैसे लकवा मार गया था। हम �च्चे तेरे जाने के �ाद �हुत रोये थे। तुझे �हुत दिदनों तक ढंूढते रहे थे। �हुत दिदनों तक तो हम खेलने के सिलए �ाहर ही नहीं बिनकले थे। एक अजी� सा डर हमारे दिदलों में �ैठ गया था।हम दोनों �ैठ गये हैं। नंदू अभी भी �ोले जा रहा ह ै - मुझे �ाद में लगता रहा बिक मार खाना तेरे सिलए कोई नई �ात नहीं थी। तेरे केस कटाने की वज़ह भी मैं समझ सकता था लेबिकन मुझे लगता रहा बिक सारा दिदन भूखे रहने और घर वालों के साथ-साथ सारे दोस्तों की तर� से भी परवाह न बिकये जाने के कारण ही तू घर छोड़ कर गया था। अगर हमने तेरे खाने का इंतज़ाम कर दिदया होता और बिकसी तरह रात हो जाती तो तू ज़रूर रुक जाता। हो सकता है हमारी देखा-देखी कोई �ड़ा आदमी ही �ी' �'ाव करके तुझे घर ले जाता। लेबिकन आज तुझे इस तरह देख कर मैं �ता नहीं सकता, मैं बिकतना खुश हंू। वैसे लगता तो नहीं, तूने कोई तकली� भोगी होगी। जिजस तरह की तेरी पस#नैसिलटी बिनकल आयी है, माशा अल्लाह, तेरे आगे जिजतेन्दर-बिपतेन्दर पानी भरें। उसने बि�र से मेरे दोनों हाथ पकड़ सिलये हैं - मैं आपको �ता नहीं सकता, आपको बि�र से देख कर मैं बिकतना खुश हंू। वैसे कहां रहे इतने साल और हम गरी�ों की याद इतने �रसों �ाद कैसे आ गयी?

- क्या �ताऊं। �हुत लम्�ी और �ोर कहानी है। न सुनने लायक, न सुनाने लायक। बि�लहाल इतना ही बिक अभी तो �ं�ई से आया हंू। दो दिदन पहले ही आया हंू। कल और परसों के पूरे दिदन तो घर वालों के साथ रोने-धोने में बिनकल गये। दारजी तेरे �ारे में �ता रहे थे बिक तू यहीं है। स�से पहले तेरे ही पास आया हंू बिक तेरे ज़रिरये स�से मुलाकात हो जायेगी। �ता कौन-कौन है यहां ?

- अ� तो उस्ताद जी, स�से आपकी मुलाकात ये नंद लाल खुराना, कक्षा 7 डी, रोल नम्�र 27, गांधी स्कूल ही कराएगा और एक �दिढ़या पाट� में ही करायेगा।वह ज़ोर से हँसा है - अ� आप देखिखये, नंद लाल खुराना की कैटरिरडग का कमाल। 'ल, �ीयर पीते हैं और तेरे आने की सेसिलब्रेशन की शुरूआत करते हैं।

- मैं �ीयर वगैरह नहीं पीता।- कमाल है। हमारा यार �ीयर नहीं पीता। तो क्या पीता है भाई?- अभी अभी तो 'ाय और कॉ�ी पी हैं।- साले, शम# तो आयी नहीं बिक 'ाय का बि�ल पहले 'ुकाया और मुझे �ाद में �ुलवाया।- मैं देखना 'ाहता था बिक तू मुझे पह'ान पाता है या नहीं। वैसे �ता तो सही, यहां कौन-कौन

हैं। यहां बिकस-बिकस से मुलाकात हो सकती है?- मुलाकात तो �ॉस, पाट� में ही होगी। �ोल क� रखनी है?

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- ज� मज> हो रख ले, लेबिकन मेरी दो शत� हैं।- तू �ोल तो सही।- पहली �ात ये बिक पाट� मेरी तर� से होगी और दूसरी �ात यह बिक स�को पहले से �ता देना

बिक मेरे इन 'ौदह �रसों के �ारे में मुझसे कोई भी बिकसी भी बिकस्म का सवाल नहीं पूछेगा। स�के सिलए इतना ही का�ी है बिक मैं वाबिपस आ गया हंू, ठीक-ठाक हूं और बि�लहाल बिकसी भी तरह की तकलीV में नहीं हंू।

- दूसरी शत# तेरी मंज़ूर लेबिकन पाट� तो मेरी ही तर� से और मेरे ही घर पर होगी। परसों ठीक रहेगी?

- 'लेगी। अ� 'लता हंू। सु�ह से बिनकला हंू। �े�े राह देखती होगी।- खाना खा कर जाना।- बि�र आऊंगा। अभी नहीं।

�े�े के पास �ैठा हूं। मेरे सिलए खास तौर पर �े�े ने तंदूर तपाया है और मेरी पसंद की प्याज वाली तंदूरी परौंदिठया सेंक रही है। मैं वहीं �ैठा परौंदिठयों के सिलए आटे के पेड़े �नाने के 'क्कर में अपने हाथ खरा� कर रहा हूं। तभी �े�े ने कहना शैुरू बिकया है - वेख पुत्तरा, हुण तूं पुराणिणयां गल्ला भुला के ते इक कम कर। �े�े रुकी है और मेरी तर� देखने लगी है। तंदूर की आग की लौ से उसका 'ेहरा एकदम लाल हो गया है।मैं गरमागरम परौंठे का टुकड़ा मंुह में डालते हुए पूछता हंू - मैंनु दस ते सई �े�े, की करना है। हलका सा डर भी है मन में, पता नहीं �े�े क्या कह दे।

- तेरे दारजी कै रये सी बिक हुण तां तैनूं कोई तकली� नईं होवेगी अगर तूं गुरूद्वारे बिव' जा के ते अमरिरत 'ख लै। रब्� मेर करे, साडी वी तसल्ली हो जावेगी अते बि�रादरी वी तैंनू बि�र तों ...। �े�े ने वाक्य अधूरा ही छोड़ दिदया है।मैं हंसता हू ं - वेख �े�े, तेरी गल्ल ठीक है बिक मैं अमरिरत 'ख के ते इक वार बि�र सिसखी धरम बिव' वापस आ जावां। त्वाडी वी तसल्ली हो जावेगी ते बि�रादरी वी खुश हो जायेगी। अच्छा मैंनु इक गल्ल दस �े�े, इस अमरिरत 'क्खण दे �ाद मैंनू की करना होवेगा।�े�े की आंखों में 'मक आ गयी है। उसे बिवश्वास नहीं हो रहा बिक मैं इतनी आसानी से अमरिरत 'खने के सिलए मान जाऊंगा - अमरिरत 'खन दे �ाद �ंदा इक वारी बि�र सुच्चा सिसख �ण जांदा ए। इस वास्ते केस, बिकरपाण, कछेहरा, कंघा अते बिकरपाण धारण करने पैंदे ने ते इसदे �ाद कोई वी �ंदा केसां दा अपमान नीं कर सकता, मुसलमानां ते हत्थ का कटेया मांस नीं खा सकता , दूजे दी वोटी दे नाल..

- रैण दे �े�े। मैं तैंनू दस देवां बिक अमरिरत 'क्खण दे �ाद कीं होंदा है। मैं तैंनू पैली वारी दस रेंया हां बिक मैं इन्ना सारिरयां 'ीजां नंू जिजतना मनदां हां ते जाणदा हां, उतना ते इते्थ दे गुरुद्वारे दे भाईजी वी नीं जाणदे होणगे।

- मैं समझी नीं पुत्त। �े�े हैरानी से मेरी तर� देख रही है।

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- हुण गल्ल बिनकली ई है तां सुण लै। मैं ए सारे साल मणिणकण# ते अमरिरतसर दे गुरूद्वारेयां बिव' रै के कटे हन। तूं कैं वे ते म ैं तैन ूं पूरा दा पूरा गुरु }ंथ साबिह� ज�ानी सुणा देवां। मैं नामकरण, आनंद कारज, अमरिरत 'क्खण दिदयां सारिरयां बिवमिधयां करदा रेया हां। �ेशक मैं कदी वी पूरे केस नीं रखे पर हमेशा �टका �न्न के रेया हां। गुरू}ंथ साबिह� दा पाठ करदा रेया हां। जिजत्थे तक अमरिरत 'ख के ते बि�रादरी नूं खुश करण दी गल्ल है, मैं इसदी जरूरत नीं समझदा। �ाकी मैं तैंनू बिवश्वास दिदला दवां बिक मैं केसां वगैरा दा वादा ते नीं कर सकता पर ऐ मेरे तों सिलख के लै लै बिक मैं कदी वी मीट नीं खावांगा, कदी खा के वी नीं वेखया, दूजे दी वोटी नूं अपणी भैण मन्नांगा, सिसगरेट, शरा� नूं कदी हत्थ नीं लावांगा। होर कुज..?�े�े हैरानी से मेरी तर� देखती रह गयी है। उसे कत्तई उम्मीद नहीं थी बिक सच्चाई का यह रूप उसे देखने का मिमलेगा। वह कुछ कह ही नही पायी है।

- लेकन पृत्तर, तेरे दारजी..बि�रादरी..- बि�रादरी दी गल्ल रैण दे �े�े, मैं दो 'ार दिदन्नां �ाद 'ले जाणा ए। बि�रादरी हुण मेरे बिपचे्छ बिपचे्छ

�ं�ई ते नीं ना आवेगी। 'ल मैं तेरी इन्नीं गल्ल मन्न लैनां बिक घर बिव' ई अस्सी अखण्ड पाठ रख लैंने हां। सारेयां दी तसल्ली हो जायेगी।थोड़ी हील हुज्जत के �ाद �े�े अखण्ड पाठ के सिलए मान गयी है, लेबिकन उसने अपनी यह �ात भी मनवा ली है बिक पाठ के �ाद लंगर भी होगा और सारी बि�रादरी को �ुलवाया जायेगा।मैंने इसके सिलए हां कर दी है। �े�े की खुशी के सिलए इतना ही सही। दारजी का मनाने का जिजम्मा �े�े ने ले सिलया है। वैसे उसे खुद भी बिवश्वास नहीं है बिक दारजी को मना पायेगी या नहीं।

आज अखण्ड पाठ का आखिखरी दिदन है।बिपछले तीन दिदन से पूरे घर में गहमागहमी है। पाठी �ारी-�ारी से आकर पाठ कर रहे हैं। �ी' �ी' में �े�े और दारजी की तसल्ली के सिलए मैं भी पाठ करने �ैठ जाता हूं। �ेशक कई साल हो गये हैं दर�ारजी के सामने �ैठै, लेबिकन एक �ार �ैठते ही स� कुछ याद आने लगा है। दारजी मेरे इस रूप को देख कर हैरान भी हैं और खुश भी। �े�े ने आस-पास के सारे रिरश्तेदारों और जान-पह'ान वालों को न्योता भेजा है। वैसे भी अ� तक सारे शहर को ही ख�र हो ही 'ुकी है। लंगर का इंतजाम कर सिलया गया है। �े�े स� त्योहारों की भरपाई एक साथ ही कर देना 'ाहती है। मैंने �े�े को �ीस हजार रुपये थमा दिदये हैं ताबिक वह अपनी साध पूरी कर सके। आखिखर इस सारे इंतजाम में खर'ा तो हो ही रहा है। उसकी खुशी में ही मेरी खुशी है। पहले तो �े�े इन पैसों को हाथ ही लगाने के सिलए तैयार न हो लेबिकन ज� मैंने �हुत ज़ोर दिदया बिक तू ये स� मेरे सिलए ही तो कर रही है त� उसने ले जाकर सारे पैसे दारजी को थमा दिदये हैं। दारजी ने ज� नोट बिगने तो उनकी आंखें �टी रह गयी हैं। वैसे तो उन्होंने मेरे कपड़ों, सामान और उन लोगों के सिलए लाये सामान से अंदाजा लगा ही सिलया होगा बिक मैं अ� अच्छी खासी जगह पर पहंु' 'ुका हंू। �े�े से दारजी ने जरा नाराज़गी भरे लहजे में कहा है - लै तूं ई रख अपणे पुत्त दी पैली कमाई। मैं की करणा इने्न पैसेंया दा।

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मुझे खरा� लगा है। एक तर� तो वे मान रहे हैं बिक उनके सिलए ये मेरी पहली कमाई है और दूसरी तर� उसकी तर� ऐसी �ेरुखी। �े�े �ता रही थी बिक आजकल दारजी का काम मंदा है। गोलू और बि�ल्लू मिमल कर तीन 'ार हजार भी नहीं लाते और उसमें से भी आधे तो अपने पास ही रख लेते हैं।अरदास हो गयी है और कड़ाह परसाद के �ाद अ� लोग लंगर के सिलए �ैठने लगे हैं। मुझे हर दूसरे मिमनट बिकसी न बिकसी �ुजुग# का पैरी पौना करने के सिलए कहा जा रहा है। कोई दूर का �ू�ा लगता है तो कोई दूर का मामा ताया.... कोई �े� े को सुनाते हुए कह रहा ह ै - नीं गुरनाम कोरे, हुण तेरा मंुडा दो�ारा ना जा सके इहदा इंतजाम कर लै। कोई 'ंगी जई कुड़ी वेख के इन्नू रोकण दा पक्का इंतजाम कर लै, तो कोई जा के दारजी को 'ोक दे रहा है - ओये हरनामेया... इक कम्म तां तू ऐ कर बिक इनू्न अज ही अज इनू्न इत्थे ई रोकण दा इंतजाम कर लै।दारजी को मैं पहली �ार हंसते हुए देख रहा हूं - बि�कर ना करो �ादशाहो ... दीपू नूं रोकण दा अज ही अज पक्का इंतजाम है।मुझे समझ में नहीं आ रहा बिक ये स� हो क्या रहा है। मुझे रोकने वाली �ात समझ में नहीं आ रही।मुझे लग रहा है बिक इस अखण्ड पाठ के ज़रिरये कोई और ही खिख'ड़ी पक रही है। तभी �े�े एक �ुजुग# सरदारजी को लेकर मेरे पास आयी है और �हुत ही खुश हो कर �ता रही है - सत श्री अकाल कर इन्ना नूं पुत्तर। अज दा दिदन साडे लई बिकन्ना 'ंगा ऐ बिक घर �ैठे दीपू लई इन्ना सोणा रिरश्ता आया ए..। मैं ते कैनी आं भरा जी, तुसी इक अध दिदन इ' दीपे नूं वी कुड़ी बिवखाण दा इंतजाम कर ई देओ।

- जो हुकम भैणजी, तुसी जदो कओ, असी त्यार हां। �ाकी साडा दीपू वल के आ गया ए, इस्तों वड्डी खुशी साडे लई होर की हो सकदी है।

- ये मैं क्या सुन रहा हंू। ये कुड़ी दिदखाने का क्या 'क्कर है भई। �े�े या दारजी इस समय सातवें आसमान पर हैं, उन्हें वहां से न तो उतारना संभव है और न उसि'त ही। पता तो 'ले, कौन हैं ये �ुजुग# और कौन है इसकी लड़की । .... कमाल है .. ..मुझसे पूछा न भाला, मेरी सगाई की तैयारिरयां भी कर लीं। अभी तो मुझे यहां आये 'ौथा दिदन ही हुआ है और इन्होंने अभी से मुझे नकेल डालनी शुरू की दी। कम से कम मुझसे पूछ तो लेते बिक मेरी भी क्या मज> है। कुछ न कुछ करना होगा.. जल्दी ही, ताबिक वक्त रहते �ात आगे �ढ़ने से पहले ही संभाली जा सके।इस वक्त मेरा सारा ध्यान उस करतार सिसहां की तर� है जो अपनी लड़की मेरे पल्ले �ांधने की पूरी योजना �ना कर आया हुआ है। अच्छा ही है बिक आज मैं नंदू के साथ �ाहर बिनकल जाऊंगा, नहीं तो वो मुझे अपने सवालों से कुरेद - कुरेद कर छलनी कर देगा। कैसे शाबितराना अंदाज पूछ रहा था - �ं�ई बिव' तुसीं बिकत्थे रैंदे हो और घर �ार दा की इंतजाम बिकत्ता होया ए तुसी..? जैसे मैं �ं�ई से उसकी दसवीं या नौंवी पास लड़की से रिरश्ता तय करने के सिलए यहां आया हूं न �ात न 'ीत, बिनकाल के पां' सौ एक रुपये मेरी तर� �ढ़ा दिदये - ऐ रख लओ तुसी..।क्यों रख ले भई, कोई वजह भी तो हो पैसे रख लेने की। मेरा दिदमाग �ुरी तरह भन्ना रहा है। हमारी �े�े भी जरा भी नहीं �दली.. उसका काम करने का वही पुराना तरीका है। अपने आप ही स� कुछ तय बिकये जाती है। लेबिकन इस मामले में तो दोनों की मिमली भगत ही लग रही है मुझे..!मै दारजी को न त� समझ पाया था और न अ� समझ पा रहा हंू। हालांबिक ज� से आया हंू उनका गुस्सा तो देखने में नहीं आया है लेबिकन जैसे �हुत खुश भी नहीं नज़र आते। अपना काम करते रहते हैं या

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इधर उधर बिनकल जाते हैं और घंटों �ाद वाबिपस आते हैं। मुझसे भी जो कुछ कहना होता है �े�े के जरिरये ही कहते हैं - दारजी ए कै रये सन या दारजी पुछ रये सन....। बिहसा� लगाता हूं दारजी अ� प'पन-छप्पन के तो हो ही गये होंगे। अ� उमर भी तो हो गयी है। आदमी आखिखर सारी ज़िज़ंदगी अपनी जिजद लेकर लड़ता झगड़ता तो नहीं रह सकता.. आदमी मेहनती हैं और पूरे घर का ख'# 'ला ही रहे हैं। गुड्डी की पढ़ाई है। गोलू, बि�ल्लू ने भी अभी ढंग से कमाना श्जारू नहीं बिकया है। ऐसा तो नहीं हो सकता बिक मेरे आने से दारजी को खुशी न हुई हो। लगता तो नहीं है, लेबिकन वे जाबिहर ही नहीं होने देते बिक उनके मन में क्या है। ज� भी उनके पास �ैठता हंू, एकाध छोटी मोटी �ात ही पूछते रहे हैं - �ं�ई में सुना है, मकान �हुत मुल्किश्कल से मिमलते हैं। खाने-वाने की भी तकली�ें होंगी। क्या इस तर� ट्रांस�र नहीं हो सकता....। और इसी तरह की दूसरी �ातें।

कुछ न कुछ तो करना ही पडे़गा.... बिकसकी मदद ली जाये....कोई भी तो यहां मेरा राज़दार नहीं है। सभी कटे-कटे से रहते है। गोलू बि�ल्लू भी मुझे ऐसे देखते हैं मानो मैं उनका �ड़ा भाई न होकर दुश्मन सरीखा होऊं। जैसे मैं उनका कोई हक छीनने आ गया होऊं। पहले ही दिदन तो गले मिमल मिमल कर रोये थे और दो-'ार �ातें की थीं, उनमें भी अपनी परेशाबिनयां ज्यादा �ता रहे थे। उसके �ाद तो मेरे साथ �ैठ कर �ातें करते ही नहीं हैं। ज� से मैं आया हूं, गुड्डी ही स�से ज्यादा स्नेह �रसा रही है मुझ पर। ज� भी �ाहर से आती है, उसके साथ एक न एक सहेली ज़रूर ही होती है जिजससे वह मुझसे मिमलवाना 'ाहती है।उसी को घेरता हंू।उसने मेरा लाया नया सूट पहना हुआ है। लेबिकन 'प्पल उसके पास पुराने ही हैं। यही तरीका है उसे घर से �ाहर ले जाने का और पूरी �ात पूछने का।उसे �ुलाता हूं - गुड्डी, जरा �ाजार तक 'ल, मुझे एक �हुत ज़रूरी 'ीज़ लेनी है। जरा तू पसंद करा दे।

- क्या लेना है वीर जी, वह �ड़ी-�ड़ी आंखों से मेरी तरV देखती है।- तू 'ल जो सही। �स दो मिमनट का ही काम है।- अभी आयी वीर जी, जरा �े�े को �ता हंू आपके साथ जा रही हूं।

रास्ते में पहले तो मैं उससे इधर-उधर की �ातें कर रहा हंू। उसकी पढ़ाई की, उसकी सहेसिलयों की और उसकी पसंद की। �े'ारी �हुत भोली है। सारा दिदन बि�रकी की तर� घर में घूमती रहती है। स्वभाव की �हुत ही शांत है। आजकल मेरे सिलए स्वेटर �ुन रही है। अपने खुद के पैसों से ऊन लायी है..। मेरी सेवा तो इतने जतन से कर रही है बिक जैसे इन सारे �रसों की सारी कसर एक साथ पूरी करना 'ाहती हो। जूतों की दुकान में मैं सेल्समैन को उसके सिलए कोई अचे्छ से सैंबिडल दिदखाने के सिलए कहता हूं।गुड्डी बि�गड़ती है - ये क्या वीर जी, आप तो कह रहे थे बिक आप को अपने सिलए कुछ 'ाबिहये और यहां ... मेरे पास हैं ना..

- तू 'ुप 'ाप अपने सिलए जो भी पसंद करना है कर, ज्यादा �ातें मत �ना। - सच्ची, वीरजी, ज� से आप आये हैं, हम लोगों पर बिकतना ख'# कर रहे हैं ..

- ये स� सो'ना तेरा काम नहीं है।

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गुड्डी की शापिपंग तो करा दी है लेबिकन मैं तय नहीं कर पर रहा हूं बिक जो सवाल उससे पूछना 'ाहता हंू, कैसे पूछंू।हम वाबिपस भी 'ल पडे़ हैं। अभी दो मिमनट में ही अपनी गली में होंगे और मेरा सवाल बि�र रह जायेगा।उससे कहता हू ं - गुड्डी, �ता यहां गोलगप्पे कहां अचे्छ मिमलते हैं, वहां तो आदमी इन 'ीजों के सिलए तरस जाता है।वह झांसे में आ गयी है।आपको इतने शानदार गोलगप्पे खिखलाऊंगी बिक याद रखेंगे। हमारा पैट गोलगप्पे वाला है कैलाश.।

- कहां है तुम्हारे कैलाश का गोलगप्पा पव#त..?- �स, पास ही है।- वैसे गुड्डी �ीए के �ाद तेरा क्या करने का इरादा है। मैं भूमिमका �ांधता हंू।- मैं तो वीरजी, एम�ीए करना 'ाहती हंू। लेबिकन एम�ीए के सिलए बिकसी �ड़े शहर में हॉस्टल में

रहना, कहां मानेंगे मेरी �ात ये लोग? आपको तो पता ही है दारजी �ीए के सिलए भी बिकतनी मुल्किश्कल से राजी हुए थे।

- 'ल तेरी ये जिजम्मेवारी मेरी। तू �ीए में अचे्छ माक्स# ले आ तो एम�ीए तुझे �ं�ई से ही करा दंूगा। मेरा भी दिदल लगा रहेगा। मेरा खाना भी �ना दिदया करना।

- स' वीर जी, आप बिकतने अचे्छ हैं, आज आप बिकतनी अच्छी अच्छी ख�रें सुना रहे है। 'सिलये, गोलगप्पे मेरी तर� से। लेबिकन मैं आपका खाना क्यों �नाने लगी। आयेगी ना हमारी भाभी....।अ� सही मौका है .. मैं पूछ ही लेता हूं - अच्छा गुड्डी, �ताना, ये जो करतार सिसहं वगैरह आये थे सवेरे, क्या 'क्कर है इनका, मैं तो परेशान हो रहा हंू।

- कोई 'क्कर नहीं है वीर जी, हमारे सिलए भाभी लाने का इंतजाम हो रहा है।- लेबिकन गुड्डी, ऐसे कैसे हो सकता है?- तू खुद सो', मैं अपनी पढ़ाई-सिलखाई को थोड़ी देर के सिलए एक तर� रख भी दंू, अपनी

अ�सरी को भी भूल जाऊं, लेबिकन ये तो देखना ही 'ाबिहये ना बिक कौन लोग हैं, क्या करते हैं, लड़की क्या करती है, मेरे साथ देस परदेस में उसकी बिनभ पायेगी या नहीं, कई �ातें सो'नी पड़ती हैं, मैं अकेले रहते रहते थक गया था गुड्डी, इससिलए घर वाबिपस आ गया हूं लेबिकन इतना वक्त तो लेना ही 'ाबिहये बिक पहले मेरे घर वाले ही मुझे अच्छी तरह से समझ लें।

- आपकी �ात ठीक है वीर जी, लेबिकन �े� े और दारजी का कुछ और ही सो'ना है। अभी परसों की �ात है, आप कहीं �ाहर गये हुए थे। मैं दारजी के सिलए रोटी �ना रही थी। �े�े भी वहीं पास ही �ैठी थी। तभी आपकी �ात 'ल पड़ी। वैसे तो ज� से आप आये हैं, घर में आपके अलावा और कोई �ात होती ही नहीं, तो दारजी �े�े से कह रहे थे - कुछ ऐसा इंतजाम बिकया जाये बिक अ� से दीपू का घर में आना जाना छूटे नहीं। कहीं ऐसा न हो बिक आज आया है बि�र अरसे तक आये ही नहीं।

- तो ?

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- �े�े �ोली बि�र - इसका तो एक ही इलाज है बिक कोई 'ंगी सी कुड़ी वेख के दीपे की सगाई कर देते हैं। शादी �ेशक साल छः महीने �ाद भी कर सकते हैं, लेबिकन यहीं सगाई हो जाने से उसके घर से �ंधे रहने का एक सिसलसिसला �न जायेगा।

- तो दारजी ने क्या कहा..?- दारजी ने कहा - लेबिकन इतनी जल्दी लड़की मिमलेगी कहां से..?- तो �े�े �ोली - उसकी सि'ंता मुझ पे छोड़ दो। मेरे दीपू के सिलए अपनी ही बि�रादरी में एक से

एक शानदार रिरश्ते मिमल जायेंगे। ज� से दीपू आया है, अचे्छ अचे्छ घरों के कई रिरश्ते आ 'ुके हैं। मैं ही 'ुप थी बिक �च्चा कई सालां �ाद आया है, कुछ दिदन आराम कर ले। कई लोग तो हाथों हाथ दीपू को सर आंखों पर बि�ठाने वाले खडे़ हैं।

- अच्छा तो ये �ात है। सारी प्लैपिनंग मुझे घेरने के सिलए �नायी जा रही है। मेरी आवाज में तीखापन आ गया है।

- नहीं वीरजी यह �ात नहीं है .. लेबिकन .. गुड्डी घ�रा गयी है। उसे अंदाजा नहीं था बिक उसकी �तायी �ात से मामला इस तरह से बि�गड़ जायेगा।

- अच्छा एक �ात �ता। उसका मूड ठीक करने करने के सिलहाज से मैं पूछता हूँ - ये करतार जी करते क्या हैं और इनकी कुड़ी क्या करती है। जानती है तू उसे?

- �हुत अच्छी तरह से तो नहीं जानती, ये लोग धम# पुर में रहते हैं। शायद दसवीं करके सिसलाई कढ़ाई का कोस# बिकया था उसने।

- तू मिमली है उससे कभी?- पक्के तौर तो नहीं कह सकती बिक वही लड़की है।- खैर जाने दे, ये �ता ये सरदारजी क्या करते हैं..?- उनकी पलटन �ाजार में �जाजी की दुकान है..।- कहीं ये खालसा क्लॉथ शाप वाले करतार तो नहीं? मुझे याद आ गया था बिक इन्हें मैंने �'पन

में बिकस दुकान पर �ैठे देखा था। मैं त� से परेशान हो रहा था बिक इस सरदार को कहीं देखा है लेबिकन याद नहीं कर पा रहा था।गुड्डी के याद दिदलाने से कन्�म# हो गया है।मैं गुड्डी का कंधा थपथपाता हंृ ।

- लेबिकन वीरजी, आपको एक प्रॉमिमस करना पडे़गा, आप बिकसी को �तायेंग े नहीं बिक मैंने आपको ये सारी �ातें �तायी हैं।

- गाड प्रॉमिमस, धरम दी सौं �स। मुझे �'पन का दोस्तों के �ी' हर �ात पर कसम खाना याद आ गया है - वैसे एक �ात �ता, तू 'ाहती है बिक मेरा रिरश्ता इस करतार सिसंह की सिसलाई-कढ़ाई करने और तबिकये के बिगला� काढ़न े वाली अनजान लड़की स े हो जाये। देख, ईमानदारी स े �तायेगी तो आइसक्रीम भी खिखलाऊंगा।

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Page 23: 24 ¹¸÷¸Ÿ ¸£, 1992— ˆ¾Å¥¸½¿”£ ‡ˆÅ ¸¸£ ¹ûÅ£ ¨¸ú Ÿ ... mangal.doc · Web view[उपन य स] - स रज प रक श 24 स तम बर, 1992।

हंसी है गुड्डी - रिरश्वत देना तो कोई आपसे सीखे वीरजी, जरा सी �ात का पता लगाने के सिलए आप इतनी सारी 'ीजें तो पहले ही दिदलवा 'ुके है। मेरी �ात पूछो तो मुझे ये रिरश्ता कत्तई पसंद नहीं है। हालांबिक मैंने अपनी होने वाली भाभी को नहीं देखा है, लेबिकन ये मै' जमेगा नहीं। पता नहीं क्यों मेरा मन नहीं मान रहा है लेबिकन आप तो जानते ही हैं, दारजी और �े�े को।

- ओये पगसिलये, अभी तुझे तेरी होने वाली भाभी से मिमलवाता हूं। उसके मन का �ोझ दूर हो गया है लेबिकन मेरी सि'ंता �ढ़ गयी है। अ� इस मो'� पर भी अपनी सारी शसिक्त लगा देनी पडे़गी। पता नहीं दारजी और �े�े को समझाने के सिलए क्या करना पडे़गा।हम घर की तर� लौट रहे हैं तभी गुड्डी पूछती है - वीरजी, कभी हमें भी �ं�ई �ुलायेंगे ना.. मेरा �ड़ा मन होता है ऐक्टरों और हीरोइनों को नजदीक से देखने का। सुना है वहां ये लोग वैसे ही घूमते रहते हैं..और अपनी सारी शॉपिपंग खुद ही करते हैं। वह लगातार �ोले 'ली जा रही है - आपने कभी बिकसी ऐक्धटर को देखा है। मैं झल्ला कर पूछता हंू - पूरे हो गये तेरे सवाल या कोई �ाकी है?

- वीरजी, आप तो �ुरा मान गये। कोई �ं�ई आये और अपनी पसंद के हीरो से न मिमले तो इत्ती दूर जाने का मतल� ही क्या....?

- तो सुन ले मेरी भी �ात .. तुझे अगर जो मेरे पास आना है तो तू अभी 'ली 'ल मेरे साथ। मैं भी तेरे साथ ही �ं�ई देख लंूगा। और जहां तक तेरे एक्टरों का सवाल है, वो मेरे �स का नहीं। मुझे वहां अपनी तो ख�र रहती नहीं, उनकी खोज ख�र कहां से रखंू...।

लौट रहा हूं वाबिपस। एक �ार बि�र घर छूट रहा है..। अगर मुझे ज़रा-सा भी आइबिडया होता बिक मेरे यहां आने के पां'-सात दिदन के भीतर ही ऐसे हालात पैदा कर दिदये जायेंगे बिक मैं न इधर का रहूं और न उधर का तो मैं आता ही नहीं। यहां तो अजी� तमाशा खड़ा कर दिदया है दारजी ने। कम से कम इतना तो देख लेते बिक मैं इतने �रसों के �ाद घर वाबिपस आया हंू। मेरी भी कुछ आधी-अधूरी इच्छायें रही होंगी, मैं घर नाम की जगह से जुड़ाव महसूस करना 'ाहता होऊंगा। 'ौदह �रसों में आदमी की सो' में ज़मीन-आसमान का Vक# आ जाता है और बि�र मैं कहीं भागा तो नहीं जा रहा था। दारजी तो �स, अड़ गये - तुझे शादी तो यहीं करतारे की लड़की से ही करनी पडे़गी। मैं कौल दे 'ुका हूं। दारजी का कौल स� कुछ और मेरी ज़िज़ंदगी कुछ भी नहीं। अजी� धौंस है। उन्हें पता है, मैं उनके आगे कुछ भी नहीं कह पाऊंगा तो मेरी इसी शराVत का �ायदा उठाते हुए म़ुझे हुक्म सुना दिदया - शाम को कहीं नहीं जाना, हम करतारे के घर लड़की देखने जा रहे हैं। मैंने ज� �े�े के आगे बिवरोध करना 'ाहा, तो दारजी �ी' में आ गये - �े�े को �ी' में लाने की ज़रूरत नहीं है �रखुरदार, यह मद� की �ात है। हम स� कुछ तय कर 'ुके हैं। सिस�# तुझे लड़की दिदखानी है ताबिक तू ये न कहे, देखने-भालने का मौका ही नहीं दिदया। वैसे उनका घर-�ार हमारा देखा भाला है..। बिपछली तीन पीदिढ़यों से एक-दूसरे को जानते हैं। संतोष को भी तेरी �े�े ने देखा हुआ है।यह हुक्मनामा सुना कर दारजी तो साथ जाने वाले �ाकी रिरश्तेदारों को ख�र करने 'ल दिदये और मैं भीतर-�ाहर हो रहा हूं। �े�े मेरी हालत देख रही है। जानती भी है बिक मैं इस तरह से तो शादी नहीं ही कर पाऊंगा। परसों रात भी मैंने �े�े को समझाने की कोसिशश की थी बिक अभी मैं इस तरह की दिदमागी

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हालत में नहीं हूं बिक शादी के �ारे में सो' सकंू और बि�र �ं�ई में मेरे पास अपने ही रहने का दिठकाना नहीं है, आने वाली को कहां ठहराउंगा, तो �े�े अपने रोने सुनाने लगी - तूं इन्ने सि'रां �ाद आया हैं। सान्नू इन्नी साध तां पूरी कर लैंणे दे बिक अपणे होंदेयां तेरी वोटी नंू वेख लइये।मैंने समझाया - वेख �े�े, तेनू नूं दा इन्ना ई शौक है तां बि�ल्लू ते गोलू दोंवां दा वया कर दे। तेरिरयां दो दो नंूआ तेरी सेवा करन गी।

- पागल हो गया हैं वे पुत्तर, वड्डा भरा �ैठा होवे ते छोटेयां दे �ारे बिव' सो'ेया वी नीं जा सकदा पुत्तर। तू कुड़ी तां वेख लै। अस्सी सगन लै लवां गे। शादी �ाद बिव' होंदी रऐगी। पर तूं हां तां कर दे। जिजद नीं करींदी। मन जा पुत्त।मैं नहीं समझा पा रहा �े�े को। ज� �े�े के आगे मेरी नहीं 'लती तो दारजी के आगे कैसे 'लेगी।ठंडे दिदमाग से कुछ सो'ना 'ाहता हूं। मैं �े�े से कहता हू ं - ज़रा घंटाघर तक जा रहा हूं, कुछ काम है, अभी आ जाऊंगा, तो �े�े आवाज लगाती है - छेत्ती आ जाईं पुत्तरा।मैं बिनकलने को हूं बिक गुड्डी की आवाज आती है - वीरजी, मैं भी कॉलेज जा रही हंू। पलटन �ाज़ार तक मैं भी आपके साथ 'लती हूं।

- 'ल तू भी। कहता हंू उससे।- �हुत परेशान हैं, वीरजी ?- कमाल है, यहां मेरी जान पर �न रही है और तू पूछ रही है परेशान हंू। तू ही �ता, क्या सही है

दारजी और �े�े का ये �ैसला....।- वीर जी, �ात सिस�# आपकी जान की नहीं है, बिकसी और को भी �ली का �करा �नाया जा

रहा है। उसकी तो बिकसी को परवाह ही नहीं है।- क्या मतल�? और बिकस को �सिल का �करा �नाया जा रहा है?

वह रुआंसी हो गयी है। - तू �ोल तो सही, मामला क्या है ?- यहीं राह 'लते �ताऊं क्या ?- अच्छा, यह �ात है, �ोल कहां 'लना है। लग रहा है मामला कुछ ज्यादा ही सीरिरयस है।- इस शहर की यही तो मुसी�त है बिक कहीं �ैठने की ढंग की जगह भी नहीं है।- 'ल, नंदू के रेस्तरां में 'लते हैं। वहां �ैमिमली केबि�न है। वहां कोई बिडस्ट�# भी नहीं करेगा।

नंदू कहीं काम से गया हुआ है, लेबिकन उसका स्टा� मुझे पह'ानने लगा है..। स� नमस्कार करते हैं। मैं �ताता हूं - ये मेरी छोटी �हन है। हम �ात कर रहे हैं। कोई बिडस्ट�# न करे!

- हां अ� �ता, क्या मामला है, और तेरी ये आंखें क्यों भरी हुई हैं, पहले आंसू पोंछ ले, नहीं तो 'ाय नमकीन लगेगी।

- यहां बिकसी की जान जा रही है और आप को मज़ाक सूझ रहा है वीर जी।

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- तू �ात भी �तायेगी या पहेसिलयां ही �ुझाती रहेगी, �ोल क्या �ात है...।- कल रात ज� आप नंदू वीरजी के घर गये हुए थे तो �े�े और दारजी �ात कर रहे थे। उन्होंने

समझा, मैं सो गयी हूं, लेबिकन मुझे नींद नहीं आ रही थी। तभी दारजी ने �े�े को �ताया - करतारे ने इशारा बिकया है बिक वो सगाई पर प'ास हजार नकद, सारे रिरश्तेदारों को सगन और हमें गरम कपडे़ वगैरह देगा और शादी के मौके पर दीपू के सिलए मारूबित कार और 'ार लाख नकद देगा।

- अच्छा तो यह �ात है।- टोको नहीं �ी' में। पूरी �ात सुनो।- सॉरी, तो �े�े ने क्या कहा?- �े�े ने कहा बिक हमारी बिकस्मत 'ंगी है जो दीपू इन्ने 'ंगे मौके पर आ गया है। हमारे तो भाग

खुल गये।- तो दारजी कहने लग े - दीपू की शादी के सिलए तो हमें कुछ खास करना नहीं पडे़गा। उसके

पास �हुत पैसा है। आखिखर अपनी शादी पर खर' नहीं करेगा तो क� करेगा। ये प'ास हजार ऊपर एक कमरा �नाने के काम आ जायेंगे। �ाकी करतारा शादी के वक्त तो जो पैसे देगा, वो पैसे गुड्डी के काम आ जायेंगे। साल छः महीने में उसके भी हाथ पीले कर देने हैं। उसके सिलए भी एक दो लड़के हैं मेरी बिनगाह में.. ।यह कहते हुए गुड्डी रोने लगी है - मेरी पढ़ाई का क्या होगा वीरजी, मुझे �'ा लो वीर जी, मैं �हुत पढ़ना 'ाहती हंू। आप तो बि�र भी अपनी �ात मनवा लेंगे। मेरी तो घर में कोई सुनता ही नहीं।

- मुझे नहीं मालूम था गुड्डी, मामला इतना टेढ़ा है। कुछ न कुछ तो करना ही होगा।- जो कुछ भी करना है, आज ही करना होगा, कहीं शाम को स� लोग पहुं' गये लड़की देखने

तो �ात लौटानी मुल्किश्कल हो जायेगी।- क्या करें बि�र..?- आप क्या सो'ते हैं ?- देख गुड्डी, तेरी पढ़ाई तो पूरी होनी ही 'ाबिहये। तेरी पढ़ाई और शादी की जिजम्मेवारी मैं लेता हंू।

तुझे हर महीने तेरी ज़रूरत के पैसे भेज दिदया करंूगा। तेरी शादी का सारा ख'ा# मैं उठाऊंगा। तू �ेबि�कर हो कर कॉलेज जा। पढ़ाई में मन लगा। �ाकी मैं देखता हंू। दारजी और �े�े को समझाता हंू।मैं जे� से पस# बिनकालता हूं - ले बि�लहाल हज़ार रुपये रख। �ं�ई से और भेज दंूगा, और ये रख मेरा काड#। काम आयेगा..।गुड्डी बि�र रोने लगी है - क्या मतल� वीरजी, आप.... आप.. ये स� क्या कह रहे हैं और ये पैसे क्यों दे रहे हैं। आपके दिदये बिकतने सारे पैसे मेरे पास हैं।

- देख, अगर दारजी और �े�े न माने तो मेरे पास यही उपाय �'ता है बिक मैं शाम होने से पहले ही �ं�ई लौट जाऊं। इस सगाई को रोकने का और कोई तरीका नहीं है। जिजस तरह मेरे आने के दूसरे दिदन से ही ये षडयंत्र शुरू हो गये हैं, मैं इनसे नहीं लड़ सकता। मैं यहां अपने घर वाबिपस आया था बिक अकेले रहते-रहते थक गया था और यहां तो ये और ही मंसू�े �ांध रहे हैं।

25 देस बि�राना ™½¬¸ £¸›¸¸¹ �̧

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गुड्डी मेरी तर� देखे जा रही है।- देख गुड्डी, मेरे आने से एक ही अच्छा काम हुआ है बिक तू मुझे मिमल गयी है। �ाकी स� कुछ

वैसा ही है जैसा मैं छोड़ गया था। न दारजी �दले हैं और न �े�े। देख, तू घ�राना नहीं। मैं खुद अपने आंसू रोक नहीं पा रहा हूं लेबिकन उसे 'ुप करा रहा हूं - हो सकता है शाम को तू ज� कॉलेज से वाबिपस आये तो मैं मिमलूं ही नहीं तुझे।गुड्डी रोये जा रही है। बिह'बिकयां ले ले कर। उसके सिलए और पानी मंगाता हंू, बि�र समझाता हूं - तू इस तरह से कमज़ोर पड़ जायेगी तो अपनी लड़ाई बिकस तरह से लडे़गी पगली, 'ल मुंह पोंछ ले और दुआ कर बिक �े�े और दारजी को अक्कल आये और वे हमारी सौदे�ाजी �ंद कर दें।

- आप स'मु' 'ले जायेंगे वीरजी ...?- यहां रहा तो मैं न ख्दा को �'ा पाऊंगा न तुझे। तू ही �ता क्या करंू ....?- आपके आने स े म ैं बिकतना अच्छा महसूस कर रही थी। आपने मुझ े ज़िज़ंदगी के नय े मानी

समझाये। अ� ये नरक बि�र मुझे अकेले झ्टालना पडे़गा। ऐनी वे, गुड्डी ने अ'ानक अंैासू पोंछ सिलये हैं और अपना हाथ आगे �ढ़ा दिदया ह ै - आल द �ेस्ट वीरजी, आप कामया� हों। गुड लक.. ..। उसने �ात अधूरी ही छोड़ दी है और वह तेजी से केबि�न से बिनकल कर 'ली गयी है। मैं केबि�न के दरवाजे से उसे जाता देख रहा हूं .. एक �हादुर लड़की की 'ाल से वह 'ली जा रही है। उसे जाता देख रहा हंू, और �ुद�ुदाता हंू - �ेस्ट बिवशेज की तो तुझे ज़रूरत थी पगली, तू मुझे दे गयी ......। मुझे नहीं पता, अ� गुड्डी से बि�र क� मुलाकात होगी!! पता नहीं होगी भी या नहीं उससे मुलाकात !!

घर पहुं'ा तो दारजी वाबिपस आ 'ुके हैं। अ� तो उन्हें देखते ही मुझे तकलीV होने लगी है। कोई भी मां-�ाप अपने �च्चे के इतने दुश्मन कैसे हो जाते हैं बिक अपने स्वाथ# के सिलए उनकी पूरी ज़िज़ंदगी उजाड़ कर रख देते हैं। इनकी ज़रा-सी जिजद के कारण मैं क� से �ेघर-�ार सा भटक रहा हूं और ज� मैं अपना मन मार कर बिकसी तरह घर वाबिपस लौटा तो बि�र ऐसे हालात पैदा कर रहे हैं बिक पता नहीं अगले आधे घंटे �ाद बि�र से ये घर मेरा रहता है या नहीं, कहा नहीं जा सकता।इनको अच्छी तरह से पता है बिक गुड्डी पढ़ना 'ाहती है, लेबिकन उस �े'ारी के गले में अभी से घंटी �ांधने की तैयारी 'ल रही है और इंतज़ाम भी क्या �दिढ़या सो'ा है बिक एक �ेटे की शादी में दहेज लो और अपनी लड़की की शादी में वही दहेज देकर दूसरे का घर भर दो। मुझे कुछ नहीं सूझ रहा बिक 'ीज़ें बिकस तरह से मोड़ लेंगी और क्या �नेगा इस घर का।मैं यही सो'ता अंदर-�ाहर हो रहा हूं बिक दारजी टोक देते हैं

- क्या �ात है �रखुरदार, �हुत परेशान नज़र आ रहे हो? मामला क्या है ?- मामला तो आप ही का �नाया बि�गाड़ा हुआ है दारजी। कम से कम मुझसे पूछ तो सिलया होता

बिक मैं क्या 'ाहता हंू। मुझे अभी आये 'ार दिदन भी नहीं हुए और.. .. मेरी नाराज़गी आखिखर हौले-हौले �ाहर आ ही गयी है।

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- देख भई दीपेया, हम जो कुछ भी कर रहे हैं तेरे और इस घर के भले के सिलए ही कर रहे हैं। हम तो 'ाहते हैं बिक तेरा घर-�ार �स जाये तो हम �ाकी �च्चों की भी बि�कर करें। अ� इतना अच्छा रिरश्ता.....!

- दारजी, ये रिरश्ता तो न हुआ। ये तो सौदे�ाजी हुई। मैं बिकसी तरह बिहम्मत जुटा कर कहता हंू।

- कैसी सौदे �ाजी ओये....?- क्या आप इस रिरश्ते में नकद पैसे नहीं ले रहे ?- तो क्या हुआ, दारजी ने गरम होना शुरू कर दिदया है।- तुझे पता नहीं है, आजकल पढ़ा सिलखा लड़का बिकसी को यूं ही नहीं मिमल जाता। समझे..

और तेरे जैसा लड़का तो उन्हें दस लाख में भी न मिमलता। हम तो शरा�त से उतना ही ले रहे हैं जिजतना वे खुशी से अपनी लड़की को दे रहे हैं। हमने कोई बिडमांड तो नहीं रखी है।

- ये मेरी सौदे�ाजी नहीं है तो क्या है दारजी...?- ओये 'ुप कर �ड़ा आया सौदे�ाजी वाला ... दारजी अ� अपने पुराने रूप में आने लगे हैं और

मेरे सिसर पर आ खड़े हुए हैं - तू एक �ात �ता। कल को गुड्डी के भी हाथ पीले करने हैं बिक नहीं। त� कौन से धरम खाते से पैसे बिनकाल कर लड़के वालों के मुंह पर मारंूगा। �ता जरा...?

- गुड्डी की जिजम्मेवारी मेरी। अभी वो पढ़ना 'ाहती है।- तो उसने आते ही तेर े कान भर दिदये हैं। कोई ज़रूरत नहीं है उसे आगे पढ़ाने की। ठीक है

संभाल लेना उसकी जिजम्मेवारी। आखिखर तेरी छोटी �हन है। तेरा Vरज �नता है। �ाकी यहां तो हम कौल दे 'ुके हैं। शादी �ेशक साल दो साल �ाद करें। मुझे तो स�का देखना है। उधर गोलू बि�ल्लू एकदम तैयार �ैठे हैं और उन्होंने अपनी तर� से पहले ही अल्टीमेटम दे दिदया है।उन्होंने अपना आखिखरी �ैसला सुना दिदया है - तू शाम को घर पर ही रहना। इधर-उधर मत हो जाना। सारी रिरश्तेदारी आ रही है। 'ाहे तो नंदू को साथ ले लेना। इसका मतल� ये लोग अपनी तर� से मेरे और कुछ हद तक गुड्डी के भाग्य का �ैसला कर ही 'ुके हैं। मैं भी देखता हंू, कैसे सगाई करते हैं संतोष कौर से मेरी...।उन्हें नहीं पता बिक जो �च्चा एक �ार घर छोड़ कर जा सकता है, दो�ारा भी जा सकता है। मैं अपने साथ दो-'ार जोड़ी कपड़े ही लेकर आया था। यहां छूट भी जायें तो भी कोई �ात नहीं। गोलू बि�ल्लू पहन लेंगे। �ैग भी उनके काम आ जायेगा। रास्ते में रेडीमेड कपडे़ और दूसरा सामान खरीद लूंगा।

पहली �ार खाली पेट घर छूटा था, अ� �े�े से कहता हूं - �े�े, जरा छेती नाल दो �ुलके तां सेक दे। �जार जा के इक अध नवां जोड़ा तां लै आवां। �े�े को तसल्ली हुई है बिक शायद मामला सुलट गया है। मैं �े�े के पास रसोई में ही �ैठ कर रोटी खाता हूं। भूख न होने पर भी दो-एक रोटी ज्यादा ही खा लेता हंू। पता नहीं बि�र क� �े�े के हाथ की रोटी नसी� हो। उठते समय �े�े के घुटने को छूता हंू। पता नहीं, बि�र क� �े�े का आशीवा#द मिमले। पूरे घर का एक 'क्कर लगाता हंू। रंगीन टीवी तो रह ही गया। नंदू के

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घर की पाट� भी रह गयी। हालांबिक इस �ी' कई यार दोस्त आ कर मिमल गये हैं लेबिन स�से एक साथ मिमलना हो जाता।घर से �ाहर बिनकलते समय मैं एक �ार बि�र �े�े को देखता हंू। वह अ� दारजी के सिलए �ुलके सेक रही है। दारजी अपनी खटपट में लगे हैं। दोनों को मन ही मन प्रणाम करता हूं - माV कर देना मुझे �े�े और दारजी, मैं आपकी शत� पर अपनी ज़िज़ंदगी का यह सौदा नहीं कर सकता। अपने सिलए �ेशक कर भी लेता, लेबिकन आपने इसके साथ गुड्डी की बिकस्मत को भी नत्थी कर दिदया है। मैं इस दोहरे पाप का भागी नहीं �न सकता मेरी �े�े। मैं एक �ार बि�र से बि�ना �ताये घर छोड़ कर जा रहा हंू। आगे मेरी बिकस्मत। और मैं एक �ार बि�र खाली हाथ घर छोड़ कर 'ल दिदया हंू। इस �ार मेरी आंखों में आंसू हैं तो सिस�# गुड्डी के सिलए... वो अपनी लड़ाई नहीं लड़ पायेगी। मैं भी तो अपनी लड़ाई का मैदान छोड़ कर बि�ना लडे़ ही हार मान कर जा रहा हूं। एक ही मैदान से दूसरी �ार पीठ दिदखा कर भाग रहा हंू ।

तो ... अ� ... हो गया घर भी..। जिजतना रीता गया था, उससे कहीं ज्यादा खालीपन सिलये लौटा हूं। तौ�ा करता हूं ऐसे रिरश्तों पर। बिकतना अच्छा हुआ, होश संभालने से पहले ही घर से �ेघर हो गया था। अगर त� घर न छूटा होता तो शायद कभी न छूटता.. उम्र के इस दौर में आ कर तो कभी भी नहीं। �स, यही तसल्ली है बिक स�से मिमल सिलया, �'पन की खट्टी-मीठी यादें ताज़ा कर लीं और घर के मोह से मुक्त भी हो गया। जिजसके सिलए जिजतना �न पड़ा, थोड़ा-�हुत कर भी सिलया। �े�े और गुड्डी के ज़रूर अVसोस हो रहा है बिक उन्हें इन तकलीVों से बिनकालने का मेरे पास कोई उपाय नहीं है।गुड्डी �े'ारी पढ़ना 'ाहती है लेबिकन लगता नहीं, उसे दारजी पढ़ने देंगे। 'ाहे एम�ीए करे या कोई और कोस#, उसे देहरादून तो छोड़ना ही पडे़गा। उसके सिलए दारजी परमिमशन देने से रहे। �स, बिकसी तरह वह �ीए पूरा कर ले तो उसके सिलए यहीं कुछ करने की सो'ूंगा। एक �ार मेरे पास आ जाये तो �ाकी स� संभाला जा सकता है। बि�लहाल तो स�से �ड़ा काम यही होगा बिक उसे दारजी बिकसी तरह �ीए करने तक बिडस्ट�# न करें और वह ठीक - ठाक नम्�र ला सके।आते ही बि�र से उन्हीं 'क्करों में खुद को उलझा सिलया है। पता नहीं अ� क� तक इसी तरह की ज़िज़ंदगी को ठेलते जाना होगा। बि�ना बिकसी ख़ास मकसद के....।

आज गुड्डी का पास#ल मिमला है। उसने �हुत ही खू�सूरत स्वेटर �ुन कर भेजा है। स�ेद रंग का। एकदम नन्हें-से खरगोश की तरह नरम। इसमें गुड्डी की मेहनत और स्नेह की असीम गरमाहट �ंदे-�ंदे में �ुनी हुई है। साथ में उसका लम्�ा खत है।सिलखा है उसने

- वीरजी,सत श्री अकालउस दिदन आपके अ'ानक 'ले जाने के �ाद घर में �हुत हंगामा म'ा। वैसे मैं जानती थी बिक मेरे

वाबिपस आने तक आप जा 'ुके होंगे। और कुछ हो भी नहीं सकता था। आप �ाज़ार से शाम तक भी वाबिपस नहीं आये तो 'ारों तर� आपकी खोज-�ीन शुरू हुई। वहां जाने वाले सभी लोग आ 'ुके थे। ले जाने के सिलए मिमठाई वगैरह खरीदी जा 'ुकी थी। लेबिकन आप ज� कहीं नज़र नहीं आये तो �े�े को लगा

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- एक �ार बि�र वही इबितहास दोहराया जा 'ुका है। मैं 'ार �जे कॉलेज से आ गयी थी त� तक दारजी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहंु' 'ुका था। उन्हें मुझ पर शक हुआ बिक जरूर मुझे तो पता ही होगा बिक वीरजी बि�ना �ताये कहां 'ले गये हैं। त� गुस्से में आ कर दारजी ने मुझे �ालों से पकड़ कर खीं'ा और गासिलयां दीं। मैं जानती थी, ऐसा ही होगा। स�की बिनगाहों में मैं ही आपकी स�से सगी �नी बि�र रही थी। लेबिकन मार खा कर भी मैं यही कहती रही बिक मुझे नहीं मालूम। �े�े ने भी �हुत हाय-तौ�ा म'ाई और बि�ल्लू और गोलू ने भी। आखिखर परेशान हो कर वहां झूठा संदेसा णिभजवा दिदया गया बिक आपको अ'ानक ऑबि�स से तुंत �ं�ई पहंु'ने के सिलए �ुलावा आ गया था, इससिलए हम लोग नहीं आ पा रहे हैं। �ाद की कोई तारीख देख कर बि�र �तायेंगे।�ाद में दारजी तो कई दिदन तक बि��रे शेर की तरह आंगन खंूदते रहे और �ात �े �ात पर आपको गासिलयां �कते रहे।करतार सिसंह वाला मामला बि�लहाल ठप्प पड़ गया है लेबिकन जिजस को भी पता 'लता है बिक इस �ार भी आप दारजी की जिजद के कारण घर छोड़ कर गये हैं, वही दारजी को लानतें भेज रहा है बिक अपनी लाल' के कारण तूने हीरे जैसा �ेटा दूसरी �ार गंवा दिदया है।�ाकी आप मुझमें आत्म-बिवश्वास का जो �ीज �ो गये हैं, उससे मैं, जहां तक हो सका, अपनी लड़ाई अपने अकेले के �ल�ूते पर लड़ती रहंूगी। आप ही मेर े आदश# हैं। काश, मैं भी आपकी तरह अपने Vैसले खुद ले सकती। अपनी खास सहेली बिनशा का पता दे रही हंू। पत्र उसी के पते पर भेजें। मेरी जरा भी सि'ंता न करें और अपना ख्याल रखें। सादर,आपकी �हन,गुड्डी।

पगली है गुड्डी भी!! ऐसे कमज़ोर भाई को अपना आदश# �ना रही है जो बिकसी भी मुल्किश्कल स्थिस्थबित का सामना नहीं कर सकता और दो �ार पलायन करके घर से भाग 'ुका है। उसे लम्�ा खत सिलखता हंू।

- गुड्डी,प्यार,

तेरा पत्र मिमला। समा'ार भी। अ� तू भी मानेगी बिक इस तरह से 'ले आने का मेरा �ैसला गलत नहीं रहा। स' �ताऊं गुड्डी, मुझे भी दो�ारा 'ोरों की तरह घर से भागते वक्त �हुत खरा� लग रहा था, लेबिकन मैं क्या करता। ज� मैंने पहली �ार छोड़ा था तो 'ौदह साल का था। समझ भी नहीं थी बिक क्यों भाग रहा हूं और भाग कर कहां जाउं गा€ , लेबिकन ज� दारजी ने घर से धक्के दे कर �ाहर कर ही दिदया तो मेरे सामने कोई उपाय नहीं था। अगर दारजी या �े�े ने उस वक्त मेरे कान पकड़ कर घर के अंदर वाबिपस �ुला सिलया होता, ज�रदस्ती एक-आध रोटी खिखला दी होती तो शायद मैं भागा ही न होता, �ल्किल्क वहीं �ना रहता, �ेशक मेरी ज़िज़ंदगी ने जो भी रुख सिलया होता, �ल्किल्क इस �ार भी उन्होंने मुझसे कहा होता बिक देख दीपे, हम हो गये हैं अ� �ुडे्ढ और हमें 'ाबिहये घर के सिलए एक देखी-भाली शरी� �हू तो, स' मान गुड्डी, मैं वहीं खडे़-खड़े उनकी पसंद की लड़की से शादी भी कर लेता और अपनी �ीवी

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को उनकी सेवा के सिलए भी छोड़ आता, लेबिकन दोनों �ार सारी 'ीजें शुरू से ही मेरे खिखला� कर दी गयी थीं। इस �ार भी मुझे बि�लकुल सो'ने का मौका ही नहीं मिमला और एक �ार बि�र मैं घर के �ाहर था। एक तरह से पहली �ार का भागना भी मेरे सिलए अच्छा ही रहा बिक दूसरी �ार भी मैं उनके अन्याय को मानन े के �जाय े 'ुप'ाप 'ला आया। तुम इसे मेरा पलायन भी कह सकती हो, लेबिकन तुम्हीं �ताओ, अगर मैं न भागता तो क्या करता। वहां तो मुझे और मेरे साथ तुम्हें भी �ंदे में कसने की पूरी तैयारी हो 'ुकी थी। मेरे भाग आने से कम से कम तुम्हारे सिसर पर से तो बि�लहाल मुसी�त टल ही गयी है। अ� �ाकी लड़ाई तुम्हें अकेले ही लड़नी होगी। लड़ सकोगी क्या?यहां आने के �ाद एक �ार बि�र वही ज़िज़ंदगी है मेरे सामने। �स एक ही Vक# है बिक यहां से जिजस ऊ� से भाग कर गया था, घर के जिजस मोह से �ंधा भागा था, उससे पूरी तरह मुक्त हो गया हंू। �ेशक मेरी ऊ� और �ढ़ गयी है। पहले तो घर को लेकर सिस�# उलझे हुए ख्याल थे, बि�म्� थे और रिरश्तों को लेकर भी कोई मुकम्मल तस्वीर नहीं �नती थी, लेबिकन घर से आने के �ाद घर के �ारे में मेरी सारी इमेज �ुरी तरह से तहस-नहस हो गयी हैं। �ार-�ार अVसोस हो रहा है बिक मैं वहां गया ही क्यों था। न गया होता तो �ेहतर था, लेबिकन बि�र ख्याल आता है बिक इस पूरी यात्रा की एक मात्र यही उपलल्कि¡ यही है बिक स�से मिमल सिलया, तुझे देख सिलया और तुझे एक दिदशा दे सका, तेरे सिलए कुछ कर पाया और घर के मोह से हमेशा के सिलए मुक्त हो गया। अ� कम से कम रोज़ रोज़ घर के सिलए तड़पा नहीं करंूगा। �ेशक तेरी और �े�े की सि'ंता लगी ही रहेगी।यहां आने के �ाद दिदन'या# में कोई ख़ास Vक# नहीं पड़ा है। सिस�# यही हुआ है बिक अंधेरी में जिजस गेस्ट हाउस में रह रहा था, वह छोड़ दिदया है और इस �ार �ांद्रा वेस्ट में एक नये घर में पेइंग गेस्ट �न गया हूं। पता दे रहा हंू। ऑबि�स से आते समय कोसिशश यही रहती है बिक खाना खा कर एक ही �ार कमरे में आऊं। तुझे हैरानी होगी जान कर बिक �ं�ई में पेइंग गेस्ट को सु�ह सिस�# एक कप 'ाय ही दी जाती है। �ाकी इंतज़ाम �ाहर ही करना पड़ता है। वैसे कई जगह खाने के साथ भी रहने की जगह मिमल जाती है।अगर छुट्टी का दिदन हो या कमरे पर ही होऊं तो मैं सिस�# खाना खाने ही �ाहर बिनकलता हूं। अपने कमरे में �ंद पड़ा रहता हंू। शायद यही वजह है बिक मैं कभी भी �ोर नहीं होता। कल एक अच्छी �ात हुई बिक सामने वाले घर में रहने वाले मिमस्टर और मिमसेज भसीन से हैलो हुई। सीदिढ़यां 'ढ़ते समय वे मेरे साथ-साथ ही आ रहे थे। उन्होंने ही पहले हैलो की और पूछा - क्या नया आया हंू सामने वाले घर में। उन्होंने मेरा नाम वगैरह पूछा और कभी भी घर आने का न्यौता दिदया।कभी जाऊंगा। आम तौर पर मैं बिकसी के घर में भी जाने में �हुत संको' महसूस करता हंू।दारजी, �े�े और गोलू, बि�ल्लू ठीक होंगे। तेरी सहेली बिनशा ठीक होगी और तेरे साथ खू� गोलगप्पे उड़ा रही होगी। दो�ारा जा भी नहीं पाये तेरे कैलाश गोलगप्पा पव#त में। तेरे सिलए हज़ार रुपये का �ाफ्ट भेज रहा हंू। खू� शॉपिपंग करना।जवा� देना।तेरा हीवीर...

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आज दीपावली का त्योहार है। 'ारों तर� त्योहार की गहमा-गहमी है। लेबिकन मेर े पारसी मकान मासिलक इस हंगामे से पूरी तरह �ाहर हैं। हर छुट्टी के दिदन की तरह सारा दिदन कमरे में ही रहा। दोपहर को खाना खा कर कमरे में वाबिपस आ रहा था बिक नी'े ही मिमस्टर और मिमसेज भसीन मिमल गये हैं। दीपावली की शुभकामनाओं का आदान-प्रदान हुआ तो वे पूछने लगे - क्या �ात है घर नहीं गये? क्या छुट्टी नहीं मिमली या घर �हुत दूर है?

- दोनों ही �ातें नहीं हैं, दरअसल एक प्रोजेक्ट में बि�जी हंू, इससिलए जाना नहीं हो पाया। वैसे अभी हाल ही में घर हो कर आया था। मैं बिकसी तरह �ात संभालता हंू।यह सुनते ही कहने लगे - तो आप शाम हमारे साथ ही गुज़ारिरये। खाना भी आप हमारे साथ ही खायेंगे। मैंने �हुत टालना 'ाहा तो वे �हुत जिजद करने लगे। मिमसेज भसीन �ोलने में इतनी अच्छी हैं बिक मुझसे मना ही नहीं बिकया जा सका। इनकार करने की गुंजाइश ही नहीं छोड़ी है उन्होंने।हां कर दी है - आऊंगा।आम तौर पर बिकसी के घर आता जाता नहीं, इससिलए कोई खास ज़ोर दे कर �ुलाता भी नहीं है। लेबिकन दिदवाली के दिदन वैसे भी अकेले �ैठे �ोर होने के �जाये सो'ा, 'लो बिकसी भरे पूरे परिरवार में ही �ैठ सिलया जाये।दरवाजा मिमसेज भसीन ने खोला है। मैं उन्हें दिदवाली की �धाई देता हंू - हैप्पी दिदवाली मिमसेज भसीन। मैं �हुत ज्यादा संको' महसूस कर रहा हूं। वैसे भी युवा मबिहलाओं की उपस्थिस्थबित में मैं जल्दी ही असहज हो जाता हूं।वे हँसते हुए जवा� देती हैं - मेरा नाम अलका है और मुझे जानने वाले मुझे इसी नाम से पुकारते हैं।वे मुझे भीतर सिलवा ले गयी हैं और �हुत ही आदर से बि�ठाया है।मैं �हुत ही संको' के साथ कहता हूं - दरअसल मुझे समझ में नहीं आ रहा बिक मैं ... दिदवाली के दिदन बिकसी के घर जाना.. ..।वे मुझे आश्वस्त करती हैं - आप बि�लकुल भी औप'ारिरकता महसूस न करें और बि�लकुल सहज हो कर इसे अपना ही घर समझें।यह सुन कर कुछ हद तक मेरा संको' दूर हुआ है।कहता हूं मैं - मैं भी आपके दरवाजे पर नेम प्लेट देखता था तो रोज़ ही सो'ता था, कभी �ात करंूगा। भसीन सरनेम तो पंजाबि�यों का ही होता है। मैं दरअसल मोना सिसख हंू। कई �ार अपनी ज��ान �ोलने के सिलए भी आदमी.. ..। मैं झेंपी सी हँसी हँसता हंू।�ात अलका ने ही आगे �ढ़ाई है।पूछ रही हैं - कहां है आपका घर-�ार और कौन-कौन है घर में आपके।इतना सुनते ही मैं बि�र से संको' में पड़ गया हंू। अभी मैं अपना परिर'य दे ही रहा हूं बिक मिमस्टर भसीन आ गये हैं । उठ कर उन्हें नमस्कार करता हंू। वे �हुत ही स्नेह से मेरे हाथ द�ा कर मुझे दिदवाली की शुभ कामना देते हैं।

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घर से आने के �ाद इतने दिदनों में यह पहली �ार हो रहा है बिक घर के माहौल में �ैठ कर �ातें कर रहा हंू और मन पर कोई द�ाव नहीं है। �हुत अच्छा लगा है उनके घर पर �ैठना, उनसे �ात करना। मैं देर तक उनके घर �ैठा रहा और हम तीनों इधर-उधर की �ातें करते रहे। इस �ी' मैं का�ी सहज हो गया हूं और उनसे बिकसी पुराने परिरसि'त की तरह �ातें करने लगा हूं।अलका ने मुझे खाना खाने के सिलए ज�रदस्ती रोक सिलया है। मैं भी उनके साथ पूजा में �ैठा हूं। पूरी शाम उनके घर गुज़ार कर ज� मैं वाबिपस लौटने लगा तो अलका और मिमस्टर भसीन दोनों ने एक साथ ही आ}ह बिकया है बिक मैं उनके घर को अपना ही घर समझूं और ज� भी मुझे उसे घर की याद आये या पारिरवारिरक माहौल में कुछ वक्त गुज़ारने की इच्छा हो, बिनसंको' 'ला आया करंू।मैं अ'ानक उदास हो गया हंू। भरा#ई हुई आवाज में कहता हूं - आप लोग �हुत अचे्छ हैं। मुझे नहीं पता था लोग अनजान आदमी से भी इतनी अच्छी तरह से पेश आते हैं। मैं बि�र आऊंगा। थैंक्स। कह कर मैं तेजी से बिनकल कर 'ला आया हूं।

�ाद में भाई दूज वाले दिदन अलका ने बि�र �ुलवा सिलया था। त� मैं उनके घर ढेर सारी मिमठाई वगैरह ले आया था। 'ाय पीते समय अलका ने �हुत संको' के साथ मुझे �ताया था - मेरा कोई भाई नहीं है, क्या तुम्हें मुझे भइया कह कर �ुला सकती हूं।यह कहते समय अलका की आंखों में आंसू भर आये थे और वह रोने-रोने को थी।उसका मूड हलका करने के सिलए मैं हंसा था - मेरी भी कोई �ड़ी �हन नहीं है। क्या मैं आपको दीदी कह कर पुकार सकता हंू। त� हम तीनों खू� हंसे थे। अलका ने न केवल मुझे भाई �ना सिलया है �ल्किल्क भाई दूज का टीका भी बिकया। और इस तरह मैं उनके भी परिरवार का एक सदस्य �न गया हंू। मैं अ� कभी भी उनके घर 'ला जाता हंू और का�ी देर तक �ैठा रहता हंू। हालांबिक उनके घर आते जाते मुझे एक डेढ़ महीना हो गया है और मैं अलका और देवेद्र भसीन के �हुत करी� आ गया हूं और उनसे मेरे �हुत ही सहज सं�ंध हो गये हैं लेबिकन बि�र भी उन्होंने मुझसे कोई व्यसिक्तगत प्रश्न नहीं ही पूछे हैं।

आज इतवार है। दापहर की झपकी ले कर उठा ही हूं बिक देवेद्र जी का �ुलावा आया है। अलका मायके गयी हुई है। तय है, वे खाना या तो खुद �नाएगंे या होटल से मंगवायेंगे तो मैं ही प्रस्ताव रखता हू ं - आज का बिडनर मेरी तर� से। शाम की 'ाय पी कर हम दोनों टहलते हुए सिलंपिकंग रोड की तर� बिनकल गये हैं।खाना खाने बिक सिलए हम मिम'# मसाला होटल में गये हैं। वेटर पहले पि�ंक्स के मीनू रख गया है। मीनू देखते ही देवेद्र हॅंसे हैं - क्यों भई, पीते-वीते हो या सू�ी सम्प्रदाय से ताल्लुक रखते हो। देखो अगर जो पीते हो तो हम इतनी �ुरी कम्पनी नहीं हैं और अगर अभी तक पीनी शुरू नहीं की है तो उससे अच्छी कोई �ात ही नहीं है।

- आपको क्या लगता है?

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- कहना मुल्किश्कल है। वैसे तो तुम तीन साल अमेरिरका गुज़ार कर आये हो, और यहां भी अरसे से अकेले ही रह रहे हो, इससिलए कहना मुल्किश्कल है बिक तुम्हारे हाथों अ� तक बिकतनी और बिकतनी तरह की �ोतलों का सीलभंग हो 'ुका होगा। वे हँसे हैं।

- आपको जान कर हैरानी होगी बिक मैंने अभी तक कभी �ीयर भी नहीं पी है। कभी ज़रूरत ही महसूस नहीं हुई। वहां अमेरिरका के ठंडे मौसम में भी, जहां खाने का एक एक कौर नी'े उतारने के सिलए लोग बिगलास पर बिगलास खाली करते हैं, मैं वहां भी इससे दूर ही रहा। वैसे न पीने के कई कारण रहे। आर्सिथंक भी रहे। बि�र उस बिकस्म की कम्पनी भी नहीं रही। यह भी रहा बिक कभी इन 'ीज़ों के सिलए मुझे �ुस#त ही नहीं मिमली। अ� ज� Vुस#त है, पैसे भी हैं औरे अकेलापन भी है तो अ� ज़रूरत ही नहीं महसूस होती। वैसे आप तो पीते ही होंगे, आप ज़रूर मंगायें। मैं तो आपसे �हुत छोटा हंू, पता नहीं मेरी कम्पनी में आपको पीना अच्छा लगे या नहीं.... वैसे मुझे अच्छा लगेगा। मैं कोल्ड पि�ंक ले लूंगा।

वे मुझे आश्वस्त करते हैं - यह �हुत अच्छी �ात है बिक तुम अ� तक इन खराबि�यों से �'े हुए हो। मैं भी कोई रेगुलर पि�ंकर नहीं हंू। �स, कभी-कभार ही वाला मामला है,

- आप अगर मेरी सू�ी कम्पनी का �ुरा न मानें तो आपके सिलए कुछ मंगवाया जाये। �े'ारा वेटर क� से हमारे आड#र का इंतज़ार कर रहा है। मैं कहता हूं।

- तुम्हारी कम्पनी का मान रखने के सिलए मैं आज �ीयर ही लूंगा।मैंने उनके सिलए �ीयर का ही आड#र दिदया है।हमने पूरी शाम कई घंटे एक साथ गुज़ारे हैं और ढेर सारी �ातें की हैं। �ात'ीत के दौरान ज� मैं उन्हें वीरजी कह कर �ुला रहा हूं तो उन्होंने टोका है - तुम बिकस औप'ारिरकता में पड़े हो, 'ाहो तो मुझे नाम से भी �ुला सकते हो।

- दरअसल मैं कभी परिरवार में नहीं रहा हंू। रिरश्ते-नाते कैसे बिनभाये जाते हैं, नहीं जानता। तेरह -'ौदह साल की उम्र थी ज� घर छूट गया। त� से एक शहर से दूसरे शहर भटक रहा हंू।

- क्या मतल� ? घर छूट गया था का मतल�? तो ये स� पढ़ाई और एमटैक और पीए'डी तक की बिड}ी?

- दरअसल एक लम्�ी कहानी है। मैंने आज तक कभी भी बिकसी के भी सामने अपने �ारे में �ातें नहीं की हैं। आपको मैं एक रहस्य की �ात यह �ताऊं बिक दुबिनया में मेरे परिरसि'तों में कोई भी मेरे �ारे में पूरे स' नहीं जानता। यहां तक बिक, मेरे मां-�ाप भी मेरे �ारे में कुछ खास नहीं जानते। मैंने कभी बिकसी को राज़दार �नाया ही नहीं है। यहां तक बिक मैं अभी 'ौदह साल के �ाद घर गया था तो वहां भी बिकसी को अपने स' का एक टुकड़ा दिदखाया तो बिकसी को दूसरा। अपनी छोटी �हन जिजसे मिमल कर मैं �ेहद खुश हुआ हंू, उसे भी मैंने अपनी सारी तकली�ों का राज़दार नहीं �नाया है। उसे भी मैंने सारे स' नहीं �ताये क्योंबिक मैंने कभी नहीं 'ाहा बिक कोई मुझ पर तरस खाये। मेरे सिलए अVसोस करे। मुझे अगर बिकसी शब्द से सि'ढ़ है तो वह शब्द है - �े'ारा।

- यह तो �हुत ही अच्छी �ात है बिक हम क्यों बिकसी के सामने अपने जख्म दिदखाते बि�रें। मैं तुम्हें बि�लकुल भी मज�ूर नहीं करंूगा बिक अपने मन पर �ोझ डालते हुए कोई भी काम करो। मैं तुम्हारी भावनाए ंसमझ सकता हंू। सैल्� मेड आदमी की यही खासिसयत होती है बिक वह अपने ही �ारे में �ात करने से �'ना 'ाहता है।

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- नहीं, वह �ात नहीं है। दरअसल मेरे पास �ताने के सिलए ऐसा कुछ भी नहीं है जिजसे शेयर करने में मैं गव# का अनुभव करंू। अपनी तकलीVों की �ात करके मैं आपकी शाम खरा� नहीं करना 'ाहता।

- जैसी तुम्हारी मज>। बिवश्वास रखो, मैं तुमसे कभी भी कोई भी पस#नल सवाल नहीं पूछंूगा। इसके सिलए तुम्हें कभी बिववश नहीं करंूगा।पहले घर छोड़ने से लेकर दो�ारा घर छोड़ने तक के अपने थोडे़-�हुत स' �यान कर दिदये हैं उनकी मोटी-मोटी जानकारी के सिलए।�ताता हूं उन्हें - अ� बिपछले तीन-'ार साल से यहां जॉ� कर रहा हूं तो आस-पास दुबिनया को देखने की कोसिशश कर रहा हूं। मैं कई �ार ये देख कर हैरान हो जाता हूं बिक मैं बिकतने �रसों से बि�ना खिखड़बिकयों वाले बिकसी कमरे में �ंद था और दुबिनया कहां की कहां पहंु' गयी है। जैसे मै कहीं ठहरा हुआ था या बिकसी और ही रफ्तार से 'ल रहा था। खैर, पता नहीं आज अ'ानक आपके सामने मैं इतनी सारी �ातें कैसे कर गया हंू।

- स' मानो, मैं सो' भी नहीं सकता था बिक तुम, जो हमेशा इतने सहज और 'ुप्पे �ने रहते हो, कभी �ात करते हो और कभी �ंद बिकता� की तरह हो जाते हो, अपनी इस छोटी-सी ज़िज़ंदगी में बिकतने बिकतने तू�ान झेल 'ुके हो। खाना खा कर लौटते हुए �ारह �ज गये हैं। मुझे लग रहा है बिक मैं एक परिरसि'त के साथ खाना खाने गया था और �डे़ भाई के साथ वाबिपस लौट रहा हंू।

देवेद्र जी के साथ दस दिदन की �ात'ीत के कुछ दिदन �ाद ही अलका दीदी ने घेर सिलया है। उनके साथ �ैठा 'ाय पी रहा हूं तो पूछा है उन्होंने - ऑबि�स से आते ही अपने कमरे में �ंद हो जाते हो। खरा� नहीं लगता?

- लगता तो है, लेबिकन आदत पड़ गयी है।- कोई दोस्त नहीं है क्या?- नहीं। कभी मेरे दोस्त रहे ही नहीं। आप लोग अगर मुझसे �ात करने की शुरूआत न करते तो

मैं अपनी तर� से कभी �ात ही न कर पाता।- कोई गल# फ्रैं ड भी नहीं है क्या? अलका ने छेड़ा है - तेरे जैसे स्माट# लड़के को लड़बिकयों की

क्या कमी!क्या जवा� दंू। मैं 'ुप ही रह गया हूं लेबिकन अलका ने मेरी उदासी ताड़ ली है। मेरे कंधे पर हाथ रख कर पूछती है - ऐसी भी क्या �ेरूखी ज़िज़ंदगी से बिक न कोई पुरुष दोस्त हो और न ही कोई लड़की मिमत्र ही। स' �ताओ क्या �ात है। वह मेरी अंैाखों में आंखें डाल कर पूछती है।

- स' मानो दीदी, कोई ख़ास �ात नहीं है। कभी दोस्ती हुई ही नहीं बिकसी से, वैसे भी मुझे लड़बिकयों से �ात नहीं करनी ही नहीं आती।

- क्यों, क्या वहां आइआइटी में या अमेरिरका में लड़बिकयां नहीं थीं ?- होंगी, उनके �ारे में मुझे ज्यादा नहीं पता, क्योंबिक त� मैं उनकी तरV देखता ही नहीं था बिक

कहीं मेरी तपस्या न भंग हो जाये। जिजस वक्त सारे लड़के हॉस्टल के आसपास देर रात तक हा हा हू हू

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करते रहते, मैं बिकता�ों मे सिसर खपाता रहता। आप ही �ताओ दीदी, प्यार-व्यार के सिलए वक्त ही कहां था मेरे पास?

- तो अ� तो है वक्त और जॉ� भी है और पैसे भी हैं। वैसे तो उस वक्त भी एक-आध लड़की तो तुम्हारी बिनगाह में रही ही होगी।

- वैसे तो थी एक।- लड़की का नाम क्या था?- लड़की जिजतनी सुंदर थी, उसका नाम भी उतना ही सुंदर था - ऋतुपणा#। घर का उसका नाम

बिनक्की था।- उस तक अपनी �ात नहीं पहंु'ायी थी? उसके नाम की ही तारी� कर देते, �ात �न जाती।- कहने की बिहम्मत ही कहां थी। आज भी नहीं है।- बिकसी और से कहलवा दिदया होता।- कहलवाया था।- तो क्या जवा� मिमला था?- लेबिकन ज़िज़ंदगी के इसी इम्तिम्तहान में मैं �ेल हो गया था।- क्या �ात हो गयी थी ?- वह उस समय एम�ी�ीएस कर रही थी। हमारे ही एक प्रो�ेसर की छोटी �हन थी। कैम्पस में

ही रहते थे वे लोग। कभी उनके घर जाता तो थे़ड़ी �हुत �ात हो पाती थी। एकाध �ार लाइब्रेरी वगैरह में भी �ात हुई थी। वैसे वह �हुत कम �ातें करती थी लेबिकन अपने प्रबित उसकी भावनाओं को मैं उसके बि�ना �ोले भी समझ सकता था। मैं तो खैर, अपनी �ात कहने की बिहम्मत ही नहीं जुटा सकता था। मेरा �ाइनल ईयर था। जो कुछ कहना करना था, उसका आखिखरी मौका था। मैं न लड़की से कह पा रहा था और उसके भाई के पास जाने की बिहम्मत ही थी। उन्हीं दिदनों हमारे सीबिनयर �ै' की एक लड़की हमारे बिडपाट#मेंट में लेक्'रर �न कर आयी थी। उसी को बिवश्वास में सिलया था और उसके ज़रिरये लड़की के भाई से कहलवाया था।

- क्या जवा� मिमला था?- लड़की तक तो �ात ही नहीं पहंु'ी थी लेबिकन उसके भाई ने ही टका-सा जवा� दे दिदया था बिक

हम खानदानी लोग हैं। बिकसी खानदान में ही रिरश्ता करेंगे। मैं ठहरा मेहनत-मज़दूरी करके पढ़ने वाला। उनकी बिनगाह में कैसे दिटकता।

- �हुत �दतमीज था वो प्रो�ेसर, सैल्� - मेड आदमी का भी भला कोई बिवकल्प होता है। हम तुम्हारी तकलीV समझ सकते हैं। अकेलापन आदमी को बिकतना तोड़ देता है। देवेद्र �ता रहे थे बिक तुमने तो अपनी तर� से घर वालों से पै'-अप करने की भी कोसिशश की लेबिकन इतना पैसा ख'# करने के �ाद भी तुम्हें खाली हाथ लौटना पड़ा है।

- छोड़ो दीदी, मेरे हाथ में घर की लकीरें ही नहीं हैं। मुझे भी अच्छा लगता अगर मेरा घर होता, आप दोनों के घर की तरह।

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- क्यों, क्या ख़ास �ात है हमारे घर में? देवेद्र जी ने आते-आते आधी �ात सुनी है।- ज� भी आप दोनों को इतने प्यार से रहते देखता हूं तो मुझे �हुत अच्छा लगता है। काश, मैं

भी ऐसा ही घर �सा पाता।- अच्छा एक �ात �ताओ, अलका दीदी ने छेड़ा है - घर कैसा होना 'ाबिहये?- क्यों, सा� सुथरे, करीने से लगे घर ही तो स�को अचे्छ लगते हैं । वैसे मैं कहीं आता-जाता

नहीं लेबिकन इस तरह के घरों में जाना मुझे �हुत अच्छा लगता है।- लेबिकन अपने घर को लेकर तुम्हारे मन में क्या इमेज है?

मैं सकपका गया हंू। सूझा ही नहीं बिक क्या जवा� दंू। �हुत उधेड़�ुन के �ाद कहा है - मेरे मन में �'पन के अपने घर और �ाद में �ा�ा जी के घर को लेकर जो आतंक �ैठा हुआ है, उससे मैं आज तक मुक्त नहीं हो पाया हंू। मैं अपने �'पन में या तो बिपटते हुए �ड़ा हुआ या बि�र लगातार सिसरदद# की वजह से छटपटाता रहा। घर से भाग कर जो घर मिमला, वहां �ा�ाजी ने घर की मेरी इमेज को और दूबिषत बिकया। �ाद में �ेशक अलग-अलग घरों में रहा लेबिकन वहां मैं न कभी खुल कर हँस ही पाता था और न कभी पैर �ैला कर �ैठ ही सकता था। कारण मैं नहीं जानता। बि�र ज्यादातर वक्त हॉस्टलों में कटा, जहां घर के प्रबित मेरा मोह तो हमेशा �ना रहा लेबिकन कोई मुकम्मल तस्वीर नहीं �नती थी बिक घर कैसा होना 'ाबिहये, �स, जहां भी �च्चों की बिकलकारिरयां सुनता या हस�ैंड वाइ� को प्यार से �ात करते देखता, एक दूसरे की केयर करते देखता, लगता शायद घर यही होता है।

- घर को लेकर तुम्हारी जो इमेज है, दरअसल तुम्हारे अनुभवों की बिवबिवधता की वजह से और घर को दूर से देखने के कारण �नी है, देवेद्र जी �ता रहे ह ैं - तुम हमेशा या तो ऐसे घरों में रहे जहां माहौल सही नहीं था या ऐसे घरों में रहे जो तुम्हारे अपने घर नहीं थे। वैसे देखा जाये तो हर आदमी के सिलए घर के मायने अलग होते हैं। माना जाये तो बिकसी के सिलए �ुटपाथ या उस पर �ना टीन टप्पर का मामूली सा झोपड़ा भी घर की महक से भरा हुआ हो सकता है और ऐसा भी हो सकता है बिक बिकसी के सिलए महल भी घर की परिरभाषा में न आता हो और वहां रहने वाला घर की 'ाहत में इधर-उधर भटक रहा हो। �ेशक तुम्हें अपने बिपता का घर छोड़ कर भागना पड़ा था क्योंबिक वह घर अ� तुम्हारे सिलए घर ही नहीं रहा था लेबिकन तुम्हारी मां या भाइयों के सिलए त� भी वह घर �ना ही रहा था क्योंबिक उनके सिलए न तो वहां से मुसिक्त थी और न मुसिक्त की 'ाह ही। हो सकता है तुम्हारे सामने घर छोड़ने का सवाल न आता तो अ� भी वह घर तुम्हारा �ना ही रहता। उस बिपटाई के �ावजूद उस घर में भी कुछ तो ऐसा रहा ही होगा जो तुम्हें आज तक हाँट करता है। बिपता की बिपटाई के पीछे भी तुम्हारी �ेहतरी की नीयत छुपी रही होगी जिजसे �ेशक तुम्हारे बिपता अपने गुस्से की वजह से कभी व्यक्त नहीं कर पाये होंगे। इसमें कोई शक नहीं बिक आपसी प्रेम और सेंस ऑ� केयर से घर की नींवें मज़�ूत होती हैं, लेबिकन हम दोनों भी आपस में छोटी-छोटी 'ीज़ों को ले कर लड़ते-झगड़ते हैं। एक दूसरे से रूठते ह ैं और एक-दूसरे को कोसते भी हैं। इसके �ावज़ूद हम दोनों एक ही �ने रहते हैं क्योंबिक हमें एक दूसरे पर बिवश्वास है और हम एक दूसरे की भावना की कद्र भी करते हैं। हम आपस में बिकतना भी लड़ लें, कभी �ाहर वालों को हवा भी नहीं लगने देते और न एक दूसरे की �ुराई ही करते हैं। शायद इसी भावना से घर �नता है। हां, जहां तक सा�-सुथरे घर को लेकर तुम्हारी जो इमेज है, अगर तुम �च्चों की बिकलकारिरयां भी 'ाहो और होटल के कमरे की तरह स�ाई भी, तो शायइ यह बिवरोधाभास होगा। घर घर जैसा ही होना और लगना 'ाबिहये। घर वो होता है जहां शाम को लौटना अच्छा लगे न बिक मज�ूरी। जहां आपसी रिरश्तों की महक

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हमेशा माहौल को जीवंत �नाये रखे, वही घर होता है। तुम्हें शायद देखने का मौका न मिमला हो, यहां �ं�ई में जिजतने भी �ीयर �ार हैं या शरा� के अड्डे हैं वहां तुम्हें हज़ारों आदमी ऐसे मिमल जायेंगे जिजन्हें घर काटने को दौड़ता है। वज़ह कोई भी हो सकती है लेबिकन ऐसे लोग होशो-हवास में घर जाने से �'ना 'ाहते हैं। वे 'ाहें तो अपने घर को �ेहतर भी �ना सकते हैं जहां लौटने का उनका दिदल करे लेबिकन हो नहीं पाता। आदमी ज� घर से दूर होता है तभी उसे घर की महत्ता पता 'लती है। वह बिकसी भी तरीके से घर नाम की जगह से जुड़ना 'ाहता है। घर 'ाहे अपना हो या बिकसी और का, घर का ही अहसास देता है। तो �ंधुवर, हम तो यही दुआ करते हैं बिक तुम्हें मन'ाहा घर जल्दी मिमले।

- बि�लीव मी, वीर जी, आपने तो घर की इतनी �ारीक व्याख्या कर दी।- सि'ंता मत करो, तुम्हें भी अपना घर जरूर मिमलेगा और तुम्हारी ही शत� पर मिमलेगा।- मैं घर को लेकर �हुत सेंसिसदिटव रहा हूं लेबिकन अ� घर से लौटने के �ाद से तो मैं �ुरी तरह डर

गया हूं बिक क्या कोई ऐसी जगह कभी होगी भी जिजसे मैं घर कह सकंू। मैं अपनी तरह के घर को पाने के सिलए कुछ भी कर सकता था लेबिकन.. अ� तो....।

- घ�राओ नहीं, ऊपर वाले ने तृम्हारे नाम भी एक खू�सूरत �ीवी और बिनहायत ही सुकून भरा घर सिलखा होगा। घर और �ी�ी दोनों ही तुम तक 'ल कर आयेंगे।

- पता नहीं घर की यह तलाश क� खत्म होगी।- जल्दी ही खतम होगी भाई, अलका ने मेरे �ाल बि�खेरते हुए कहा है - अगर हमारी पसंद पर

भरोसा हो तो हम दोनों आज ही से इस मुबिहम पर जुट जाते हैं।मैं झेंपी हँसी हँसता हंू - क्यों बिकसी मासूम की ज़िजंदगी ख़रा� करती हैं इस �ालतू आदमी के 'क्कर में।

- यह हम तय करेंगे बिक हीरा आदमी कौन है और �ालतू आदमी कौन?

गुड्डी की सि'ट्ठी आयी है। समा'ार सुखद नहीं हैं ।- वीरजी,

आपकी सि'ट्ठी मिमल गयी थी। �े�े �ीमार है। आजकल घर का सारा काम मेरे जिजम्मे आ गया है। �े�े के इलाज के सिलए मुझे अपनी �'त के का�ी पैसे ख'# करने पड़े जिजससे दारजी और �े�े को �ताना पड़ा बिक मुझे आपसे का�ी पैसे मिमले हैं।वीरजी, यह गलत हो गया है बिक स�को पता 'ल गया है बिक आप मुझे पैसे भेजते रहते हैं। अ� �ीमार �े�े के एक्सरे और दूसरे टैस्ट कराने थे और घर में उतने पैसे नहीं थे, मैं कैसे 'ुप रहती। अपनी सारी �'त बिनकाल कर दारजी के हाथ पर रख दी थी। वैसे भी ये पैसे मेरे पास �ालतू ही तो रखे हुए थे।आप यहा ं की सि'ंता न करें। म ैं स� संभाल े हुए हूं। अपन े समा'ार दें। अपना कॉटैक्ट नं�र सिलख दीजिजयेगा।आपकीगुड्डी

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मैं तुंत ही पां' हजार रुपये का �ाफ्ट गुड्डी के नाम कूरिरयर से भेजता हूं और सिलखता हूं बिक मुझे �ोन करके तुंत �ताये बिक अ� �े�े की त�ीयत कैसी है। एक पत्र मैं नंदू को सिलखता हूं। उसे �ताता हूं बिक बिकन हालात के 'लते मुझे दूसरी �ार मुझे �ेघर होना पड़ा और मैं आते समय बिकसी से भी मिमल कर नहीं आ सका। एक तरह से खाली हाथ और भरे मन से ही घर से 'ला था। �े�े �ीमार है। ज़रा घर जा कर देख आये बिक उसकी त�ीयत अ� कैसी है। गुड्डी को पैसे भेजे हैं। और पैसों की जरूरत हो तो तुंत �ताये।

सो'ता हूं, जाऊं क्या �े�े को देखने? लेबिकन कहीं बि�र घेर सिलया मुझे बिकसी करतारे या ओमकारे की लड़की के 'क्कर में तो मुसी�त हो जायेगी। बि�र इस �ार तो �े� े की �ीमारी का भी वास्ता दिदया जायेगा और मैं बिकसी भी तरह से �' नहीं पाऊंगा। गुड्डी की सि'ट्ठी आ जाये बि�र देखता हूं।नंदू का �ोन आ गया है।�ता रहा ह ै - आप बिकसी बिकस्म की बि�कर मत करो। �े�े अ� ठीक है। घर पर ही है और डॉक्टरों ने कुछ दिदन का आराम �ताया है। वैसे सि'ंता की कोई �ात नहीं है।पूछता हंू मैं - लेबिकन उसे हुआ क्या था ?

- कुछ खास नहीं, �स, ब्लड पे्रशर डाउन हो गया था। दवाइयां 'लती रहेंगी। �ाकी मुझे गुड्डी से सारी �ात का पता 'ल गया है। आप मन पर कोई �ोझ न रखें। मैं गुड्डी का भी ख्याल रख्गां और �े�े का भी। ओके, और कुछ !!

- जरा अपने �ोन नम्�र दे दे।- लो नोट करो जी। घर का भी और रेस्तरां का भी। और कुछ?- मैं अपने पड़ोसी मिमस्टर भसीन का नम्�र दे रहा हंू। एमज�सी के सिलए। नोट कर लो और गुड्डी

को भी दे देना।�ोन नम्�र नोट करता हंू और उसे थैंक्स कर �ोन रखता हंू..।तसल्ली हो गयी है बिक �े�े अ� ठीक है और यह भी अच्छी �ात हो गयी बिक अ� नंदू के जरिरये कम से कम तंुत समा'ार तो मिमल जाया करेंगे।

इस �ी' दारजी सि'ट्ठी आयी है। गुरमुखी में है। हालांबिक उनकी हैण्ड राइटिटंग �हुत ही खरा� है लेबिकन मतल� बिनकाल पा रहा हूं ।यह एक बिपता का पुत्र के नाम पहला पत्र है।सिलखा है

- �रखुरदार,नंदू से तेरा पता लेकर खत सिलख रहा हंू। एक �ाप के सिलए इससे और ज्यादा शरम का �ात क्या होगी बिक उसे अपने �ेटे के पते के वास्ते उसके दोस्तों के घरों के 'क्कर काटने पड़ें। �ाकी तूने जो कुछ हमारे साथ बिकया और दूसरी �ार �ी' 'ौराहे उत्ते मेरी पगड़ी उछाली, उससे मैं बि�रादरी में कहीं मुंह दिदखाने

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केध काबि�ल नहीं रहा हूं..। स� लोग मुझ पर ही थू थू कर रहे हैं। कोई यह नहीं देखता बिक तू बिकस तरह इस �ार भी बि�ना �ताये 'ोरों की तरह बिनकल गया। तेरी �े�े तेरा इंतजार करती रही और जना� टे्रन में �ैठ कर बिनकल गये। �ाकी आदमी में इतनी गैरत और सिलयाकत तो होनी ही 'ाबिहये बिक वह आमने-सामने �ैठ कर �ात कर सके। तेरी �े�े इस �ात का सदमा �रदाश्त नहीं कर पायी और त� से �ीमार पड़ी है। तुझसे तो इतना भी न हुआ बिक उसे देखने आ सके। �ाकी तूने अपनी �े�े को हमेशा ही दुख दिदया है और कभी भी इस घर के सुख-दुख में शामिमल नहीं हुआ है। छोटी-मोटी �ातों पर घर छोड़ देना शरी� घरों के लड़कों को शोभा नहीं देता। तुम्हारी इतनी पढ़ाई-सिलखाई का क्या �ायदा जिजससे मां-�ाप को दुख के अलावा कुछ भी न मिमले।�ाकी मेरे समझाने-�ुझाने के �ाद करतार सिसंह तेरी यह ज्यादती भुलाने के सिलए अभी भी तैयार है। तू जल्द से जल्द आ जा ताबिक घर में सुख शांबित आ सके। इस �हाने अपनी �ीमार �े�े को भी देख लेगा। वो तेरे सिलए �हुत कलपती है। वैसे भी उसकी आधी �ीमारी तुझे देखते ही ठीक हो जायेगी। तू जिजतनी भी ज्यादती करे हमारे साथ, उसके प्राण तो तुझमें ही �सते हैं।तुम्हारा,दारजी

ज़िज़ंदगी में एक �ाप पहली �ार अपने �ेटे को सि'ट्टी सिलख रहा है और उसमें सौदे�ाजी वाली यह भाषा!! दारजी जो भाषा �ोलते हैं वही भाषा सिलखी है। न �ोलने में सिलहाज करते हैं न सिलखने में बिकया है।अ� ऐस े ख़त का क्या जवा� दिदया जा सकता है। व े यह नहीं समझते बिक इस तरह स े व े मेरी परेशाबिनयां ही �ढ़ा रहे हैं।

अगले ही दिदन की डाक में गुड्डी का एक और खत आया है।सिलखा है उसने

- वीरजी, पत्र सिलखने में देर हो गयी है। ज� नंदू वीरजी ने �ताया बिक उन्होंने आपको �े�े की त�ीयत के �ार े म ें �ोन पर �ता दिदया ह ै इससिलए भी सिलखना टल गया। �े� े अ� ठीक ह ैं लेबिकन कमज़ोरी है और ज्यादा देर तक काम नहीं कर पाती। वैसे कुछ सदमा तो उन्हें आपके जाने का ही लगा है और आजकल उनमें और दारजी में इसी �ात को लेकर अक्सर कहा-सुनी हो जाती है।�े�े की �ीमारी के कारण कई दिदन तक कॉलेज न जा सकी और घर पर ही पढ़ती रही। वैसे बिनशा आ कर नोट्स दे गयी थी।दारजी ने मुझसे आपका पता मांगा था। मैंने मना कर दिदया बिक जिजस सिल�ा�े में �ाफ्ट आया था उस पर पता था ही नहीं। पता न देने की वज़ह यही है बिक बिपछले दिदनों करतार सिसंह ने संदेसा णिभजवाया था बिक अ� हम और इंतजार नहीं कर सकते। अगर दीपू यह रिरश्ता नहीं 'ाहता या जवा� नहीं देता तो वे और कोई घर देखेंगे। उन पर भी बि�रादरी की तर� से द�ाव है।

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पता है वीरजी, दारजी ने करतार सिसंह के पास इस संदेस के जवा� में क्या संदेसा णिभजवाया था - तू संतोष का ब्याह बि�ल्लू या गोलू से कर दे., दहेज �ेशक आधा कर दे। करतार सिसंह ने दारजी को जवा� दिदया बिक �ोलने से पहले कुछ तो सो' भी सिलया कर। तू �ेशक व्यापारी न सही, मैं व्यापारी आदमी हंू और कुछ सो' कर ही तेरे दीपू का हाथ मांग रहा था। दारजी का मंुह इतना सा रह गया। दारजी नंदू से आपका पता लेने गये थे। वे शायद आपको सिलखें, या सिलख भी दिदया हो .. आप उनके �ंदे में मत �ंसना वीरजी।आपके भेजे पां' हज़ार के �ाफ्ट के सिलए दारजी ने मेरा खाता खुलवा दिदया है, लेबिकन यह खाता उन्होंने अपने साथ ज्वाइंट खुलवाया है।नंदू वीरजी अकसर �े�े का हाल'ाल पूछने आ जाते है। आपकी सि'ट्ठी का पूछ रहे थे। वे आपकी �हुत इज्जत करते हैं।पत्र देंगे।आपकी �हना,गुड्डी

समझ में नहीं आ रहा, बिकन झमेलों में �ंस गया हूं। ज� तक घर नहीं गया था, वे स� मेरी दुबिनया में कहीं थे ही नहीं, लेबिकन एक �ार सामने आ जाने के �ाद मेरे सिलए यह �हुत ही मुल्किश्कल हो गया है बिक उन्हें अपनी स्मृबितयों से पूरी तरह से बिनकाल �ें कंू। हो ही नहीं पाता ये स�। वहां मुझे हफ्ता भर भी 'ैन से नहीं रहने दिदया और ज� वहां से भाग कर यहां आ गया हंू तो भी मुसिक्त नहीं है मेरी।अलका दीदी मेरी परेशाबिनयां समझती हैं लेबिकन ज� मेरे ही पास इनका कोई हल नहीं है तो उस �े'ारी के पास कहां से होगा। मुझे उदास और बिडस्ट�# देख कर वह भी मायूस हो जाती है, इससिलए कई �ार उनके घर जाना भी टालता हंू। लेबिकन दो दिदन हुए नहीं होते बिक खुद �ुलाने आ जाती हैं। मज�ूरन मुझे उनके घर जाना ही पड़ता है। बिडपै्रशन के भीषण दौर से गुज़र रहा हूं। जी 'ाहता है कहीं दूर भाग जाऊं। �ाहर कहीं नौकरी कर लूं जहां बिकसी को मेरी ख�र ही न हो बिक मैं कहां 'ला गया हूं। एक तो ज़िज़ंदगी में पसरा दसिसयों �रसों का यह अकेलापन और उस पर से घर से आने वाली इस तरह की सि'दिट्ठयां। खुद की नादानी पर अVसोस हो रहा है बिक �ेशक गुड्डी को ही सही, पता दे कर ही क्यों आया..। मैं अपने हाल �ना रहता और उन्हें उनके ही हाल पर छोड़ आता। लेबिकन �े�े और गुड्डी .. यहीं आ कर मैं पस्त हो जाता हंू।अ� मैं इस दिदशा में ज्यादा सो'ने लगा हूं बिक यहां से कहीं �ाहर ही बिनकल जाऊं। �ेशक कहीं भी खुद को एडजस्ट करन े में, जमान े म ें वक्त लगेगा लेबिकन यहा ं ही कौन सी जमी-जमायी गृहस्थी ह ै जो उखाड़नी पडे़गी। स� जगह हमेशा खाली हाथ ही रहा हंू। जिजतनी �ार भी शहर छोड़े हैं या जगहें �दली हैं, खाली हाथ ही रहा हूं, यहां से भी कभी भी वैसे ही 'ल दंूगा। बिकसी भी कीमत पर इंगलैण्ड या अमेरिरका की तर� बिनकल जाना है।

ऑबि�स से लौटा ही हंू बिक अलका दीदी का �ुलावा आ गया है। बिपछले बिकतने दिदनों से उनके घर गया ही नहीं हूं।

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फे्रश हो कर उनके घर पहंु'ा तो दीदी ने मुस्कुराते हुए दरवाजा खोला है। भीतर आता हंू। सामने ही एक लम्�ी-सी लड़की �ैठी है। दीदी परिर'य कराती हैं - ये गोल्डी है। सीएमसी में सर्गिवंस इंजीबिनयर है। उसे मेरे �ारे में �ताती है। मैं हैलो करता हंू। हम �ैठते हैं। दीदी 'ाय �नाने 'ली गयी है।बिकसी भी अकेली लड़की की मौजूदगी में मैं असहज महसूस करने लगता हंू। समझ ही नहीं आता, क्या �ात करंू और कैसे शुरूआत करंू। वह भी थोड़ी देर तक 'ुप �ैठी रहती है बि�र उठ कर दीदी के पीछे रसोई में ही 'ली गयी है। 'लो, अच्छा है। उसकी मौजूदगी से जो तनाव महसूस हो रहा था, कम से कम वो तो नहीं होगा। लेबिकन दीदी भी अजी� हैं। उसे बि�र से पकड़ कर �ाइंग रूम में ले आयी ह ै - �हुत अजी� हो तुम दोनों? क्या मैं इसीसिलए तुम दोनों का परिर'य करा के गयी थी बिक एक दूसरे का मुंह देखते रहो और ज� दोनों थक जाओ तो एक उठ कर रसोई में 'ला आये।मैं झेंप कर कहता हंू - नहीं दीदी, ऐसी �ात नहीं है दरअसल .. मैं ..

- हां, मुझे स� पता है बिक तुम लड़बिकयों से �ात करने में �हुत शरमाते हो और बिक तुम्हारा मूड आजकल �हुत खरा� 'ल रहा है और मुझे यह भी पता है बिक ये लड़की तुझे खा नहीं जायेगी। �ेशक कायस्थ है लेबिकन वैजिजटेरिरयन है। दीदी ने मुझे कठघरे में खड़ा कर दिदया है। कहने को कुछ �'ा ही नहीं है।मैं �ात शुरू करने से बिहसा� से पूछता हूं उससे - कहां से ली थी कम्प्यूटस# में बिड}ी?

- इंदौर से। वह भी संको' महसूस कर रही है बिक उठ, कर रसोई में क्यों 'ली गयी थी।- �ं�ई पहली �ार आयी हैं?- जॉ� के बिहसा� तो पहली ही �ार ही आयी हंू, लेबिकन पहले भी कॉलेज }ुप के साथ �ं�ई घूम

'ुकी हंू।- 'लो, गगनदीप के सिलए अच्छा हुआ बिक उसे गोल्डी को �ं�ई नहीं घुमाना पडे़गा।- आप तो मेरे पीछे ही पड़ गयी हैं दीदी, मैंने ऐसा क� कहा...- हां, अ� हुई न �ात। तो अ� पूरी �ात सुन। गोल्डी एक हफ्ता पहले ही �ं�ई आयी है। बि�'ारी

को आते ही रहने की समस्या से जूझना पड़ा। कल ही बिवनायक क्रॉस रोड पर रहने वाली हमारी बिवधवा 'ा'ी की पेइंग गेस्ट �न कर आयी है। इसे कुछ शॉपिपंग करनी है। तू ज़रा इसके साथ जा कर इसे शॉपिपंग करा दे।

- ठीक है दीदी, करा देता हंू। दीदी की �ात टालने की मेरी बिहम्मत नहीं है।- जा गोल्डी। वैसे तुझे �ता दंू बिक ये �हुत ही शरी� लड़का है। पता नहीं रास्ते में तुझसे �ात करे

या नहीं या तुझे 'ाट वगैरह भी खिखलाये या नहीं, तू ही इसे कुछ खिखला देना।- दीदी, इतनी तो खिखं'ाई मत करो। अ� मैं इतना भी गया गुजरा नहीं हूं बिक ....।- मैं यही सुनना 'ाहती थी। दीदी ने हँसते हुए हमें बिवदा बिकया है।

हम दोनों एक साथ नी'े उतरते हैं।

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सीदिढ़यों में ही उससे पूछता हू ं - आपको बिकस बिकस्म की शॉपिपंग करनी है? मेरा मतल� उसी तरह के �ाज़ार की तर� जायें।

- अ� अगर यहीं रहना है तो सुई से लेकर आइरन, �ाल्टी, इलैस्थिक्ट्रक कैटल स� कुछ ही तो लेना पडे़गा। पहले यही 'ीजें ले लें - ऑटो ले लें? �ांद्रा स्टेशन तक तो जाना पडे़गा।

दो तीन घंटे म ें ही उसने का�ी शॉपिपंग कर ली है। �हुत अच्छी तरह से शॉपिपंग की ह ै उसने। उसने सामान भी �हुत �दिढ़या क्वासिलटी का खरीदा है। ज्यादातर सामान पहली नज़र में ही पसंद बिकया गया है। दीदी की �ात भूला नहीं हंू। गोल्डी को आ}ह पूव#क शेरे पंजा� रेस्तरां में खाना खिखलाया है। इस �ी' उससे का�ी �ात हुई है। गोल्डी कराटे में ब्लू �ैल्ट है। पुराने संगीत की रसिसया है और अचे्छ खाने की शौकीन है। उसे बि�ल्में बि�लकुल अच्छी नहीं लगती।उसने मेरे �ारे में भी �हुत कुछ जानना 'ाहा है। संकट में डाल दिदया है उसने मुझे मेरी डेट ऑ� �थ# पूछ कर। कभी सो'ा भी नहीं था, इधर-उधर के �ाम� में सिलखने के अलावा जन्म की तारीख का इस तरह भी कोई महत्व होता है। एक तरह से अच्छा भी लगा है। आज तक यह तारीख महज एक संख्या थी। आज एक सुखद अहसास में �दल गयी है।मैं भी उससे उसकी डेट ऑ� �थ# पूछता हंू। �ताती है - �ीस जुलाई सिसक्सटी नाइन।मैं हँसता हूं - मुझसे छः साल छोटी हैं।वह जवा� देती है - दुबिनया में हर कोई बिकसी न बिकसी से छोटा होता है तो बिकसी दूसरे से �ड़ा। अगर स� �रा�र होने लगे तो 'ल 'ुकी दुबिनया की साइबिकल....।का�ी इंटेसिलजेंट है और सेंस ऑ� हू्यमर भी खू� है। आज से ठीक �ीस दिदन जनम दिदन है गोल्डी का। देखें, त� यहां होती भी है या नहीं....!

- आपका ऑबि�स तो �ांद्रा कुला# कॉम्पलैक्स में है। सुना है �हुत ही शानदार बि�ल्डिलं्डग है।- हां बि�ल्डिलं्डग तो अच्छी है। कभी ले जाऊंगी आपको। अभी तो नयी हंू इससिलए हैड क्वाट#स# दिदया

है। मैं तो �ील्ड स्टा� हंू। अपने काम के सिसलसिसले में सारा दिदन एक जगह से दूसरी जगह जाना पडे़गा।- �ं�ई से �ाहर भी?- हां, �ाहर भी जाना पड़ सकता है।

हम लदे �दे वाबिपस पहंु'े हैं। गोल्डी का का�ी सारा सामान मेरे दोनों हाथों में है। उसे 'ा'ी के घर के नी'े बिवदा करता हंू तो पूछती है - ये सारा सामान लेकर मैं अकेली ऊपर जाऊंगी तो आपको खरा� नहीं लगेगा!

- ओह, सॉरी, मैं तो ये समझ रहा था मेरा ऊपर जाना ही आपको खरा� लगेगा, इससिलए 'ुप रह गया। लाइये, मैं पहुं'ा देता हंू सामान।'ा'ी को नमस्ते करता हंू। उनसे अक्सर दीदी के घर मुलाकात हो जाती है। हाल'ाल पूछती हैं। गोल्डी का सामान रखवा कर लौटने को हूं बिक वह कहती है - थैंक्स नहीं कहंूगी तो आपको खरा� लगेगा और थैंक्स कहना मुझे �ॉम#ल लग रहा है।

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- इसमें थैंक्स जैसी कोई �ात नहीं है। इस �हाने मेरा भी घूमना हो गया। वैसे भी कमरे में �ैठा �ोर ही तो होता।हँसती ह ै - वैसे तो दीदी ने मुझे डरा ही दिदया था बिक आप बि�लकुल �ात ही नहीं करते। एनी वे थैक्स �ॉर द नाइस बिडनर। गुड नाइट।बिकसी लड़की के साथ इतना वक्त गुज़ारने का यह पहला ही मौका है। वह भी अनजान लड़की के साथ पहली ही मुलाकात में। ऋतुपणा# के साथ भी कभी इतना समय नहीं गुज़ारा था। गोल्डी के व्यसिक्तत्व के खुलेपन के �ारे में सो'ना अच्छा लग रहा है। कोई दुराव छुपाव नहीं। सा�गोई से अपनी �ात कह देना।'लो, अलका दीदी ने जो डू्यटी सौंपी थी, उसे ठीक-ठाक बिनभा दिदया।

सु�ह सु�ह ही मकान मासिलक ने �ताया है बिक दरवाजे पर कोई सिसख लड़का खड़ा है जो तुम्हें पूछ रहा है। मैं लपक कर �ाहर आता हंू।सामने बि�ल्लू खड़ा है। पास ही �ैग रखा है। मुझे देखते ही आगे �ढ़ा है और हौले से झुका है। मैं हैरान - न सि'ट्ठी न पत्री, हज़ारों मील दूर से 'ला आ रहा है, कम से कम ख�र तो कर देता। उसे भीतर सिलवा लाता हंू। मकान मासिलक उसे हैरानी से देख रहा है। उन्हें �ताता हूं - मेरा छोटा भाई है। यहां एक इन्टरवू्य देने आया है। मकान मासिलक की तसल्ली हो गयी है बिक रहने नहीं आया है। उसे भीतर लाता हूं। पूछता हू ं - .. इस तरह .. अ'ानक ही.. कम से कम ख�र तो कर ही देता.. मैं स्टेशन तो लेने आ ही जाता..।हंसता है बि�ल्लू - �स, �ं�ई घूमने का दिदल बिकया तो �ैग उठाया और 'ला आया।मैं 'ौंका हूं - घर पर तो �ता कर आया है या नहीं ?

- उसकी सि'ंता मत करो वीर, उन्हें पता है, मैं यहां आ रहा हंू।मुझे अभी भी बिवश्वास नहीं हो रहा है बिक घर वह कह कर आया है। सो' सिलया है मैंने, रात को नंदू को �ोन करके �ता दंूगा - घर �ता दे, बि�ल्लू यहां ठीक ठाक पहंु' गया है। बि�कर न करें।

- �े�े कैसी है? दारजी, गुड्डी और गोलू?- �े�े अभी भी ढीली ही है। ज्यादा काम नहीं कर पाती। �ाकी स� ठीक हैं।

मकान मासिलक ने इतनी मेहर�ानी कर दी है बिक दो कप 'ाय णिभजवा दी है।बि�ल्लू नहा धो कर आया है तो मैं देखता हूं बिक उसके कपडे़, जूते वगैरह �हुत ही मामूली हैं। घर पर रहते हुए मैंने इस तरV ध्यान ही नहीं दिदया था। आज-कल में ही दिदलवाने पड़ेंगे। घुमाना-बि�राना भी होगा। यही काम मेर े सिलए स�से मुल्किश्कल होता है। मैंन े खुद �ं�ई ढंग स े नहीं देखी है, उसे कैसे घुमाऊंगा। पता नहीं बिकतने दिदन का प्रो}ाम �ना कर आया है।पूछ रहा है बि�ल्लू - क्या सो'ा है वीर शादी के �ारे में। उसने अपने �ैग में से संतोष की तस्वीर बिनकाल कर मेरे आगे रख दी है। लगता है मुझे शादी के सिलए तैयार करने और सिलवा लेने के सिलए आया है। उसे सिलखा-पढ़ा कर भेजा गया है। वह जिजस तरह से मेरी 'ीजों को उलट-पुलट कर देख रहा है और सारी

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'ीजों के �ारे में पूछ रहा है उससे तो यही लगता है बिक वह मेरा जीवन स्तर, रहने का रंग ढंग और मेरी माली हालत का जायजा लेने आया है। कहा उसने �ेशक नहीं है लेबिकन उसके हाव-भाव यही �ता रहे हैं।

परसों अलका दीदी ने दोनों को खाने पर �ुला सिलया था। गोल्डी भी थी। वहां पर भी वह स�के सामने मेरे घर छोड़ कर आने के �ारे में उलटी-सीघी �ातें करने लगा। ज� मैं 'ुप ही रहा तो अलका को मेरे �'ाव में उसे 'ुप करना पड़ा तो जना� नाराज़ हो गय े - आपको नहीं पता है भैनजी, ये बिकस तरह बि�ना �ताये घर छोड़ कर आ गये थे बिक सारी बि�रादरी इनके नाम पर आज भी थू थू कर रही है। सगाई की सारी तैयारिरयां हो 'ुकी थीं। वो तो लोग-�ाग दारजी का सिलहाज कर गये वरना..इन्होंने कोई कसर थोडे़ ही छोड़ रखी थी। वह ताव में आ गया था। �ड़ी मुल्किश्कल से हम उसे 'ुप करा पाये थे। हमारी सारी शाम खरा� हो गयी थी। गोल्डी क्या सो'ेगी मेरे �ारे में बिक इतना ग़ैर-जिजम्मेवार आदमी हंू। उससे �ात ही नहीं हो पायी थी। मैं देख सकता था बिक वह भी �हुत आक्वड# महसूस कर रही थी।इस �ी' देवेन् द्र और अलका जी ने दो�ारा �ुलाया है लेबिकन मेरी बिहम्मत ही नहीं हो रही बिक उसे वहां ले जाऊं। ले ही नहीं गया। अ� तो बि�ल्लू से �ात करने की ही इच्छा नहीं हो रही है। इसके �ावजूद बि�ल्लू को ढेर सारी शापिपंग करा दी है। घुमाया-बि�राया है और हजारों रुपयों की 'ीज़ें दिदलवायीं हैं। वह �ी'-�ी' में संतोष कौर का जिजक्र छेड़ देता है बिक �हुत अच्छी लड़की है, मैं एक �ार उसे देख तो लेता। आखिखर मुझे दुखी हो कर सा�-सा� कह ही देना पड़ा बिक अगली �ार जो तूने उस या बिकसी भी लड़की का नाम सिलया तो तुझे अगली टे्रन में बि�ठा दंूगा। त� कहीं जा कर वह शांत हुआ है।अ� उसकी मौजूदगी मुझमें खीज पैदा करने लगी है।उसकी वज़ह से मैं हफ्ते भर से �ेकार �ना �ैठा हंू। जना� ग्यारह �जे तो सो कर उठते हैं। नहाने का कोई दिठकाना नहीं। खाने-पीने का कोई वक्त नहीं। यहां संकट यह है बिक पूरी ज़िज़ंदगी मैं हमेशा सारे काम अनुशासन से �ंध कर करता रहा। जरा-सी भी अव्यवस्था मुझे �ुरी तरह से �े'ैन कर देती है। घूमने-बि�रने के सिलए बिनकलते-बिनकलते डेढ दो �जा देना उसके सिलए मामूली �ात है। तीन-'ार घंटे घूमने के �ाद ही जना� थक जाते हैं और बि�र �ेताल डाल पर वाबिपस। पूरे हफ्ते से उसका यही शेडू्यल 'ल रहा है। उसकी शॉपिपंग भी माशा अल्लाह अपने आप में अजू�ा है। पता नहीं बिकस-बिकस की सिलस्टें लाया हुआ है। यह भी 'ाबिहये और वह भी 'ाबिहये। अ� अगर बिकसी और ने सामान मंगाया है तो उसके सिलए पैसे भी तो बिनकाल भाई। लेबिकन लगता है उसके हाथों ने उसकी जे�ों का रास्ता ही नहीं देखा। उसकी खुद की हजारों रुपये की शॉपिपंग करा ही 'ुका हूं। उसमें मुझे कोई एतराज़ नहीं है। लेबिकन बिकसी ने अगर कैमरा मंगवाया है या कुछ और मंगवाया है तो उसके सिलए भी मेरी ही जे� ढीली करा रहा है। उसके खाने-पीने में मैंने कोई कमी नहीं छोड़ी है। मैं खुद रोज़ाना ढा�े में या बिकसी भी उबिडपी होटल मे खा लेता हूं लेबिकन उसे रोज ही बिकसी न बिकसी अचे्छ होटल में ले जा रहा हंू। इससिलए ज� उसने कहा बिक मैं गोवा घूमना 'ाहता हूं तो मुझे एक तरह से अच्छा ही लगा। उसे गोवा की �स में बि�ठा दिदया है और हाथ में पां' सौ रुपये भी रख दिदये हैं। तभी पूछ भी सिलया है - आजकल रश 'ल रहा है। ऐन वक्त पर दिटकट नहीं मिमलेगी। तेरा क� का दिटकट �ुक करा दंू?उसे अच्छा तो नहीं लगा है लेबिकन �ता दिदया है उसने

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- गोवा से शुक्रवार तक लौटंूगा। शबिनवार की रात का करा दें।

और इस तरह से बि�ल्लू महाराज जी मेरे पूरे ग्यारह दिदन और लगभग आठ हजार रुपये स्वाहा करने के �ाद आज वाबिपस लौट गये हैं। लेबिकन जाते-जाते वह मुझे जो कुछ सुना गया है, उससे एक �ार बि�र सारे रिरश्तों से मेरा मोह भंग हो गया है। उसकी �ातें याद कर करके दिदमाग की सारी नसें झनझना रही हैं। बिकतना अजी� रहा यह अनुभव अपने ही सगे भाई के साथ रहने का। क्या वाकई हम एक दूसरे से इतने दूर हो गये हैं बिक एक हफ्ता भी साथ-साथ नहीं रह सकते। उसके सिलए इतना कुछ करने के �ाद भी उसने मुझे यही सिसला दिदया है....।

गोल्डी से इस �ी' एक दो �ार ही हैलो हो पायी है। वह भी राह 'लते। एक �ार �ाज़ार में मिमल गयी थी। मैं खाना खा कर आ रहा था और वह कूरिरयर में सि'ट्ठी डालने जा रही थी। त� थोड़ी देर �ात हो पायी थी।उसने अ'ानक ही पूछ सिलया था - आप आइसक्रीम तो खा लेते होंगे?

- हां खा तो लेता हंू लेबिकन �ात क्या है?- दरअसल आइसक्रीम खाने की �हुत इच्छा हो रही है। मुझे कम्पनी देंगे ?- ज़रूर देंगे। 'सिलये।- लेबिकन खिखलाऊंगी मैं।- ठीक है आप ही खिखला देना। त� आइसक्रीम के �हाने ही उससे थोड़ी �हुत �ात हो पायी थी।- �हुत थक जाती हंू। सारा दिदन शहर भर के 'क्कर काटती हंू। न खाने का समय न वाबिपस

आने का।- मैं समझ सकता हूं लेबिकन आपके सामने कम से कम सु�ह के नाश्ते से लेकर रात के खाने

तक की समस्या तो नहीं है।- वो तो खैर नहीं है। बि�र भी लगता नहीं इस 'ा'ी नाम की लैंड लेडी से मेरी ज्यादा बिनभ

पायेगी। बिकराया जिजतना ज्यादा, उतनी ज्यादा �ंदिदशें। शाम को मैं �हुत थकी हुई आती हूं। त� सहज-सी एक इच्छा होती है बिक काश, कोई एक कप 'ाय बिपला देता। लेबिकन 'ा'ी तो �स, खाने की थाली ले कर हाजिज़र हो जाती है। अ� सु�ह का दूध शाम तक 'लता नहीं और पाउडर की 'ाय में मज़ा नहीं आता।

- मैं आपकी तकलीV समझ सकता हंू। - और भी दस तरह की �ंदिदशें हैं। ये मत करो और वो मत करो। रात दस �जे तक घर आ

जाओ। अ� मैं जिजस तरह के जॉ� में हंू, वहां देर हो जाना मामूली �ात है। कभी कोई कॉल दस मिमनट में भी ठीक हो जाती है तो कई �ार बि�गड़े सिसस्टम को लाइन पर लाने में दसिसयों घंटे लग जाना मामूली �ात है। त� वहां हम सामने खुला पड़ा सिसस्टम देखें या 'ा'ी का टाइम टे�ल याद करें।

- बिकसी गल्स# हॉस्टल में क्यों नहीं ट्राई करतीं।

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- सुना है वहां का माहौल ठीक नहीं होता और �ंदिदशें वहां भी होंगी ही। खैर, आप भी क्या सो'ेंगे, आइसक्रीम तो दस रुपये की खिखलायी लेबिकन �ोर सौ रुपये का कर गयी। 'सिलये।हम टहलते हुए एक साथ लौटे थे।कहा था उसने - कभी आपके साथ �ैठ कर ढेर सारी �ातें करेंगे।

उसके �ाद एक �ार और मिमली थी वह। अलका दीदी के घर से वाबिपस जा रही थी और मैं घर आ रहा था।पूछा था त� उसने - कुछ बि�क्शन वगैरह पढ़ते हैं क्या?

- ज़िज़ंदगी भर तो भारी-भारी टैस्थिक्नकल पोथे पढ़ता रहा, बि�क्शन के सिलए पहले तो �ुस#त नहीं थी, �ाद में पढ़ने का संस्कार ही नहीं �न पाया। वैसे तो ढेरों बिकता�ें हैं। शायद कोई पसंद आ जाये। देखना 'ाहेंगी ?

- 'सिलये। और वह मेरे साथ ही मेरे कमरे में वाबिपस आ गयी है।यहां भी पहली ही �ार वाला मामला है। मेरे बिकसी भी कमरे में आने वाली वह पहली ही लड़की है।

- कमरा तो �हुत सा� सुथरा रखा है। वह तारी� करती है।- दरअसल यह पारसी मकान मासिलक का घर है। और कुछ हो न हो, स�ाई जो ज़रूर ही होगी।

वैसे भी अपने सारे काम खुद ही करने की आदत है इससिलए एक सिसस्टम सा �न जाता है बिक अपना काम खुद नहीं करेंगे तो स� कुछ वैसे ही पड़ा रहेगा। �ाद में भी खुद ही करना है तो अभी क्यों न कर लें।

- दीदी आपकी �हुत तारी� कर रही थीं बिक आपने अपने कैरिरयर की सारी सीदिढ़यां खुद ही तय की हैं। ए कम्पलीट सैल्� मेड मैन। वह बिकता�ों के ढेर में से अपनी पसंद की बिकता�ें 'ुन रही है।हँसता हूं मैं - आप सीदिढ़यां 'ढ़ने की �ात कर रही हैं, यहां तो �ुबिनयाद खोदने से लेकर बिगट्टी और मिमट्टी भी खुद ही ढोने वाला मामला है। देखिखये, आप पहली �ार मेरे कमरे में आयी हैं, अ� तक मैंने आपको पानी भी नहीं पूछा है। कायदे से तो 'ाय भी बिपलानी 'ाबिहये।

- इन �ाम�सिलटीज़ में मत पबिड़ये। 'ाय की इच्छा होगी तो खुद �ना लूंगी।- लगता ह ै आपको संगीत सुनन े का कोई शौक नहीं है। न रेबिडयो, न टीवी, न वॉकमैन या

स्टीरिरयो ही। मैं तो ज� त� दो-'ार घंटे अपना मन पसंद संगीत न सुन लूं, दिदन ही नहीं गुज़रता।- �ताया न, इन बिकता�ों के अलावा भी दुबिनया में कुछ और है कभी जाना ही नहीं। अभी कहें

आप बिक �लां थ्योरी के �ारे में �ता दीजिजये तो मैं आपको बि�ना कोई भी बिकता� देखे पूरी की पूरी थ्योरी पढ़ा सकता हूं।

- वाकई }ेट हैं आप। 'लती हंू अ�। ये पां'-सात बिकता�ें ले जा रही हूं। पढ़ कर लौटा दंूगी।- कोई जल्दी नहीं है। आपको ज� भी कोई बिकता� 'ाबिहये हो, आराम से ले जायें। देखा, 'ाय

तो बि�र भी रह ही गयी।- 'ाय डू्य रही अगली �ार के सिलए। ओके।

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- 'सिलये, नी'े तक आपको छोड़ देता हंू।ज� उसे उसके दरवाजे तक छोड़ा तो हँसी थी गोल्डी - इतने सीधे लगते तो नहीं। लड़बिकयों को उनके दरवाजे तक छोड़ कर आने का तो खू� अनुभव लगता है। और वह तेजी से सीदिढ़यां 'ढ़ गयी थी।घर लौटा तो देर तक उसके ख्याल दिदल में गुदगुदी म'ाये रहे। दूसरी-तीसरी मुलाकात में ही इतनी फ्रैं कनेस। उसका साथ सुखद लगने लगा है। देखें, ये मुलाकातें क्या रुख लेती हैं। �ेशक उसके �ारे में सो'ना अच्छा लग रहा है लेबिकन उसे ले कर कोई भी सपना नहीं पालना 'ाहता।अ� तक तो स� ने मुझे छला ही है। कहीं यहां भी...!

बि�ल्लू को गये अभी आठ दिदन भी नहीं �ीते बिक दारजी की सि'ट्ठी आ पहंु'ी है।समझ में नहीं आ रहा, यहां से भाग कर अ� कहां जाऊं। वे लोग मुझे मेरे हाल पर छोड़ क्यों नहीं देते। क्या यह का�ी नहीं है उनके सिलए बिक मैं उन पर बिकसी भी बिकस्म का �ोझ नहीं �ना हुआ हंू। मैंने आज तक न उनसे कुछ मांगा है न मांगूंगा। बि�र उन्हें क्या हक �नता है बिक इतनी दूर मुझे ऐसे पत्र सिलख कर परेशान करें।सिलखा है दारजी ने

- �रखुरदारबि�ल्लू के मा�# त तेरे समा'ार मिमले और हम लोगों के सिलए भेजा सामान भी। �ाकी ऐसे सामान का कोई क्या करे जिजसे देने वाले के मन में �ड़ों के प्रबित न तो मान हो और न उनके कहे के प्रबित कोई आदर की भावना। हम तो त� भी 'ाहते थे और अ� भी 'ाहते हैं बिक तू घर लौट आ। पुराने बिगले सिशकवे भुला दे और अपणे घर-�ार की सो'। आखर उमर हमेशा साथ नहीं देती। तू अट्ठाइस-उनतीस का होने को आया। हुण ते करतारे वाला मामला भी खतम हुआ। वे भी क� तक तेरे वास्ते �ैठे रहते और लड़की की उमर ढलती देखते रहते। हर कोई वक्त के साथ 'ला करता है सरदारा.. और कोई बिकसी का इंतजार नहीं करता। हमने बि�ल्लू को तेर े पास इसी सिलए भेजा था बिक टूटे-बि�खरे परिरवार में सुलह स�ाई हो जाये, रौनक आ जाये, लेबिकन तूने उसे भी उलटा सीधा कहा और हमें भी। पता नहीं तुझे बिकस गल्ल का घमंड है बिक हर �ार हमें ही नी'ा दिदखाने की बि�राक में रहता है। �ाकी हमारी दिदली इच्छा थी और अभी भी है बिक तेरा घर �स जाये लेबिकन तू ही नहीं 'ाहता तो कोई कहां तक तेरे पैर पकडे़। आखर मेरी भी कोई इज्जत है बिक नहीं। अ� हमारे सामने एक ही रास्ता �'ता है बिक अ� तेरे �ारे में सो'ना छोड़ कर बि�ल्लू और गोलू के �ारे में सो'ना शुरू कर दें। कोई मुझसे यह नहीं पूछने आयेगा बिक दीपे का क्या हुआ। स�की बिनगाह तो अ� घर में �ैठे दो जवान जहान लड़कों की तर� ही उठेगी।एक �ार बि�र सो' ले। करतारा न सही, और भी कई अचे्छ रिरश्तेवाले हमारे आगे पीछे 'क्कर काट रहे हैं। अगर �ं�ई में ही कोई लड़की देख रखी हो तो भी �ता, हम तेरी पसंद वाली भी देख लेंगे।तुम्हारा,दारजी...।अ� ऐसे खत का क्या जवा� दिदया जाये!

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अलका दीदी छेड़ रही हैं - कै सी लगती है गोल्डी?- क्यों क्या हो गया हो उसे? मैं अनजान �न जाता हंू।- ज्यादा उड़ो मत, मुझे पता है आजकल दोनों में गहरी छन रही है।- ऐसा कुछ भी नहीं है दीदी, �स, दो-एक �ार यूं ही मिमल गये तो थोड़ी �हुत �ात हो गयी है

वरना वो अपनी राह और मैं अपनी राह?- अ� तू मुझे राहों के नक्शे तो �ता मत और न ये �ता बिक मुझे कुछ पता नहीं है, गोल्डी �हुत

ही शरी� लड़की है। तुझसे उसकी जो भी �ातें होती हैं मुझे आ कर �ता जाती है। �ल्किल्क तेरी �हुत तारी� कर रही थी बिक इतनी ऊं'ी जगह पहंु' कर भी दीपजी इतने सीधे सादे हैं।

- गोल्डी अच्छी लड़की है लेबिकन आपको तो पता ही है मैं जिजस दौर से गुज़र रहा हूं वहां बिकसी भी तरह का मोह पालने की बिहम्मत ही नहीं ही नहीं होती। �हुत डर लगता है दीदी अ� इन �ातों से। वैसे भी पां'-सात मुलाकातों में बिकसी को जाना ही बिकतना जा सकता है।

- उसकी सि'ंता मत कर। रोज़-रोज़ मिमलने से वैसे भी प्यार कम हो जाता है। तू मुझे सिस�# ये �ता बिक उसके �ारे में सो'ना अच्छा लगता है या नहीं?

- अ� जाने भी दो दीदी, बिपछले कई दिदनों से उसे देखा भी नहीं।- �ाहर गयी हुई थी। आज शाम को ही लौटी है। अभी �ोन आया था। पूछ रही थी तुझे। आज

आयेगी यहां। जी भर के देख लेना। तुम दोनों खाना यहीं खा रहे हो।हम दोनों गोल्डी की �ात कर ही रहे हैं बिक दरवाजे की घंटी �जी। दीदी ने �ता दिदया ह ै - जा, अपनी मेहमान को रिरसीव कर।

- आपको कैसे पता वही है? मैं हैरानी से पूछता हूं।- अ� तेर े सिलए य े काम भी हमें ही करना पडे़गा। कदमों की आहट, कॉल�ैल की आवाज

पह'ाननी तुझे 'ाबिहये और �ता हम रहे हैं। जा दरवाजा खोल, नहीं तो लौट जायेगी।दरवाजे पर गोल्डी ही है। हँसते हुए भीतर आती है। हाथ में मेरी बिकता�ें हैं।

- हम तेरी ही �ात कर रहे थे। दीदी उसे �ताती हैं।- दीपजी ज़रूर मेरी 'ुगली खा रहे होंगे बिक मैं उनकी बिकता�ें लेकर बि�ना �ताये शहर छोड़ कर

भाग गयी हूं। इसीसिलए यहां आने से पहले सारी बिकता�ें लेती आयी हूं।- आपको हर समय यही डर क्यों लगा रहता रहता है बिक आपकी ही 'ुगली खायी जा रही है।

आपकी तारी� भी तो हो सकती है।- आपके जैसा अपना इतना नसी� कहां बिक कोई तारी� भी करे। खैर, तो क्या �ातें हो रही थी

हमारी?- आज दीप तुझे आइसक्रीम खिखलाने ले जा रहा है।- वॉव !! सिस�# हमें ही क् यों ? आपको भी क्यों नहीं।- आपके जैसा अपना नसी� कहां । दीदी ज़ोर से हँसती हैं।

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हम देर तक यूं ही हलकी-�ुलकी �ातें करते रहे हैं। ज� आइसक्रीम के सिलए जाने का समय आया त� तक 'ुन्नू सो 'ुका है। मैं आइसक्रीम वहीं ले आया हूं।

वाबिपस जाते समय पूछा है गोल्डी ने - कुछ बिकता�ें �दल लें क्या?- ज़रूर .... ज़रूर। 'सिलये।

बिकता�ें 'ुन लेने के �ाद वह जाने के सिलए उठी है। ज� हम दरवाजे पर पहुं'े हैं तो उसने छेड़ा है - आज अपने मेहमान को बि�र 'ाय बिपलाना भूल गये जना�....और वह तेजी से नी'े उतर गयी है।मैं हँसता हूं - ये लड़की भी अजी� है। रिरश्तों में ज़रा सी भी औप'ारिरकता का माहौल �रदाश्त नहीं कर सकती। अ� उसे ले कर मेरे मन में अक्सर धुकधुकी होने लगती है। - गोल्डी आइ हैव स्टाट�ड लपिवंग यू.. लेबिकन क्या मैं ये शब्द उससे कभी कह पाऊंगा !

दीदी को पता 'ल गया ह ै बिक हम दोनों अक्सर मिमलते हैं। इसी 'क्कर में हम दोनों ही अ� उतने बिनयमिमत रूप से दीदी के घर नहीं जा पाते। गोल्डी कभी ''#गेट आ जाती है तो हम मैरीन �ाइव पर देर तक घूमते रहते हैं। खाना भी �ाहर एक साथ ही खा लेते हैं। मैं और गोल्डी रोजाना नयी जगह पर नये खाने की तलाश में भटकते रहते हैं। दोनों पूरी शाम खू� मस्ती करते हैं। उसके जन्म दिदन पर मैंने उसे जो वॉकमैन दिदया था, वह उसे हर समय लगाये रहती है। मेरी �ात सुनने के सिलए उसे �ार-�ार ईयर �ोन बिनकालने पड़ते हैं लेबिकन �ात सुनते ही वह बि�र से ईयर �ोन कानों में अड़ा लेती है।गोल्डी ने मेर े जीवन में रंग भर दिदये है। एक ही �ार में कई कई रंग। उसके संग-साथ में अ� जीवन साथ#क लगने लगा है। उसने ज�रदस्ती मेरा जनम दिदन मनाया। सिस�# हम दोनों की पाट� रखी और मुझे एक खू�सूरत रेडीमेड शट# दी। मेरी याद में मेरा पहला जनमदिदन उपहार। उसके स्नेह से अ� जीवन जीने जैसा लगने लगा है और �ं�ई शहर रहने जैसा। शामें गुज़ारने जैसी और दिदन उसके इंतज़ार करने जैसा। �ेशक हम दोनों ने ही अभी तक मुंह से प्यार जैसा कोई शब्द नहीं कहा है लेबिकन पता नहीं, इतने नज़दीकी सं�ंध जीने के �ाद ये ढाई शब्द कोई मायने भी रखते हैं या नहीं। कुल मिमला कर मेरे जीवन में गोल्डी की मौजूदगी मुझे एक बिवसिशष्ट आदमी �ना रही है।

कमरे पर पहंु'ा ही हूं बिक मेज पर रखा सिल�ा�ा नज़र आया है। गोल्डी का खत है। उससे आज मिमलना ही है। वह बिडनर दे रही है। उसके सिलए मैंने कुछ अच्छी बिकता�ें खरीद रखी हैं। कमरे पर बिकता�ें लेने और 'ेंज करने आया हंू। हैरान हो रहा हंू, ज� मिमल ही रहे हैं तो खत सिलखने की ज़रूरत क्यों पड़ गयी है।सिल�ा�ा खोलता हंू। सिस�# तीन पंसिक्तयां सिलखी हैं -

- दीपआज और अभी ही एक प्रोजेक्ट के सिसलसिसले में हैदरा�ाद जाना पड़ रहा है। पता नहीं क� लौटना हो। तुमसे बि�ना मिमले जाना खरा� लग रहा है, लेबिकन सीधे एयरपोट# ही जा रही हंू।कान्टैक्ट करंूगी।

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सी यू सून..लॉट्स ऑ� लव।गोल्डी।

मैं पत्र हाथ में सिलये धम्म से �ैठ गया हंू। तो ....गोल्डी भी गयी..। एक और सदमा...। कम से कम मिमल कर तो जाती!! �ोन तो कर ही सकती थी। रोज़ ही तो करती थी �ोन। कहीं भी होती थी �ता देती थी और वहां से 'लने से पहले भी �ोन ज़रूर करती थी। आज ही ऐसी कौन सी �ात हो गयी। पता नहीं क्यों लग रहा है, यह सी यू सून शब्द भी धोखा दे गये हैं। ये शब्द अ� हम दोनों को कभी नहीं मिमलायेंगे। मेरी आंखें नम हो आयी हैं। अ'ानक स� कुछ खाली-खाली सा लगने लगा है। स� कुछ इतनी जल्दी बिनपट गया? अपने आप पर हँसी भी आती है - पता नहीं हर �ार ये स� मेरे साथ ही क्यों होता है। अभी खत हाथ में सिलये �ैठा ही हूं बिक दीदी सामने दरवाजे पर नज़र आयी है। मैं तेजी से अपनी गीली आंखें पोंछता हंू। उनके सामने कमज़ोर नहीं पड़ना 'ाहता। मुस्कुराता हंू। आखिखर अपना उदास 'ेहरा उन्हें क्यों दिदखाऊं!! लेबिकन यह क्या !! दीदी की आंखें लाल हैं। सा� लग रहा है, वे रोती रही हैं। मैं 'ुप'ाप खड़ा रह गया हंू। दीदी अ'ानक मेरे पास आती हैं और मेरे कंधे से लग कर सु�कने लगती हैं। मैं समझ गया हूं बिक गोल्डी उन्हें स� कुछ �ता गयी है। मैं संकट में पड़ गया हूं। कहां तो अपने आंसू छुपाना 'ाहता था और कहां दीदी के आंसू पोंछने की ज़रूरत आ पड़ी है। मैं उनके हाथ पर हाथ रखता हंू। उनसे आंखें मिमलती हैं। मैं गोल्डी का खत उन्हें दिदखाता हूं और अपनी सारी पीड़ा भूल कर उन्हें 'ुप कराने की कोसिशश करता हूं - आप �ेकार में ही परेशान हो रही हैं दीदी। मुझे इन सारी �ातों की अ� तो आदत पड़ गयी है। आप कहां तक और क� तक मेरे सिलए आंसू �हाती रहेंगी।ज�रदस्ती हँसती हैं दीदी - पगले मैं तेरे सिलए नहीं, उस पागल लड़की के सिलए रोती हंू।

- क्यों ? उसके सिलए रोने की क्या �ात हो गयी? कम से कम मैं तो उसे आपसे ज्यादा ही जानता था। वह ऐसी तो नहीं ही थी बिक कोई उसके सिलए आंसू �हाये।

- इसीसिलए तो रो रही हंू। एक तर� तेरी तारी� बिकये जा रही थी और दूसरी तर� तेर े सिलए अVसोस भी कर रही थी बिक तुझे इस तरह धोखे में रख कर जा रही है।

- क्या मतल� ? धोखा कैसा ? आखिखर ऐसा क्या हो गया है ?- तुझे उसने सिलखा है बिक वह एक प्रोजेक्ट के सिलए हैदरा�ाद जा रही है और उसने तुझे सी यू

सून सिलखा है....।- इसके �ावज़ूद मैं जानता हंू दीदी वह अ� कभी वाबिपस नहीं आयेगी।- मैं तुझे यही �ताना 'ाहती थी। दरअसल उसने मुझे कई दिदन पहले ही �ता दिदया था बिक वह

हैदरा�ाद जा रही है। बिकसी प्रोजेक्ट के सिलए। आज ही जाते-जाते उसने �ताया बिक दरअसल ट्रांस�र पर शादी के सिलए जा रही है।

- शादी के सिलए ?

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- हां दीप, वह और उसका इमिमबिडयेट �ॉस शादी कर रहे हैं। उसका �ॉस भी इंदौर का है और उससे सीबिनयर �ै' का है। दरअसल वह तुम्हारी इतनी तारी� कर रही थी और साथ ही साथ अ�सोस भी मना रही थी बिक इस तरह से .....।मैंने खुद पर का�ू पा सिलया है। जानता हंू अ� रोने-धोने से कुछ नहीं होने वाला। माहौल को हलका करने के सिलए पूछता हंू

- मैं भी सुनंू, आखिखर वह क्या कर रही थी मेरे �ारे में?- कह रही थी बिक उसने अपनी ज़िज़ंदगी म ें दीपजी जैसा ईमानदार, मेहनती, सैल्�मेड और

शरी� आदमी नहीं देखा। उनकी ज़िज़ंदगी में जो भी लड़की आयेगी, वह दुबिनया की स�से खुशनसी� लड़की होगी।मैं हँसा हंू - तो उसने दुबिनया की स�से खुशनसी� लड़की �नने का 'ांस क्यों खो दिदया?

- अ� मैं क्या �ताऊं। वह खुद इस �ात को लेकर �हुत परेशान थी बिक उसे इस तरह का �ैसला करना पड़ रहा है। दरअसल वह तुम्हें कभी उस रूप में देख ही नहीं पायी बिक .. ....

- तो इसका मतल� दीदी, उन दोनों ने पहले से स� कुछ तय कर रखा होगा?- यह तो उसने नहीं �ताया बिक क्या मामला है लेबिकन तुम्हें इस तरह से छोड़ कर जाने में उसे

�हुत तकली� हो रही थी।- अ� जाने दो, दीदी, मैं उन्ह ें दिदलासा देता हू ं - आपको तो पता ही ह ै मेर े हाथों म ें सिस�#

दुघ#टनाओं की ही लकीरें हैं। इन्हें न तो मैं �दल सकता हूं और न मिमटा ही सकता हंू। गोल्डी पहली और आखिखरी लड़की तो नहीं है।मैं हँसता हू ं - अ� आप अपना सुंदर, गृह काय# म ें दक्ष और योग्य कन्या खोज अणिभयान जारी रख सकती हैं।दीदी आखिखर हँसी हैं - वो तो मैं करंूगी ही लेबिकन गोल्डी को ऐसा नहीं करना 'ाबिहये था। इधर तेरे साथ इतनी आत्मीयता और उधर....मैं जानता हूं बिक दीदी कई दिदनों तक इस �ात को लेकर अ�सोस मनाती रहेंगी बिक गोल्डी मुझे इस तरह से धोखा दे कर 'ली गयी है।

गोल्डी के इस तरह अ'ानक 'ले जाने से मैं खाली-खाली सा महसूस करने लगा हंू। हर �ार मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है बिक मेरे दिदल को हर आदमी खेल का मैदान समझ कर दो 'ार बिकक लगा जाता है। ज� तक अकेला था, अपने आप में खुश था। बिकसी के भरोसे तो नहीं था और न बिकसी का इंतज़ार ही रहता था। गोल्डी ने आ कर पहले मेरी उम्मीदें �ढ़ायीं। यकायक 'ले जा कर मेरे सारे अनुशासन तहस-नहस कर गयी है। पहले सिस�# अकेलापन था, अ� उसमें खालीपन भी जुड़ गया है जो मुझे मार डाल रहा है। समझ में नहीं आता, उसने मेरे साथ जानते-�ूझते हुए ये खिखलवाड़ क्यों बिकया! एक तरह से अच्छा ही हुआ बिक वह मुझसे मिमले बि�ना ही 'ली गयी है।

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घर से धमकी भरे पत्र आने अभी भी �ंद नहीं हुए हैं। आये दिदन या तो कोई मांग 'ली आती है या वे परेशान करने वाली कोई ऐसी �ात सिलख देते हैं बिक न सहते �ने न जवा� देते। मैं तो थक गया हूं। पूरी दुबिनया में कोई भी तो अपना नहीं है जो मेरी �ात सुने, मेर े पक्ष में खड़ा हो और मेरी तकली�ों में साझेदारी करे। गुड्डी �े'ारी इतनी छोटी और भोली है बिक उसे अभी से इन दुबिनयादारी कर �ातों में उलझाना उसके साथ अत्या'ार करने जैसा लगता है। अलका दीदी मेरे सिलए इतना करती हैं और मुझे इतना मानती हैं लेबिकन उनकी अपनी गृहस्थी है। अपनी तकली�ें हैं। उन्हें भी क� तक मैं अपने दुखडे़ सुना-सुना कर परेशान करता रहंू। अ� तो यही दिदल करता है बिक कहीं दूर बिनकल जाऊं। जहां कोई भी न हो। न कहने वाला, न सुनने वाला, न कोई �ात करने वाला ही। न कोई अपना होगा और न कोई मोह ही पालंूगा और न �ार-�ार दिदल टूटेगा।

इतने दिदनों के आत्ममंथन के �ाद मैंने अ� स'मु' �ाहर जाने के �ारे में गंभीरता से सो'ना शुरू कर दिदया है। इसके सिलए अलग अलग 'ैनलों की खोज करनी भी शुरू कर दी है बिक कहां-कहां और कैसे-कैसे जाया जा सकता है। ज� �ोस्टन युबिनवर्सिसंटी में पीए' डी कर रहा था तो कुछेक स्थानीय लोगों के पते वगैरह सिलये थे। दो एक �ैकल्टी मेम्�स# से भी वहीं नौकरी के �ारे में हलकी सी �ात हुई थी। उस वक्त तो सारे प्रस्ताव ठुकरा कर 'ला आया था बिक अपने ही देश की सेवा करंूगा, लेबिकन अ� उन्हीं के पते खोज कर वहां के �ारे में पूछ रहा हूं। अख�ारों में बिवदेशी नौकरिरयों के बिवज्ञापन भी देखने शुरू कर दिदये हैं। हालांबिक देश छोड़ने के �ारे में मैं �ैसला कर ही 'ुका हंू, बिवदेश जाने के सिलए इचु्छक होने के �ावजूद बिवदेशी नौकरी के सिलए थोड़ा बिह'बिक'ा भी रहा हूं क्योंबिक आजकल बिवदेशी नौकरी का झांसा दे कर स� कुछ लूट लेने वालों की �ाढ़-सी आयी हुई है और आये दिदन इस तरह की ख�रों से अख�ार भरे रहते हैं।ऑबि�स में कोई �ता रहा था बिक आजकल बिवदेश जाने का स�से सुरणिक्षत तरीका है बिक वहां रहने वाली बिकसी लड़की से ही शादी कर लो। �ेशक घर जंवाई �नना पड़ सकता है लेबिकन न वीजा का झंझट, न नौकरी का और न ही रहने-खाने का। �ात हालांबिक �हुत कन्विन्वसिसंग नहीं है लेबिकन इस पर बिव'ार तो बिकया ही जा सकता है। हो सकता है इस तरह का कोई प्रोपोजल ही स्थिक्लक कर जाये। यह रास्ता भी मैंने �ंद नहीं रखा है। �ाहर �ेशक नौकरी मिमल ही जायेगी लेबिकन सिस�# नौकरी से इस अकेलेपन की कैद से छुटकारा तो नहीं ही मिमल पायेगा। उसके सिलए नये सिसरे से जद्दोजहद करनी पडे़गी। उसके सिलए यहां आते भी रहना पडे़गा। मैं इसी से �'ना 'ाहता हूं और सो' रहा हूं बिक कोई �ी' का रास्ता मिमल जाये तो �ेहतर। नौकरी के बिवज्ञापनों के साथ-साथ मैंने अ� अख�ारों के इस तरह के मैदिट्रमोबिनयल कॉलमों पर ध्यान देना शुरू कर दिदया है। आजकल इसी तरह के पत्रा'ार में उलझा रहता हंू।

आखिखर मेरी मेहनत रंग लायी है। शादी के सिलए ही एक �हुत अच्छा प्रस्ताव अ'ानक ही सामने आ गया है। अ� मैं इस दुबिनया से का�ी दूर जा पाऊंगा। �ेशक वह मेरी मनमाबि�क दुबिनया नहीं होगी लेबिकन कम से कम ऐसी जगह तो होगी जहां कोई मुझे परेशान नहीं करेगा और सतायेगा नहीं।मुझे �ताया गया है बिक गौरी �ीए पास है और इन कम्पबिनयों में से एक की �ुल टाइम डाइरेक्टर है। यह मेरी मज> पर छोड़ दिदया गया है बिक दामाद �न जाने के �ाद 'ाहे तो इन्हीं में से बिकसी कम्पनी का सव�सवा# �न सकता हूं या बि�र कहीं और अपनी पंसद और योग्यता के अनुसार अलग से काम भी देख

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सकता हंू। ऐसी कोई भी नौकरी तलाशन े म ें मेरी पूरी मदद करन े की पेशकश की गयी है। सारी जानकारी के भेजने के �ी' और उनके यहां आ कर मिमलने के �ी' उन्होंने महीने भर का भी समय नहीं सिलया है। टे्रवल डॉक्यूमेंट्स की तैयारी में जो समय लगेगा वही समय अ� मेरे पास �'ा है। यह समय मेरे सिलए �हुत मुल्किश्कल भरा है। मैंने इस सं�ंध में अ� तक अपने घर में कुछ भी नहीं सिलखा है। सिलखने का मतल� ही नहीं है।घर का तो ये हाल है बिक वे तो हर खत के जरिरये एक नया शगू�ा छेड़ देते हैं। मैं अभी उनकी दी एक परेशानी से मुक्त हुआ नहीं होता बिक वे परेशान करने वाली दूसरी हरकत के साथ बि�र हाजिज़र हो जाते हैं। आजकल वे बि�ल्लू और गोलू की शादी की तारीखें तय करके भेजने में लगे हुए हैं। इन सारे खतों के जवा� में मैं बि�लकुल 'ुप �ना हुआ हूं। उनके बिकसी खत का जवा� ही नहीं देता। मैं वहां नहीं पहंु'ता तो यह तारीख आगे खिखसका दी जाती है।

सारी तैयारिरयां हो 'ुकी हैं। नौकरी से इस्ती�ा दे दिदया है और ऑबि�स को �ता दिदया है - जाने से एक दो दिदन पहले तक काम पर आता रहूंगा। अलका दीदी �हुत उदास हो गयी हैं। आखिखर उनका मुंह�ोला भाई जो जा रहा है। रोती हैं वे - बिकतनी मुल्किश्कल से तो तुम्हारे जैसा हीरा भाई मिमला था, वो भी रूठ कर जा रहा है।मैं समझाता हूं - मैं आपसे रूठ कर थोड़े ही जा रहा हंू। अ� हालात ऐसे �ना दिदये गये हैं मेरे सिलए बिक अ� यहां और रह पाना हो नहीं पायेगा। आप तो देख ही रही हैं मेरे परिरवार को। बिकस तरह सताया जा रहा है मुझे। कोई दिदन भी तो ऐसा नहीं होता ज� उनकी तर� से कोई बिडमांड या परेशान करने वाली �ात न आती हो।

- क्यों अ� क्या नयी बिडमांड आ गयी है?- आप खुद ही देख लो। कल की ही डाक में आयी है ये। यह कहते हुए मैं दारजी की ताजा सि'ट्ठी

उनके आगे कर देता हूं। वे ही तो मेरी हमराज़ हैं यहां पर आजकल। वरना घर वालों ने तो मुझे पागल कर छोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी है।वे पढ़ती हैं ।

- �रखुदारतेरी तर� से हमारी बिपछली तीन-'ार सि'दि·यों का कोई जवा� नहीं आया है। क्या माने हमें इसे - हमारे प्रबित लापरवाही, �ेरूखी या बि�र आलस। तीनों ही �ातें रिरश्तों में खटास पैदा करने वाली हैं। हम यहां रोज़ ही तेरी डाक का इंतजार करते रहते हैं बिक आखिखर तूने कुछ तो तय बिकया होगा। हमारे सारे प्रो}ाम धरे के धरे रह जाते हैं।बि�लहाल ख�र यह है बिक आजकल �सिछत्तर यहां आया हुआ है। वे सारा मकान �े'ना 'ाहते हैं। इसमें वैसे तो पां' बिहस्से �ने हुए हैं जो एक साथ होते हुए भी अलग अलग माने जा सकते हैं। वे लोग मकान एक ही पाट� को �े'ना 'ाहते हैं लेबिकन अगर �ड़ी पाट� न मिमली तो अलग-अलग बिहस्से भी �े' सकते हैं।तुझे तो पता ही है बिक उनकी और हमारी एक दीवार आगे से पीछे तक सांझी है। इस दीवार के साथ साथ उनका एक वरांडा, रसोई, लैट्रीन और आगे-पीछे दो कमरे �ने हुए हैं। ये बिहस्सा जोगी का है। मैंने

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�सिछत्तरे से �ात की है। वह इस �ात के सिलए राजी हो गया है बिक अगर हम उसका यह वाला बिहस्सा ले लेते हैं तो वह दूसरी पार्दिटंयों के साथ इस बिहस्से की �ात ही नहीं 'लायेगा।मकान अभी हाल ही में �नाया गया है और उसमें कभी कोई रहा ही नहीं है। उनके पास जैसे-जैसे पैसा आता गया, वे एक के �ाद एक बिहस्सा �नाते गये थे। हम स� का दिदल है बिक �सिछत्तरे से अगर पूरा मकान नहीं तो कम से कम ये वाला बिहस्सा तेरे सिलए खरीद ही लें। वह हमारा सिलहाज करते हुए इतने �डे़ बिहस्से का सिस�# दो लाख मांग रहा है वरना तुझे तो पता ही है आजकल मकानें की कीमतें आसमान को छू रही हैं। आज नहीं तो कल को तू यहां रहने के सिलए आयेगा ही। त� तक इसी मकान की कीमत पां'-सात गुना �ढ़ 'ुकी होगी। जायदाद �नाने का इससे अच्छा मौका बि�र नहीं मिमलेगा। मकान बि�लकुल तैयार है और अच्छा �ना हुआ भी है। मैं यह मान कर 'ल रहा हूं बिक तुझे यह पेशकश मंज़ूर होगी। तू �ेशक हमारी परवाह न करे हमें तो तेरा ही ख्याल रहता है बिक तेरा घर �ार �न जाये। यही सो' कर मैं आजकल में ही इंतज़ाम करके उसे �याना दे दंूगा। तू वापसी डाक से सिलख, क� तक पूरी रकम का इंतजाम कर पायेगा। तेरे ऑबि�स से मकान के सिलए कजा# तो मिमलता ही होगा।�ाकी हम �ेसब्री से तेर े खत की राह देख रहे हैं। रकम मिमलते ही रजिजस्ट्री करवा देंगे। अगर जो तुझे अपने �ूढे़ �ाप पर भरोसा हो तो ये काम मैं करवा दंूगा वरना तू खुद आ कर ये नेक काम कर जाना। इस �हाने हम स�से मिमल भी लेगा। बिकतना अरसा हो गया है तुझे गये। �े�े तुझे सु�ह शाम याद करती है।जवा� जल्दी देना बिक क� तक रकम आ जायेगी।तेरा हीदारजी

अलका दीदी ने पत्र पढ़ कर लौटा दिदया है और 'ाय �नाने 'ली गयी हैं। मैं जानता हूं वे अपनी आंखों के आंसू मुझसे छुपाने के सिलए ही रसोई में गयी हैं। उन्हें नाम#ल होने में कम से कम एक घंटा लगता है। लेबिकन आश्चय#, वे रसोई से मुस्कुराती हुई वाबिपस आ रही हैं। 'ाय के साथ मट्ठी भी है। आते ही मुझे छेड़ती हैं - 'लो, तेरी एक समस्या तो हल हुई। अ� तो �ना-�नाया घर भी मिमल रहा है। मेरी मान, तू उसी कुड़ी, क्या नाम था उसका, संतोष कौरे से शादी कर ही ले। दोनों काम एक ही साथ ही बिनपटा दे। इस �हाने हम देहरादून भी देख लेंगे।

- दीदी, यहां मेरी जान पर �नी हुई है और आपको मज़ाक सूझ रहा है।- सच्ची कह रही हंू। तेरे दारजी को भी मानना पडे़गा। तेरे सिलए एक के �ाद एक 'ुग्गा तो ऐसे

डालते हैं बिक पूछो मत। कुछ पैसे-वैसे भेजने की ज़रूरत नहीं है। तू आराम से इस सि'ट्ठी को भी हजम कर जा। उनके पास �याने तक के तो पैसे नहीं हैं, सिलखा है, इंतजाम करके �याना दे दंूगा। और दो लाख का मकान खरीद रहे हैं। उनके 'क्करों में पड़ने की ज़रूरत नहीं है।

- आपकी �ातों से मेरी आधी सि'ंता दूर हो गयी है। वैसे तो मैं भी कुछ भेजने वाला नहीं था, अ� आपके कहने के �ाद तो बि�लकुल भी इस 'क्कर में नहीं �ंसूंगा।

यहां से जाने से पहले गुड्डी को आखिखरी पत्र सिलख रहा हंू

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- प्यारी �हना गुड्डी,ज� तक तुझे यह पत्र मिमलेगा मैं यहां से �हुत दूर जा 'ुका होऊंगा। मैंने �हुत सो' समझ कर देश छोड़ कर लंदन जाने का �ैसला बिकया है। �ेशक आखरी उपाय के रूप में ही बिकया है। मेरे सामने और कोई रास्ता नहीं था। वैसे मेरी �हुत इच्छा थी बिक कम से कम तेरी पढ़ाई पूरी होने तक और कहीं ठीक-ठाक जगह तेरी नौकरी का पक्का करके और तेरा अच्छा सा रिरश्ता कराने के �ाद ही मैं यहां से जाता लेबिकन मैं ये दोनों ही काम पूरे बिकये बि�ना भाग रहा हूं। इसे मेरा एक और पलायन समझ लेना लेबिकन मुझसे अ� और �रदाश्त नहीं होता। दारजी की धमकी भरी सि'दिट्ठयां और बि�ल्लू के बिहकारत भरे खत अ� मुझसे और �रदाश्त नहीं होते। ये लोग मुझे क्यों 'ैन से नहीं रहने देते। मैं बिकसी दिदन पागल हो जाऊंगा ये स� पढ़ पढ़ कर। मुझे अभी भी अ�सोस होता है बिक एक �ार घर छोड़ देने के �ाद मैं क्यों वाबिपस लौटा ज�बिक मुझे पता था बिक दारजी जिजस मिमट्टी के �ने हुए हैं उनमें कम से कम इस उम्र में �दलाव की तो कोई उम्मीद ही नहीं की जा सकती। अ�सोस तो यही है बिक बि�ल्लू भी दारजी के नक्शे कदम पर 'ल रहा है। वह भी अभी से वही भाषा �ोलने लगा है। तो हालात अ� इतने बि�गड़ गये है बिक मेरे सिलए और बिनभाना हो नहीं हो पायेगा। ज� से दारजी वगैरह को मेरा पता मिमला है, हर महीने कोई न कोई बिडमांड आ जाती है। अ� तक मैं सत्तर अस्सी हज़ार रुपये भेज 'ुका हूं और तकली� की �ात यही है बिक मेरा छोटा भाई मुझे धमकी दे जाता है बिक मैं उसकी शादी में रोड़े अटका रहा हंू। मेरी तर� से वो एक की जगह 'ार शादिदयां करे। मुझसे जो �न पडे़गा मैं करंूगा भी लेबिकन कम से कम तरीके से तो पेश आये। मैंने तुझे जान�ूझ कर नहीं सिलखा था बिक ज� वह यहां आया था तो बिकस तरह की भाषा में मुझसे क्या-क्या �ातें करके गया था। मुझे सिलखते हुए भी शम# आती है। ज� वह जाते समय स्टेशन पर मुझे इस तरह की �ातें सुना रहा था तो मैंने उससे कहा था - तू कहे तो मैं सिलख के दे देता हू बिक तू मुझसे पहले शादी कर ले लेबिकन �ार गॉड सेक, मुझे ये मत �ता बिक कहां ज्यादा दहेज मिमल रहा है और मैं कहां शादी कर लूं। तू अपनी बि�कर कर। मेरी रहने दे। तो पता है उसने क्या कहा। कहने लगा - ठीक है, आप दारजी को यही �ात सिलख दो। मैंने ये सारी �ातें एक खत में सिलखी थीं लेबिकन वह खत तुझे डालने की बिहम्मत ही नहीं जुटा पाया और वह खत मैंने �ाड़ दिदया दिदया था।तो गुड्डी, अ� म ैं इस इकतर�ा पैस े वाल े प्यार स े थक 'ुका हंू। वैस े स' तो यह ह ै बिक म ैं इस खाना�दोशों वाली ज़िजंदगी से ही थक 'ुका हंू। बिकतने साल हो गये संघष# करते हुए। अकेले लड़ते हुए और हासिसल के नाम पर कुछ भी नहीं। मैं यहां से स� कुछ छोड़-छाड़ कर कहीं दूर बिनकल जाना 'ाहता हंू। मै जिजम्मेवारिरयों से नहीं भागता लेबिकन मुझे भी तो लगे बिक मेरी भी कहीं कदर है। मुझे नहीं पता था बिक मुझे घर लौटने की इतनी �ड़ी कीमत 'ुकानी पडे़गी। शायद मेरे बिहस्से में घर सिलखा ही नहीं है।एक और मोर'े पर भी मुझे करारी हार का सामना कर पड़ा है। उस �ात ने भी मुझे भीतर तक तोड़ दिदया है। मैं तुझे यह ख�र देने ही वाला था बिक एक �हुत ही सुंदर और गुणी लड़की से मेरा परिर'य हुआ है और आगे जा कर शायद कुछ �ात �ने। इस रिरश्ते से मुझे �हुत मानसिसक �ल मिमला था और मैं उम्मीद कर रहा था बिक ये परिर'य मेरी ज़िज़ंदगी में एक खू�सूरत मोड़ ले कर आयेगा, लेबिकन अ�सोस, इस रिरश्ते का महल भी रेत के घर की तरह ढह गया और मैं एक छोटे �च्चे की तरह �ुरी तरह छला गया। मैं हद दरजे तक अकेला और तनहा हूं, पहले भी अकेला था और आज भी हूं। एक तू ही है जिजससे मैं अपने दिदल की �ात कह पाता हूं। इस अकेलेपन और �ार-�ार की ठोकरों के �ाद ही सो' समझ कर मैंने लंदन जाने का �ैसला कर सिलया है। �ैसला सही है या गलत यह तो वक्त ही �तायेगा। यूं समझ ले बिक मैंने खुद को हालात पर छोड़ दिदया है। जो भी पहला मौका सामने आया है, उसके सिलए हां कर दी है।

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लंदन का कोई हांडा परिरवार है। वे लोग बिपछले दिदनों यहां आये हुए थे। वहां उनकी कई कंपबिनयां हैं, �ीस पच्चीस। उनकी लड़की है गौरी। वह भी आयी हुई थी। लड़की ठीक-ठाक लगी। उसी से मेरी शादी तय हुई है। शादी की कोई शत� नहीं हैं। मैं 'ाहूं तो अपना कोई काम काज तलाश सकता हूं या 'ाहूं तो उनकी बिकसी कम्पनी में भी अपनी पसंद का काम देख सकता हूं। स� कुछ मुझ पर छोड़ दिदया गया है। टे्रवल �ाम�सिलटीज पूरी होते ही बिनकल जाऊंगा। गौरी की एक तस्वीर भेज रहा हंू।मैं जानता हूं बिक यह मेरी वादा खिखला�ी है और मैं अपने वादे पूरे बिकये �गैर तुझे इस हालत में छोड़ कर जा रहा हंू। मुझे पता है तेरी लड़ाई �हुत मुल्किश्कल है। ज� मैं ही नहीं लड़ पाया इनसे, बि�र तू तो लड़की है। मैं सो'-सो' कर परेशान हूं बिक तू अपनी लड़ाई अकेले के �ल�ूते पर कैसे लडे़गी। लेबिकन एक �ात याद रखना, हम स� को कभी न कभी, कहीं न कहीं जीवन के इस महाभारत में अपने बिहस्से की लड़ाई लड़नी होती है। यह महाभारत �हुत ही अजी� होता है। इस महाभारत में हर योद्धा को अपनी लड़ाई खुद ही तय करनी और लड़नी पड़ती है। यहां न तो कोई कृष्ण होता है न अजु#न। हमें अपने हसिथयार भी खुद 'ुनने पड़ते हैं और अपनी रणनीबित भी खुद ही तय करनी पड़ती है। कई �ार हार-जीत भी कोई मायने नहीं रखती क्योंबिक यह तो अंतहीन लड़ाई है जो हमें हर रोज सु�ह उठते ही लड़नी होती है। कभी खुद से, कभी सामने वाले से तो कभी अपनों से तो कभी परायों से। तुझे भी आगे से अपनी सारी लड़ाइयां खुद ही लड़नी होंगी। कई �ार ये लड़ाई खुद से भी लड़नी पड़ती है। स�से मुल्किश्कल होती है ये लड़ाई। लेबिकन अगर एक �ार आप अपने भीतर के दुश्मन से जीत गये तो आगे की सारी लड़ाइयां आसान हो जाती हैं। तू समझदार है और न तो खुद के खिखलाV ही कोई अन्याय होने देगी। पहले तुझे अपनी कमजोरिरयों के खिखला�, अपने गलत �ैसलों के खिखला� और अपने खिखला� गलत �ैसलों के खिखला� लड़ना सीखना होगा। तय कर ले बिक न गलत �ैसले खुद लेगी और न बिकसी को गलत �ैसले खुद पर थोपने देगी। तू तो खुद कबिवताए ंसिलखती है और तेरी कबिवताओं में भी तो �ेहतर जीवन की कामना ही होती है। कर सकेगी ना यह काम अपनी �ेहतरी के सिलए। खुद को �'ाये रखने के सिलए?तो गुड्डी, मैं तुझे जीवन के इस कुरूके्षत्र में लड़ने के सिलए अकेला छोड़े जा रहा हंू। मैं अपनी लड़ाई �ी' में ही छोड़े जा रहा हंू। मुझे भी अपनों से लड़ना था और तुझे भी अपनों से ही लड़ना है। मैं तीसरी �ार मैदान छोड़ कर भाग रहा हंू। लड़ना आता है मुझे भी लेबिकन अ� मुझसे नहीं होगा। �स यही समझ लो। मैं खुद को परास्त मान कर मैदान छोड़ रहा हंू। कह लो लड़ने से ही इनकार कर रहा हूं।मेरे पास लगभग तीन लाख रुपये हैं। इसमें से दो ढाई तेरे सिलए छोड़े जा रहा हंू। साइन बिकये हुए पां' कोरे 'ैक साथ में भेज रहा हंू। ज� भी तेरी शादी तय हो या तुझे पढ़ाई के सिलए जरूरत हो, अपने खाते के जरिरये बिनकलवा लेना..। इन पैसों के �ारे में बिकसी को भी न तो �ताने की ज़रूरत है और न इन्हें बिकसी के साथ शेयर करने की। बिकसी भी हालत में नहीं। ये सिस�# तेरा बिहस्सा है..। एक �ेघर-�ार �डे़ भाई की तर� से छोटी �हन को घर की कामना के साथ एक छोटी सी सौगात।अपनी बिकता�ें वगैरह जरूरतमंद स्टूडेंट्स के �ी' �ांट दी हैं। थोडे़ से कपडे़ और दूसरा सामान है, वे भी जरूरतमंद लोगों को दे जाऊंगा। यहां से मैं अपने ज़रूरत भर के कपड़े और तेरा �नाया स्वेटर ही साथ ले कर जाऊंगा। वही तो तेरी याद होगी मेरे पास। नंदू को मेरे �ारे में �ता देना। लंदन पहंु'ते ही नया पता भेज दंूगा। अभी दारजी वगैरह को कुछ भी �ताने की जरूरत नहीं है। मैं खुद ही खत सिलख कर �ता दंूगा...।मन पर बिकसी तरह का �ोझ मत रखना और अपनी पढ़ाई में दिदल लगाना।

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अ�सोस!! अपने वीर की शादी में ना'ने-गाने की की तेरी हसरत पूरी नहीं हो पायेगी। वैसे भी अपनी शादी में मैं लड़के वालों की तर� से अकेला ही तो होऊंगा। तो इस खत में इतना ही.. ..।तेरा वीर,दीप......

सारी तैयारिरयां हो गयी हैं। सामान से भी मुसिक्त पा ली है। तनावों से भी। �ेशक एक दूसरे बिकस्म का, अबिनणिश्चतता का हलका-सा द�ाव है। पता नहीं, आगे वाली दुबिनया कैसी मिमले। जो कुछ पीछे छूट रहा है, अच्छा भी, �ुरा भी, उससे अ� बिकसी भी तरह का मोह महसूस करने का मतल� नहीं है। पूरे होशो-हवास में स� कुछ छोड़ रहा हंू। लेबिकन जो कुछ पाने जा रहा हूं, वह कैसे और बिकतना मिमलेगा, या मिमलेगा भी या नहीं, इसी की हलकी-सी आशंका है। उम्मीद भी और वायदा भी। वैसे तो इतना कुछ सह 'ुका हंू बिक कुछ न मिमले तो भी कोई Vक# नहीं पडे़गा।

आज की आखरी डाक में दारजी का खत है। पत्र खोलने की बिहम्मत नहीं हो रही। बि�र कोई मांग होगी या मुझे बिकसी न बिकसी 'क्कर में �ांसने की उनकी कोई लुभावनी योजना। सो'ता हूं अ� जाते-जाते मैं उनके सिलए क्या कर सकता हंू। पत्र एक तर� रख देता हंू। �ाद में देखंूगा।

सहार एयरपोट# के सिलए बिनकलने से पहले पत्र उठा कर जे� में डाल सिलया था। अलका और देवेन् द्र साथ आये थे। मैं सिसक्युरिरटी एरिरया जा रहा हूं और वे दोनों आंखों में आंसू भरे मुझे बिवदा करके लौट गये हैं। मैंने आज तक बिकसी भी परिरवार से इतना स्नेह नहीं पाया जिजतना इन दोनों ने दिदया है। दोनों सुखी �ने रहें।उनसे वादा करता हूं - उन्हें पत्र सिलखता रहंूगा।जे� में कुछ कड़ा महसूस होता है। देखता हंू - दारजी का ही पत्र है। खोल कर देखता हूं

- �रखुरदार,जीते रहो।एक �ार बि�र तेरे कारण मुझे उस �सिछत्तरे के आगे नी'ा देखना पड़ा। वो तो भला आदमी है इससिलए �याने के पैसे लौटा दिदये हैं वरना.... अ� तेरे हाथों ये भी सिलखा था हमारी बिकस्मत में। अच्छा खासा घर मिमट्टी के मोल मिमल रहा था, तेरे कारण हाथ से बिनकल गया। �ाकी ख�र यह है बिक बि�ल्लू के सिलए एक ठीक-ठाक घर मिमल गया है। उम्मीद तो यही है बिक �ात सिसरे 'ढ़ जायेगी। �ाकी रब्� राखा। सो'ते तो यही हैं बिक कुड़माई और लावां �ेरे एक ही साथ ही कर लें। पता नहीं अ� कैसे बिनभेगा। तेरी �े�े 'ाहती है बिक तू अ� भी आ जाये तो तेरे सिलए भी कोई अच्छी सी कुड़ी वेख कर दोनों भराओं की �ारात एक साथ बिनकालें। अगर तुझे मंजूर हो तो तार से ख�र कर और तुरंत आ। �ाकी अगर तूने क्वांरा ही रहने

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का मन �ना सिलया हो तो कम से कम �ड़े भाई का �रज बिनभाने ही आ जा। हम लड़की वालों को कहने लायक तो हो सकें बिक हमारे घर में कोई �ड़ा अ�सर है और हम बिकसी बिकस्म की कमी नहीं रहने देंगे। �ाकी तू खुद समझदार है.।खत मिमलते ही अपने आने की ख�र देना।�े�े ने आसीस कही है।तुम्हारादारजी।

तो यह है अससिलयत। खत सिलखना तो कोई दारजी से सीखे। उन्होंने रुपये पैसे को लेकर एक भी शब्द नहीं सिलखा है लेबिकन पूरा का पूरा खत ही जैसे आवाजें मार रहा है - तेरे छोटे भाई की शादी है और तू घर की हालत देखते हुए मदद नहीं करेगा तो तुझे �ड़ा कौन कहेगा...।सॉरी दारजी और सॉरी बि�ल्लू जी...अ� वाकई देर हो 'ुकी है। इस समय मैं एयरपोट# की लाउंज में �ैठा आपका पत्र पढ़ रहा हंू। अ� मैं �ैंक, 'ैक या �ाफ्ट की सीमाओं से �ाहर जा 'ुका हंू। रात के �ारह �जे हैं। सारे �ैंक �ंद हो 'ुके हैं। �ैंक खुले भी होते तो भी उसमें रखे सारे पैसे बिकसी और के नाम हो 'ुके हैं। वैसे दारजी, आपने दहेज के लेनदेन की �ात तो पक्की कर ही रखी होगी। मैं मदद न भी करंू तो 'लेगा। वैसे भी सिस�# एक घंटे �ाद मेरी फ्लाइट है और मैं 'ाह कर भी न तो अपने छोटे भाई की शादी में शामिमल हो पाऊंगा और न ही तुम लोगों को ही इसी महीने लंदन में होने वाली अपनी शादी में �ुलवा पाऊंगा।

�लाइट का समय हो 'ुका है। सिसक्योरिरटी 'ैक हो 'ुका है और �ोर्डिंडंग काड# हाथ में सिलए मैं लाउंज में �ैठा हूं।तो !! अलबिवदा मेरे प्यारे देश भारत। तुमने �हुत कुछ दिदया मुझे मेरे प्यारे देश! �स, एक घर ही नहीं दिदया। घर नाम के दो शब्दों के सिलए मुझे बिकतना रुलाया है.. क्या क्या नहीं दिदखाया है मुझे..। हर �ार मेरे सिलए ही घर छलावा क्यों �ना रहा। मैं एक जगह से दूसरी जगह भटकता रहा। खोजता रहा कहां है मेरा घर!! जो मिमला, वह घर क्यों नही रहा मेरे सिलए !! आखिखर मैं गलत कहां था और मेरा बिहस्सा मुझे क्यों नहीं मिमला अ� तक। अ� जा रहा हूं दूसरे देश में। शायद वहां एक घर मिमले मुझे!! मेरी राह देखता घर। मेरी 'ाहत का घर। मेरे सपनों का एक सीधा सादा सा घर। 'ार दीवारों के भीतर घर जहां मैं शाम को लौट सकंू। घर जो मेरा हो, हमारा हो। कोई हो उस घर में जो मेरी राह देखे। मेर े सुख-दुख की भागीदार �ने और अपनेपन का अहसास कराये। जहां लौटना मुझे अच्छा लगे न बिक मज�ूरी।सॉरी गुड्डी, तुम्हें दिदये व'न पूरे नहीं कर पाया। तुममें बिहम्मत जगा कर मैं ही कमज़ोर बिनकल गया। अ� अपना ख्याल तुम्हें खुद ही रखना है। �े�े मैं तुम्हें कभी सुख नहीं दे सका। हमेशा दुख ही तो दिदया है। �ाकी तेरे नसी� �े�े। देख ना तेरे दो-दो लड़कों की शादिदयां हो रही हैं लेबिकन �ड़ा लड़का छोटे की शादी में नहीं होगा और �डे़ की शादी में तो खैर, तुम्हें �ुलाया ही नहीं जा रहा है।मेरी आंखों से आंसू �ह रहे हैं। मैंने ऐसा घर तो नहीं 'ाहा था �े�े..।मैं घड़ी देखता हंू। जहाज में 'ढ़ने की घोषणा हो 'ुकी है।

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तभी अ'ानक सामने �ने एसटीडी �ूथ की तर� मेरी बिनगाह पड़ती है। सो'ता हंू, जाते जाते �ड़े भाई का तथाकसिथत �ज# भी अदा कर कर दिदया जाये। मैं तेजी एसटीडी �ूथ की तर� �ढ़ता हंू। नंदू का नम्�र मिमलाता हूं।घंटी जा रही है। आधी रात को आदमी को उठने में इतनी देर तो लगती ही है।लाइन पर नंदू ही है।

- नंदू सुन, मैं दीपू �ोल रहा हंू।- �ोलो भाई, इस वक्त!! खैरिरयत तो है। वह पूरी तरह जाग गया है।- तू मेरी �ात सुन पूरी। मेरे पास वक्त कम है, मैं �स पां'-सात मिमनट में ही लंदन 'ला जाऊंगा।

गुड्डी तुझे पूरी �ात �ता देगी। आज ही दारजी की सि'ट्ठी आयी है, बि�ल्लू की शादी कर रहे हैं वे। मैं यहां सारे खाते �ंद कर 'ुका हूं और मेरे पास पैसे तो हैं लेबिकन समय नहीं है।... मैंने गुड्डी के पास कुछ कोरे 'ैक भेजे हैं। ये पैसे मैंने गुड्डी की पढ़ाई और शादी के सिलए अलग रखे थे। वो ये 'ैक तेरे पास रखवाने आयेगी। तू इसमें से एक 'ैक पर प'ास हज़ार की रकम सिलख कर पैसे बिनकलवा लेना और दारजी को देना। करेगा ना मेरा ये काम..? उसके सिलए �ाद में और भेज दंूगा।

- तू बि�कर मत कर। तेरा काम हो जायेगा। अगर गुड्डी 'ैक नहीं भी लायेगी तो भी दारजी तक रकम पहुं' जायेगी। और कोई काम �ोल..?

- �स, रखता हंू �ोन। फ्लाइट के सिलए टाइम हो 'ुका है।- ओ के गुड लक, वीरा, अपना ख्याल रखना।- ओ के नंदू। खत सिलखूंगा।

मैं �ोन रखता हूं और जहाज की तर� लपकता हूं।

तो...मैं .. आखिखर देस छोड़ कर परदेस में आ ही पहुं'ा हंू। क� 'ाहा था मैंने - मुझे इस तरह से और इन वज़हों से घर और अपना देस छोड़ना पडे़। घर तो मेरा कभी रहा ही नहीं। दो-दो �ार घर छूटा। गोल्डी ज़िज़ंदगी में ताजा �ुहार की तरह आकर जो तन-मन णिभगो गयी थी उससे भी लगने लगा था, ज़िज़ंदगी में अ� सुख के पल �स आने ही वाले हैं, लेबिकन वह स� भी छलावा ही साबि�त हुआ। अ� मेरे सामने एक नया देश है, नये लोग और एकदम नया वातावरण है। एक नयी तरह की ज़िज़ंदगी की शुरूआत एक तरह से हो ही 'ुकी है। ज़िजंदगी को नये अथ# मिमल रहे हैं। इतने �रस तक उपेणिक्षत और अकेले रहने के �ाद सारा संसार भरा पूरा और अपनेपन से सरा�ोर लग रहा है। शादी के पहले दिदन से लगातार दावतों का सिसलसिसला 'ल रहा है। गौरी �हुत खुश है। जैसे-जैस े हम दोनों एक दूसर े के नज़दीक आ रहे हैं, एक दूसरे के साथ ज्यादा वक्त गुजार रहे हैं, हमें एक दूसरे को अच्छी तरह से समझने का मौका मिमल रहा है। वह मेरे डरावने अतीत के �ारे में कुछ भी नहीं जानती। उसे जानना भी नहीं 'ाबिहये। मैंने उसे अपने घर-परिरवार के �ारे में �हुत कम �ातें ही �तायी हैं। सिस�# गुड्डी के �ारे में �ताया है बिक वह बिकस तरह से पढ़ना 'ाहती है और कबिवताए ंसिलखती है। मैंने गौरी को ज� गुड्डी का �नाया स्वेटर दिदखाया तो उसने तुरंत ही वह स्वेटर मुझसे हसिथया सिलया और इठलाती हुई �ोली थी -

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हाय, बिकतना सॉफ्ट और शानदार �नाया है स्वेटर। अ� ये मेरा हो गया। तुम उसे मेरी तर� से सिलख देना बिक तृम्हें एक और �ना कर भेज देगी। ज� लैटर सिलखो तो मेरी तर� से खू� थैंक्स सिलख देना और मेरी तर� से ये बिगफ्ट भी भेज देना। और उसने अपनी अलमारी से गुड्डी के सिलए एक शानदार बिगफ्ट बिनकाल कर दे दिदया था।मुझे गुड्डी पर गव# हो आया था बिक उसकी �नायी 'ीज़ बिकस तरह से गौरी ने प्यार से अपने सिलए रख ली है।गुड्डी के अलावा गौरी और बिकसी के नाम वगैरह भी नहीं जानती। वैसे मैंने उसके 'ा'ा और कजिजन को भी तो सिस�# यही �ताया था बिक मैं �ं�ई में अकेला ही रहता हूं और ज� उन्होंने मेरे मां-�ाप से मिमलने की इच्छा जाबिहर की थी तो मैंने उन्हें यही �ताया था बिक अपनी ज़िज़ंदगी के सारे �ैसले मुझे खुद ही करने हैं। मैंने न उन्हें अपने संघष� के �ारे में �ताया था न गौरी को ही अपने संघष� की हवा लगने दी थी।गौरी को दुबिनयादारी की �ातों से कोई लेना-देना नहीं है। आजकल तो वैसे भी उसकी जिज़दंगी के �स दो-'ार ही मकसद रह गये हैं। खू� खाना, सोना और भरपूर सैक्स। इनके अलावा उसे न कुछ सूझता है और न ही वह कुछ सो'ना ही 'ाहती है। वह भीतर-�ाहर की सारी प्यास एक साथ ही �ुझा लेना 'ाहती है। ज़रा-सा भी मौका मिमलते ही वह �ेडरूम के दरवाजे �ंद कर लेने की बि�राक में रहती है। कई �ार मुझे खरा� भी लगता है, लेबिकन वैसे भी हमारे पास करने-धरने को कुछ भी काम नहीं है। दावतें खाना और सैक्स भोगना। वैसे मेरे साथ दूसरा ही संकट है। ज़िज़ंदगी में कभी भी बिकसी के भी साथ इतना वक्त एक साथ नहीं गुज़ारा। अकेलेपन के इतने लम्�े-लम्�े दौर गुज़ारे हैं बिक अ� कई �ार लगातार गौरी के साथ-साथ रहने से मन घ�राने भी लगता है। आजकल तो यह हालत हो गयी है बिक हम �ाथरूम जाने के अलावा दिदन-रात लगातार साथ-साथ ही रहते हैं।लगता है, सोने के मामले में हम दोनों को ही अपनी आदतें �दलनी होंगी या उसे �ता देना पडे़गा बिक हम �ेशक एक साथ सोयें, लेबिकन गले सिलपटे-सिलपटे सोने से मेरा दम घुटता है। हालांबिक हनीमून पर हम अगले ह�ते ही जा पायेंगे लेबिकन इस �ी' हमें जिजतने दिदन भी मिमले हैं, हम दोनों ही जी भी कर एजंाय कर रहे हैं। हनीमून के सिलए �'ा ही क्या है?

इतने दिदनों से गुड्डी को भी पत्र सिलखना �ाकी है। वैसे आज मेरे पास थोड़ा वक्त है। गौरी अपनी शापिपंग के सिलए गयी हुई है। गुड्डी को पत्र ही सिलख सिलया जाये।प्यारी �हना, गुड्डीतो मैं आखिखर लंदन पहुं' ही गया। बिपछली �ीस तारीख को ज� मैं यहां हीथ्रो हवाई अड्डे पर उतरा तो हांडा परिरवार के कई लोग मुझे लेने आये हुए थे। इनमें से मैं सिस�# दो ही लोगों को पह'ानता था। एक गौरी के 'ा'ा 'मन हांडा को और दूसरे गौरी के कजिजन राजकुमार हांडा को। ये लोग ही मुझे �ं�ई में मिमले थे और इनसे ही सारी �ातें हुई थीं। मुझे एयरपोट# से सीधे ही हांडा कंपनीज के गेस्ट हाउस में ले जाया गया। वहीं मुझे ठहराया गया था।

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शाम को गौरी मिमलने आयी थी। थोड़ी देर हाल 'ाल पूछे, कॉ�ी पी और 'ली गयी। जाते-जाते अपना �ोन नम्�र दे गयी थी, कहा उसने - �ोन करंूगी और आपको ज़रूरत पड़े तो आप भी �ोन कर लें। मेरे सिलए वे लोग शो�र बि�वेन गाड़ी छोड़ गये थे। खैर, दो-'ार दिदन मेरी खू� सेवा हुई। स�से मिमलवाया गया। हांडा परिरवार के मुखिखया से भी मिमलवाया गया। वे गौरी के ताऊ जी हैं। स�से पहले वे ही प'ासों साल पहले यहां आये थे और धीरे-धीरे अपनी जायदाद खड़ी की। इन प'ास सालों में कम से कम नहीं तो अपने कम से कम सौ आदमी तो लंदन ले ही आये होंगे। अपने आप में �ेहद दिदल'स्प आदमी हैं। गौरी ने अपने पापा से भी मिमलवाया और मम्मी से भी। यहां इंबिडयन अमीरों की एक �स्ती है - कारपैंडस# पाक# । वहीं मेरी ससुराल की भव्य इमारत है। वैसे स�के अलग अलग अपाट#मेंट्स हैं। तो ....मेरी भी शादी हो गयी। हमारी शादी.. मेरी और गौरी की..। बि�ल्लू की शादी के आगे-पीछे। अ� बि�ल्लू को यह सिशकायत नहीं रही होगी बिक मैंने उसके रास्ते में रोड़े अटका रखे हैं। हमारी शादी दो तरह से हुई। पहले कोट# में, रजिजस्ट्रार ऑ� मैरिरजेस के ऑबि�स में और �ाद में पूरी बि�रादरी के सामने आय# समाजी तरीके से। अपनी शादी म ें लड़के वालों की तर� से म ैं अकेला ही घा। म ैं ही दूल्हा, मैं ही �ाराती, स�ाला और मैं ही �ैंड मास्टर। हँसी आ रही थी मुझे अपनी सिसंगल मैन �ारात देख कर। मुझे ससुर साह� ने नयी लैक्सस कार की 'ा�ी दी और गौरी को �र्गिनंश्ड अपाट#मेंट की 'ा�ी। ये कार यहां की का�ी शानदार कार मानी जाती है। ज� मैंने उनसे कहा बिक मुझे कार 'लानी तो आती ही नहीं है तो उन्होंने गौरी का हाथ मेरे हाथ में थमा दिदया और �ोले - ऐ लो जी शो�र भी लो। टम्स# खुद तय कर लेना। हनीमून के सिलए हमें अगले हफ्ते पैरिरस जाना है लेबिकन मेरे इंबिडयन टूरिरस्ट पासपोट# पर वीसा मिमलने में थोड़ी दिदक्कत आ रही है। उम्मीद तो यही है बिक जा पायेंगे। अगर नहीं भी जा पाये तो भी परवाह नहीं। यहीं इतना घूमना-बि�रना और मौज मस्ती हो रहे हैं बिक हम दोनों ही लगातार सातवें आसमान रह रहे है। ख्�ा दावतें खा रहे हैं।एक नयी ज़िज़ंदगी की शुरूआत हुई है।गौरी �हुत खुश है इस शादी से और मुझसे एक पल के सिलए अलग नहीं होना 'ाहती। अकसर तेरे �ारे में पूछती रहती है। शादी के और लंदन के कुछ �ोटो भेज रहे हैं। तेर े सिलए शादी का एक छोटा सा तोह�ा मेरी तर� से और एक गौरी की तर� से। तेरा �नाया स्वेटर गौरी ने मुझसे छीन सिलया था और तुरंत ही पहन भी सिलया था। अ� तुझे मेरे सिलए एक और खरगोशनुमा स्वेटर �नाना पडे़गा। �ना कर भेजेगी ना....।अपना ख्याल रखना..दारजी और �े�े को मेरी सत श्री अकाल और गोलू और बि�ल्लू को प्यार। मेरी छोटी भाभी के सिलए भी एक तोह�ा मेरी तर� से। �े�े की त�ीयत नयी �हू के आने से संभल गयी होगी।पता दे रहा हूं। अपने समा'ार देना।तेरा वीरदीप

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अलका दीदी और नंदू को भी इसी तरह के पत्र सिलखता हंू। शादी के कुछ �ोटो और लंदन के कुछ बिपक्'र पोस्ट काड# भी भेजता हंू। दीदी को पत्र सिलखते समय पता नहीं क्यों �ार-�ार गोल्डी का ख्याल आ रहा है। अच्छी लड़की थी। अगर मुझसे कहती - मैं शादी करने जा रही हंू। ज़रा मेरी शापिपंग करा दो, शादी का जोड़ा दिदलवा दो तो मैं मना थोड़े ही करता। हमेशा की तरह उसकी शॉपिपंग कराता। एक पत्र अपने पुराने ऑबि�स को भी सिलखता हंू ताबिक वे मेरे �काया पैसों का बिहसा� बिकता� कर दें।

गौरी मेरे सिलए के्रबिडट काड# का �ाम# लायी है। मैंने मना कर दिदया है - मुझे क्या करना के्रबिडट काड#! - क्यों पैरिरस जायेंगे तो ज़रूरत पडे़गी। वैसे भी यहां लंदन में कोई भी बिकसी भी काम के सिलए

कैश ले कर नहीं 'लता। दिदन में दस तरह के पेमेंट करने पड़ते हैं।- देखो गौरी, मैं क्या करंूगा ये काड# लेकर। न मुझे कोई शॉपिपंग करनी है, न कोई पेमेंट ही करने

होंगे। तुम हो न मेरे साथ। तुम्हीं करती रहना स� पेमेंट।- समझा करो दीप, तुम्हें सिस�# ख'# करना है। तुम्हें के्रबिडट काड# का पेमेंट करने के सिलए कौन

कह रहा है। - बि�लहाल रहने दो, �ाद में देखेंगे।- जैसी तुम्हारी मज>।

हनीमून �दिढ़या रहा। शानदार रहना और शानदार घूमना बि�रना। स� कुछ भव्य तरीके से। सारी व्यवस्थाए ंपहले स े ही कर ली गयी थीं। 'लते समय ससुर साह� न े मुझ े एक भारी सा सिल�ा�ा पकड़ाया था।ज� मैंने पूछा बिक क्या है इसमें तो वे हँसे थे - भई, आप अपना तो कर लेंगे, लेबिकन शो�र के सिलए तो खर'ा पानी 'ाबिहये ही होगा ना.. थोड़ी �हुत करेंसी है। गौरी �ता रही थी बिक आपने के्रबिडट काड# के सिलए मना कर दिदया है। यहां उसके बि�ना 'लता नहीं है, वैसे आपकी मज>। वह सिल�ा�ा मैंने उनके सामने ही गौरी को थमा दिदया था - हमारी तो पैकेज डील है। जिजतना ख'# हो वो करे और �ाकी जो �'े वो दिटप।गौरी खिखलखिखलायी थी - पापा, आपने तो कमाल का दामाद ढंूढा है। यहां तो इतनी दिटप मिमल जाया करेगी बिक कुछ और करने की ज़रूरत ही नहीं पडे़गी।मैं हँस दिदया हूं - हमारे साथ रहोगी तो यंू ही ऐश करोगी।

पैरिरस अच्छा लगा। हम दोनों ही तो सातवें आसमान पर थे। गौरी ने खू� शॉंपिपंग की। अपने सिलए भी और मेरे सिलए भी। वैसे भी पैसे तो उसके पास ही रखे थे। मैं 'ाहता भी तो कुछ नहीं खरीद सकता था। इंबिडया से जो थोड़ी �हुत रकम लाया था, उससे तो गौरी की एक दिदन की शॉपिपंग भी नहीं हो पाती। इससिलए मैं अपनी गांठ ढीली करने की हालत में नहीं था। अल�त्ता गौरी के सिलए एकाध 'ीज़ ज़रूर खरीद ली ताबिक उसे यह भी न लगे बिक कैसे कंगले के साथ आयी है।

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हम नये घर में सारी 'ीजें व्यवस्थिस्थत कर रहे हैं। गौरी यह देख कर दंग है बिक मैं न केवल रसोई की हर तरह की व्यवस्था संभाल सकता हंू �ल्किल्क घर भर के सभी काम कर सकता हंू। कर भी रहा हूं। पूछ रही है - आपने ये स� जनाबिनयों वाले काम क� सीखे होंगे। आपकी पढ़ाई को देख कर लगता तो नहीं बिक इन स�के सिलए समय मिमल पाता होगा।

- सिस�# जनाबिनयों वाले काम ही नहीं, मैं तो हर तरह के काम जानता हंू। देख तो रही ही हो, कर ही रहा हंू। कोई भी काम सीखने की इच्छा हो तो एक ही �ार में सीखा जा सकता है। उसे �ार-�ार सीखने की ज़रूरत नहीं होती। �स, शौक रहा, और सारी 'ीजें अपने आप आ गयीं।

- थैंक्स दीप, अच्छा लगा ये जान कर बिक आप 'ीजों के �ारे में इतने खुलेपन से सो'ते हैं। मेरे सिलए तो और भी अच्छा है। मैं तो मैंपिडंग और रिरपेयरिरैंग के 'क्कर में पड़ने के �जाये 'ीजें �ें क देना आसान समझती हंू। अ� आप घर-भर की बि�गड़ी 'ीजें ठीक करते रहना।

कुल मिमला कर अच्छा लग रहा है घर सजाना। अपना घर सजाना। �ेशक यहां का सारा सामान अलग-अलग हांडा कम्पनीज़ या स्टोस# से ही आया है, लेबिकन अ� से है तो हमारा ही और इन सारी 'ीजों को एक तरती� देने में भी हम दोनों को सुख मिमल रहा है। वैसे का�ी 'ीजें इस �ी' हमने खरीदी भी हैं।हम दोनों में �ी'-�ी' में �हस हो जाती है बिक कौन सी 'ीज़ कहां रखी जाये। आखिखर एक दूसरे की सलाह मानते हुए और सलाहें देते हुए घर सैट हो ही गया है।इतने दिदनों से आराम की ज़िज़ंदगी गुज़ारते हुए, त�रीह करते हुए मुझे भी लग रहा है बिक मेरे सारे दुख दसिलद्दर अ� खत्म हो गये हैं। अ� मुझे मेरा घर मिमल गया है।

ससुर साह� की तर� से �ुलावा आया है। वैसे तो हर दूसरे तीसरे दिदन वहां जाना हो ही जाता है या �ोन पर ही �ात हो जाती है लेबिकन हर �ार गौरी साथ होती है। इस �ार मुझे अकेले ही �ुलाया गया है। पता नहीं क्या �ात हो गयी हो। शायद मेरे भबिवष्य के �ारे में ही कोई �ात कहना 'ाहते हों। वैसे भी अ� मज़ा और आराम का�ी हो सिलये। कुछ काम धाम का सिसलसिसला भी शुरू होना 'ाबिहये। आखिखर क� तक घर जंवाई �न कर ससुराल की रोदिटयां तोड़ता रहंूगा।वहां पहंु'ा हूं तो मेरे ससुर और उनके �ड़े भाई हांडा }ुप के मुखिखया, दोनों भाई ही �ैठे हुए हैं। मैं �ारी �ारी से दोनों को आदर पूव#क झुक कर प्रणाम करता हंू। यहां लंदन में भी इस परिरवार ने कई भारतीय परम्पराए ं�नाये रखी हैं। यहां छोटे-�ड़े सभी �ुजुग� के पैर छू कर ही अणिभवादन करते हैं। कोई भी ऊं'ी आवाज में �ात नहीं करता। एक �ात और भी देखी है मैंने यहां पर बिक हांड़ा }ुप के मुखिखया हों या और कोई �ुजुग#, बिकसी की भी �ात काटी नहीं जाती। वे जो कुछ भी कहते हैं, वही आदेश होता है। ना नुकुर की गुंजाइश नहीं होती। एक दिदन गौरी ने �ताया था बिक �ेशक पापा या ताऊजी बिकसी के भी काम में दखल नहीं देते और न ही रोज़ रोज़ स�से मिमलते ही हैं लेबिकन बि�र भी इतने �ड़े एम्पायर में कहां क्या हो रहा है उन्हें स�की ख�रें मिमलती रहती हैं।

- घूमना बि�रना कैसा रह़ा!- �हुत अच्छा लगा। का�ी घूमे।- कैसा लग रहा है हमारे परिरवार के साथ जुड़ना?

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- दरअसल मैं यहां पहंु'ने तक कुछ भी बिवजुअलाइज़ नहीं कर पा रहा था बिक यहा ं आ कर ज़िज़ंदगी कैसी होगी। एकदम नया देश, नये लोग और बि�लकुल अपरिरसि'त परिरवार म ें रिरश्ता जुड़ना, लेबिकन यहां आ कर मेरे सारे डर बि�लकुल दूर हो गये हैं। �हुत अच्छा लग रहा है।

- और आपकी शो�र के क्या हाल हैं, ससुर साह� ने छेड़ा है - उससे कोई टम्स# तय की हैं या �े'ारी मुफ्त में ही तुम्हारी गाड़ी 'ला रही है।

- गौरी �हुत अच्छी है लेबिकन अ� काम धंधे का कुछ सिसलसिसला �ैठे तो टम्स# भी तय कर ही लेंगे।

- हमने इसी सिलए �ुलाया है आपको। वैसे आपने खुद काम काज के �ारे में क्या सो'ा है? वे खुद ही मुदे्द की �ात पर आ गये हैं।

- जैसा आप कहें। मैं खुद भी सो' रहा था बिक आपसे कहूं बिक घूमना बि�रना �हुत हो गया है और पार्दिटंयां भी �हुत खा लीं। आपकी इजाज़त हो तो मैं बिकसी अपनी पसंद के बिकसी काम. .. .. मैंने जान�ूझ कर �ात अधूरी छोड़ दी है।

- देखो �ेटे, हम भी यही 'ाहते हैं बिक तुम अपनी सिलयाकत, एक्सपीरिरयंस और पसंद के बिहसा� से काम करो। हम तुम्हारी पूरी मदद करेंगे। लेबिकन दो एक �ातें हैं जो हम क्लीयर कर लें।

- जी.. ..- पहली �ात तो यह बिक अभी तुम टूरिरस्ट वीसा पर आये हो। यहां काम करने के सिलए तुम्हें वक#

परमिमट की ज़रूरत पडे़गी जो बिक तुम्हें टूरिरस्ट वीसा पर मिमलेगा नहीं।- आप ठीक कह रहे हैं। मैंने इस �ारे में तो सो'ा ही नहीं था।

मैंने स'मु' इस �ारे में नहीं सो'ा था बिक मुझे अपनी पसंद का काम 'ुनने में इस तरह की तकली� भी आ सकती है।

- लेबिकन पुत्तर जी हमें तो सारी �ातों का ख्याल रखना पड़ता है ना जी..।- आप सही कह रहे हैं। लेबिकन बि�र मेरा ....- उसकी बि�कर आप मत करो। इसी सिलए आपको �ुलाया था बिक पहले आपकी राय ले लें,

तभी �ैसला करें।- जी हुक्म कीजिजये...मेरी सांस तेज़ हो गयी है।- ऐसा ह ै बिक इस समय लंदन म ें हांडा }ुप की कोई तीस-'ालीस �म� हैं। पैट्रोल पम्प हैं।

बिडपाट#मेंटल स्टोस# हैं और भी तरह तरह के काम काज हैं।- जी.. गौरी ने �ताया था और कुछ जगह तो वो मुझे ले कर भी गयी थी।- हां, ये तो �हुत अच्छा बिकया गौरी ने बिक तुम्हें स� जगह घुमा बि�रा दिदया है। तुम्ह ें अपनी

�लोरिरस्ट शाप में भी ले गयी थी या नहीं?- इस �ारे में तो उसने कोई �ात ही नहीं की है।

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- यही तो उसकी खासिसयत है। वैसे तुम्हें �ता दें बिक हैरो ऑन द बिहल पर उसकी फ्लोरिरस्ट शॉप लंदन की बिगनी 'ुनी शॉप्स में से एक है। पैलेस और �ाउपिनंग स्ट्रीट के सिलए जाने वाले �ुके वगैरह उसी के स्टाल से जाते हैं।

- लेबिकन इतने दिदनों में तो उसने एक �ार भी नहीं �ताया बिक वह कोई काम भी करती है।- कमाल है, उसने तुम्हें हवा भी नहीं लगने दी। आजकल उसका काम उसकी ही एक कजिज़न

नेहा देख रही है। दो एक दिदन में गौरी भी काम पर जाना शुरू कर देगी। हां तो, हमने सो'ा है बिक अपना स�से �ड़ा और स�से रेपुटेड बिडपाट#मेंटल स्टोस# - द बि�ज़ी कॉन#र नाम की शाप तुम्हारे नाम कर दें। ये स्टोस# वेम्ब्ले हाइ स्ट्रीट पर है। गौरी ले जायेगी तुम्हें वहां। तुम्हें पसंद आयेगा। का�ी नाम और काम है उसका। वैसे हम उसे नयी इमेज देना 'ाह रहे हैं। काम �हुत है उसका और नाम भी है लेबिकन जरा पुराने स्टाइल का है। हम 'ाहते हैं बिक तुम उसे अपने मैनेजमेंट में ले लो और जैसे 'ाहे संभालो। क्या ख्याल है?

- जैसा आपका आदेश. . ..। मैंने कह तो दिदया है लेबिकन मैं तय नहीं कर पा रहा हूं बिक अपनी इन बिडबि}यों और काम काज के अनुभव के साथ मैं बिडपाट#मेंटल स्टोस# में भला क्या कर पाऊंगा। लेबिकन इन लोगों के सामने मना करने की गुजांइश नहीं है। गौरी ने पहले ही इशारा कर दिदया था - बिकसी भी तरह की �हस में मत उलझना। जो कुछ कहना सुनना है, वो खुद �ाद में देख लेगी।

- वैसे हमारे और भी कई प्लांस हैं। हम कुछ नये एरिरयाज़ में डाइवस>�ाई करने के �ारे में सो' रहे हैं, वैसे तुम्हें कभी भी बिकसी बिकस्म की तकली� नहीं होगी।

- जानता हंू जी, आप लोगों के होते हुए....।- वैसे सारी 'ीजें आपको धीरे धीरे पता 'ल ही जायेंगी। आप हमारे परिरवार के नये मैम्�र हैं।

खू� पढ़े सिलखे और ब्राइट आदमी हैं। हम ें यकीन ह ै आप खू� तरक्की करेंग े और आपका हमारे खानदान से जुड़ना हमें और आपको, दोनों को रास आयेगा। यू आर एन एसेट टू हांडा एम्पायर। गॉड ब्लैस यू। हमारे इस प्रोपोजल के �ारे में क्या ख्याल है ?

- जी दुरुस्त है। मैं कल से ही वहां जाना शुरू कर दंूगा। मैं 'ाहूं तो भी अ� बिवरोध नहीं कर सकता। टूरिरस्ट वीसा पर आने पर और घर जवांई �नने की कुछ तो कीमत अदा करनी ही पडे़गी।

- कोई जल्दी नहीं है। वहां और लोग तो हैं ही सही। ज� जी 'ाहे जाओ, आओ, और आराम से सारी 'ीजों को समझो, जो मरजी आये 'ेंज करो वहां और उसे अपनी पस#नैसिलटी की मुहर लगा दो। ओके !!

- जी थैंक्स। गुड नाइट। और मैं दोनों को एक �ार बि�र पैरी पौना करके �ाहर आ गया हूं।

घर आते ही गौरी ने घेर सिलया है - क्या क्या �ात हुई और क्या दिदया गया है आपको।मैं बिनढाल पड़ गया हंू। समझ में नहीं आ रहा, कैसे �ताऊं बिक अ� आगे से मेरी ज़िज़ंदगी क्या होने जा रही है। इंबिडया म ें �ंडामेंटल रिरस'# के स�स े �ड़ े सेंटर टीआइए�आर का सीबिनयर सांइदिटस्ट डॉ. गगनदीप �ेंस अ� लंदन में अपनी ससुराल के बिडपाट#मेंटल स्टोस# में अंडरबिवयर और ब्रा �े'ने का काम करेगा। कहां तो सो' रहा था, यहां रिरस'# के �ेहतर मौके मिमलेंगे और कहां .. .। मुझे वक# परमिमट का ज़रा सा भी ख्याल होता तो शायद ये प्रोपोजल मानता ही नहीं।

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मेरा खरा� मूड देख कर, गौरी डर गयी है। �ार �ार मेरा 'ेहरा अपने हाथों में लेकर मेरे हाथ पकड़ कर पूछ रही है - आखिखर इतने टेंस क्यों हो। तुम्हें मेरी कसम। स' �ताओ, क्या �ात हुई।मैं उसकी आंखों में झांकता हूं - वहां मुझे स्नेह का एक हरहराता समंदर ठांठें मारता दिदखायी दे रहा है - वह मेरे माथे पर एक गहरा 'ंु�न अंबिकत करती है और एक �ार बि�र कहती है - खुद को अकेला मत समझो, डीयर। �ताओ, बिकस �ात से इतने बिडस्ट�# हो!!मैं उसे �ताता हूं। अपने सपनों की �ात और अपने कैरिरयर की �ात और इन सारी 'ीजों के सामने उसके पापा के प्रोपोजल।पूछता हंू उसी से - क्या मुझे यही स� करना होगा, मैं तो सो' कर आया था बिक .. ..।वह हँसने लगी है। यहां मेरी जान पर �नी हुई है और ये पागलों की तरह रही है - रिरलैक्स डीयर, ज� घर में ही इतने सारे शानदार काम हैं तो �ाहर बिकसी और की गुलामी करने की क्या जरूरत। वैसे भी वक# परमिमट के बि�ना तो आप घरों के �ाहर अख�ार डालने का काम भी पता नहीं कर पायेंगे या नहीं। आप हांडा }ुप के �ैमिमली मैम्�र हैं। हजारों में से 'ुन कर लाये गये हैं और आपको लंदन के स�से �डे़ स्टोस# का काम काज संभालने के सिलए दिदया जा रहा है। हमारे खानदान के बिकतने ही लड़कों की बिनगाह उस पर थी। �ल्किल्क मैं मन ही मन मना रही थी बिक तुम्हें द बि�जी कान#र ही मिमले। कहीं गैस स्टेशन वगैरह दे देते तो मुसी�त होती। यू आर लकी बिडयर। 'लो, इसे सेलेब्रेट करते हैं। कैं बिडल लाइट बिडनर मेरी तर� से।इतना सुन कर भी मेरा हौसला वाबिपस नहीं आया है। वह 'ीयर अप करती ह ै - आप जाकर अपना काम देखें तो सही। वहां �हुत स्कोप है। आप खुद ही तो �ता रहे थे बिक आपकी बिनगाह में कोई भी काम छोटा या �ड़ा नहीं होता। आप छोटे से छोटे काम को भी पूरी लगन और मेहनत से शानदार तरीके से कर सकत े हैं। उसम ें पूरा सैदिटसै्फक्शन पा सकत े हैं। बि�र भी वहा ं अगर आपका मन न लग े तो डाइवस>बि�केशन करके आप अपनी पसंद का कोई भी काम शुरू कर सकते हैं। �स, मेरी पोजीशन का भी ख्याल रखना।इसका मतल� अ� मेरे पास इस प्रोपोजल को मानने के अलावा और कोई उपाय नहीं है। 'लो यही सही, ज� 'मगादड़ की मेहमाननवाजी स्वीकार की है तो उलटा तो लटकना ही पडे़गा।

हम पहले गौरी के स्टाल पर गये हैं। पूरा स्टा� उसे और मुझे शादी की बिवश कर रहा है। कई लोग तो आये भी थे रिरसेप्शन में। अ� वह स�से मेरा परिर'य करा रही है। स्टा� की तर� से हमें एक खू�सूरत �ुके दिदया गया है। वाकई �हुत अच्छी शाप है उसकी। वहां कॉ�ी पी कर गौरी मुझे द बि�ज़ी कॉन#र में ले कर आयी है। मैनेजर से परिर'य कराया है। मैनेजर साउथ इंबिडयन है। उसने �हुत ही सज्जनता से हमारा स्वागत बिकया है और पूरे स्टा� से मिमलवाया है। स्टोस# में स� जगह घुमाया है। सारे सैक्शंस में ले कर जा रहा है और सारी 'ीजों के �ारे में �ोरिरयत की हद तक �ता रहा है। गौरी लगातार मेरे साथ है और मेरे साथ ही सारी 'ीजें समझ रही है। कहीं कहीं कुछ पूछ भी लेती है मैनेजर से। एकाउंट्स और इन्वैंटरी में हमने स�से ज्यादा वक्त बि�ताया है। मैनेजर हमें अपने केबि�न में लेकर गया है। केबि�न क्या है, ज़रा सी जगह को ग्लास की दीवारों से कवर कर दिदया गया है। वहीं तीन शाट# सर्गिकंट टीवी क्रीन लगे हैं जो �ारी-�ारी से पूर े स्टोस# में अलग अलग लोकेशनों की गबितबिवमिधयां दिदखा रहे हैं।

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मैनेजर इन सारी 'ीजों के �ारे में �ोरिरयत की हद तक बिवस् तार से �ात कर रहा है।मैंने और कुछ भी पूछना उसि'त नहीं समझा है। मैं स� कुछ देख समझ रहा हूं। कल से तो मुझे यहीं आना ही है। अभी तो पता नहीं बिकतने दिदन लगें इस तंत्र को समझने में।

आज स्टोस# में दूसरा ही दिदन है। मैं अकेला ही पहुं'ा हंू। गौरी ने भी आज ही से अपना काम शुरू बिकया है। वह अल-सु�ह ही बिनकल गयी थी। मेरे जागने से पहले वह तैयार भी हो 'ुकी थी और अगर मैं उठ कर उसके सिलए 'ाय न �नाता तो बि�ना मिमले और बि�ना एक कप 'ाय बिपये ही वह 'ली जाती। त� मैंने ही उठ कर उसके सिलए 'ाय �नायी और उसे एक स्वीट बिकस के साथ बिवदा बिकया। आज मैनेजर ने मुझे सारी 'ीजें बि�र से समझानी शुरू कर दी हैं। वह आखिखर इतने बिडटेल्स में क्यों जा रहा है। स� कुछ तो मैं पहले दिदन समझ ही 'ुका हंू। और बि�र ऐसी भी क्या जल्दी है बिक स� कुछ एक साथ ही समझ सिलया जाये। मैं हैरान हूं बिक ये सारी औप'ारिरकताए ंबिकस सिलये दोहरायी जा रही हैं। वह भी जिजस तरीके से हर मामूली से मामूली 'ीज के �ारे में �ता रहा है, मुझे अटपटा लग रहा है लेबिकन मैं उसे टोक भी नहीं पा रहा हंू। सारा दिदन उसी के साथ माथा पच्ची करते �ीत गया है।दिदन ही �ेहद थकाऊ रहा। दुबिनया भर की 'ीजों की इन्वैंट्री दिदखा डाली है मैनेजर ने। वैसे भी दिदमाग भन्नाया हुआ है। दिदन भर }ाहकों की भीड़ और बिहसा� बिकता� देखने, समझने और रखने का झंझट। इस बिकस्म के काम का न तो अनुभव है और मानसिसक तैयारी ही। गौरी �ी' �ी' में �ोन करती रही है। 'ार �जे के करी� आयी गौरी तभी मैनेजर नाम के बिपस्सु से छुटकारा मिमल सका है।

आज दो महीने हो गये हैं मुझे स्टोस# संभाले। लंदन आये लगभग तीन महीने। मैं ही जानता हूं बिक दो महीने का यह �ाद वाला अरसा मेरे सिलए बिकतना भारी गुज़रा है। एक - एक पल जैसे आग पर �ैठ कर गुज़ारा हो मैंने। स्टोस# में जाने के अगले हफ्ते ही उस मैनेजर को स्टोर से बिनकाल दिदया गया था। वह इसीसिलए हड़�ड़ी में दिदखायी दे रहा था। अ� मैं ही इसका नया मैनेजर था। मैं इस नयी हैसिसयत से बिडस्ट�# हो गया हंू। यह क्या मज़ाक है। मैंने इस घर में शादी की है और इस शादी का मैनेजरी से क्या मतल�? गौरी के पापा ने तो ये कहा था बिक ये स्टोस# मेरे हवाले कर रहे हैं। अगर यही �ात ही थी तो मैनेजर को बिनकालने का क्या मतल�? अगर वे मैनेजर की ही सेलेरी �'ाना 'ाहते थे तो मुझसे सा�-सा� कह दिदया होता बिक हमें दामाद नहीं दो-ढाई हज़ार पाउंड वाला मैनेजर 'ाबिहये। मैं त� तय करता बिक मुझे आना भी है या नहीं। यहां की नौकरी करना तो �हुत दूर की �ात थी। मुझे वक# परमिमट का ख्याल नहीं था या पता ही नहीं था लेबिकन उन्हें तो पता था बिक यहां मैं आऊं या और कोई दामाद आये, ये समस्या तो आने ही वाली है। इसका मतल� इन लोगों ने अच्छी तरह से सो'-समझ कर ये जाल �ुना है। अ� दिदक्कत ये है बिक कहीं सुनवाई भी तो नहीं है। धीरे-धीरे मुझे सारी 'ीजें समझ में आने लगी थीं। सारा 'क्कर ही इन सारी दुकानों के सिलए भरोसे का और एक तरह से बि�ना पैसे का स्टा� जुटाने का ही था। मैंने पूरी स्टडी की है और मेरा डर सही बिनकला है।मुझसे पहले 'ार लड़बिकयों के सिलये दामाद इसी तरह से लाये गये हैं। पां'वां मैं हंू। उनके सभी दामाद हाइली क्वासिल�ाइड हैं। पां'ों की शादिदयां इसी तरह से की गयी हैं। न लड़बिकयां घर से �ाहर गयी हैं और न बि�जिजनेस ही। स�से �ड़ी सिशल्पा की शादी सिशसिशर से हुई है। सिशसिशर एम�ीए है और 'ार गैस स्टेशन देख रहा है। सु'ेता के पबित सुशांत के पास सारे प� और रेस्तरां हैं। वह कैमिमकल इंजीबिनयर है।

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दोनों मिमल कर संभालते हैं ये सारे ठीये। नीलम का आक¿टेक्ट पबित देवेश �ुक शॉप में है और संध्या का एमकॉम पबित रजनीश सेन्ट्रल स्टोस# संभालता है और सारे स्टोस# के सिलए और सारे घरों के सिलए सप्लाई देखता है। अल�त्ता घर के सारे आदमी और लड़के इन कम्पबिनयों के या तो अकेले कत्ता# हैं या ज्वाइंटली सारा कामकाज संभालते हैं। उनके पास �ेहतर पोजीशंस वाली ऐसी इंटरनेशनल कम्पबिनयां हैं जिजनमें खू� घूमना-बि�रना और कॉटैक्ट्स हैं। वैसे तो इनकी लड़बिकयों की पोजीशन भी उनकी पढ़ाई के बिहसा� से है लेबिकन दामादों की हालत मैनेजरों या उसके आसपास वाली है। जहां लड़की दामाद एक साथ हैं भी, वहां वाइ� ही सव�सवा# है और उसके हस�ैंड की पोजीशन दोयम दरजे की ही है। हां, लड़का �हू वाले मामले में भी यही दोहरे मानदंड अपनाये गये हैं। �हुए ंभी आम तौर पर इंबिडयन ही हैं और उनके जिजम्मे अलग-अलग ठीये हैं।हम सभी दामाद भारतीय अख�ारों के जरिरये घेरे गये हैं। पता नहीं पूरे खानदान में बिकतनी लड़बिकयां और �ाकी हैं और बिकतने दामाद अभी और इम्पोट# बिकये जाने हैं।अ� मुझे गौरी के फ्लोरिरस्ट स्टाल पर �ैठने का भी कारण समझ में आ गया है। वजह �हुत सीधी सादी है। उसे वहां �हुत कम देर के सिलए �ैठना पड़ता है और �ाकी वक्त वह बि�ल्में देखते हुए और कॉमिमक्स पढ़ते हुए गुजारती है। कई �ार वह नहीं भी जाती और स्टा� ही सारा काम देखता रहता है। वह अक्सर अपनी कज़िजंस की शॉप्स पर 'ली जाती है।अ� मेरे सामने इस स्टोस# में मैनेजरी संभालने के अलावा और कोई उपाय नहीं है। गलती मेरी ही थी। मैं ही तो भागा-भागा इतने सारे लाल' देख कर खिखं'ा 'ला आया हंू। यह तो मुझे ही देखना 'ाबिहये था बिक बि�ना वक# परमिमट के मेरी औकात यहां सड़क पर खडे़ मज़दूर जिजतनी भी नहीं।लेबिकन यहां कोई भी तो नहीं है जिजससे मैं ये �ातें कह सकंू। हांडा }ुप से तो पहली मुलाकात में ही लाल सिसग्नल मिमल गया था बिक नो बिडस्कशन एट ऑल। अ� कहूं भी तो बिकससे? मेरे पास घुट-घुट कर जीने कुढ़ने के अलावा उपाय ही क्या है ?ज� मैनेजर को बिनकाला गया था तो मैंने गौरी से इस �ारे में �ात की थी - तुम्हें नहीं लगता गौरी, इस तरह से स्टोस# के मैनेजर को बिनकाल कर उसकी जगह मुझे दे देना, एनी हाऊ, मैं पता नहीं क्यों इसे एक्सेप्ट नहीं कर पा रहा हंू।

- देखो दीप, जो आदमी वहां का काम देख रहा था, दरअसल स्टॉपगैप एरेंजमेंट था। पहले वहां मेरा कजिजन देवेश काम देखता था। उस वक्त वहा ं कोई मैनेजर नहीं था। वैस े भी हमार े ज्यादातर एस्टे�सिलशमेंट्स में मैनेजर नहीं हैं।उसने मेरा हाथ द�ाते हुए कहा है - भला हम तुम्हें मैनेजर की �रा�री पर कैसे रख सकते हैं। �ेशक गौरी ने अपनी तर� से मुझे �हलाने के सिलए ये सारी �ातें कही हैं लेबिकन अससिलयत वही है जो मेरे सामने है। मैनेजर का जाना और मेरा आना, इसमें तो मुझे पाउंड �'ाने के अलावा और कोई तक# नज़र नहीं आता।

इस �ी' मैंने �ारीकी से सारी 'ीजें देखी भाली हैं और सारे तंत्र को समझने की कोसिशश की है। मैंने पाया है बिक यहां, घर स्टोस# में, �ैमिमली मैटस# में, बि�जिजनेस में, मेरे स्टोस# में हर 'ीज के सिलए सिसस्टम �ना हुआ है। यही लंदन की खासिसयत है। कहीं कोई 'ूक नहीं। कोई सिसस्टम �ेल्यर नहीं। ज� मैनेजर

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के जाने के �ाद के महीने में हांडा }ुप के कापÀरेट ऑबि�स से स्टा� की सेलरी का स्टेटमेंट आया था तो मैंने देखा, बिपछली �ार की तुलना में मैनेजर की सैलरी के खाते में पूरे ढाई हज़ार पौंड महीने के �'ा सिलये गये हैं। अ� सारा खेल मेरी समझ में आ गया है। मुफ्त का, भरोसेमंद मैनेजर, घर जवांई का घर जवांई। न घर छोड़ कर जाये और न दुकान। अ� गौरी के सारे तक� की भी पोल खुल गयी है।मैं पूरी तरह मिघर 'ुका हूं। अपने घर का सपना एक �ार बि�र मुझे छल गया है। मेरे हाथ खाली हैं और पूरे देश में मैं बिकसी को भी नहीं जानता। यहां तो घर में बिकसी और से कुछ भी कहने का न हक है, न मतल�। यह तो मुझे पहले ही दिदन �ता दिदया गया था बिक मुझे जो कुछ कहना है गौरी के जरिरये ही कहना है। अल�त्ता सिसस्टम, परिरवार या पसन#ल लाइ� के �ारे में कुछ भी कहने की मनाही है। गौरी से �ात करो तो उसके �हलाने के अपने तरीके हैं - क्यों टैंशन लेते हो डीयर। तुम्हें बिकस �ात की सि'ंता? बिकस �ात की तकली� है तुम्हें?इन सारी मानसिसक परेशाबिनयों के �ावजूद मैंने एक �ैसला बिकया है बिक जो काम मुझे सौंपा गया है, वह मैं कर के दिदखाऊंगा। गौरी ने जो मेरी ही �ात का ताना मारा था बिक मेरे सिलए कोई भी काम छोटा या �ड़ा नहीं है तो स'मु' ऐसा ही है। मैं एक �ार तो यह भी कर के दिदखा ही देता हूं बिक मैं स्टोस# भी संभाल सकता हूं और इस पर भी अपनी छाप छोड़ सकता हंू। इसमें ऐसा क्या है जो एक मामूली और कम पढ़ा सिलखा मद्रासी संभाल सकता है और मैं नहीं संभाल सकता। �ल्किल्क मुझे तो इस �ात के पूरे अमिधकार भी दे दिदये गये हैं बिक मैं जैसा 'ाहंू इसे �ना संवार सकंू।मैंन े देख सिलया ह ै बिक मेर े सामने क्या काम है और उसे कैसे करना है। मैंन े स्टोस# की लुक, इसकी सर्गिवंस, इसकी बिडज़ाइपिनंग और इसकी ओवरऑल इमेज को �ेहतर �नाने के सिलए सारी 'ीजों की स्टडी की है। इस पूरे प्रोजेक्ट के सिलए मैंने तीन महीने का समय तय बिकया है और अपनी रिरपोट# में यह भी जिज़क्र कर दिदया है बिक इस �ी' कुछ सैक्शन्स को सिशफ्ट करना पड़ सकता है या एक आध हफ्ते के सिलए �ंद भी करना पड़ सकता है लेबिकन कुल मिमला कर रोजाना के कामकाज पर कोई �क# नहीं पडे़गा। गौरी ने ज� रिरपोट# देखी है तो वह दंग रह गयी है बिक मैं इतने सिसस्टम से काम करता हूं - आप तो यार, छुपे रुस्तम बिनकले। हमारे यहां आज तक बिकसी ने भी इतनी दिदल'स्पी से बिकसी काम को लेकर रिरपोट# तैयार नहीं की होगी।मै गौरी को �ताता हंू - ये तुम्हारे ही उकसाने की नतीजा है बिक मैं ये प्रोजेक्ट कर रहा हंू। कुल मिमला कर गौरी �हुत खुश है बिक उसके हस�ैंड ने हांडा एम्पायर के सिलए कुछ नया सो'ा है।रिरपोट# हाथों हाथ एपू्रव कर दी गयी हेदिदया गया और पूरे काम का एजेंसी को कांटै्रक्ट दे दिदया गया है।इस तरह से मैंने खुद को स्टोस# को �ेहतर �नाने के सिलए व्यस्त कर सिलया है। इसके अलावा मैंने ज� देखा बिक यहां जिजतने कम्प्यूटस# थे, वे पुराने थे और उनमें जो पैकेजेस थे वे स्टोस# की ज़रूरत जैसे तैसे पूरी कर रहे थे।

स्टोस# के रेनोवेशन का काम पूरा हो गया है। अ� नये रूप में स्टोस# की शक्ल ही �दल गयी है और इसकी इमेज भी एक तरह से नयी हो गयी है। हालांबिक इस स�में ख'# हुआ है और मेहनत भी लगी है, लेबिकन रिरजल्ट्स सामने हैं।

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हांडा }ुप के मुखिखया तक ये �ातें पहंु' गयी हैं। एक दिदन वे खुद आये थे और सारी 'ीजें खुद देखी भाली थीं। उनके साथ राजकुमार, सिशसिशर और सुशांत भी थे। स�ने का�ी तारी� की थी। मिमस्टर हांडा �ोले थ े - मुझे ये तो मालूम था बिक यहां काम करने की जरूरत है लेबिकन तुम आते ही इतनी तेजी से और इतनी सिसस्टेमैदिटकली ये स� कर दोगे, हम सो' भी नहीं सकते थे। वी आर प्राउड ऑ� यू माई सन। गॉड ब्लेस यू। यू हैव डन ए }ेट जॉ�। उन्होंने वहीं खड़े खड़े राजकुमार से कह दिदया है बिक लैन और दूसरे सारे पैकेज सभी जगहों के सिलए डेवलेप कर सिलये जायें। जरूरत पडे़ तो दीप जी को इस काम के सिलए पूरी तरह फ्री कर दिदया जाये। रिरनोवेशन प्रोजेक्ट पूरा होते ही सारी व्यस्तताए ंखत्म हो गयी हैं। स्टोस# का सारा काम स्ट्रीमलाइन हो जाने से अ� सुपरबिवजन का काम नहीं के �रा�र रह गया है। अ� मैं पूरी तरह खाली हो जाने की वज़ह से बि�र अकेला हो गया हंू। बि�र से सारे ज़ख्म हरे हो गये हैं और एक स�ल प्रोजेक्ट की इन सारी स�लताओं के �ावजूद मैं अपने आपको बि�र से लुटा-बिपटा और अकेला पा रहा हूं।

सारी सि'ंताओं में मिघरा ही हुआ हूं बिक एक साथ तीन सि'दिट्ठयां आयी हैं। इस उम्मीद में एक-एक करके तीनों खत खोलता हूं बिक शायद इनमें से ही बिकसी में कोई सुकून भरी �ात सिलखी हो लेबिकन तीनों ही पत्रों में ऐसा कुछ भी नहीं है।पहला खत गुड्डी का है -वीरजी,आपका प्यारा सा पत्र, आपकी नन्हीं सी प्यारी सी दुल्हन के �ोटो}ाफ्स और खू�सूरत तोह�े मिमले। इससे पहले �ं�ई से भेजा आपका आखरी खत भी मिमल गया था। मैं �ता नहीं सकती बिक मैं बिकतनी खुश हंू। आखिखर आपको अपना घर नसी� हुआ। �ेशक सात समंदर पार ही सही। मेरी खुशी तो आपका घर �स जाने की है।पहले बि�ल्लू की शादी के समा'ार। मैंने बिकसी को भी नहीं �ताया था बिक आप इस तरह से लंदन जा रहे हैं, �ल्किल्क जा 'ुके हैं। मैं आपकी तकली� समझ रही थी लेबिकन काश..मैं आपकी बिकसी खुशी के सिलए कुछ भी कर पाती तो ..मुझे �ाद में �ता 'ला था बिक दारजी ने आपको एक और खत सिलखा है - वही आपको मनाने की उनकी तरकी�ें और आपसे पैसे बिनकलवाने के पुराने हथकंडे। मैं रब्� से दुआ कर रही थी बिक वह खत आपको मिमले ही नहीं और आप एक और ज़हमत से �' जायें लेबिकन आपके जाने के अगले दिदन ही नंदू वीरजी ने मुझे �ुलवाया और 'ेकों के �ारे में पूछा। मैंने उन्हें �ताया बिक मैं ये सिल�ा�ा ले कर आपके पास आने ही वाली थी। त� उन्होंने एयरपोट# से आपके �ोन के और दारजी के खत के �ारे मैं �ताया। मैं सारे 'ैक उन्हें दे आयी थी। इधर दारजी की हालत खरा� हो रही थी और वे रोज डाबिकये की राह देख रहे थे। एक आध �ार शायद नंदू के पास भी 'क्कर लगाये बिक शायद उसके पास कोई �ोन आया हो। अगर आपका �ाफ्ट न आये तो उनकी हालत खरा� हो जाने वाली थी। तभी नंदू वीरजी जैसे उनके सिलए देवदूत की तरह प्रकट हुए और प'ास हजार के कड़कते नोट उनके हाथ पर धर दिदये। साथ में एक 'टपटी कहानी भी परोस दी.. आपका दीपू अ� �ं�ई में नहीं है। एक �हुत �ड़ी नौकरी के सिसलसिसले में रातों रात उसे लंदन 'ले जाना पड़ा। वहा ं जाते ही उसे आपकी सि'ट्ठी रीडाइरेक्ट हो कर मिमली और वह �ड़ी मुल्किश्कल से कंपनी से एडवांस ले कर ये पैसे मेरे �ैंक के जरिरये णिभजवा पाया है ताबिक आपका नेक कारज न रुके। �ल्किल्क कल

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आधी रात ही लंदन से उसका �ोन आया था। �हुत जल्दी में था। कह रहा था दारजी और �े�े को कह देना बिक अपने घर में खुशी के पहले मौके पर भी नहीं पहंु' पा रहा हूं। क्या करंू नौकरी ही ऐसी है। रात-दिदन काम ही काम बिक पूछो नहीं।

इतने सारे कड़कते नोट देख कर तो दारजी खुशी के मारे पागल हो गये। वे तो सिस�# पद्रह �ीस हजार की उम्मीद लगाये �ैठे थे। सारी बि�रादरी में आपकी जय-जय कार करा दी ह ै दारजी ने। नंदू वीरजी वाली कहानी को ही खू� नमक मिम'# लगा कर सारी बि�रादरी को सुनाते रहे। घर से आपके घर से अ'ानक 'ले जाने को भी अ� दारजी ने एक और बिकस्से के जरिरये ऑबि�सिशयल �ना दिदया है - मैंन ते जी �ाद बिव' पता लगेया। दरअसल साडे दीपू दे �ार जाण दी गल 'ल रई सी, ते उन्ने पासपोरट वास्ते जी अप्लाई बिकत्ता होया सी। उत्थों ई अ'ानक तार आ गयी सी बिक छेत्ती आ जाओ। कुछ सरकारी कागजां दा मामलां सी। बिव'ारा पक्की रोटी छड्ड के ते दिदसिलयों हवाई जहाज ते �ैठ के �ं�ई पों'ेया सी।.. तो वीर जी, ये रही आपके पीछे तैयार की गयी कहानी..।आप इस भ्रम में न रहें वीरजी बिक दारजी �दल गये हैं या अ� आपके घर वाबिपस लौटने पर वे आपसे �ेहतर तरीके से पेश आयेंगे। दरअसल वे इस तरह की कहाबिनयां कह के बि�ल्लू के ससुराल में अपनी माक� ट वैल्यू तो �ढ़ा ही रहे हैं, गोलू के सिलए भी जमीन तैयार कर रहे हैं। वे हवा में ये संकेत भेज रहे हैं बिक उन्हें अ� कोई लल्लू पंजू न समझे। उनका �ड़ा लड़का अ� �हुत �ड़ी नौकरी में लंदन में है। अ� उनसे उनकी नयी माक� ट वैल्यू के बिहसा� से �ात की जाये।बि�ल्लू की शादी अच्छी तरह से हो गयी है। गुरबिवन्दर कौर नाम है हमारी भाभी का। छोटी सी गोल मटोल सी है। स्वभाव की अच्छी है। बि�ल्लू खुश है। �े�े भी। उसे दिदन भर का संग साथ भी मिमल गया और काम में हाथ �ंटाने वाला भी। मुझे भी अपने �रा�र की एक सहेली मिमल गयी है। �े�े ने दहेज की सारी अच्छी अच्छी 'ीजें यहां तक बिक उस �े'ारी की रोजाना की जरूरत की 'ीजें भी �डे़ �क्से में पहं़ु'ा दी हैं। मेरे दहेज में देने के सिलए। छी मुझे बिकतनी शरम आ रही है लेबिकन मुझे पूछता ही कौन है। मैं भाभी को 'ुपके से �ाजार ले गयी थी और उन्हें सारी की सारी 'ीजें नयी दिदलवा दीं। उस �े'ारी को कम से कम 'ार दिदन तो खुशी से अपनी 'ीजें इस्तेमाल कर लेने देते। इतना ही,मेरी प्यारी भाभी को मेरी तर� से ढेर सा प्यार.।, भाभी की एक �ोटो भेज रही हंू।आपकी �हन,गुड्डी

दूसरा ख़त दारजी का है-�ेटे दीपजी(तो इस �ार दारजी का सं�ोधन दीपजी हो गया है। जरूर कुछ �ड़ी रकम 'ाबिहये होगी!!)जींदे रहो। पहले तो शादी और परदेस की नौकरी की �धाई लो। �ाकी हमें और खास कर तेरी �े�े को 'ंगा लगा बिक तुम �हुत वडी नौकरी के सिसलसिसले में लंदन जा पहु'े हो। रब्� करे खू� तरक्की करो और

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खुसिशयां पाओ। �ाकी तुम्हारी शादी की ख�र से भी हमें अच्छा लगा बिक तुम्हारा घर �ार �स गया और अ� तुम्हें दुबिनयादारी से कोई सिशकायत नहीं होनी 'ाबिहये। �ेशक हम स�की तुम्हारी शादी में शामिमल होने की हसरत तो रह ही गयी। तुम्हें और तुम्हारी वोटी को खुद आसीसें देते तो हमें 'ंगा लगता। �ाकी हमारी आसीसें हमेशा तुम्हार े साथ हैं। �ाकी तुमने बि�ल्लू के वक्त जो अपना �रज बिनभाया, उससे बि�रादरी में हमारा सीना 'ौड़ा हो गया बिक तुमने परदेस में जाते ही कैसे भी करके इतनी �ड़ी रकम का इंतजाम करके हमारे हाथ मज�ूत बिकये। स� अश अश करने लगे बिक �ेटा हो तो दीपजी जैसा!! �ेटेजी अ� तो मेरी एक ही सि'ंता है बिक बिकसी तरह गुड्डी के हाथ पीले कर दंू। तुझे तो पता ही है बिक �े�े की त�ीयत ठीक नहीं रहती और मेरा भी काम धंधा मंदा ही है। अ� उमर भी तो हो 'ली है। क� तक खटता रहंूगा ज�बिक मेरा घर �ार संभालने वाले तीन-तीन जवान जहान �ेटे हैं। �ाकी बि�ल्लू की शादी के �ाद से हाथ थोड़ा तंग हो गया है। उसके अपने खर'े भी �ढे़ ही हैं। वैसे अगर तेरा भी रिरश्ता यहीं हो जाता तो �ात ही और थी। बि�ल्लू के सगों ने भी एक तरह से बिनराश ही बिकया है। मैंने तो तेरी �हुत हवा �ांधी थी लेबिकन कुछ �ात �नी नहीं। अ� तो यही देखना है बिक गुड्डी के समय हमारी इज्जत रह जाये। गोलू बि�र भी एकाध �रस इंतजार कर सकता है लेबिकन लड़की बिकतनी भी पढ़ी सिलखी क्यों न हो, सीने पर �ोझ तो रहता ही है। ये खत सिसर� इस वास्ते सिलखा बिक कभी भी गुड्डी की �ात आगे �ढ़ सकती है। दो- एक जगह �ात 'ल भी रही है। �ाकी तुम खुद समझदार हो।तुम्हारा, दारजीतो यह �ात थी। कैसी मीठी छुरी 'लाते हैं दारजी भी। पहले से ख�र कर रहे हैं बिक भाया, तैयारी रख, तेरी �हन के हाथ भी पीले करने हैं। आज ही नंदू से �ात करनी पडे़गी बिक बिकसी भी तरह से दारजी को समझाये बिक गुड्डी के सिलए जल्दी�ाजी न म'ायें। क� और कैसे रुख �दलना है, दारजी �खू�ी जानते हैं। अल�त्ता तीसरी सि'ट्ठी मेरे सिलए थोड़ी सुकून भरी है। पत्र टीआइए�आर से है। उन्होंने मेरे �काया पैसों का स्टेटमेंट �ना कर भेजा है और पूछा है बिक मैं ये पैसे कहां और कैसे लेना 'ाहंूगा। लगभग दो लाख के करी� हैं।सो'ता हूं ये पैसे मैं भसीन साह� के जरिरये बिकसी 'ैनल से यहां मंगवा लूं । वक्त जरूरत काम आयेंगे। रोजाना बिकतनी तो ज़रूरतें होती हैं मेरी और मुझे गौरी के आगे हाथ �ैलाना पड़ता है। ऑबि�स को यही सिलख दिदया है मैंने बिक ये पैसे मिमस्टर देवेन् द्र को दे दिदये जायें। ऑबि�स और देवेन् द्र जी को ऍथारिरटी लैटर भेज दिदया है।

सिशसिशर आया है। मेरे डेवलेप बिकये हुए पैकेज लेने। वैसे हम कई �ार मिमले हैं। उनके घर खाना खाने भी गये हैं और पार्दिटंयों में भी मिमलते रहे हैं लेबिकन यह पहली �ार है बिक हम दोनों अकेले आमने सामने �ात कर रहे हैं। वह मेरा स�से �ड़ा साढ़ू है। वह भी मेरी ही तरह हांका करके लाया गया है। 'ार साल हो गये हैं उसकी शादी को। एक �च्चा भी है उनका। कलकत्ता से एम�ीए है। अच्छी भली नौकरी कर रहा था बिक लंदन में मेरी ही तरह शानदार कैरिरयर का 'ुग्गा देख कर �ंस गया था। वह गैस स्टेशनों का काम देख रहा है। हम स� जवाैंइयों में से उसकी हालत कुछ �ेहतर है क्योंबिक उसने अपनी �ीवी को �स में कर रखा है और लड़ झगड़ कर अपनी �ात मनवा लेता है।

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पूछ रहा है वह -आपने तो वाकई कमाल कर दिदया बिक इतने कम समय में अपने ठीये को पूरी तरह 'ेंज करके रख दिदया। वह हँसा है - �स हमारा ख्याल रखना, कहीं हमें घर से या ससुराल से मत बिनकलवा देना। और कोई दिठकाना नहीं है अपना।

- क्यों मेरे जले पर नमक सिछड़क रहे हो भाई। ये तो मैं ही जानता हूं बिक ये स� मैंने क्यों और बिकससिलए बिकया। अ'ानक इतने दिदनों से द�ा मेरा आक्रोश �ाहर का रास्ता तलाशने लगा है। मेरी आवाज भारी हो गयी है।

सिशसिशर ने मेरे कंधे पर हाथ रखा है - आयम सौरी गगनदीप, मुझे नहीं मालूम था। वैसे आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं। �ेशक मेरी भी वही हालत है जो कमो�ेश आपकी है �ल्किल्क मैंने तो यहां इससे भी �ुरे दिदन देखे हैं। आपने कम से कम कुछ काम करके अपनी इमेज तो ठीक कर ली है।

- दरअसल मुझे यहां के जो सब्ज�ाग दिदखाये गये थे और मैं जो उम्मीदें ले कर आया था, शादी के कुछ ही दिदन �ाद मुझे लगने लगा था बिक मैं �ुरी तरह छला गया हंू।

- �ेशक हम आपस में आमने सामने नहीं मिमले है लेबिकन मैं आपकी हालत के �ारे में जानता हूं बिक आप �हुत भावुक बिकस्म के आदमी हैं और उतने पै्रस्थिक्टकल नहीं हैं। लेबिकन मुझे ये नहीं पता था बिक आप बिकसी जिजद में या खुद को जस्टी�ाई करने के सिलए ये स� कर रहे हैं। 'सिलये, कहीं �ाहर 'लते हैं। वहीं �ात करते हैं।

- 'सिलये।हम सामने ही कॉ�ी शॉप में गये हैं ।मैं �ात आगे �ढ़ाता हूं - मुझे पता नहीं बिक आपकी �ैक }ाउंड क्या है और आप यहां कैसे आ

पहुं'े लेबिकन मैं यहां एक घर की तलाश में आया था। मुझे पता नहीं था बिक घर तो नहीं ही मिमलेगा, मेरी आजादी और प्राइवेसी भी मुझसे सिछन जायेंगे। इतने दिदनों के �ाद सिशसिशर अपना-सा लग रहा है जिजसके सामने मैं अपने आपको खोल पा रहा हंू।

- आप ठीक कहते हैं। हम स�की हालत कमो�ेश एक जैसी ही है। हम में से बिकसी का भी अपना कहने को कुछ भी नहीं है। जो कुछ अपना था भी वह भी उन्होंने रखवा सिलया है। न हम कहीं जॉ� तलाश कर सकते हैं और न वाबिपस भाग ही सकते हैं। हम में से कुछ ने एकाध �च्चा भी पैदा करके अपने गले के �ंदे को और भी मज�ूती से कसवा सिलया है। मैं खुद पछता रहा हूं बिक मैं इस �च्चे वाले 'क्कर में �ंसा ही क्यों। खैर। मैं तो अ� इस �ारे में सो'ता ही नहीं... जो है जैसा है, 'लने दो, लेबिकन आप नये आये हैं, अकेले हैं और बिकसी को जानते भी नहीं हैं। न हांडा परिरवार में और न हममें से बिकसी को। और शायद आप सो'ते भी �हुत हैं, इसीसिलए भी आपको ऐसा लगता रहा है।सिशसिशर की �ात सुन कर मेरा द�ा आक्रोश बि�र सिसर उठा रहा है। सिशसिशर मेरे मन की �ात ही तो कर रहा है - हम �ंधुआ मजदूर ही तो हैं जिजनकी आज़ादी का कोई जरिरया नहीं है। आज मैंने और सिशसिशर ने इस पहली ही मुलाकात में अपने अपने जख्म एक दूसरे के सामने खोल दिदये हैं। एक मायने में सिशसिशर की हालत मुझसे अलग और �ेहतर है बिक वह घर परिरवार से आया है, मेरी तरह घर की तलाश में नहीं आया। उसके पीछे इंबिडया में कुछ जिजम्मेवारिरयां हैं जिजन्हें वह 'ोरी छुपे पूरी कर रहा है। उसने हेरा-�ेरी के कुछ �हुत ही �ारीक तरीके ढंूढ सिलये हैं या इजाद कर सिलये हैं और इस

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तरह हर महीने 'ार पां' सौ पौंड अलग से �'ा लेता है। इस तरह से कमाये हुए पैसों को वह बिनयमिमत 'ैनलों से भारत भेज रहा है। मैं उसकी �ात सुन कर दंग रह गया हंू। उसने मेरा हाथ द�ाया है - आप ही पहले शख्स हैं जिजसे मैंने इस सीके्रट में राज़दार �नाया है। मैंने अपने घर वालों को सख्त बिहदायत दे रखी है बिक भूल कर भी अपने पत्रों में रुपये पैसे मंगाने या पाने का जिजक्र न करें। अपनी पसन#ल डाक भी मैं अलग-अलग दोस्तों के पतों पर मंगाता हूं और ये पते �दलता रहता हंू। वह �ता रहा है - पहले मैं भी आपकी तरह कुढ़ता रहता था लेबिकन ज� मैंने देखा बिक यहां की गुलामी तो हम 'ाह कर भी खत्म नहीं कर सकते और मरते दम तक हांडा परिरवार के गुलाम ही �ने रहेंगे तो बि�र हमीं क्यों हरिरश्चंद्र की औलाद �ने रहें। पहले तो मैं भी �हुत डरा, मेरी आत्मा गवारा ही नहीं करती थी। आज तक मैंने कोई ऐसा काम नहीं बिकया था लेबिकन आज तक बिकसी ने मेरा शोषण भी नहीं बिकया था इससिलए मैंने भी मन मार कर ये स� करना शुरू कर दिदया है, �ेशक 'ार पां' सौ पौंड यहां के सिलहाज से कुछ नहीं होते लेबिकन वहां मेरा पूरा घर इसी से 'लता है। इनके भरोसे रहें तो जी 'ुके हम और हमारे परिरवार वाले।सिशसिशर से मिमलने के �ाद �हुत सुकून मिमला है। एक अहसास यह भी है बिक मैं ही अकेला नहीं हूं। दूसरा, यह भी बिक सिशसिशर है जिजससे मैं कभी-कभार सलाह ले सकता हंू या अपने मन की �ात कह सकता हंू।सिशसिशर ने वादा बिकया है बिक वह बिनयमिमत रूप से �ोन करता रहेगा और हफ्ते दस दिदन में मिमलता भी रहेगा।

इधर गौरी �हुत खुश है बिक मैंने हांडा परिरवार के सिलए, अपने ससुराल के सिलए, गौरी के मायके के सिलए इतना कुछ बिकया है। लेबिकन मैं ही जानता हूं बिक इन दिदनों मैं बिकस मानसिसक दं्वद्व से गुजर रहा हंू। गौरी का साथ भी अ� मुझे उतना सुख नहीं दे पाता। ज� मन ही दिठकाने पर न हो तो तन कैसे रहेगा।अभी उस दिदन मैं अपने पुराने कागज देख रहा था तो देखा - मेरे सारे पेपस# अटै'ी में से गाय� हैं। मैं एक�ारगी तो घ�रा ही गया बिक कहीं 'ोरी तो नहीं 'ले गये हैं। ज� गौरी से पूछा तो वह लापरवाही से �ोली - संभाल कर रख दिदये हैं। तुमने तो इतनी लापरवाही से खुली अटै'ी में रखे हुए थे। वैसे भी तुम्हें क्या ज़रूरत है इन स� पेपस# की? मैं 'ुप रह गया था। क्या जवा� देता। मैं जानता था बिक गौरी झूठ �ोल रही है। मेरे पेपस# ख्ली अटै'ी में तो कत्तई नहीं रखे हुए थे। मैं कभी भी अपनी 'ीजों के �ारे में लापरवाह नहीं रहा।

बिडपाट#मेंटल स्टोर का सारा बिहसा�-बिकता� कम्प्यूटराइज्ड होने के कारण मैं हमेशा खाली हाथ ही रहता हंू। यहां तक बिक मुझे अपनी पसन#ल ज़रूरतों के सिलए भी गौरी पर बिनभ#र रहना पड़ता है। मैं भरसक टालता हूं लेबिकन बि�र भी शेव, पैट्रोल, �स, ट्राम, ट्यू� वगैरह के सिलए ही सही, कुछ तो पैसों की जरूरत पड़ती ही है। मांगना अच्छा नहीं लगता और बि�न मांग े काम नहीं 'लता। इस कुन� े के असिलखिखत बिनयमों में से एक बिनयम यह भी है बिक कोई भी कहीं से भी बिहसा� में से पैसे नहीं बिनकालेगा। बिनकाल सकता भी नहीं क्योंबिक कैश आपके हाथों तक पहंु'ता ही नहीं और न सिसस्टम में कहीं गुंजाइश ही है। ज़रूरत है तो अपनी अपनी �ीवी से मांगो। �हुत कोफ्त होती है गौरी से पैसे मांगने में। �ेशक घर में अलमारी में ढेरों पैसे रखे रहते हैं और गौरी ने कह भी रखा है बिक पैसे कहां रखे रहते हैं ज� भी

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ज़रूरत हो ले सिलया करंू लेबिकन इस तरह पैसे उठाने में हमेशा मुझे क्या बिकसी को भी संको' ही होगा। यहां तो न �ोलने का इजाज़त है न बिकसी �ात पर उंगली उठाने की।दिदन भर स्टोर में ऐसी-तैसी कराओ, रात में थके हारे आओ। मूड है तो नहाओ, अगर गौरी जाग रही है तो बिडनर उसके साथ लो, नहीं तो अकेले खाना भकोसो और अंधेरे में उसके बि�स्तर में घुस कर, इच्छा हो या न हो, सैक्स का रिर'ुअल बिनभाओ। �ात करने का कोई मौका ही नहीं। अगर कभी �हुत जिजद कर के �ात करने की कोसिशश भी करो तो गौरी की भृकुदिटयां तन जातीं हैं - तुम्हीं अकेले ही तो नहीं खटते बिडयर, यहां सभी �रा�री का काम करते हैं। मैं भी तो तुम्हारे �रा�र ही काम करती हंू, मैंने तो कभी अपने सिलए अलग से कुछ नहीं मांगा। तुम्हारी सारी ज़रूरतें तो ठाठ से पूरी हो रही हैं।मैं उसे कैसे �ताऊं बिक ये ज़रूरतें तो मैं भारत में भी �हुत शानदार तरीके से पूरी कर रहा था और अपनी शत� पर कर रहा था। मैं यहां कुछ सपने ले कर आया था। घर के, परिरवार के और एक सुकून भरी जिज़दंगी के, प्यार दे कर प्यार पाने के लेबिकन गौरी के पास न तो इन सारी �ातों को समझ सकने लायक दिदमाग है और न ही �ुस#त।

एक अच्छी �ात हुई बिक देवेन् द्र जी ने टीआइए�आर से मेरे �काया पैसे ले कर अपने बिकसी परिरसि'त के जरिरये का हवाला के जरिरये यहीं पर दिदलवा दिदये हैं। उनके ऑबि�स का कोई आदमी यहां आया हुआ है। उसे �ं�ई अपने घर पैसे णिभजवाने थे। उसके पैसे देवेन् द्र जी ने वहीं �ं�ई में दे दिदये हैं और वह आदमी मुझे यहीं पर पाउंड दे गया है। बि�लहाल मुझे एक हज़ार पाउंड मिमल गये हैं और मैं रातों रात अमीर हो गया हंू। हँसी भी आती है अपनी अमीरी पर। इतने पैसे तो गौरी दो दिदन में ही ख'# कर देती है। मेरी तो इतने भर से ही का�ी �ड़ी समस्या हल हो गयी है। पैसों को ले कर गौरी से रोज़ रोज़ की खटपट के �ावजूद आज़ मैंने उसे बिडनर दिदया है। मेरी अपनी कमाई में से पहला बिडनर। �ेशक कमाई पहले की है। बि�र भी इस �ात की तसल्ली है बिक घर जवांई हैोने के �ावजूद मेरे पास आज अपने पैसे हैं। गौरी बिडनर खाने के �ावजूद मेरे सैंटीमेंट्स को नहीं समझ पायी। न ही उसने ये पूछा बिक ज� तुम्हारे पास पैसे नहीं होते तो तुम कैसे काम 'लाते हो ! क्यों अपनी ये छोटी सी पंूजी को इस तरह उड़ा रहे हो, हज़ार पाउंड आखिखर होते ही बिकतने हैं? लेबिकन उसने एक शब्द भी नहीं कहा।

आज की डाक में तीन पत्र एक साथ आये हैं। तीनों ही पत्र परेशानी �ढ़ाने वाले हैं।पहला खत गुड्डी का है।सिलखा है उसने

- वीरजी,सत श्री अकालकैसे सिलखूं बिक यहां स� कुछ कुशल है। होता तो सिलखने की जरूरत ही न पड़ती। आप भी क्या सो'ते होंगे वीरजी बिक हम लोग छोटे-छोटे मसले भी खुद सुलटा नहीं सकते और सात समंदर पार आपको परेशान करते रहते हैं। मैं आपको आखरी �ार परेशान कर रही हूं वीरजी। अ� कभी नही करंूगी। मैं हार गयी वीर जी। मेरी एक न 'ली और मेरे सिलए तीन लाख नकद और अचे्छ कहे जा सकने वाले दहेज

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में एक इंजीबिनयर खरीद सिलया गया हालांबिक उसका �ाजार भाव तो �हुत ज्यादा था। वीर जी, ये कैसा �ैसला है जो मेरी �ेहतरी के नाम पर मुझ पर थोपा जा रहा है। दारजी को उस गोभी के पकौड़े जैसी नाक वाले इंजीबिनयर मे पता नहीं कौन से लाल लटकते नज़र आ रहे थे बिक �स हां कर दी बिक हमें रिरश्ता मंज़ूर है जी। आप कहेंगे वीरजी, मेरी मज> के खिखला� मेरी शादी हो रही है और मुझे मजाक सूझ रहा है। हँसूं नहीं तो और क्या करंू वीर जी। मैं बिकतना रोई, छटपटाई, दौड़ कर नंदू वीरजी को भी �ुला लायी लेबिकन दारजी ने उन्हें देखते ही �रज दिदया- यह हमारा घरेलू मामला है �रखुरदार..। ज� आधी-आधी रात को पैसे 'ाबिहये होते हैं तो यही नंदू वीरजी स�से ज्यादा सगे हो जाते हैं और ज� वे मेरे पक्ष में सही �ात करने के सिलए आये तो वे �ाहर के आदमी हो गये। मेरा तो जी करता है कहीं भाग जाऊं। काश, हम लड़बिकयों के सिलए भी घर छोड़ कर भागना आसान हो पाता। गलत न समझें लेबिकन आप इतने सालों �ाद घर लौट कर आये तो स�ने आपको सर आंखों पर बि�ठाया। अगर मैं एक रात भी घर से �ाहर गुजार दूं तो मां-�ाप तो मुझे �ाड़ खायेंगे ही, अड़ोसी-पड़ोसी भी लानतें भेजने में बिकसी से पीछे नहीं रहेंगे।ऐसा क्यों होता है वीरजी, ये हमारे दोहरे मानदंड क्यों। आप को संतोष पसंद नहीं थी तो आप एक �ार बि�र घर छोड़ कर भाग गये। बिकसी ने आपको तो कुछ भी नहीं कहा.. लेबिकन मुझे वो पकोडे़ जैसी नाक वाला आदमी रत्ती भर भी पसंद नहीं है तो मैं कहां जाऊं। क्यों नहीं है मुसिक्त हम लड़बिकयों की। जो रास्ता आपके सिलए सही है वही मेरे सिलए गलत क्यों हो जाता है। मैं क्यों नहीं अपनी पसंद से अपनी ज़िज़ंदगी के �ैसले ले सकती !! आप हर �ार पलायन करके भी अपनी �ातें मनवाने में स�ल रहे। आप बि�ना लडे़ भी जीतते रहे और मैं लड़ने के �ावजूद क्यों हार रही हूं। क्या बिवकल्प है मेरे पास वीरजी !! मैं भी घर से भाग जाऊं !! सहन कर पायेंगे आप बिक आपकी कबिवताए ंसिलखने वाली और समझदार �हन जिजस पर आपको पूरा भरोसा था, घर से भाग गयी है। संकट तो यही है वीरजी, बिक भाग कर भी तो मेरी या बिकसी भी लड़की की मुसिक्त नहीं है। अकेली लड़की कहां जायेगी और कहां पहुं'ेगी। अकेली लड़की के सिलए तो सार े रास्त े वहीं जाते हैं। म ैं भी आगे पीछे वहीं पहंु'ा दी जाऊंगी। मेर े पास भी सरण्डर करने के और कोई उपाय नहीं है। �ीए में पढ़ने वाली और कबिवताए ंसिलखने वाली �े'ारी लड़की भूख हड़ताल कर सकती है, जहर खा सकती है, जो मैं नहीं खाऊंगी। तीन महीने �ाद, इसी वैसाखी पर मैं दुल्हन �ना दी जाऊंगी। हो सकता है, अ� तक आपके पास दारजी का पत्र पहंु' गया हो। आप नंदू वीर जी को �ोन करके �ता दें बिक उनके पास जो 'ैक रखे हैं उनका क्या करना है। मुझे नहीं पता दारजी ने बिकस भरोसे से पकौडे़ वालों से तीन लाख नकद की �ात तय कर ली है। रब्� न करे इंतज़ाम न हो पाया तो स्टोव तो मेरे सिलए ही �टेगा।क� से ये सारी 'ीजें मुझे �े'ैन कर रही थीं। आपको न सिलखती तो बिकसे सिलखती वीर जी, आप ही ने तो मुझे �ोलना सिसखाया है। �ेशक मैं वक्त आने पर अपने हक के सिलए नहीं �ोल पायी।मेरी �ेसिसर पैर की �ातों का �ुरा नहीं मानेंगे।आपकी लाडलीगुरप्रीत कौरउसने इतनी सि'दिट्ठयों में पहली �ार अपना नाम गुरप्रीत सिलखा है। मैं उसकी हालत समझ सकता हंू।

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दूसरा खत नंदू का है, सिलखा है उसने -बिप्रय दीपजीअ� तक आपको गुड्डी का पत्र मिमल गया होगा। मेरे पास आयी थी। �हुत रोती थी �े'ारी बिक मैं शादी से इनकार नहीं करती कम से कम मुझे पढ़ाई तो पूरी करने दें। मेरा और मेरे वीरजी का सपना है बिक मैं एम�ीए करंू। स' मान मेरे वीरा, मैं भी दारजी को समझा-समझा कर थक गया बिक उसे पढ़ाई तो पूरी कर लेने दो। आखिखर मैंने एक 'ाल 'ली। तुमने जो 'ैक मेरे पास रख छोड़े हैं, उनके �ारे में उन्हें कुछ भी नहीं पता। ये पैसे मैं उन्हें ऐन वक्त पर ही दंूगा बिक दीपजी ने भेजे हैं.. तो उन्हीं पैसों को ध्यान में रखते हुए मैंने उन्हें समझाया बिक आखिखर दीप को भी तो कुछ समय दो बिक वह अपनी �हन के सिलए लाख दो लाख का इंतज़ाम कर सके। उसकी भी तो नयी नौकरी है और परदेस का मामला है। कुछ भी ऊं'-नी' हो सकती है। �ात उनके दिदगाम में �ैठ गयी है, और वे कम से कम इस �ात के सिलए राजी हो गये हैं बिक वे लड़के वालों को कहेंगे बिक भई अगर शादी धूमधाम से करना 'ाहते हो तो वैसाखी के �ाद ही शादी हो पायेगी। मेरा ख्याल है त� तक गुडडी के �ीए �ाइनल के पेपर हो 'ुके होंगे। त� तक वह अपनी पढ़ाई भी बि�ना बिकसी तकली� के कर पायेगी।थोड़ी सी गलती मेरी भी है बिक मैंने यहां पर लंदन में तुम्हारी नौकरी, रुत�े, और दूसरी 'ीजों की कुछ ज्यादा ही हवा �ांध दी है जिजससे दारजी हवा में उड़ने लगे हैं। तू यहां की सि'ंता मत करना। मैं अपनी हैसिसयत भर संभाले रहंूगा। गुड्डी का हौसला �नाये रखूंगा। वैसे लड़का इतना �ुरा भी नहीं है। कोई आदमी बिकसी को पसंद ही न आये तो सारी अच्छाइयों के �ाद भी उसमें ऐ� ही ऐ� नजर आते हैं। वैसे भी गुड्डी इस वक्त तनावों से ग़ुज़र रही है और बिकसी से भी शादी से �'ना 'ाह रही है। अपना ख्याल रखना..मैं यहां की ख�र देता रहंूगा। तू बिनश्चिश्चंत रह।

तेरा हीनंदू

तीसरा खत दारजी का है।�ेटे दीप जीखुश रहो।�ाकी खास ख�र ये है बिक सानू गुड्डी के सिलए एक �हुत ही 'ंगा लड़का ते रजेया कजेया घर मिमल गया है। असां सगाई कर दिदत्ती है। लड़का बि�जली महकमे बिव' इंजीबिनयर है और उनकी कोई खास बिडमांड नहीं है। �ाकी �ाजार में जो दस्तूर 'ल रहा है तीन-'ार लाख आजकल होता क्या है। लोग मुंह खोल के �ीस-�ीस लाख मंग भी रहे हैं और देण वाले दे भी रहे हैं। ज्यादा दूर क्यों जाइये। त्वाडे वास्ते भी तो पां' छः लाख नकद और कार और दूसरी बिकन्नी ही 'ीजों की ऑ�र थी। आखिखर देण वाले दे ही रहे थे बिक नहीं। अ� हम इतने नंगे �ुच्चे भी तो नहीं हैं बिक कुड़ी को खाली हाथ टोर दें। आखिखर उसका भाई भी �ड़ा इंजीबिनयर है और बिवलायत बिव' काम करता है। हमें तो सारी �ातें देखणी हैं और बि�रादरी में अपनी नाक भी ऊं'ी रखणी है।�ाकी हम तो एक दो महीने में ही नेक कारज कर देना 'ाहते थे बिक कुड़ी अपने घर सुख सांद के साथ पहुं' जाये लेकन नंदू की �ात मुझे समझ में आ गयी है बिक रकम का इंतजाम करने में हमें कुछ वकत तो लग सकता है। परदेस का मामला है, और बि�र रकम इन्नी छोटी वीं नइं है। �ाकी अगर ते त्वाडा

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आना हो सके तो इस तों 'ंगी कोई गल्ल हो ही नहीं सकती। �ाकी तुसी वेख लेणा। �ाकी गौरी नूं असां दोंवां दी असीस।तुम्हारा दारजी

समझ में नहीं आ रहा बिक इन पत्रों का क्या जवा� दंू। अपने यहां के मोर'े संभालूं या देहरादून के। दोनों ही मो'� मुझे पागल �नाये हुए हैं। गुड्डी ने तो बिकतनी आसानी से सिलख दिदया है �ेशक भारी मन से ही सिलखा है लेबिकन मैं कैसे सिलख दंू बिक यहां भी स� खैरिरयत है ज�बिक स� कुछ तो क्या कुछ भी ठीक ठाक नहीं है। मैं तो 'ाह कर भी नहीं सिलख सकता बिक मेरी प्यारी �हना, खैरिरयत तो यहां पर भी नहीं है। मैं भी यहां परदेस में अपने हाथ जलाये �ैठा हंू और कोई मरहम लगाने वाला भी नहीं है।तीनों सि'दिट्ठयां बिपछले 'ार दिदन से जे� में सिलये घूम रहा हूं। तीनों ही खत मेरी जे� जला रहे हैं और मैं कुछ भी नहीं कर पा रहा हंू।�ात करंू भी तो बिकससे? कोई भी तो नहीं है यहां मेरा जिजससे अपने मन की �ात कह सकंू। गौरी से कुछ भी कहना �ेकार है। पहले दो एक मौकों पर मैं उसके सामने गुड्डी का जिज़क्र करके देख 'ुका हंू। अ� उसकी मेरे घर �ार के मामलों में कोई दिदल'स्पी नहीं रही है। �ल्किल्क एक आध �ार तो उसने �ेशक गोल-मोल शब्दों में ही इशारा कर दिदया था - डीयर, तुम छोड़ो अ� वहां के प'ड़ों को। तुम अपने नसी� को भोगो। वे अपनी बिकस्मत का वहीं मैनेज कर ही लेंगे।अ'ानक सिशसिशर का �ोन आया है तो मुझे सूझा है, उसी से अपनी �ात कह कर मन का कुछ तो �ोझ हलका बिकया जा सकता है। सिशसिशर को �ुलवा सिलया है मैंने। हम �ाहर ही मिमले हैं। उसे म ैं संके्षप में अपनी �ैक}ाउंड के �ारे में �ताता हूं और तीनों पत्र उसके सामने रखता हंू। वह तीनों पत्र पढ़ कर लौटा देता है।

- क्या सो'ा है तुमने इस �ारे में। पूछता है सिशसिशर।- मैं यहां आने से पहले गुड्डी के सिलए वैसे तो इंतज़ाम कर आया था। उसे मैं तीन लाख के ब्लैंक

'ैक दे आया था। दारजी को इस �ारे में पता नहीं हैं। मैं �ेशक यहां से न तो ये शादी रुकवा सकता हंू और न ही उसके सिलए यहां या वहां �ेहतर दूल्हा ही जुटा सकता हंू। अ� सवाल यह है बिक उसकी ये शादी मैं रुकवाऊं तो रुकवाऊं कैसे? वैसे नंदू इसे अप्रैल तक रुकवाने में स�ल हो ही 'ुका है। त� तक वह �ीए कर ही लेगी। मुझे कुछ सूझ नहीं रहा है इसीसिलए तुम्हें मैंने �ुलाया था।

- बि�लहाल तो तुम यही करो बिक गुड्डी को यही समझाओ बिक ज� तक शादी टाल सके टाले, ज� बि�लकुल भी �स न 'ले तो करे शादी। दारजी को भी एक �ार सिलख कर तो देख लो बिक उसे पढ़ने दें। एक �ार शादी हो जाने के �ाद कभी भी पढ़ाई पूरी नहीं हो पाती। और अगर गुड्डी को लड़का पसंद नहीं है तो क्यों नहीं वे कोई �ेहतर लड़का देखते। �ीए करने के �ाद तो गुड्डी के सिलए �ेहतर रिरश्ते भी आयेंगे ही।

- हां, ये ठीक रहेगा। मैं इन्हीं लाइंस पर तीनों को सिलख देता हंू। आज तुम से �ात करके मेरा आधी परेशानी दूर हो गयी है।

- ये सिस�# तुम्हारी ही समस्या नहीं है मेरे दोस्त। वहां घर घर की यही कहानी है। अगर तुम्हारी गुड्डी की शादी के सिलए तुम्हें सिलखा जा रहा है तो मेरी �हनों अनुश्री और तनुश्री की शादी के सिलए भी मेरे

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�ा�ा भी मुझे इसी तरह की सि'दिट्ठयां सिलखते हैं। तुम लकी हो बिक तुम गुड्डी के सिलए कम से कम तीन लाख का इंतज़ाम करके तो आये थे और इस फं्रट के सिलए तुम्हें रातों की नींद तो खरा� नहीं करनी है। हर समय ये बिहसा� तो नहीं लगाना पड़ता बिक तुम्हारा जुटाया या �'ाया या 'ुराया हुआ एक पाउंड वहां के सिलए क्या मायने रखता है और उनकी बिकतनी ज़रूरतें पूरी करता है। मुझे यहां खुद को मेनटेन करने के सिलए तो हेरा�ेरी करनी ही पड़ती है, साथ ही वहां का भी पूरा बिहसा�-बिकता� दिदमाग में रखना पड़ता है। मुझे न केवल दोनों �हनों के सिलए यहीं से हर तरह के दंद �ंद करके दहेज जुटाना पड़ा �ल्किल्क मैं तो आज भी �ा�ा, मां और दोनों �हनों, जीजाओं की हर तरह की मांगें पूरी करने के सिलए अणिभशप्त हंू। मैं बिपछले 'ार साल से यानी यहां आने के पहले दिदन से ही यही स� कर रहा हंू।

- तो �ंधु, हम लोगों की यही बिनयबित है बिक घर वालों के सामने स' �ोल नहीं सकते और झूठ �ोलते �ोलते, झूठी जिज़दंगी जीते जीते एक दिदन हम मर जायेंगे। त� हमारे सिलए यहां कोई 'ार आंसू �हाने वाला भी नहीं होगा। वहां तो एक ही �ात के सिलए आंसू �हाये जायेंगे बिक पाउंड का हमारा हरा-भरा पेड़ ही सूख गया है। अ� हमारा क्या होगा।

- कभी वाबिपस जाने के �ारे में नहीं सो'ा?- वाबिपस जाने के �ारे में मैं इससिलए नहीं सो' सकता बिक सिशल्पा और मोंटू मेरे साथ जायेंगे नहीं।

अकेले जाने का मतल� है - तलाक ले कर, स� कुछ छोड़-छाड़ कर जाओ। बि�र से नये सिसरे से ज़िजंदगी की शुरूआत !! वह अ� इस उम्र में हो नहीं पायेगा। अ� यहां जिजस तरह की ज़िज़ंदगी की तल� लग गयी है, वहा ं य े स� कहा ं नसी� होगा। खटना तो वहा ं भी पडे़गा ही लेबिकन हासिसल कुछ होगा नहीं। जिजम्मेवारिरयां कम होने के �जाये �ढ़ ही जायेंगी। तो यहीं क्या �ुरा है।

- तुम सही कह रहे हो सिशसिशर। आदमी जिजस तरह की अच्छी �ुरी ज़िज़ंदगी जीने का आदी हो जाता है, उम्र के एक पड़ाव के �ाद उसमें 'ेंज करना इतना आसान नहीं रह जाता। मैं भी नहीं जानता, क्या सिलखा है मेर े नसी� में। यहां या कहीं और, कुछ भी तय नहीं कर पाता। वहां से भाग कर यहां आया था, अ� यहां से भाग कर कहां जाऊंगा। यहां कहने को हम हांडा खानदान के दामाद हैं लेबिकन अपनी अससिलयत हम ही जानते हैं बिक हमारी औकात क्या है। हम अपने सिलए सौ पाउंड भी नहीं जुटा सकते और अपनी मज> से न कुछ कर सकते हैं न बिकसी के सामने अपना दुखड़ा ही रो सकते हैं।

- आयेंगे अचे्छ दिदन भी, सिशसिशर हँसता है और मुझसे बिवदा लेता है।

मैं सिशसिशर के सुझाये तरीके से दारजी और गुड्डी को संणिक्षप्त पत्र सिलखता हंू। एक पत्र नंदू को भी सिलखता हंू। मैं जानता हूं बिक इन खतों का अ� कोई अथ# नहीं है बि�र भी गुड्डी की बिहम्मत �ढ़ाये रखनी है। मैंने दारजी को यह भी सिलख दिदया है बिक मैं यहां गुड्डी के सिलए कोई अच्छा सा लड़का देखता रहंूगा। अगर इंतज़ार कर सकें । उस इंजीबिनयर से अच्छा लड़का यहां भी देखा जा सकता है लेबिकन इसके सिलए वे मुझे थोड़ा टाइम जरूर दें।

�हुत दिदनों �ाद मिमला है सिशसिशर इस �ार।- कैसे हो, दीप, तुम्हारे पैकैजेस ने तो धूम म'ा रखी है।

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- जाने दो यार, अ� उनकी �ात मत करो। अपनी कहो, नयी �ैक्टरी की �धाई लो सिशसिशर, सुना है तुमने इन दिदनों हांडा }ुप को अपने �स में कर रखा है। तुम्हारे सिलए एक �ैक्टरी लगायी जा रही है। इससे तो तुम्हारी पोजीशन का�ी अच्छी हो जायेगी।

- वो स� सिशल्पा के ज़रिरये ही हो पाया है। मैंने उसे ही 'ने के झाड़ पर 'ढ़ाया बिक मैं क� तक गैस स्टेशनों पर हाथों की }ीस उतारने के सिलए उससे सा�ुन मांगता रहूंगा, आखिखर वही स�से �ड़ी है। उसके हस�ैंड को भी अच्छी पोजीशन दी जानी 'ाबिहये। �स �ात स्थिक्लक कर गयी और ये �ैक्टरी हांडा }ुप ने मेरे �ेटे के नाम लगाने का �ैसला बिकया है।

- 'लो, कहीं तो मोंटू की बिकस्मत 'मकी।- खैर, तुम कहो, होम फं्रट पर कैसा 'ल रहा है। पूछा है सिशसिशर ने।- �स, 'ल ही रहा है। मैं भरे मन से कहता हंू।- क्या कोई ज्यादा बिड�रेंसेंस हैं?- हैं भी और नहीं भी। अ� तो कई �ार तो हममें �ात तक नहीं होती।- कोई खास वज़ह?- यही वज़ह क्या कम है? ज� आपका मन ही दिठकाने पर न हो, आप को मालूम हो बिक आपके

आस पास जो कुछ भी है, एक झूठा आवरण है और कदम कदम पर झूठ �ोल कर आपको घेर कर लाया गया है तो आप अपने स�से नजदीकी रिरश्ते भी कहां जी पाते हैं। और उस उस रिरश्ते में भी खोट हो तो .. ..। खै। मेरी छोड़ो, अपनी कहो।

- नहीं दीप नहीं, तुम्हारी �ात को यूं ही नहीं जाने दिदया जा सकता। अगर तुम इसी तरह घुटते रहे तो अपनी ही सेहत का �लूदा �नाओगे। यहां त� कोई पूछने वाला भी नहीं मिमलेगा। मुझसे मत सिछपाओ, मन की �ात कह दो। आखिखर मैं इन लोगों को तुमसे तो ज्यादा ही जानता हूं। स' �ताओ, क्या �ात है। उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा है।

- स' �ात हो यह है बिक मैं थक गया हंू। अ� �हुत हो गया। आदमी क� तक अपना मन मार कर रहता रहे, ज�बिक सुनवाई कहीं नहीं है। यहां तो हर तर� झूठ ही झूठ है।

- �ताओ तो सही �ात क्या है।- कुछ दिदन पहले हम एक कप�ोड# का सामान दूसरे कमरे में सिशफ्ट कर रहे थे तो गौरी के पेपस#

में मुझे उसका का �ायोडाटा मिमला। आम तौर पर मैं गौरी की बिकसी भी 'ीज़ को छूता तक नहीं और न ही उसके �ार े मे कोई भी सवाल ही पूछता हंू। दरअसल उन्हीं कागजों से पता 'ला बिक गौरी सिस�# दसवीं पास है ज�बिक मुझे �ताया गया था बिक वह }ेजुएट है। मुझे समझ नहीं आ रहा बिक इस �ारे में भी मुझसे झूठ क्यों �ोला गया? मुझे तो यह भी �ताया गया था बिक वह अपनी कम्पनी की �ुल टाइम डाइरेक्टर है। यहां तो वह स�से कम टन#ओवर वाले फ्लोरिरस्ट स्टाल पर है और स्टाल का एकाउंट भी सेन्ट्रलाइज है।

- यही �ात थी या और भी कुछ?- तो क्या यह कुछ कम �ात है। मुझसे झूठ तो �ोला ही गया है ना....।

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- तुम मुझसे अभी पूछ रहे थे ना बिक मैंने अपनी पोजीशन का�ी अच्छी कैसे �ना रखी है। तो सुनो, मेरी �ी�ी सिशल्पा डाइवोस> है और यह �ात मुझसे भी छुपायी गयी थी।

- अरे...तो पता कैसे 'ला तुम्हें...?- इन लोगों ने तो पूरी कोसिशश की थी बिक मुझ तक यह राज़ जाबिहर न हो लेबिकन शादी के शुरू

शुरू में सिशल्पा के मुंह से अक्सर संजीव नाम सुनाई दे जाता लेबिकन वह तुरंत ही अपने आप को सुधार लेती। कई �ार वह मुझे भी संजीव नाम से पुकारने लगती। हनीमून पर भी मैंने पाया था बिक उसका बि�हेबिवयर कम से कम कंुवारी कन्या वाला तो नहीं ही था। वाबिपस आ कर मैंने पता बिकया, पूरे खानदान में संजीव नाम का कोई भी मेम्�र नहीं रहा था। मेरा शक �ढ़ा। मैंने सिशल्पा को ही अपने बिवश्वास में सिलया। जैसे वही मेरी ज़िज़ंदगी की स�से �ड़ी खुशी हो। उसे खू� प्यार दिदया। बि�र उसके �ारे में �हुत कुछ जानने की इच्छा जाबिहर की। वह झांसे में आ गयी। �ातों �ातों में उसके दोस्तों का जिजक्र आने लगा तो उसमें संजीव का भी जिजक्र आया। वह इसका क्लास �ेलो था। पता 'ला, हमारी शादी से दो साल पहले उन दोनों की शादी हुई थी। यह शादी कुल 'ार महीने 'ली थी। हालांबिक मैं अ� इस धोखे के खिखला� कुछ नहीं कर सकता था लेबिकन मैंने इसी जानकारी को तुरुप के पत्ते की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिदया। सिशल्पा भी समझ गयी बिक मुझे स� पता 'ल 'ुका है। त� से मेरी कोई भी �ात न तो टाली जाती है और न ही कोई मेरे साथ कोई उलटी सीधी हरकत ही करता है। �ल्किल्क ज� जरूरत होती है, मैं उसे ब्लैक मेल भी करता रहता हंू। कई �ार तो मैंने उससे अच्छी खासी रकमें भी ऐंठी हैं।

- लेबिकन इतनी �ड़ी �ात जान कर भी 'ुप रह जाना.... मेरा तो दिदमाग खरा� हो जाता..।- दीप तुम एक �ात अच्छी तरह से जान लो। मैंने भी अपने अनुभव से जानी है और आज यह

सलाह तुम्हें भी दे रहा हंू। �ेशक सिशल्पा डाइवोस> थी और यह �ात मुझसे सिछपायी गयी लेबिकन यहां लंदन में तुम्हें कोई लड़की कंुवारी मिमल जायेगी, इस �ात पर सपने में यकीन नहीं बिकया जा सकता। अपोजिज़ट सैक्स की फ्रैं डसिशप, मीटिटंग और आउटिटंग, डेटिटंग और इस दौरान सैक्स रिरलेशंस यहां तेरह 'ौदह साल की उम्र तक शुरू हो 'ुके होते हैं। अगर नहीं होते तो लड़की या लड़का यही समझते हैं बिक उन्हीं में कोई कमी होगी जिजसकी वज़ह से कोई उन्हें डेटिटंग के सिलए �ुला नहीं रहा है। कोई कमी रह गयी होगी वाला मामला ऐसा है जिजससे हर लड़का और लड़की �'ना 'ाहते हैं। दरअसल ये 'ीजें यहां इतनी तेजी से और इतनी सहजता से होती रहती ह ैं बिक सत्तर �ीसदी मामलों में नौ�त ए�ाश#न तक जा पहुं'ती है। अगर शादी हो भी जाये तो रिरलेशंस पर से 'ांदी उतरते देर नहीं लगती। त� डाइवोस# तो है ही सही। इससिलए ज� मैंने देखा बिक ऐसे भी और वैसे भी यहां कंुवारी लड़की तो मिमलने वाली थी नहीं, यही सही। �ाकी अदरवाइज सिशल्पा इज ए वेरी गुड वाइ�। दूसरी तकलीVें अगर मैं भुला भी दंू तो कम से कम इस फं्रट पर मैं सुखी हंू।हँसा है सिशसिशर - �ल्किल्क कई �ार अ� मैं ही रिरश्तों में �ेईमानी कर जाता हंू और इधर-उधर मुंह मार लेता हंू। वैसे भी दूध का धुला तो मैं भी नहीं आया था। यहां भी वही स� जारी है।

- यार, तुम्हारी �ातें तो मेरी आंखें खोल रही हैं। मैं ठहरा अपनी इंबिडयन मैंटेसिलटी वाला आम आदमी। इतनी दूर तक तो सो' भी नहीं पाता। वैसे भी तुम्हारी �ातों ने मुझे दोहरी दुबिवधा में डाल दिदया है। इसका मतल� ..

- पूछो.. पूछो.. क्या पूछना 'ाहते हे.. सिशसिशर ने मेरी बिहम्मत �ढ़ाई है।- तो क्या गौरी भी...?

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- अ� अगर तुममें स' सुनने की बिहम्मत है और तुम स' सुनना ही 'ाहते हो और स' को झेलने की बिहम्मत भी रखते हो तो सुनो, लेबिकन यह �ात सुनने से पहले एक वादा करना होगा बिक इसके सिलए तुम गौरी को कोई सज़ा नहीं दोगे और अपने मन पर कोई �ोझ नहीं रखोगे।

- तुम कहो तो सही।- ऐसे नहीं, स'मु' वादा करना पडे़गा। वैसे भी तुम्हारे रिरश्तों में दरार 'ल रही है। �ल्किल्क मैं तो

कहूंगा बिक तुम भी अपनी लाइ� स्टाइल �दलो। हर समय देवदास की तरह कुढ़ने से न तो दुबिनया �दलेगी और न कुछ हासिसल ही होगा। उठो, घर से �ाहर बिनकलो और ज़िज़ंदगी को ढंग से जीओ। ये ज़िज़ंदगी एक ही �ार मिमली है। इसे रो धो कर गंवाने के कुछ भी हासिसल नहीं होने वाला।

- अरे भाई, अ� �ोलो भी सही।- तो सुनो। गौरी को भी ए�ाश#न कराना पड़ा था। हमारी शादी के पहले ही साल। यानी तुम्हारी

शादी से तीन साल पहले। उसे सिशल्पा ही ले कर गयी थी। लेबिकन मैंने कहा न.. ऐसे मामलों में सिशल्पा या गौरी या बिवबिनता या बिकसी भी ल़ड़की का कोई कुसूर नहीं होता। यहां की हवा ही ऐसी है बिक आप 'ाह कर भी इन रिरश्तों को रोक नहीं सकते। मां-�ाप को भी तभी पता 'लता है ज� �ात इतनी आगे �ढ़ 'ुकी होती है। थोड़ा �हुत रोना-धोना म'ता है और स� कुछ र�ा द�ा कर दिदया जाता है। इंबिडया से कोई भी लड़का ला कर त� उसकी शादी कर दी जाती है। अ� यही देखो ना, बिक इस हांडा �ेमिमली के ही लड़के भी तो यहां की लड़बिकयों के साथ यही स� कुछ कर रहे होंगे और उन्हें प्रैगनेंट कर रहे होंगे।

- लेबिकन ..गौरी भी.. अ'ानक मुझे लगता है बिकसी ने मेरे मुंह पर एक तमा'ा जड़ दिदया है या �ी' 'ौराहे पर नंगा कर दिदया है.. ये स� मेरे साथ ही क्यंू होता है। मैं एकाएक 'ुप हो गया हंू।

- देखो दीप मैंने तुम्हें ये �ात जान�ूझ कर �तायी ताबिक तुम इन इन्ही�ीशंस से मुक्त हो कर अपने �ारे में भी कुछ सो' सको। अ� तुम ये भी तो देखो बिक गौरी अ� तुम्हारे प्रबित पूरी तरह ईमानदार है �ल्किल्क गौरी ने खुद ही सिशल्पा को �ताया था बिक वह तुम्हें पा कर �हुत सुखी है। खुश है और शी इज रीयली प्राउड आ� यू। वह सिशल्पा को �ता रही थी बिक वह एक रात भी तुम्हारे बि�ना नहीं सो सकती। तो भाई, अ� तुम अपने इंबिडयन सैंटीमेंटस की पुबिड़या �ना कर द�न करो और अपनी भी ज़िज़ंदगी को एजंाय करो। वैसे �ुरा मन मानना, गौरी ने तो तुमसे शादी से पहले के रिरलेशंस के �ारे में कुछ नहीं पूछा होगा।

मैं झेंपी हँसी हँसता हूं - पूछ भी लेती तो उसे कुछ मिमलने वाला नहीं था। गौरी से पहले तो मैंने बिकसी लड़की को 'ूमा तक नहीं था। बि�स्तर पर मैं बिकतना अनाड़ी था, ये तो गौरी को पहली ही रात पता 'ल गया था।

- इसके �ावजूद वह तुम्हार े बि�ना एक रात भी सोने के सिलए तैयार नहीं है। इसका कोई तो मतल� होगा ही सही।

- तुम गौरी पर पूरा भरोसा रखो और उसके मन में इस �ात के सिलए कोई बिगल्ट मत आने दो। अव्वल तो तुम �दला ले नहीं सकते। लेना भी 'ाहो तो अपना ही नुक्सान करोगे। खैर, अ� तुम मन पर �ोझ मत रखो। �ेईमानी करने को जी करता है तो जरूर करो लेबिकन �ॉर गॉड सेक, अपनी इस रोनी सूरत से छुटकारा पाओ। रिरयली इट इज बिकसिलंग यू। ओके!! टेक केयर ऑ� यूअरसेल्�।

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सिशसिशर �ेशक इतनी आसानी से सारी �ातें कह गया था लेबिकन मेरे सिलए ये सारी �ातें इतनी सहजता से ले पाना इतना आसान नहीं है। सिशसिशर जिजस मिमट्टी का �ना हुआ है, उसने सिशल्पा की सच्चाई जानने के �ावजूद उसे न केवल स्वीकार कर रखा है �ल्किल्क अपने तरीके से उसे ब्लैकमेल भी कर रहा है और रिरश्तों में �ेईमानी भी कर रहा है। ये तीनों �ातें ही मुझसे नहीं हो पा रहीं। न मैं गौरी के अतीत का स' प'ा पा रहा हंू, न उसे ब्लैकमेल कर पाऊंगा और न ही इन सारी �ातें के �ावजूद पबित-पत्नी के रिरश्ते में �ेईमानी ही कर पाऊंगा। हालांबिक गौरी मेरी �गल में लेटी हुई है और मेरा हाथ उसके नंगे सीने पर है, वह रोज ऐसे ही सोती है, मेरे मन में उसके प्रबित कोई भी कोमल भाव नहीं उपज रहा। आज भी उसकी सैक्स की �हुत इच्छा थी लेबिकन मैंने मना कर दिदया बिक इस समय मूड नहीं है। �ाद में रात को देखेंगे। अक्सर ऐसा भी हो जाता है। कई �ार उसका भी मूड नहीं होने पर हम �ाद के सिलए तय करके सो जाते हैं और �ाद में नींद खुलने पर इस रिर'ुअल को भी बिनभा लेते हैं। अ� यह रिर'ुअल ही तो रहा है। न हमारे पास एक दूसरे के सुख दुख के सिलए समय है न हम अपनी पस#नल �ातें ही एक दूसरे से शेयर कर पाते हैं। बिडनर या लं' हम एक साथ छुट्टी के दिदनों में ही ले पाते हैं और एक दूसरे के प्रबित पूरा आकष#ण खो 'ुके हैं। कम से कम मुझे तो ऐसा ही लगता है। मुझे पता है बिक गौरी का मेरे प्रबित आकष#ण का एक और एकमात्र कारण भरपूर सैक्स है और उसके बि�ना उसे नींद नही आती। मेरी मज�ूरी है बिक मुझे खाली पेट नींद नहीं आती। कई �ार हमारा झगड़ा भी हो जाता है और हम दोनों ही बिकसी नतीजे पर पहुं'े बि�ना एक दूसरे से रूठ कर एक अलग-अलग सो जाते हैं लेबिकन नींद दोनों को ही नहीं आती। गौरी को पता है मैं खाली पेट सो ही नहीं सकता और मुझे पता है ज� तक उसे उसका टॉबिनक न मिमल जाये, वह करवटें �दलती रहेगी। कभी उठ कर �त्ती जलायेगी, कभी दूसरे कमरे म ें जायेगी, कोई बिकता� पढ़ने का नाटक करेगी या �ार-�ार मुझे सुनाते हुए तीखी �ातें करेगी। उसके ये नाटक देर तक 'लते रहेंगे। वैसे तो मैं भी नींद न आने के कारण करवटें ही �दलता रहंूगा। त� मान मनौव्वल का सिसलसिसला शुरू होगा और �ेशक रोते धोते ही सही, कम्�ख्त सैक्स भी ऐसी नाराज़गी भरी रातों में कुछ ज्यादा ही त�ीयत से भोगा जाता है।

अ� सिशसिशर की �ातें लगातार मन को मथे जा रही हैं।गौरी के इसी सीने पर बिकसी और का भी हाथ रहा होगा। गौरी बिकसी और से भी इसी तरह हर रोज सैक्स की, भरपूर सैक्स की मांग करती होगी और खू� एंजंाय करने के �ाद सोती होगी। आज यह मेरी �ीवी �न कर मेरे साथ इस तरह अधनंगी लेटी हुई है, बिकसी और के साथ भी लेटती रही होगी। छी छी। मुझे ही ये स� क्यों झेलना पड़ता है!! मैं ही क्यों हर �ार रिरसीपिवंग एडं पर होता हंू। क्या मैं भी सिशसिशर की तरह गौरी से �ेईमानी करना शुरू कर दंू या उसे ब्लैकमेल करना शुरू कर दंू। ये दोनों ही काम मुझसे नहीं होंगे और जिजस काम के सिलए सिशसिशर ने मुझे मना बिकया है, मैं वही करता रहंूगा। लगातार कुढ़ता रहंूगा और अपनी सेहत का �लूदा �नाता रहंूगा।

मेरा मन काम से उ'टने लगा है। नतीजा यह हुआ है बिक मैं घुटन महसूस करने लगा हंू। मेरी �े'ैनी �ढ़ने लगी है। मैं पहले भी अकेला था अ� और अकेला होता 'ला गया हंू। इसी दौर में मैंने �ाहर एकाध जगह काम की तलाश की है। काम �हुत हैं और मेरी सिलयाकत और टे्रपिनंग के अनुरूप हैं, लेबिकन दिदक्कतें हैं बिक हांडा परिरवार से कहा कैसे जाये और दूसरे वक# परमिमट को हासिसल बिकया जाये।

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कई �ार इच्छा भी होती है बिक मैं भी पैसे के इस समंदर में से अपनी मुदिट्ठयों में भर कर थोडे़ �हुत पाउंड बिनकाल लूं लेबिकन मन नहीं माना। यह कोई �हुत इज्जतदार सिसलसिसला तो नहीं ही है। हम यहां �ेशक �ेगारी की ज़िजंदगी जी रहे हैं और हेरा �ेरी जैसी टुच्ची हरकतों से इस जलालत के �दले कुछ ही तो भरपाई हो पायेगी। हालांबिक कई �ार गौरी मेरी �े'ैनी और छटपटाहट को समझने की कोसिशश करती है लेबिकन या तो उसके सामने भी �ंधन हैं या बि�र जिजस तरह की उसकी परवरिरश है, वहां इन स� 'ीजों के सिलए कोई जगह ही नहीं है। हम पां' जवान, पढे़-सिलखे लड़के उस घर के जवाईं हैं, �ेशक घर जवाईं लेबिकन हैं तो उस खानदान में स�से पढे़ सिलखे, लेबिकन हमें कभी भी घर के सदस्य की तरह ट्रीटमेंट नहीं मिमलता। मैं इस घर में कभी भी, एक दिदन के सिलए भी, न तो कभी सहज हो पाया हूं और न ही मेरी नाराजगी की, उदासी की वजह ही बिकसी ने पूछने की ज़रूरत ही समझी है।

दारजी और नंदू के पत्र आये हैं। आखिखर गुड्डी की शादी कर ही दी गयी।सिलखा है नंदू न े - टी'स# की हड़ताल की वज़ह से मा'# में ही पता 'ल गया था बिक �ीए की परीक्षाए ंअपै्रल में नहीं हो पायेंगी। गुड्डी ने दारजी से भी कहा था और मेरे ज़रिरये भी दारजी कहलवाया था बिक वह शादी से इनकार नहीं करती लेबिकन कम से कम उसके इम्तिम्तहान तो हो जाने दें लेबिकन दारजी ने सा� सा� कह दिदया - शादी की सारी तैयारिरयां हो 'ुकी हैं अ� तारीख नहीं �दलेंगे।वही हुआ और गुड्डी इतनी कोसिशशों के �ावजूद �ीए की परीक्षा नहीं दे पायी। मुझे नहीं लगता बिक गुड्डी की ससुराल वाले इतने उदार होंगे बिक उसे इम्तिम्तहान में �ैठने दें। वैसे मैं खुद गुड्डी के घरवाले से मिमल कर उसे समझाने की कोसिशश करंूगा। शादी ठीक-ठाक हो गयी है। �ेशक तेरी गैर हाजरी में मैंने गुड्डी के �डे़ भाई का �ज# बिनभाया है लेबिकन तू होता तो और ही �ात होती। तेरी सलाह के अनुसार मैंने सारे पेमेंट्स कर दिदये थे और दारजी तक यह ख�र दे दी थी बिक जो कुछ भी खरीदना है या लेनदेन करना है, मुझे �ता दें। मैं कर दंूगा। मैंने उन्हें पटा सिलया था बिक दीप ने गुड्डी की शादी के सिलए जो �ाफ्ट भेजा है, वह पाउंड में है और उसे सिस�# इन्टरनेशनल खाते में ही जमा बिकया जा सकता है। दारजी झांसे में आ गये और सारे ख'� मेरी मा�# त ही कराये। मैं इस तरीके से का�ी �ालतू ख'# कम करा सका। दारजी और गुड्डी के खत भी आगे पीछे पहुं' ही रहे होंगे।नंदू के खत के साथ-साथ गुड्डी का तो नहीं पर दारजी का खत जरूर मिमला है। इसमें भी गुड्डी की शादी की वही सारी �ातें सिलखी हैं जो नंदू ने सिलखी हैं। अल�त्ता दारजी की बिनगाह में दूसरी 'ीजें ज्यादा अहमिमयत रखती हैं, वही उन्होंने सिलखी हैं। मेरे भेजे गये पैसों से बि�रादरी में उनकी नाक ऊं'ी होना, शादी धूमधाम से होना, बि�र भी का�ी कजा# हो जाना वगैरह वगैरह। उन्होंने इस �ात का एक �ार भी जिजक्र नहीं बिकया है बिक गुड्डी उनकी जिज़द के कारण �ीए होते होते रह गयी या वे इस �ात की कोसिशश ही करेंगे बिक गुड्डी के इम्तहानों के सिलए उसे मायके ही �ुला लेंगे। सारे खत में दारजी ने अपने वही पुराने राग अलापे हैं। इस �ात का भी कोई जिजक्र नहीं है बिक ये स� मेरे कारण ही हो पाया है और बिक अगर मैं वहां होता तो बिकतना अच्छा होता।दारजी का पत्र पढ़ कर मैंने एक तर� रख दिदया है।अल�त्ता अगर गुड्डी का पत्र आ जाता तो तसल्ली रहती।

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इन दिदनों खासा परेशान 'ल रहा हू। न घर पर 'ैन मिमलता है न स्टोस# में। समझ में नहीं आता, मुझे ये क्या होता जा रहा है। अगर कोई �ं�ई का कोई पुराना परिरसि'त मुझे देखे तो पह'ान ही न पाये, मैं वही अनुशासिसत और कम#ठ गगनदीप हूं जो अपने सारे काम खुद करता था और कायदे से, स�ाई से बिकया करता था। ज� तक �ं�ई में था, मुझे ज़िज़ंदगी में जरा सी भी अव्यवस्था पसंद नहीं थी और गंदगी से तो जैसे मुझे एलज> थी। अ� यहां बिकतना आलसी हो गया हंू। 'ीजें टलती रहती हैं। अ� न तो उतना 'ुस्त रहा हूं और न ही स�ाई पसंद ही। अ� तो शेव करने में भी आलस आने लगा है। कई �ार एक-एक हफ्ता शेव भी नहीं करता। गौरी ने कई �ार टोका तो दाढ़ी ही �ढ़ानी श्जारू कर दी है। मैं अ� ऐसे सभी काम करता हूं जो गौरी को पसंद नहीं हैं। छुट्टी के दिदन गौरी की �हुत इच्छा होती है, कहीं लम्�ी �ाइव पर 'लें, बिकसी के घर 'लें या बिकसी को �ुला ही लें, मैं तीनों ही काम टालता हंू। वैसे भी ज� से आया हूं, गौरी पीछे पड़ी है, घर में दो गाबिड़यां खड़ी हैं, कम से कम �ाइपिवंग ही सीख लो। मैंने भी कसम खा रखी है बिक �ाइपिवंग तो नहीं ही सीखंूगा, भले ही पूरी ज़िज़ंदगी पैदल ही 'लना पडे़। अभी तक गौरी और मेरे �ी' इस �ात पर शीत युद्ध 'ल रहा है बिक मै उससे पैसे मांगूंगा नहीं। वह देती नहीं और मैं मांगता नहीं। एक �ार सिशसिशर ने कहा भी था बिक तुम्हीं क्यों ये सारे त्याग करने पर तुले हो। क्यों नहीं अपनी ज़रूरत के पैसे गौरी से मांगते या गौरी के कहने पर पूल मनी से उठा लेते। आखिखर कोई क� तक अपनी ज़रूरतें द�ाये रह सकता है। गौरी को ज� पता 'ला तो उसने उंह करके मंुह बि�'काया था - अपनी गगनदीप जानें। मेरा पां' सात हज़ार पाउंड का जे� ख'# मुझे मिमलना ही 'ाबिहये। ज� सिशसिशर को यह �ात पता 'ली तो वह हँसा था - यार, तुम्हें समझना �हुत मुल्किश्कल है। भला ये स� तुम स� बिकस सिलए कर कर रहे हो। अगर तुम एक्सपेरिरमेंट कर रहे हो तो ठीक है। अगर तुम गौरी या हांडा }ुप को इमे्प्रस करना 'ाहते हो तो तुम �हुत �ड़ी गलती कर रहे हो। वे तो ये मान लेंगे बिक उन्हें बिकतना अच्छा दामाद मिमल गया है जो ससुराल का एक पैसा भी लेना या ख'# करना हराम समझता है। उनके सिलए इससे अच्छी और कौन सी �ात हो सकती है। दूसरे वे ये भी मान कर 'ल सकते हैं बिक वे कैसे कंगले को अपना दामाद �ना कर लाये हैं जो अंडर}ाउंड के 'ालीस पैंस �'ाने के सिलए 'ालीस मिमनट तक पैदल 'लता है और ये नहीं देखता बिक इन 'ालीस मिमनटों को अपने कारो�ार में लगा कर बिकतनी तरक्की कर सकता था। इससे तुम अपनी क्या इमेज �नाओगे, ज़रा यह भी देख लेना।

- मुझे बिकसी की भी परवाह नहीं है। मेरी तो आजकल ये हालत है बिक मैं अपने �ारे में कुछ नहीं सो' पा रहा हंू।

-

गुड्डी का खत आया है। सिस�# तीन लाइन का। समझ नहीं पा रहा हं,झ ज� उसके सामने खुल कर खत सिलखने की आज़ादी नहीं है तो उसने ये पत्र भी क्यों सिलखा! �ेशक पत्र तीन ही पंसिक्तयों का है लेबिकन मैं उन �ीस पच्चीस शब्दों के पीछे छुपी पीड़ा को सा� सा� पढ़ पा रहा हूं।सिलखा है उसने

- वीरजी,इस वैसाखी के दिदन मेरी डोली बिवदा होने के साथ ही मेरी ज़िज़ंदगी में कई नये रिरश्ते जुड़ गये हैं। ये सारे रिरश्ते ही अ� मेरा वत#मान और भबिवष्य होंगे। मुझे अVसोस है बिक मैं आपको दिदये कई व'न पूरे न कर सकी। मैं अपने घर, नये माहौल और नये रिरश्तों की गहमागहमी में �हुत खुश हंू। मेरा दुभा#ग्य बिक मैं

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आपको अपनी शादी में भी न �ुला सकी। मेरे और उनके सिलए भेजे गये बिगफ्ट हमें मिमल गये थे और हमें �हुत पसंद आये हैं।मेरी तर� से बिकसी भी बिकस्म की सि'ंता न करें।आपकी छोटी �हन,हरप्रीत कौर(अ� नये घर में यही मेरा नया नाम है।) इस पत्र से तो यही लगता है बिक गुड्डी ने खुद को हालात के सामने पूरी तरह सरंडर कर दिदया है नहीं तो भला ऐसे कैसे हो सकता था बिक वह इतना �ाम#ल और शुष्क ख�र देने वाला ऐसा खत सिलखती और अपना पता भी न सिलखती। मैं भी क्या करंू गुड्डी! एक �ार बि�र तुझसे भी मा�ी मांग लेता हूं बिक मैं तेरे सिलए इस जनम में कुछ भी नहीं कर पाया। वो जो तू अपने �ड़े भाई की कद काठी, पस#नैसिलटी और लाइ� स्टाइल देख कर मुग्ध हो गयी थी और लगे हाथों मुझे अपना आदश# �ना सिलया था, मैं तुझे कैसे �ताऊं गुड्डी बिक मैं एक �ार बि�र यहां अपनी लड़ाई हार 'ुका हंू। अ� तो मेरी ख्दा की जीने की इच्छा ही मर गयी है। तुझे मैं �ता नहीं सकता बिक मैं यहां अपने दिदन कैसे काट रहा हंू। तेरे पास बि�र भी सगे लोग तो हैं, �ेशक उनसे अपनापन न मिमले, मैं तो बिकतना अकेला हूं यहां और खालीपन की ज़िज़ंदगी बिकसी तरह जी रहा हंू। मैं ये �ातें गुड्डी को सिलख भी तो नहीं सकता।

कल रात गौरी से तीखी नोंक झोंक हो गयी थी। �ात वही थी। न मैं पैसे मांगूंगा और न उसे इस �ात का ख्याल आयेगा। हम दोनों को एक शादी में जाना था। गौरी ने मुझे सु�ह �ता दिदया था बिक शादी में जाना है। कोई अच्छा सा बिगफ्ट ले कर रख लेना। मैं वहीं तुम्हारे पास आ जाऊंगी। सीधे 'ले 'लेंगे। ज� गौरी ने यह �ात कही थी तो उसे 'ाबिहये था बिक मेरे स्वभाव और मेरी जे� के मिमज़ाज को जानते हुए �ता भी देती बिक बिकतने तक का बिगफ्ट खरीदना है और कहती - ये रहे पैसे। उसने दोनों ही काम नहीं बिकये थे। अ� मुझे क्या पड़ी थी बिक उससे पैसे मांगता बिक बिगफ्ट के सिलए पैसे दे दो। ज� हांडा }ुप घर ख'# के सारे पैसे तुम्हें ही देता है तो तुम्हीं संभालो ये सारे मामले। बि�लहाल तो मैं ठनठन गोपाल हूं और मैं बिकसी को बिगफ्ट देने के सिलए गौरी से पैसे मांगने से रहा।शाप �ंद हो जाने के �ाद गौरी ज� शादी के रिरसेप्शन में जाने के सिलए आयी तो कार में मेरे �ैठने के साथ ही उसने पूछा - तुम्हारे हाथ खाली हैं, बिगफ्ट कहां है?

- नहीं ले पाया।- क्यों, कहा तो था मैंने, उसने गाड़ी �ी' में ही रोक दी है।- �ताया न, नहीं ले पाया, �स।- लेबिकन कोई वज़ह तो होगी, न लेने की। अ� सारी शॉप्स �ंद हो गयी हैं। क्या शादी में खाली

हाथ जायेंगे। दीप, तुम भी कई �ार .. वह झल्ला रही है।- गौरी, इस तरह से नाराज़ होने की कोई ज़रूरत नहीं है। न 'ाहते हुए भी मेरा पारा गम# होने

लगा है। तुम्हें अच्छी तरह से पता है, मेरे पास पैसों का कोई इंतज़ाम नहीं है। और तुम्हें यह भी पता है

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बिक न मैं घर से बि�ना तुम्हार े कहे पैसे उठाता हूं और न ही स्टोस# में से अपने पस#नल काम के सिलए कैसिशयर से वाउ'र ही �नवाता हंू। बिगफ्ट के सिलए कहते समय तुम्हें इस �ात का ख्याल रखना 'ाबिहये था। - यू आर ए सिलमिमट ! गौरी ज़ोर से 'ीखी है। मैं तो तंग आ गयी हंू तुम्हारे इन कानूनों से। मैं ये नहीं करंूगा और मैं वो नहीं करंूगा। आखिखर तुम्हें हर �ार ये जतलाने की ज़रूरत क्यों पड़ती है बिक तुम्हारे पास पैसे नहीं हैं। क्यों �ार-�ार तुम यही टॉबिपक छेड़ देते हो। आखिखर मैं भी क्या करंू? के्रबिडट काड# तुम्हें 'ाबिहये नहीं, कैश तुम उठाओगे नहीं और मांगोगे भी नहीं, �स, ताने मारने का कोई मौका छोड़ोगे नहीं।

- देखो गौरी, इस तरह से शोर म'ाने की ज़रूरत नहीं है। मैं बि�र भी ख्दा को शांत रखे हुए हूं - जहां तक पैसों या बिकसी भी 'ीज को लेकर मेरे पिप्रंसिसपल्स की �ात है, तुम कई �ार मेरे मुंह से सुन 'ुकी हो बिक मैं अपने आप कहीं से भी पैसे नहीं उठाउं गा। काम होता है या नहीं होता€ , मेरी जिजम्मेवारी नहीं है।

- मैं तुमसे बिकतनी �ार कह 'ुकी हंू, डीयर बिक धहमें जो पैसे दिदये जाते हैं वे हम दोनों के सिलए हैं और सांझे हैं। हम दोनों के कॉमन पूल में रखे रहते हैं। तुम उसमें से लेते क्यों नहीं हो। अ� तो तुम नये नहीं हो। न हमारे रिरश्ते इतने �ाम#ल हैं बिक आपस में एक दूसरे से पूछना पड़े बिक ये करना है और वो करना हैं। अ� तुम्हारी ज़रा सी जिजद की वज़ह से बिगफ्ट रह गया न.. अ� जा कर अपनी शॉप से कोई �ुके ही ले जाना पडे़गा।

- हमारे आपसी रिरश्तों की �ात रहने दो, �ाकी, जहां तक पैसों की �ात है तो मैं अभी भी अपनी �ात पर दिटका हुआ हूं बिक मैं आज तक हांडा }ुप का सिसस्टम समझ नहीं पाया बिक मेरी हैसिसयत क्या है इस घर में !!

- अ� बि�र लगे कोसने तुम हांडा }ुप को। इसी }ुप की वजह से तुम...।- डोंट क्रॉस यूअर सिलमिमट गौरी। मुझे भी गुस्सा आ गया ह ै - पहली �ात तो यह बिक मैं वहां

सड़क पर नहीं �ैठा था बिक मेरे पास यहां रहने खाने को नहीं है, कोई मुझे शरण दे दे और दूसरी �ात बिक �ं�ई में पहली ही मुलाकात में ही तुम्हारे सामने ही मुझसे दस तरह के झूठ �ोले गये थे। मुझे पता होता बिक यहां आ कर मुझे मुफ्त की सैल्समैनी ही करनी है तो मैं दस �ार सो'ता।

- दीप, तुम ये सारी �ातें मुझसे क्यों कर रहे हो। आखिखर क्या कमी है तुम्हें यहां..मजे से रह रहे हो और शानदार स्टोस# के अकेले कत्ता#धत्ता# हो। अ� तुम्हीं पैसे न लेना 'ाहो तो कोई क्या करे!!

- पैसे देने का कोई तरीका भी होता है। अ� मैं रहूं यहां और पैसे इंबिडया में अपने घर से मंगाऊं, ये तो नहीं हो सकता।

- तुम्हें बिकसने मना बिकया है पैसे लेने से। सारे दामाद कॉमन पूल से ले ही रहे हैं और के्रबिडट काड# से भी खू� ख'# करते रहते हैं। कैश भी उठाते रहते हैं। कभी कोई उनसे पूछता भी नहीं बिक कहां ख'# बिकये और क्यों बिकये। बिकसी को खरा� नहीं लगता। तुम्हारी समझ में ही यह �ात नहीं आती। तुम्हें बिकसने मना बिकया है पैसे लेने से।

- मेरे अपने कुछ उसूल हैं।

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- तो उन्हीं उसूलों का पि�ंक �ना कर दिदन रात पीते रहो। सारा मूड ही 'ौपट कर दिदया। गौरी झल्लाई है।

- कभी मेरे मूड की भी परवाह कर सिलया करो। मैंने भी कह ही दिदया है। - तुमसे तो �ात करना भी मुल्किश्कल है।

कार में हुई इस नोंक-झोंक का असर पूरे रास्ते में और �ाद में पाट� में भी रहा है। सिशसिशर ने एक बिकनारे ले जा कर पूछा है - आज तो दोनों तर� ही �ुट�ाल �ूले हुए हैं। लगता है, का�ी लम्�ा मै' खेला गया है।मैं भरा पड़ा हूं। हालांबिक मुझे अ�सोस भी हो रहा है बिक मैं पहली �ार गौरी से इतने ज़ोर से �ोला और उससे ऐसी �ातें कीं जो मुझे ही छोटा �नाती हैं। लेबिकन मैं जानता हंू, मेरी ये झल्लाहट सिस�# पैसों के सिलए या बिगफ्ट के सिलए नहीं है। इसके पीछे मुझसे �ोले गये सारे झूठ ही काम कर रहे हैं। ज� से सिशसिशर ने मुझे गौरी के अ�ॉश#न के �ारे में �ताया है, मैं त� से भरा पड़ा था। आज गुस्सा बिनकला भी तो बिकतनी मामूली �ात पर। हालांबिक मैं सिशसिशर के सामने मैं खुद को खोलना नहीं 'ाहता लेबिकन उसके सामने कुछ भी छुपाना मेरे सिलए �हुत मुल्किश्कल हो जाता है।मैंने उसे पूरा बिकस्सा सुना दिदया है। सिशसिशर ने बि�र मुझे ही डांटा है

- तुम्हें मैं बिकतनी �ार समझा 'ुका हूं बिक अ� तो तुम्हें यहां रहते इतना अरसा हो गया है। अ� तक तो तुम्हें हांडा }ुप से अपने लायक एक आध लाख पाउंड अलग कर ही लेने 'ाबिहये थे। इतना �ड़ा स्टोस# संभालते हो और तुम्हारी जे� में दस पेंस का सिसक्का भी खोजे नहीं मिमलेगा। मेरी मानो, इन �ातों की वजह से गौरी से लड़ने झगड़ने की ज़रूरत नहीं है। थोड़ी बिडप्लोमेसी भी सीखो। 'ोट कहीं और करनी 'ाबिहये तुम्हें और एनज> यहां वेस्ट कर रहे हो। खैर, ये भी ठीक हुआ बिक तुमने गौरी से ही सही, अपने मन की �ात कही तो सही। अ� देखें, ये �ातें बिकतनी दूर तक जाती हैं।इस �ी' मेरी छटपटाहट �हुत �ढ़ 'ुकी है। गौरी से अ�ोला 'ल रहा है। न वह अपने बिकये के सिलए शर्मिंमंदा है, न मैं यह मानने के सिलए तैयार हूं बिक मैं गलत हंू। अ� तो वह भी बि�ना सैक्स के सो रही है और मैं भी, जो भी मिमलता है, खा लेता हूं। दोनों ही एक दूसरे से का�ी दूर होते जा रहे हैं। मैं भी अ� 'ाहने लगा हंू, ये स� यहीं खत्म हो जाये तो पिपंड छूटे। बिकसी तरह वाबिपस लौटा जा सकता तो ठीक रहता। काम की तर� ध्यान देना मैंने क� से छोड़ दिदया है। भाड़ में जायें स�। मैं ही हांडा परिरवार की दौलत �ढ़ाने के सिलए क्यों दिदन रात खटता रहंू। मेरी सेहत भी आजकल खरा� 'ल रही है। मैं �ेशक इस �ा�त बिकसी से �ात नहीं करता और बिकसी से कोई सिशकायत भी नहीं करता लेबिकन �ात अ� हांडा परिरवार के मुखिखया तक पहुं' ही गयी है। उन तक �ात पहुं'ाने के पीछे गौरी का नहीं, सिशसिशर का ही हाथ लगता है। सिशसिशर ने सिशल्पा से कहा होगा और सिशल्पा ने अपने पापा तक �ात पहंु'ायी होगी बिक ज़रा ज़रा सी �ात पर गौरी दीप से लड़ पड़ती है और �ार �ार उस �े'ारे का अपमान करती रहती है। उसी ने पापा से कहा होगा बिक आप लोग �ी' में पड़ कर मामले को सुलझायें वरना अच्छा खासा दामाद अपना दिदमाग खरा� कर �ैठेगा। शायद उसने उन्हें पैसे न लेने के �ारे में मेरी जिज़द के �ारे में भी कहा हो। �ताया होगा - अगर यही हाल रहा तो आप लोग एक अचे्छ भले आदमी को इस तरह से मार डालेंगे। इसमें नुक्सान आपका और गौरी का ही है। पता नहीं, उन्हें ये �ात स्थिक्लक कर गयी होगी, इसीसिलए गौरी के शॉप पर जाने के �ाद पापा मुझसे मिमलने आये हैं।

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यह इन दो ढाई साल में पहली �ार हो रहा है बिक मैं और मेरे ससुर इस तरह अकेले और इन्�ाम#ली �ात कर रहे हैं। उन्होंने मेरी सेहत के �ारे में पूछा है। मेरी दिदन'या# के �ारे में पूछा है और मेरी उदासी का कारण जानना 'ाहा है। पहले तो मैं टालता हंू। उनसे आंखें मिमलाने से भी �'ता हूं लेबिकन ज� उन्होंने �हुत ज़ोर दिदया है तो मैं �ट पड़ा हूं। इतने अरसे से मैं घुट रहा था। बिकतना कुछ है जो मैं बिकसी से कहना 'ाह रहा था लेबिकन आज तक कह नहीं पाया हूं और न ही बिकसी ने मेरे कंधे पर हाथ ही रखा है। पहले तो वे 'ुप'ाप मेरी �ातें ध्यान से सुनते रहे। मैंने उन्हें बिवस्तार से सारी �ातें �तायी हैं। �ं�ई में हुई पहली मुलाकात से लेकर आज तक बिक बिकस तरह मेरे साथ एक के �ाद एक झूठ �ोले गये और एक तरह से झांसा दे कर मुझे यहां लाया गया है। मैंने उन्हें गौरी की पढ़ाई के �ारे में �ोले गये झूठ के �ारे में भी �ताया लेबिकन उसके ए�ाश#न वाली �ात गोल कर गया। यह एक बिपता के साथ ज्यादती होती। ज� उन्होंने देखा बिक मैं जो कुछ कहना 'ाहता था, कह 'ुका हूं तो वे धीरे से �ोले हैं

- तुम्हारे साथ �हुत जुल्म हुआ है �ेटे। मुझे नहीं मालूम था बिक तुम अपने सीने पर इतने दिदनों से इतना �ोझ सिलये सिलये घूम रहे हो। तुम अगर मेरे पास पहले ही आ जाते तो यहां तक नौ�त ही न आती। इस तरह तो तुम्हारी सेहत खरा� हो जायेगी। तुम सि'ंता मत करो। हमें एक मौका और दो। तुम्हें अ� बिकसी भी �ात की सिशकायत नहीं रहेगी। गौरी ने भी कभी जिज़क्र नहीं बिकया और न ही 'मन वगैरह ने ही �ताया बिक तुम्हारी क्या �ातें हुई थीं। �ल्किल्क हम तो शॉप में और हांडा }ुप में तुम्हारी दिदल'स्पी देख कर �हुत खुश थे। आज तक बिकसी भी दामाद न े हमार े ऐस्टैस्थिब्लशमेंट म ें इतनी दिदल'स्पी नहीं ली थी। �ेहतर यही होगा बिक तुम अ� इस हादसे को भूल जाओ और हमें एक मौका और दो। मैं गौरी को समझा दंूगा। तुम्हारे सिलए एक अच्छी ख�र है बिक तुम्हारी शॉप के प्रॉबि�ट भी इस दौरान �हुत �ढे़ हैं। स� तुम्हारी मेहनत का नतीजा है। तुम्हें इसका ईनाम मिमलना ही 'ाबिहये। एक काम करते हैं, गौरी और तुम्हारे सिलए पूरे योरोप की दिट्रप एरेंज करते हैं। थोड़ा घूम बि�र आओ। थकान भी दूर हो जायेगी और तुम दोनों में पै'अप भी हो जायेगा। जाओ, एजंाय करो और एक महीने से पहले अपनी शक्ल हमें मत दिदखाना। जाने का सारा इंंतजाम हो जायेगा। गौरी भी खुश हो जायेगी बिक तुम्हारे �हाने उसे भी घूमने बि�रने का मौका मिमल रहा है। जाते जाते वे मेरे हाथ में बि�र एक �ड़ा सा सिल�ा�ा दे गये ह ैं - अपने सिलए शॉपिपंग कर लेना। उन्होंने मेरा कंधा द�ाया है - देखो इनकार मत करना। मुझे खरा� लगेगा। और सुनो, ये पैसे गौरी को दिदये जाने वाले पैसों से अलग हैं इससिलए इनके �ारे में गौरी को �ताने की जरूरत नहीं है। मैं समझ रहा हूं बिक ये रिरश्वत है मुझे शांत करने की, लेबिकन अ� वे खुद पै' अप का प्रस्ताव ले कर आये हैं तो एक दम इनकार करना भी ठीक नहीं है। मुझे हनीमून के �ाद आज पहली �ार एक साथ इतने पैसे दिदये जा रहे हैं।ज� सिशसिशर को इस �ारे में मैंने �ताया तो वह खुशी से उछल पड़ा - अ� आया न उं ट पहाड़ के नी'े।€ ये स� मेरी ही शरारत का नतीजा है बिक तुमने इतना �ड़ा हाथ मारा है। अ� �ी' �ी' में इस तरह के नाटक करते रहोगे तो सुखी रहोगे।और इस तरह मेरे सामने ये 'ुग्गा डाल दिदया गया है। हालांबिक गौरी ने सौरी कह दिदया है लेबिकन मलाल की �ारीक सी रेखा भी उसके 'ेहरे पर नहीं है। जिजस तरह की �ातें उसने की थीं, उससे मेरी मानसिसक

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अशांबित इतनी जल्दी दूर नहीं होगी। वैसे भी ज� भी मेरे सामने पड़ती है, मुझे उसके अतीत का भूत सताने लगता है और मैं �े'ैन होने लगता हूं। उसके प्रबित मेरे स्नेह की �ेलें सूखती 'ली जा रही हैं।लेबिकन मेरी ये खुशी भी बिकतनी अल्पजीवी है। हांडा }ुप से पैसे मिमलने के अगले दिदन ही नंदू का पत्र आ गया है। पत्र वाकई परेशानी में डालने वाला है। उसने सिलखा है बिक गुड्डी की ससुराल में उसे दहेज के सिलए परेशान बिकया जा रहा है। दारजी उसके पास �हुत परेशानी में गये थे और उसे �ता रहे थे बिक गुड्डी की ससुराल वालों ने न तो उसे इम्तिम्तहान देने दिदये और न ही वे उसे मायके ही आने देते हैं। ऊपर से दहेज के सिलए सता रहे हैं बिक तुम्हारे लंदन वाले भाई का क्या �ायदा हुआ। एक लाख की मांग रखी है उन्होंने। नंदू ने सिलखा ह ै - ये पैसे तो मैं भी दे दंू लेबिकन संकट ये है बिक उनका मुंह एक �ार खुल गया तो वे अक्सर मांग करते रहेंगे और न मिमलने पर गुड्डी को सतायेंगे। �ोलो, क्या करंू। हो सके तो �ोन कर देना। हमारे दारजी ने तो जैसे पूरे परिरवार को ही त�ाह करने की कसम खा रखी है। मुझे �ेघर करके भी उन्हें 'ैन नहीं था, अ� उस मासूम की जान ले कर ही छोड़ेंगे। उन्हें लाख कहा बिक गुड्डी की शादी के मामले में जल्दी�ाजी मत करो लेबिकन दारजी अगर बिकसी की �ात मान लें तो बि�र �ात ही क्या !! अ� पैसे दे भी दें तो इस �ात की क्या गारंटी बिक वे लोग अ� गुड्डी को सताना �ंद कर देंगे। अ� तो उनकी बिनगाह लंदन वाले भाई पर है। इतनी आसानी से थोडे़ ही छोड़ेंगे। नंदू से �ोन पर �ात करके देखता हंू।नंदू ने तसल्ली दी है बिक वैसे घ�राने की कोई जरूरत नहीं है। दारजी ने कुछ ज्यादा ही �ढ़ा- 'ढ़ा कर �ात कही थी। वैसे वे लोग गुड्डडृाú पर द�ाव �नाये हुए हैं बिक कुछ तो लाओ, लेबिकन दारजी के पास कुछ हो तो दें। मैं उन्हें �ता दंूगा बिक तुझसे �ात हो गयी है। तू घ�रा मत। मैं स� संभाल लूंगा। नंदू ने �ेशक तसल्ली दे दी है लेबिकन मैं ही जानता हूं बिक इस वक्त गुड्डी �े'ारी पर क्या गुज़र रही होगी। उसने तो मुझे पत्र सिलखना भी �ंद कर दिदया है ताबिक उसकी तकली�ों की तत्ती हवा भी मुझ तक न पहुं'े। इस �ारे में सिशसिशर से �ात करके देखनी 'ाबिहये, वही कोई राह सुझायेगा। मेरा तो दिदमाग काम नहीं कर रहा है। सिशसिशर ने पूरी �ात सुनी है। उसका कहना है बिक वैसे तो यहां से इस तरह के नाज�क सं�ंधों का बिनवा#ह कर पाना �हुत मुल्किश्कल है, क्योंबिक यहां से तुम कुछ भी करो, तुम्हारे दारजी सारे कामों पर पानी �ेरने के सिलए वहां �ैठे हुए हैं। दूसरे, तुम्हें �ीड�ैक आधा अधूरा और इतनी देर से मिमलेगा बिक त� तक वहां कोई और डेवलेपमेंट हो 'ुका होगा और तुम्हें पता भी नहीं 'ल पायेगा। बि�र भी, यह �हन की ससुराल का मामला है। ज़रा संभल कर काम करना होगा और बि�र गुड्डी का भी देखना होगा। उसे भी इस तरह से उन जंगसिलयों के �ी' अकेला भी नहीं छोड़ा जा सकता। उसकी सुख शांबित में तुम्हारा भी योगदान होगा ही। वैसे, थोड़ा इंतज़ार कर लेने में कोई हज़# नहीं है।उसी की सलाह पर मैं नंदू को बि�र �ोन करता हूं और �ताता हूं बिक मैं प'ास हजार रुपये के �रा�र पाउंड णिभजवा रहा हंू। कैश कराके दारजी तक पहुं'ा देना। �स दारजी ये देख लें बिक वे लोग ये पैसे देख कर �ार �ार मांग न करने लगें और कहीं इसके सिलए गुड्डी को सतायें नहीं। नंदू को यह भी �ता दिदया है मैंने बिक मैं महीने भर की दिट्रप पर रहंूगा। वैसे मैं उससे कांटैक्ट करता रहूंगा बि�र भी कोई अज�ट मैसेज हो तो इस नम्�र पर सिशसिशर को दिदया जा सकता है। मुझ तक �ात पहंु' जायेगी।नंदू को �ेशक मैंने तसल्ली दे दी है लेबिकन मेरे ही मन को तसल्ली नहीं है, बि�र भी �ाफ्ट भेज दिदया है। शायद ये पैसे ही गुड्डी की ज़िज़ंदगी में कुछ रौनक ला पायें।

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हमारी दिट्रप अच्छी रही है लेबिकन मेरे दिदमाग में लगातार गुड्डी ही छायी रही है। इस दिट्रप में वैसे तो हम दोनों की ही लगातार कोसिशश रही बिक पै' अप हो जाये और हमारे सं�ंधों में जो खटास आ गयी है उसे कम बिकया जा सके। मैं अपनी ओर से इस दिट्रप को दुखद नहीं �नाना 'ाहता। मैं भरसक नाम#ल �ना हुआ हंू। दिदमाग में हर तरह की परेशाबिनयां होते हुए भी उसके सुख और आराम का पूरा ख्याल रख रहा हंू। गौरी ने बि�र जिजद की है बिक मैं भी के्रबिडट काड# �नवा लूं या उसी के काड# में ऐड ऑन ले लूं लेबिकन इस �ार भी मैंने मना कर दिदया है।हम लौट आये हैं। हम दोनों ने हालांबिक आपसी सं�ंध नाम#ल �नाये रखे हैं लेबिकन मुझे नहीं लगता, जो दरार हम दोनों के �ी' एक �ार आ 'ुकी है, उसे कोई भी सीमेंट ठीक से जोड़ पायेगा।लौटने के �ाद भी स्थिस्थबितयों में कोई खास परिरवत#न नहीं हुआ है। सिस�# �ोल'ाल हो रही है और हम जाबिहर तौर पर बिकसी को भनक नहीं लगने देते बिक हममें बिड�रेंसेस 'ल रहे हैं। जो पैसे मुझे दिदये गये थे, उसमें से जो �'े हैं वे मेरे ही पास हैं। वे भी इतने हैं बिक मेरे जैसे कंजूस आदमी के सिलए तो महीनों का�ी रहेंगे।मेरी गैरहाजरी में सिस�# अलका दीदी और देवेद्र जी का ही पत्र आया हुआ है। एक तरह से तसल्ली भी हुई है बिक घर से कोई पत्र नहीं आया है, इससिलए मैं मान कर 'ल रहा हूं बिक वहां स� ठीक ही होगा। बि�र भी सिशसिशर से पूछ लेता हूं बिक नंदू का कोई �ोन वगैरह तो नहीं आया था। वह इनकार करता है - नहीं, कोई संदेश नहीं आया तो स� ठीक ही होना 'ाबिहये। वैसे तुम भी एक �ार नंदू को �ोन करके हाल 'ाल ले ही लो। मैं भी यही सो' कर नंदू से ही �ात करता हूं। वह जो कुछ �ताता है वह मुझे परेशान करने के सिलए का�ी है। नंदू ने ज� ये �ताया बिक उसे तो आज ही मेरा भेजा एक हज़ार पाउंड का दूसरा �ाफ्ट भी मिमल गया है तो मैं हैरान हो गया हंू। ज़रूर दूसरा �ाफ्ट सिशसिशर ने ही भेजा होगा ज�बिक मुझे मना कर रहा था बिक नंदू का कोई �ोन नहीं आया। मैं नंदू से ही पूछता हंू - तूने सिशसिशर को �ोन बिकया था क्या ? �ताता है वह - हां, बिकया तो था लेबिकन पैसों के लाए नहीं �ल्किल्क यह �ताने के सिलए बिक तुझ तक यह संदेश पहंु'ा दे बिक �ाफ्ट मिमल गया है और बिक गुड्डी की परेशानी में कोई कमी नहीं आयी है। �ेशक वह ससुराल की कोई सिशकायत नहीं करती और उनके संदेशे हम तक पहंु'ाती भी नहीं, लेबिकन कुल मिमला कर वह तकली� में है। �ता रहा है बिक दारजी आये थे और रो रहे थे बिक बिकन भुक्खे लोगों के घर अपनी लड़की दे दी है। �े'ारी को घर भी नहीं आने देते। वही �ता रहे थे बिकसी तरह प'ास हज़ार का इंतज़ाम हो जाता तो उनका मुंह �ंद कर देते। �हुत सो'ने बिव'ारने के �ाद मैंने तेरे भेजे �ाफ्ट में से दारजी को प'ास हज़ार रुपये दिदये थे ताबिक उनका मुंह �ंद कर सकें । मैंने तो खाली सिशसिशर को यही कहा था बिक तुझे ख�र कर दे बिक पैसों को ले कर परेशान होने की जरूरत नहीं है। पूछता हंू मैं - और पैसे भेजूं क्या?

- नहीं ज़रूरत नहीं है। ये दो हज़ार पाउंड भी तो एक लाख रुपये से ऊपर ही होते हैं। तू बि�कर मत कर.. मैं हंू न....।

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मैं दोहरी सि'ंता में पड़ गया हूं। उधर गुड्डी की परेशानी और इधर अपने आप आगे �ढ़ कर सिशसिशर ने इतनी �ड़ी रकम भेज दी है। प'ास हजार की रकम कोई मामूली रकम नहीं होती और ज� मैंने पूछा तो सा� मुकर गया बिक कोई �ोन ही नहीं आया था। उससे इन पैसों के �ारे में कुछ कह कर उसे छोटा �ना सकता हूं और न ही 'ुप ही रह सकता हूं। उसने इधर उधर से इंतज़ाम बिकया होगा। शायद अपने घर भेजे जाने वाले पैसों में ही कुछ कमी कटौती की हो उसने। उधर नंदू अपने आप मेरी जगह मेरे घर की सारी जिजम्मेवारी उठा रहा है और बि�ना एक भी शब्द �ोले दारजी को प'ास हजार थमा आता है बिक उनकी लड़की को ससुराल में कोई परेशानी न हो। ये वही दारजी है जिजन्होंने गुड्डी की सिस�ारिरश लाने पर उससे कह दिदया था बिक ये हमारा घरेलू मामला है, और मैं यहां अपने घर से सात समंदर पार सारी जिजम्मेवारिरयों से मुक्त �ैठा हुआ हंू। उनके सिलए न कुछ कर पा रहा हूं और न उनके सुख दुख में शामिमल हो पा रहा हूं। दारजी, नंदू, गुड्डी और अलका दीदी को लम्�े लम्�े पत्र सिलखता हंू। मन पर इतना �ोझ है बिक जीने ही नहीं दे रहा है। गौरी अपनी दुबिनया में मस्त है और मै अपने संसार में। द बि�जी कान#र ठीक ठाक 'ल रहा है और अ� उसमें ऐसा कुछ भी नहीं �'ा जिजसे 'ैलेंज की तरह सिलया जा सके। स� कुछ रूटीन हो 'ला है। अ� तो दिदल करता है, यहां से भी भाग जाऊं। कहीं भी दूर 'ला जाऊं। जहां कुछ करने के सिलए नया हो, कुछ 'ुनौतीपूण# हो और जिजसे करने में मज़ा आये। अल�त्ता कम्प्यूटर से ही नाता �ना हुआ है और मैं कुछ न कुछ नया करता रहता हूं। सिशसिशर के सिलए तो पैकेज �ना कर दिदये ही हैं, सुशांत की �ुक शॉप्स के सिलए भी प्रो}ामिमंग करके कुछ नये पैकेज �ना दिदये हैं जिजससे उसका काम आसान हो गया है। अ� वह भी सिशसिशर की तरह मेरे का�ी नज़दीक आ गया है और हम सुख दुख की �ातें करने लगे हैं। नंदू का �ोन आया है। उसने जो ख�र सुनाई है उससे मैं एकदम अवाक् रह गया हूं। नंदू ने यह क्या �ता दिदया है मुझे! गुड्डी की मौत की ख�र सुनने से पहले मैं मर क्यों नहीं गया! मैंने उससे दो तीन �ार पूछा - क्या वह गुड्डी की ही �ात कर रहा है ना ? तो नंदू ने जवा� दिदया है - हां, दीप, मैं अभागा नंदू तुझे गुड्डी की ही मौत की ख�र दे रहा हंू। उन लुटेरों ने हमारी प्यारी �हन को हमसे छीन सिलया है। उसे दहेज का दानव खा गया और हम कुछ भी नहीं कर सके। यह समा'ार देते समय नंदू ज़ार ज़ार रो रहा था। मैं हक्का �क्का �ैठा रह गया हंू। यह क्या हो गया मेरी �े� े !! मेरे दारजी !! आपने तो उसके सिलए रजेया कजेया घर देखा था और ये क्या हो गया। इतना दहेज देने के �ाद भी स्टोव उसी के सिलए क्यों �टा ओ मेरे रब्�ा !! सिलखा भी तो था गुड्डी ने बिक अगर पैसों का इंतजाम न हो पाया तो स्टोव तो उसी के सिलए �टेगा। दारजी ने तो ठोक �जा कर दामाद खोजा था, वह कसाई कैसे बिनकल गया। गुड्डी के �ारे में सो' सो' कर दिदमाग की नसें �टने लगी हैं। नंदू �ताते समय बिह'बिकयां ले ले कर रो रहा था - मुझे मा� कर देना दीप, मैं तेरी �हन को उन राक्षसों के हाथ से नहीं �'ा पाया मेरे दोस्त, �ेशक गुड्डी की ससुराल वालों को पुसिलस ने पकड़ सिलया है लेबिकन उनकी बिगरफ्तारी से गुड्डी तो वाबिपस नहीं आ जायेगी। तू धीरज धर। नंदू मेर े यार, मैं तुझे तो मा� कर दंू, लेबिकन मुझे कौन मा� करेगा। तू मेरी जगह मेरे घर की सारी जिजम्मेवारिरयां बिनभाता रहा और मैं सिस�# अपने स्वाथ# की खाबितर यहां परदेस मैं �ैठा अपने घर के ही सपने देखता रहा। न मैं अपना घर �ना पाया, न गुड्डी का घर �सता देख पाया। अ� तो वही नहीं रही, मैं मा�ी भी बिकससे मांगूं। वह बिकतना कहती थी बिक मैं आगे पढ़ना 'ाहती हूं, कुछ �न के दिदखाना 'ाहती हंू, और मिमला क्या उस �े'ारी को!! आखिखर दारजी की जिजद ने उस मासूम की जान ले ही ली।

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मेरा जाना तो नहीं हो पायेगा। जा कर होगा भी क्या। मैं बिकस की सुनूंगा और बिकसको जवा� दंूगा। दोनों ही काम मुझसे नहीं हो पायेंगे। दारजी, �े�े, नंदू और अलका दीदी को भी लम्�े पत्र सिलखता हूं ताबिक सीने पर जमी यह सिशला कुछ तो खिखसके। गौरी भी इस ख�र से भौं'की रह गयी है। उसे बिवश्वास ही नहीं हो रहा है बिक मात्र एक दो लाख रुपये के दहेज के सिलए बिकसी जीते जाने इंसान को यूं जलाया भी जा सकता है। �ताता हूं उसे - गुड्डी �े'ारी दहेज की आग में जलने वाली अकेली लड़की नहीं है। वहां तो घर-घर में यह आग सुलगती रहती है और हर दिदन वहां दहेज कम लाने वाली या न लाने वाली मासूम लड़बिकयों को यंू ही जलाया जाता है। पूछ रही है वह - इंबिडया में हवस और लाल' इतने ज्यादा �ढ़ गये हैं और आपका कानून कुछ नहीं करता?

- अ� कैसा कानून और बिकसका कानून, मैं उसे भरे मन से �ताता हू ं - जहां देश का राजकाज 'लाने वाले आइएएस अमिधकारी का दहेज के माक� ट में स�से ज्यादा रेट 'लता हो, वहां का कानून बिकतना ल'र होगा, तुम कल्पना कर सकती हो। �ेशक गौरी ने गुड्डी की सिस�# तस्वीर ही देखी है बि�र भी वह बिडस्ट�# हो गयी है। दुख की इस घड़ी में वह मेरा पूरा साथ दे रही है। सिशसिशर भी इस हादसे से सन्न रह गया है। वह �रा�र मेरे साथ ही �ना हुआ है। उसी ने स�से पहले हमारी सस्जाराल में ख�र दी थी। मेर े ससुर और दूसरे कई लोग तुंत अ�सोस करने आये थे। हांडा साह� ने पूछा भी था - अगर जाना 'ाहो इंबिडया, तो इंतज़ाम कर देते हैं, लेबिकन मैंने ही मना कर दिदया था। अ� जा कर भी क्या करंूगा। गौरी और सिशसिशर के लगातार मेरे साथ �ने रहने और मेरा हौसला �ढ़ाये रखने के �ावजूद मैं खुद को एकदम अकेला महसूस कर रहा हंू। अ� तो स्टोस# में जाने की भी इच्छा नहीं होती। थोड़ी देर के सिलए 'ला जाता हंू। सारा दिदन गुड्डी के सिलए मेरा दिदल रोता रहता है। कभी बिकसी के सिलए इतना अ�सोस नहीं मनाया। अपने दुख बिकसी के सामने आने नहीं दिदये लेबिकन गुड्डी का यूं 'ले जाना मुझे �ुरी तरह तोड़ गया है, �ार �ार उसका आंखें �ड़ी �ड़ी करके मेरी �ात सुनना, वीरजी ये और वीरजी वो कहना, �ार �ार याद आते हैं। बिकतने कम समय के सिलए मिमली थी और बिकतना कुछ दे गयी थी मुझे और बिकतनी जल्दी मुझे छोड़ कर 'ली भी गयी।ज� से गुड्डी का यह दुखद समा'ार मिमला है, मैं महसूस कर रहा हूं बिक मेरा सिसर बि�र से दद# करने लगा है। ये दद# भी वैसा ही है जैसा �'पन में हुआ करता था। मैं इसे वहम मान कर भूल जाना 'ाहता हंू लेबिकन सिसर दद# है बिक दिदन प्रबितदिदन �ढ़ता ही जा रहा है। पता नहीं, उस दद# के अंश �ाकी कैसे रह गये हैं। हालांबिक इलाज तो त� भी नहीं हुआ था लेबिकन दद# तो ठीक हो ही गया था। गौरी को मैं �ता भी नहीं सकता, मेरा क्या सिछन गया है। अस्पताल में दस दिदन काटने के �ाद आज ही घर वाबिपस आया हंू। इनमें से तीन दिदन तो आइसीयू में ही रहा। �ाद में प'ास तरह के टेस्ट 'लते रहे और �ीसिसयों तरह की रिरपोट� तैयार की गयीं, बिनष्कष# बिनकाले गये लेबिकन नतीजा ज़ीरो रहा। डॉक्टर मेरे सिसर दद# का कारण तलाशने में असमथ# रहे और मैं जिजस दद# के साथ आधी रात को अस्पताल ले जाया गया था उसी दद# के साथ दस दिदन �ाद लौट आया हूं। गौरी �ता रही थी, एक रात मैं सिसर दद# से �ुरी तरह से छटपटाने लगा था। वह मेरी हालत देख कर एकदम घ�रा गयी थी। उसने तुंत डॉक्टर को �ोन बिकया था। उसने मुझे कभी एक दिदन के सिलए भी �ीमार पड़ते नहीं देखा था और उसे मेरी इस या बिकसी भी �ीमारी के �ारे में कुछ भी पता नहीं था इससिलए वह डॉक्टर को इस �ारे में कुछ भी नहीं �ता पायी थी। डॉक्टर ने �ेशक दद# दूर करने का इंजेक्शन दे दिदया

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था लेबिकन ज� वह कुछ भी डायग्नोस नहीं कर पाया तो उसने अस्पताल ले जाने की सलाह दी थी। गौरी ने त� अपने घर पापा वगैरह को �ोन बिकया और मेरी हालत के �ारे में �ताया था। सभी लपके हुए आये थे और इस तरह मैं अस्पताल में पहंु'ा दिदया गया था।अ� बि�स्तर पर लेटे हुए और इस समय भी दद# से कराहते हुए मुझे हॅसी आ रही ह ै - क्या पता 'ला होगा डॉक्टरों को मेरे दद# के �ारे में। कोई शारीरिरक वज़ह हो भी तो वे पता लगा सकते। रिरपोट� इस �ारे में बि�लकुल मौन हैं।इस �ी' कई �ार पूछ 'ुकी है गौरी - अ'ानक ये तुम्हें क्या हो गया था दीप ? क्या पहले भी कभी.. .. ..?

- नहीं गौरी, ऐसा तो कभी नहीं हुआ था। तुमने तो देखा ही है बिक मुझे कभी जुकाम भी नहीं होता। मैं उसे आश्वस्त करता हंू। �'पन के �ारे में मैं थोड़ा-सा झूठ �ोल गया हूं। वैसे भी वह मेरे केसों के मामले और दद# के सं�ंध और अ� गुड्डी की मौत के सिलंक तो क्या ही जोड़ पायेगी। कुछ �ताऊं भी तो पूरी �ात �तानी पडे़गी और वह दस तरह के सवाल पूछेगी। यही सवाल उसके घर के सभी लोग अलग-अलग तरीके ये पूछ 'ुके हैं। मेरा जवा� स�के सिलए वही रहा है। सिशसिशर भी पूछ रहा था। मैं क्या जवा� देता। मुझे पता होता तो क्या ससुराल के इतने अहसान लेता बिक इतना महंगा इलाज कराता!! वैसे दवाए ंअभी भी खा रहा हूं और डॉक्टर के �ताये अनुसार कम्पलीट रेस्ट भी कर ही रहा हूं, लेबिकन सारा दिदन बि�स्तर पर लेटे-लेटे रह-रह के गुड्डी की यादें परेशान करने लगती हैं। आखिखर उस मासूम का कुसूर क्या था। जो दहेज हमने गुड्डी को देना था या दिदया था वो हमारी जिजम्मेवारी थी। हम पूरी कर ही रहे थे। ज़िज़ंदगी भर करते ही रहते। सारा दिदन बि�स्तर पर लेटा रहता हूं और ऐसे ही उलटे-सीधे ख्याल आते रहते हैं। अपनी याद में यह पहली �ार हो रहा है बिक मैं �ीमार होने की वज़ह से इतने दिदनों से बि�स्तर पर लेटा हूं और कोई काम नहीं कर रहा हूं। �ी'-�ी' में स�के �ोन भी आते रहते हैं। गौरी दिदन में कई �ार �ोन कर लेती है। लेटे लेटे संगीत सुनता रहता हंू। इधर शास्त्राú य संगीत की तर� रुझान शुरू हुआ है। गौरी ने एक नया बिडस्कमैन दिदया है और सिशसिशर इंबिडयन क्लासिसकल संगीत की कई सीडी दे गया है। सिशल्पा भी कुछ बिकता�ें छोड़ गयी थी। और भी स� कुछ न कुछ दे गये हैं ताबिक मैं लेटे लेटे �ोर न होऊं। लगभग छः महीने हो गये हैं सिसरदद# को झेलते हुए। इस �ी' ज्यादातर अरसा आराम ही करता रहा या तरह तरह के टैस्ट ही कराता रहा। नतीजा तो क्या ही बिनकलना था। वैसे सिसरदद# के साथ मैं अ� स्टोस# में पूरा पूरा दिदन भी बि�ताने लगा हूं लेबिकन मैं ही जानता हूं बिक मैं बिकतनी तकली� से गुज़र रहा हूं। �'पन में भी तो ऐसे ही दद# होता था और मैं बिकसी से भी कुछ नहीं कह पाता था। सारा सारा दिदन दद# से छटपटाता रहता था जैसे कोई सिसर में तेज छुरिरयां 'ला रहा हो। त� तो के स कटवा कर दद# से मुसिक्त पा ली थी लेबिकन अ� तो केस भी नहीं हैं। समझ में नहीं आता, अ� इससे कैसे मुसिक्त मिमलेगी। यहां के अं}ेज़ डॉक्टरों को मैंने जान�ूझ कर �'पन के सिसर दद# और उसके दूर होने के उपाय के �ारे में नहीं �ताया है। मैं जानता हूं ये अं}ेज तो मेरे इस अनोखे दद# और उसके और भी अनोखे इलाज के �ारे में सुन कर तो मेरा मज़ाक उड़ायेंगे ही, गौरी और उसके घर वालों की बिनगाह में भी मैं दबिकयानूसी और अंधबिवश्वासी ही कहलाऊंगा। मैं ऐसे ही भला। �े'ारी �े�े भी नहीं है जो मेरे सिसर में गम# तेल 'ुपड़ दे और अपनी हथेसिलयों से मेरे सिसर में थपबिकयां दे कर सुला ही दे। अभी सो ही रहा हूं बिक �ोन की घंटी से नींद उ'टी है। घड़ी देखता हूं, अभी सु�ह के छः ही �जे हैं। गौरी �ाथरूम में है। मुझे ही उठाना पडे़गा।

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- हैलो,- नमस्ते दीप जी, सो रहे थे क्या?

एकदम परिरसि'त सी आवाज, बि�र भी लोकेट नहीं कर पा रहा हंू, कौन हैं जो इतनी �ेतकल्लु�ी से �ात कर रही हैं।

- नमस्ते, मैं ठीक हूं लेबिकन मा� कीजिजये मैं पह'ान नहीं पा रहा हंू आपकी आवाज....- कोसिशश कीजिजये!- पहले हमारी �ोन पर �ात हुई है क्या?- हुई तो नहीं है।- मुलाकात हुई है क्या?- दो तीन �ार तो हुई ही है। - आप ही �ता दीजिजये, मैं पह'ान नहीं पर रहा हंू। - मैं मालबिवका हूं। मालबिवका ओ�ेराय।- ओ हो मालबिवका जी। नमस्ते. आयम सौरी, मैं स'मु' ही पह'ान नहीं पा रहा था, गौरी

अकसर आपका जिज़क्र करती रहती है। कई �ार सो'ा भी बिक आपकी तर� आयें। इतने अरसे �ाद भी उसका दिदपदिदपाता सौन्दय# मेरी आंंखों के आगे जिझलमिमलाने लगा है।

- लेबिकन मैं शत# लगा कर कह सकती हूं बिक आपको हमारी कभी याद नहीं आयी होगी। शक्ल तो मेरी क्या ही याद होगी।

- नहीं, ऐसी �ात तो नहीं है। दरअसल मुझे आपकी शक्ल �हुत अच्छी तरह से याद है, �स उस तर� आना ही नहीं हो पाया। बि�लहाल कबिहये कैसे याद बिकया..कैसे कहूं बिक जो उन्हें एक �ार देख ले, जिज़दंगी भर नहीं भूल सकता।

- आपका सिसरदद# कैसा है अ�?- अरे, आपको तो सारी ख�रें मिमलती रहती हैं।- कम से कम आपकी ख�र तो है मुझे, मैं आ नहीं पायी लेबिकन मुझे पता 'ला, आप खासे

परेशान हैं आजकल इस दद# की वज़ह से। - हां हंू तो सही, समझ में नहीं आ रहा, क्या हो गया है मुझे। - गौरी से इतना भी न हुआ बिक तुम्हें मेरे पास ही ले आती। अगर आपको योगाभ्यास में

बिवश्वास हो तो आप हमारे यहां क्यों नहीं आते एक �ार। वैसे तो आपको आराम आ जाना 'ाबिहये, अगर न भी आये तो भी कुछ ऐसी यौबिगक बिक्रयाए ंआपको �ता दंूगी बिक �ेहतर महसूस करेंगे। योगाभ्यास के अलावा एक्यूप्रेशर है, ने'ूरोपैथी है और दूसरी भारतीय पद्धबितयां हैं। जिजसे भी आजमाना 'ाहें।

- ज़रूर आउं गा मैं। वैसे भी प'ास तरह के टेस्ट कराके और ये दवाए ंखा खा कर दुखी हो€ गया हूं।

- अच्छा एक काम कीजिजये, मैं गौरी से खुद ही �ात कर लेती हंू, आपको इस संडे लेती आयेगी। गौरी से �ात करायेंगे क्या?

- गौरी अभी �ाथरूम में है और अभी थोड़ी देर पहले ही गयी है। उसे कम से कम आधा घंटा और लगेगा।

- खैर उसे �ता दीजिजये बिक मैंने �ोन बिकया था। 'लो इस �हाने आप से भी �ात हो गयी। आपका इंतज़ार रहेगा।

- जरूर आयेंगे। गौरी के साथ ही आऊंगा।

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- ओके , थैंक्स।मालबिवका से मुलाकात अ� याद आ रही है। गौरी के साथ ही गया था उनके सेन्टर में। नाथ# वेम्�ले की तरV था कहीं। गौरी के साथ एक - आध �ार ही वहां जा पाया था। ज� हम वहां पहली �ार गये थे त� मालबिवका एक लूज़ सा टै्रक सूट पहने अपने स्टूडेंट्स को लैसन दे रही थी।उन्हें देखते ही मेरी आंखें 'ंुमिधयां गयी थीं। मैं ज़िज़ंदगी में पहली �ार इतना सारा सौंदय# एक साथ देख रहा था। भरी भरी आंखें, लम्�ी लहराती केशरासिश। मैं संको'वश उनकी तर� देख भी नहीं पा रहा था। वे �ेहद खू�सूरत थीं और उन्हें कहीं भी, कभी भी इग्नोर नहीं बिकया जा सकता था। मैं हैरान भी हुआ था बिक रिरसेप्शन में मैं उनकी तर� ध्यान कैसे नहीं दे पाया था। गौरी ने उ�ारा था मुझे - कहां खो गये दीप, मालबिवका क� से आपको हैलो कर रही है। मैं झेंप गया था।हमन े मालबिवका स े एपाइंटमेंट ल े सिलया ह ै और आज उनसे मिमलन े जा रह े हैं। ज� मैंन े गौरी को मालबिवका का मैसेज दिदया तो वह अ�सोस करने लगी थी - मैं भी कैसी पागल हंू। तुम इतने दिदन से इस सिसरदद# से परेशान हो और हमने हर तरह का इलाज करके भी देख सिलया लेबिकन मुझे एक �ार भी नहीं सूझा बिक मालबिवका के पास ही 'ले 'लते। आइ कैन �ैट, अ� तक तुम ठीक भी हो 'ुके होते। ऐनी आउ, अभी भी देर नहीं हुई है।मालबिवका जी हमारा ही इंतज़ार कर रही हैं। उन्होंने उठ कर हम दोनों का स्वागत बिकया है। दोनों से गम#जोशी से हाथ मिमलाया है और गौरी से नाराज़गी जतलायी है - ये क्या है गौरी, आज बिकतने दिदनों �ाद दश#न दे रही हो। तुमसे इतना भी न हुआ बिक दीप जी को एक �ार मेरे पास भी ला कर दिदखला देती। ऐसा कौन-सा रोग है जिजसका इलाज योगाभ्यास न से बिकया जा सकता हो। अगर मुझे सिशसिशर जी ने न �ताया होता तो मुझे तो कभी पता ही न 'लता। वे मेरी तर� देख कर मुस्कुरायी हैं। गौरी ने हार मान ली है - क्या �ताऊं मालबिवका, इनकी ये हालत देख-देख कर मैं परेशान थी बिक हम ढंग से इनके मामूली सिसरदद# का इलाज भी नहीं करवा पा रहे हैं। लेबिकन बि�लीव मी, मुझे एक �ार भी नहीं सूझा बिक इन्हें तुम्हारे पास ही ले आती।

- कैसे लाती, ज� बिक तुम खुद ही साल भर से इस तर� नहीं आयी हो। अपनी '�> का हाल देख रही हो, कैसे लेयर पर लेयर 'ढ़ी जा रही है। खैर, आइये दीप जी, हमारी ये नोक झोंक तो 'लती ही रहेगी। पहले आप ही को एनरोल कर सिलया जाये। वैसे तो आपको शादी के तुंत �ाद ये यहां आपा श्जारू करदेना 'ाबिहये था।मैं देख रहा हूं मालबिवका जी अभी भी उतनी ही स्माट# और सुंदर नज़र आ रही हैं। स्पॉटलैस ब्यूटी। मानना पडे़गा बिक योगाभ्यास का स�से ज्यादा �ायदा उन्हीं को हुआ है।उन्होंने मुझे एक �ाम# दिदया है भरने के सिलए - ज� तक कॉ�ी आये, आप यह �ाम# भर दीजिजये। हमारे सभी क्लायंट्स के सिलए ज़रूरी होता है यह �ाम#। वे हँसी हैं - इससे हम कई उलटे-सीधे सवाल पूछने से �' जाते हैं। इस �ी' मैं आपकी सारी मेबिडकल रिरपोट्#स देख लेती हूं। मैं �ाम# भर रहा हंू। व्यसिक्तगत �ायोडाटा के अलावा इसमें �ीमारिरयों, एलज>, ईटिटंग हैबि�ट्स वगैरह के �ारे में ढेर सारे सवाल हैं। जिजन सवालों के जवा� हां या ना में देने हैं, वे तो मैंने आसानी से भर दिदये हैं लेबिकन �ीमारी के कॉलम में मैं सिसर दद# सिलख कर ठहर गया हूं। इसके अगले ही

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कालम में �ीमारी की बिहस्ट्री पूछी गयी है। समझ में नहीं आ रहा, यहां पर क्या सिलखूं मैं ? क्या �'पन वाले सिसरदद# का जिजक्र करंू यहां पर। मैंने इस कालम में सिलख दिदया है - �'पन में �हुत दद# होता था लेबिकन केस कटाने के �ाद बि�लकुल ठीक हो गया था। नी'े एक रिरमाक# में यह भी सिलख दिदया है बिक इस �ारे में �ाकी बिडटेल्स आमने सामने �ात दंूगा। �ाम# पूरा भर कर मैंने उसे मालबिवका जी को थमा दिदया है। इस �ी' कॉ�ी आ गयी है। कॉ�ी पीते-पीते वे मेरा भरा �ाम# सरसरी बिनगाह से देख रही हैं। कॉ�ी खत्म करके उन्होंने गौरी से कहा है - अ� तुम्हारी डू्यटी खत्म गौरी। तुम जाओ। अ� �ाकी काम मेरा है। इन्हें यहां देर लगेगी। मैं �ाद में तुमसे �ोन पर �ात कर लूंगी। 'ाहो तो थोड़ी देर कुछ योगासन ही कर लो। गौरी ने इनकार कर दिदया है और जाते-जाते हँसते हुए कह गयी है - अपना ख्याल रखना दीप, मालबिवका इज वेरी न्विस्ट्रक्ट योगा टी'र। एक �ार इनके हत्थे 'ढ़ गये तो ज़िज़ंदगी भर के सिलए बिकसी मुल्किश्कल आसन में तुम्हारी गद#न �ंसा देगी।मालबिवका जी ने नहले पर दहला मारा है - शायद इसीसिलए तुम महीनों तक अपना 'ेहरा नहीं दिदखातीं।गौरी के जाने के �ाद मालबिवका जी इम्तित्मनान के साथ मेरे सामने �ैठ गयी हैं। मैं उनकी आंखों का तेज सहन करने में अपने आपको असमथ# पा रहा हंू। मैं �हुत कम ऐसी लड़बिकयों के सम्पक# में आया हूं जो सीधे आंखें मिमला कर �ात करें।वे मेरे सामने तन कर �ैठी है। पूछ रही हैं मुझसे - देखिखये दीप जी, नै'ुरोपैथी वगैरह में इलाज करने का हमारा तरीका थोड़ा अलग होता है। ज� तक हमें रोग के कारण, उसकी मीयाद, उसके लक्षण वगैरह के �ारे में पूरी जानकारी न मिमल जाये, हम इलाज नहीं कर सकते। इसके अलावा रोगी का टेम्परामेंट, उसकी मनस्थिस्थबित, रोग और उसके इलाज के प्रबित उसके दृमिष्टकोण के �ारे में भी जानना हमारे सिलए और रोगी के सिलए भी �ायदेमंद होता है। तो जना�, अ� मामला यह �नता है बिक आपने �ाम# में �'पन में होने वाले दद# का जिजक्र बिकया है और ये केस कटाने वाला मामला। आप उसके �ारे में तो �तायेंगे ही, आप यह समझ लीजिजये बिक आप मालबिवका के सामने अपने-आपको पूरी तरह खोल कर रख देंगे। यह आप ही के बिहत में होगा। आप बिनशं्िै'त रहें। आप का कहा गया एक-एक शब्द सिस�# मुझ तक रहेगा और उसे मैं सिस�# आपकी �ेहतरी के सिलए ही इस्तेमाल करंूगी। मैं मंत्रमुग्ध सा उनके 'ेहरे पर आंखें गड़ाये उनका कहा गया एक एक शब्द सुन रहा हंू। वे धाराप्रवाह �ोले जा रही हैं। उनके �ोलने में भी सामने वाले को मंत्र मुग्ध करने का ताकत है। मैं हैरान हंू, यहां लंदन में भी इतनी अच्छी बिहन्दी �ोलने वाले लोग रहते हैं।वे कह रही हैं - दीप जी, अ� आप बि�लकुल नःसंको' अपने �ारे में जिजतना कुछ अभी �ताना 'ाहें, �तायें। अगर अभी मन न हो, पहली ही मुलाकात में मेरे सामने इस तरह से खुल कर �ात करने का, तो कल, या बिकसी और दिदन के सिलए रख लेते है। यहां इस माहौल में �ात न करना 'ाहें तो �ाहर 'लते हैं। लेबिकन एक �ात आप जान लें, आप के भले के सिलए ही कह रही हूं आप मुझ से कुछ भी छुपायेंगे नहीं । तो ठीक है ?

- ठीक है। मैं समझ रहा हूं, इन अनुभवी और अपनत्व से भरी आंखों के आगे न तो कुछ छुपाया जा सकेगा और न ही झूठ ही �ोला जा सकेगा।

- गुड। उन्होंने मेरी तर� हाथ �ढ़ाया है। - समझ नहीं पा रहा हंू मालबिवका जी बिक मैं अपनी �ात बिकस तरह से शुरू करंू। दरअसल....

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- ठहरिरये, हम दूसरे कमरे में 'लते हैं। वहीं आराम से �ैठ कर �ात करेंगे। जूस, �ीयर वगैरह हैं वहां बिफ्रज में। बिकसी बिकस्म के तकल्लु� की ज़रूरत नहीं है।

हम दूसरे कमरे में आ गये हैं और आरामदायक सो�ों पर �ैठ गये हैं। उन्होंने मुझे �ोलने के सिलए इशारा बिकया है।मैं धीरे-धीरे �ोलना श्जारू करता हू ं - इस दद# की भी �हुत लम्�ी कहानी है मालबिवका जी। समझ में नहीं आ रहा, कहां से शुरू करंू। दरअसल आजतक मैंने बिकसी को भी अपने �ारे में सारे स' नहीं �ताये हैं। बिकसी को एक स' �ताया तो बिकसी दूसरे को उसी स' का दूसरा सिसक्का दिदखाया। मैं हमेशा दूसरों की नज़रों में �े'ारा �नने से �'ता रहा। मुझे कोई तरस खाती बिनगाहों से देखे, मुझे बि�लकुल भी पसंद नहीं ह ै लेबिकन आपने मुझ े जिजस संकट म ें डाल दिदया है, पूरी �ात �ताय े बि�ना नहीं 'लेगा। दरअसल मोना सिसख हंू। सारी समस्या की जड़ ही मेरा सिसख होना है। आपको यह जान कर ताज्जु� होगा बिक मैंने सिस�# 'ौदह साल की उम्र में घर छोड़ दिदया था और आइआइटी, कानपुर से एमटैक और बि�र अमेरिरका से पीए' डी तक पढ़ाई मैंने खुद के, अपने �ल�ूते पर की है। वैसे घर मैंने दो �ार छोड़ा है। 'ौदह साल की उम्र में भी और अट्ठाइस साल की उम्र में भी। पहली �ार घर छोड़ने की कहानी भी �हुत अजी� है। बिवश्वास ही नहीं करेंगी आप बिक इतनी-सी �ात को लेकर भी घर छोड़ना पड़ सकता है। हालांबिक घर पर मेर े बिपताजी, मा ं और दो छोटे भाई ह ैं और एक छोटी �हन थी। दुबिनया की स�से खू�सूरत और समझदार �हन गुड्डी जो कुछ अरसा पहले दहेज की �सिल 'ढ़ गयी। इस सदमे से मैं अ� तक उ�र नहीं सका हंू। मुझे लगता है, दो�ारा सिसरदद# उखड़ने की वज़ह भी यही सदमा है। अपनी �हन के सिलए स� कुछ करने के �ाद भी मैं उसके सिलए खुसिशयां न खरीद सका। लाखों रुपये के दहेज के �ाद भी उसकी ससुराल वालों की नीयत नहीं भरी थी और उन्होंने उस मासूम की जान ले ली। उस �े'ारी की कोई तस्वीर भी नहीं है मेरे पास। �हुत ब्राइट लड़की थी और �ेहद खू�सूरत कबिवताए ंसिलखती थी। गुड्डी के जिजक्र से मेरी आंखों में पानी आ गया है। गला रंुध गया है और मैं आगे कुछ �ोल ही नहीं पा रहा हंू। मालबिवका जी ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिदया है।मुझे थोड़ा वक्त लगता है अपने आपको संभालने में। मालबिवका जी की तरV देखता हंू। वे आंखों ही आंखों में मेरा हौसला �ढ़ाती हैं। मैं �ात आगे �ढ़ाता हूं -हां, तो मैं अपने �'पन की �ातें �ता रहा था। मेरे बिपता जी कारपेंटर थे और घर पर रह कर ही काम करते थे। हम लोगों का एक �हुत पुराना, �ड़ा सा घर था। हमारे बिपता जी �हुत गुस्से वाले आदमी थे और गुस्सा आने पर बिकसी को भी नहीं �ख्शते थे। आज भी अगर मैं बिगनूं तो पहली �ार घर छोड़ने तक, यानी तेरह-'ौदह साल की उम्र तक मैं जिजतनी मार उनसे खा 'ुका था उसके �ीसिसयों बिनशान मैं आपको अभी भी बिगन कर दिदखा सकता हंू। तन पर भी और मन पर भी। गुस्से में वे अपनी जगह पर �ैठे �ैठे, जो भी औजार हाथ में हो, वही दे मारते थे। उनके मारने की वजहें �हुत ही मामूली होती थीं। �ेशक आखरी �ार भी मैं घर से बिपट कर ही रोता हुआ बिनकला था और उसके �ाद पूरे 'ौदह �रस �ाद ही घर लौटा था। एक �ार बि�र घर छोड़ने के सिलए। उसकी कहानी अलग है।यह कहते हुए मेरा गला भर आया है और आंखें बि�र ड�ड�ा आयी हैं। कुछ रुक कर मैंने आगे कहना श्जारू बिकया है :

- �'पन में मेर े केश �हुत लम्�े, भारी और 'मकीले थे। स�की बिनगाह में ये केश जिजतने शानदार थे, मेरे सिलए उतनी ही मुसी�त का कारण �ने। �'पन में मेरा सिसर �हुत दुखता था। हर वक्त जैसे सिसर में हथौडे़ �जते रहते। एक पल के सिलए भी 'ैन न मिमलता। मैं सारा-सारा दिदन इसी सिसर दद# की वजह से रोता। न पढ़ पाता, न खेल ही पाता। दिदल करता, सिसर को दीवार से, �श# से त� तक टकराता

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रहंू, ज� तक इसके दो टुकडे़ न हो जायें। मेरे दारजी मुझे डॉक्टर के पास ले जाते, �े�े सिसर पर ढेर सारा गरम तेल 'ुपड़ कर सिसर की मासिलश करती। थोड़ी देर के सिलए आराम आ जाता लेबिकन बि�र वही सिसर दद#। स्कूल के सारे मास्टर वगैरह आस पास के मौहल्लों में ही रहते थे और दारजी के पास कुछ न कुछ �नवाने के सिलए आते रहते थे, इससिलए बिकसी तरह ठेलठाल कर पास तो कर दिदया जाता, लेबिकन पढ़ाई मेरे पल्ले खाक भी नहीं पड़ती थी। ध्यान ही नहीं दे पाता था। डाक्टरों, वैद्यों, हकीमों के आधे अधूरे इलाज 'लते, लेबिकन आराम न आता। मुझे अपनी �ाल �ुजिद्ध से इसका एक ही इलाज समझ में आता बिक ये केश ही इस सारे सिसरदद# की वजह हैं। जाने क्यों यह �ात मेरे मन में घर कर गयी थी बिक जिजस दिदन मैं ये केश कटवा लूंगा, मेरा सिसर दद# अपने आप ठीक हो जायेगा। मैंने एकाध �ार द�ी ज�ान में �े�े से इसका जिजक्र बिकया भी था लेबिकन �े�े ने दुत्कार दिदया था - मरणे जोग्या, बि�र यह �ात मुंह से बिनकाली तो तेरी जु�ान खीं' लंूगी।शायद रब्� को कुछ और ही मंजूर था। एक दिदन मैंन े भी तय कर सिलया, जु�ान जाती है तो जाये, लेबिकन ये सिसरदद# और �रदाश्त नहीं होता। ये केश ही सिसरदद# की जड़ हैं। इनसे छुटकारा पाना ही होगा। और मैं घर से �हुत दूर एक मेले में गया और वहां अपने केश कटवा आया। केश कटवाने के सिलए भी मुझे खासा अच्छा खासा नाटक करना पड़ा। पहले तो कोई नाई ही बिकसी सिसख �च्चे के केश काटने को तैयार न हो। मैं अलग-अलग नाइयों के पास गया, लेबिकन ये मेरी �ात बिकसी ने न मानी। त� मैंने एक झूठ �ोला बिक मैं मोना ही हंू और मेरे मां-�ाप ने मानता मान रखी थी बिक तेरह-'ौदह साल तक तेरे �ाल नहीं कटवायेंगे और त� तू बि�ना �ताये ही �ाल कटवा कर आना और मैंने नाई के आगे इक्कीस रुपये रख दिदये थे। नाई �ुद�ुदाया था - �डे़ अजी� हैं तेरी बि�रादरी वाले। वह नाई �ड़ी मुल्किश्कल से तैयार हुआ था। उस दिदन मैंने पहली �ार घर में 'ोरी की थी। मैंने �े�े की गुल्लक से �ीस रुपये बिनकाले थे। एक रात पहले से ही मैं तय कर 'ुका था बिक ये काम कर ही डालना है। 'ाहे जो हो जाये। एकाध �ार दारजी के गुस्से का ख्याल आया था लेबिकन उनके गुस्से की तुलना में मेरी अपनी ज़िज़ंदगी और पढ़ाई ज्यादा ज़रूरी थे।वैसे हम लोग बिनयमिमत रूप से गुरूद्वारे जाते थे और वहां हमें पां' ककारों के महत्व के �ारे में �ताया ही जाता था। बि�लहाल ये सारी 'ीजें दिदमाग में �हुत पीछे जा 'ुकी थीं। ज� मैं अपना गंजा सिसर लेकर घर में घुसा था तो जैसे घर में तू�ान आ गया था। मेरे घर वालों ने सपने में भी नहीं सो'ा था बिक यह घुन्ना-सा, हर �ात पर मार खाने वाला तेरह-'ौदह साल का मरिरयल सा छोकरा सिसक्खी धम# के खिखला� जा कर केश भी कटवा सकता है। मेरी �े�े को तो जैसे दौरा पड़ गया था और वह पछाड़ें खाने लगी थी। सारा मौहल्ला हमारे अंैागन में जमा हो गया था। मेरी जम कर कुटम्मस हुई थी। लानतें दी गयी थीं। मेरे दारजी ने उस दिदन मुझे इतना पीटा था बिक बिपटते-बिपटते मैं �ैसला कर 'ुका था बिक अ� इस घर में नहीं रहना है। वैसे अगर मैं यह �ैसला न भी करता तो भी मुझसे घर छूटना ही था। दारजी ने उसी समय खडे़-खड़े मुझे घर से बिनकाल दिदया था। गुस्से में उन्होंने मेरे दो-'ार जोड़ी �टे-पुराने कपड़े और मेरा स्कूल का �स्ता भी उठा कर �ाहर �ें क दिदये थे। मैं अपनी ये पूंजी उठाये दो-तीन घंटे तक अपने मोहल्ले के �ाहर ताला� के बिकनारे भूखा-प्यासा �ैठा बि�सूरता रहा था और मेरे सारे यार-दोस्त, मेरे दोनों छोटे भाई मेरे आस-पास घेरा �नाये खडे़ थे। उनकी बिनगाह में मैं अ� एक अजू�ा था जिजसके सिसर से सींग गाय� हो गये थे।उस दिदन 'ौ�ीस सिसतम्�र थी। दिदन था श्जाक्रवार। मेरी ज़िज़ंदगी का स�से काला और तकलीVदेह दिदन। इस 'ौ�ीस सिसतम्�र ने ज़िज़ंदगी भर मेरा पीछा नहीं छोड़ा। हर साल यह तारीख मुझे रुलाती रही, मुझे याद दिदलाती रही बिक पूरी दुबिनया में मैं बि�लकुल अकेला हूं। �ेशक यतीम या �े'ारा नहीं हूं लेबिकन मेरी

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हालत उससे �ेहतर भी नहीं है। अपने मां-�ाप के होते हुए दूसरों के रहमो-करम पर पलने वाले को आप और क्या कहेंगे? खैर, तो उस दिदन दोपहर तक बिकसी ने भी मेरी खाने की सुध नहीं ली थी तो मैंने भी तय कर सिलया था, मैं इसी गंजे सिसर से वह स� कर के दिदखाऊंगा जो अ� तक मेरे खानदान में बिकसी ने न बिकया हो। मेरे आंसू अ'ानक ही सूख गये थे और मैं �ैसला कर 'ुका था। मैंने अपना सामान समेटा था और उठ कर 'ल दिदया था। मेरे आस पास घेरा �ना कर खडे़ सभी लड़कों में हड़�ड़ी म' गयी थी। इन लड़कों में मेरे अपने भाई भी थे। स� के स� मेरे पीछे पीछे 'ल दिदये थे बिक मैं घर से भाग कर कहां जाता हंू। मैं का�ी देर तक अलग अलग गसिलयों के 'क्कर काटता रहा था ताबिक वे स� थक हार कर वाबिपस लौट जायें। इस 'क्कर में शाम हो गयी थी त� जा कर लड़कों ने मुझे अकेला छोड़ा था। अकेले होते ही मैं सीधे अपने स्कूल के हैड मास्टरजी के घर गया था और रोते-रोते उन्हें सारी �ात �तायी थी। उनके पास जाने की वजह यह थी बिक वे भी मोने सिसख थे। हालांबिक उनका पूरा खानदान सिसखों का ही था और उनके घर वाले, ससुराल वाले कट्टर सिसख थे। वे मेरे दारजी के गुस्से से वाबिक� थे और मेरी सिसरदद# की तकली� से भी। मैंने उनके आगे सिसर नवा दिदया था बिक मुझे दारजी ने घर से बिनकाल दिदया है और मैं अ� आपके आसरे ही पढ़ना 'ाहता हंू। उन्होंने मेरे सिसर पर हाथ �ेरा था। वे भले आदमी थे। मेरा दृढ़ बिनश्चय देख कर दिदलासा दी थी बिक पुत्तर तूं सि'ंता न कर। मैं तेरी पढ़ाई-सिलखाई का पूरा इंतजाम कर दंूगा। अच्छा होता तेरे घर वाले तेरी तकली� को समझते और तेरा इलाज कराते। खैर जो ऊपर वाले को मंजूर। उन्होंने त� मेरे नहाने-धोने का इंतज़ाम बिकया था और मुझे खाना खिखलाया था। उस रात मैं उन्हीं के घर सोया था। शाम के वक्त वे हमारे मोहल्ले की तर� एक 'क्कर काटने गये थे बिक पता 'ले, कहीं मेरे दारजी वगैरह मुझे खोज तो नहीं रहे हैं। उन्होंने सो'ा था बिक अगर वे लोग वाकई मेरे सिलए परेशान होंगे तो वे उन लोगों को समझायेंगे और मुझे घर लौटने के सिलए मनायेंगे। शायद त� मैं भी मान जाता, लेबिकन लौट कर उन्होंने जो कुछ �ताया था, उससे मेरा घर न लौटने का �ैसला मज़�ूत ही हुआ था। गली में सन्नाटा था और बिकसी भी तरह की कोई भी सुग�ुगाहट नहीं थी। हमारा दरवाजा �ंद था। हो सकता है भीतर मेरी �े�े और छोटे भाई वगैरह रोना-धोना म'ा रहे हों, लेबिकन �ाहर से कुछ भी पता नहीं 'ल पाया था। रात के वक्त वे एक 'क्कर कोतवाली की तर� भी लगा आये थे - दारजी ने मेरे गुम होने की रिरपोट# नहीं सिलखवायी थी। अगले दिदन सु�ह - सु�ह ही वे एक �ार बि�र हमारे मोहल्ले की तर� 'क्कर लगा आये थे, लेबिकन वहां कोई भी मेरी गैर-मौजूदगी को महसूस नहीं कर रहा था। वहां स� कुछ सामान्य 'ल रहा था। त� वे एक �ार बि�र कोतवाली भी हो आये थे बिक वहां कोई बिकसी �च्चे के गुम होने की रिरपोट# तो नहीं सिलखवा गया है। वहां ऐसी कोई रिरपोट# दज# नहीं करायी गयी थी।

उन्होंने त� मेरे भबिवष्य का �ैसला कर सिलया था। पास ही के शहर सहारनपुर में रहने वाले अपने ससुर के नाम एक सि'ट्ठी दी थी और मुझे उसी दिदन �स में बि�ठा दिदया था। इस तरह मैं उनसे दूर होते हुए भी उनकी बिनगरानी में रह सकता था और जरूरत पड़ने पर वाबिपस भी �ुलवाया जा सकता था। उनके ससुर वहां स�से �ड़े गुरुद्वारे की प्र�ंधक कमेटी के कत्ता#धता# थे और उनके तीन-'ार स्कूल 'लते थे। ससुर साह� ने अपने दामाद की सि'ट्ठी पढ़ते ही मेरे रहने खाने का इंतजाम कर दिदया था। मेरी बिकस्मत खरा� थी बिक उनके ससुर उतने ही काइयां आदमी थे। वे 'ाहते तो मेरी सारी समस्याए ंहल कर सकते थे। वहीं गुरूद्वारे में मेरे रहने और खाने का इंतजाम कर सकते थे, मेरी �ीस मा� करवा सकते थे, लेबिकन उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं बिकया था। उन्होंने मुझे अपने ही घर में रख सिलया था। �ेशक स्कूल में मेरा नाम सिलखवा दिदया था लेबिकन न तो मैं बिनयमिमत रूप से स्कूल जा पाता था और न ही पढ़ ही पाता था। हैड मास्टर साह� ने तो अपने ससुर के पास मुझे पढ़ाने के बिहसा� से भेजा था लेबिकन यहां मेरी हैसिसयत घरेलू नौकर की हो गयी थी। मैं दिदन भर खटता, घर भर के उलटे सीधे काम करता और रात को

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�ा�ाजी के पैर द�ाता। खाने के नाम पर यही तसल्ली थी बिक दोनें वक्त खाना गुरूद्वारे के लंगर से आता था सो पेट बिकसी तरह भर ही जाता था। असली तकली� पढ़ाई की थी जिजसका नाम सुनते ही �ा�ा जी दस तरह के �हाने �नाते। मैं अ� स'मु' पछताने लगा था बिक मैं �ेकार ही घर से भाग कर आया। वहीं दारजी की मार खाते पड़ा रहता, लेबिकन बि�र ख्याल आता, यहां कोई कम से कम मारता तो नहीं। इसके अलावा मैंने यह भी देखा मैं इस तरह घर का नौकर ही �ना रहा तो अ� तक का पढ़ा-सिलखा स� भूल जाऊंगा और यहां तो जिज़दगी भर मुफ्त का घरेलू नौकर ही �न कर रह जाउं गा तो मैंने तय बिकया€ , यहां भी नहीं रहना है। ज� अपना घर छोड़ दिदया, उस घर से मोह नहीं पाला तो �ा�ा जी के पराये घर से कैसा मोह। मैंने वहां से भी 'ुप'ाप भाग जाने का �ैसला बिकया। मैंने सो'ा बिक अगर यहां सिसंह सभा गुरूद्वारा और स्कूल एक साथ 'लाती है तो दूसरे शहरों में भी 'लाती ही होगी। तो एक रात मैं वहां से भी भाग बिनकला। �ा�ाजी के यहां से भागा तो बिकसी तरह मेहनत-मजदूरी करते हुए, कुलीबिगरी करते हुए, ट्रकों में सिलफ्ट लेते हुए आखिखर मणिणकण# जा पहुं'ा। इस लम्�ी, थकान भरी और तरह तरह के टे्ट मीठे अनुभवों से भरी मेरी ज़िज़ंदगी की स�से लम्�ी अकेली यात्रा में मुझे सत्रह दिदन लगे थे। वहां पहंु'ते ही पहला झूठ �ोला बिक हमारे गांव में आयी �ाढ़ में परिरवार के स� लोग �ह गये हैं। अ� दुबिनया में बि�लकुल अकेला हूं और आगे पढ़ना 'ाहता हंू। यह नाटक करते समय �हुत रोया। यह जगह मुझे पसंद आयी थी और आगे कई साल तक साल की यानी जिजस कक्षा तक का स्कूल हो, वहीं से पढ़ाई करने का �ैसला मैं मन-ही-मन कर 'ुका था। इससिलए ये नाटक करना पड़ा।

वहां मुझे अपना सिलया गया था। मेरे रहने-खाने की स्थायी व्यवस्था कर दी गयी थी और एक मामूली-सा टेस्ट लेकर मुझे वहां के स्कूल में सातवीं में दाखिखला दे दिदया गया था। मेरी ज़िज़ंदगी की गाड़ी अ� एक �ार बि�र से पटरी पर आ गयी थी। अ� मैं सिसर पर हर समय पटका �ांधे रहता। एक �ार बि�र मैं अपनी छूटी हुई पढ़ाई में जुट गया था। स्कूल से �ुस#त मिमलते ही सारा वक्त गुरूद्वारे में ही बि�ताता। �हुत �ड़ा गुरूद्वारा था। वहां रोजाना �सों और कारों में भर भर कर तीथ# यात्री आते और खू� 'हल-पहल होती। वे एक आध दिदन ठहरते और लौट जाते। मुझे अगली व्यवस्था तक यहीं रहना था और इसके सिलए ज़रूरी था बिक स� का दिदल जीत कर रहंू। कई �ार �सों या कारों में आने वाले याबित्रयों का सामान उठवा कर रखवा देता तो थोड़े �हुत पैसे मिमल जाते। स� लोग मेरे व्यवहार से खुश रहते। वहां मेरी तरह और भी कई लड़के थे लेबिकन उनमें से कुछ वाकई गरी� घरों से आये थे या स'मु' यतीम थे। मैं अचे्छ भले घर का, मां �ाप के होते हुए यतीम था।अ� मेरी ज़िज़ंदगी का एक ही मकसद रह गया था। पढ़ना, और सिस�# पढ़ना। मुझे पता नहीं बिक यह मेरा बिवश्वास था या कोई जादू, मुझे सिसरदद# से पूरी तरह मुसिक्त मिमल 'ुकी थी। वहां का मौसम, ठंड, लगातार पड़ती ��# , पाव#ती नदी का बिकनारा, गम# पानी के सोते और सा�-सुथरी हवा जैसे इन्हीं अच्छी अच्छी 'ीजों से जीवन साथ#क हो 'ला था। यहां बिकसी भी बिकस्म की कोई सि'ंता नहीं थी। स्कूल से लौटते ही मैं अपने बिहस्से के काम करके पढ़ने �ैठ जाता। मुझे अपनी �े�े, �हन और छोटे भाइयों की �हुत याद आती थी। अके ले में मैं रोता था बिक 'ाह कर भी उनसे मिमलने नहीं जा सकता था, लेबिकन मेरी भी जिजद थी बिक मुझे घर से बिनकाला गया है, मैंने खुद घर नहीं छोड़ा है। मुझे वाबिपस �ुलाया जायेगा तभी जाउं गा।€मैं हर साल अपनी कक्षा में �स्ट# आता। 'ौथे �रस मैं हाई स्कूल में अपने स्कू ल में अव्वल आया था। मुझे ढेरों ईनाम और वजी�ा मिमले थे। हाई स्कूल कर लेने के �ाद एक �ार बि�र मेरे सामने रहने-खाने और आगे पढ़ने की समस्या आ खड़ी हुई थी। यहा ं सिस�# दसवीं तक का ही स्कूल था। �ारहवीं के सिलए नी' े मैदानों म ें उतरना पड़ता।

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मणिणकण# का शांत, भरपूर प्राकृबितक सौन्दय# स े भरा वातावरण और गुरुद्वार े का भणित्तरस स े युक्त पारिरवारिरक वातावरण भी छोड़ने का संकट था।मैं अ� तक के अनुभवों से �हुत कुछ सीख 'ुका था और आगे पढ़ने के एकमात्र उदे्दश्य से इन सारी नयी समस्याओं के सिलए तैयार था। छोटे मोटे काम करके मैंने अ� तक इतने पैसे जमा कर सिलये थे बिक दो-तीन महीने आराम से कहीं कमरा ले कर काट सकंू। अट्ठारह साल का होने को आया था। दुबिनया भर के हर तरह के लोगों से मिमलते-जुलते मैं �हुत कुछ सीख 'ुका था। वजी�ा था ही। सौ रुपये प्र�ंधक कमेटी ने हर महीने भेजने का वायदा कर दिदया था। तभी संयोग से अमृतसर से एक इंटर कॉलेज का एक स्कूली }ुप वहा ं आया। मेर े अनुरोध पर हमारे प्रधान जी ने उनके इन्'ाज# के सामने मेरी समस्या रखी। यहां रहते हुए साढे़ तीन-'ार साल होने को आये थे। मेरी तरह के तीन-'ार और भी लड़के थे जो आगे पढ़ना 'ाहते थे। हमारे प्रधान जी ने हमारी सिस�ारिरश की थी बिक हो सके तो इन �च्चों का भला कर दो। हमारी बिकस्मत अच्छी थी बिक हम 'ारों ही उस }ुप के साथ अमृतसर आ गये।मणिणकण# का वह गुरूद्वारा छोड़ते समय मैं एक �ार बि�र �हुत रोया था लेबिकन इस �ार मैं अके ला नहीं था रोन े वाला और रोने की वज़ह भी अलग थी। मैं अपनी और स�की खुशी के सिलए, एक �ेहतर भबिवष्य के सिलए आगे जा रहा था।अ� मेर े सामन े एक और �ड़ी दुबिनया थी। यहा ं आकर हमार े रहन े खान े की व्यवस्था अलग-अलग गुरसिसक्खी घरों में कर दी गयी थी और हम अ� उन घरों के सदस्य की तरह हो गये थे। हमें अ� वहीं रहते हुए पढ़ाई करनी थी।जहां मैं रहता था, वे लोग �हुत अचे्छ थे। �ेशक यह बिकसी के रहमो-करम पर पलने जैसा था और मेरा �ाल मन कई �ार मुझे मिधक्कारता बिक मैं क्यों अपना घर-�ार छोड़ कर दूसरों के आसरे पड़ा हुआ हंू, लेबिकन मेरे पास जो उपाय था, घर लौट जाने का, वह मुझे मंज़ूर नहीं था। और कोई बिवकल्प ही नहीं था। मैं उनके छोटे �च्चों को पढ़ाता और जी-जान से उनकी सेवा करके अपनी आत्मा के �ोझ को कम करता।मैं एक �ार बि�र पढ़ाईद में जी-जान से जुट गया था। इंटर में मैं पूरे अमृतसर में �स्ट# आया था। घर छोड़े मुझे छ: साल होन े को आये थे, लेबिकन सिस�# कुछ सौ मील के �ासले पर म ैं नहीं गया था। अख�ारों में मेरी तस्वीर छपी थी। जिजस घर में मैं रहता था, उन लोगों की खुशी का दिठकाना नहीं था। इसके �ावज़ूद मैं उस रात खू� रोया था। मुझे मेरा 'ाहा स� कुछ मिमल रहा था और ये स� घर परिरवार त्यागने के �ाद ही। मैं मन ही मन 'ाहने लगा था बिक घर से कोई आये और मेरे कान पकड़ कर सिलवा ले जाये ज�बिक मुझे मालूम था बिक उन्हें मेरी इस स�लता की ख�र थी ही नहीं। मुझे तो यह भी पता नहीं था बिक उन्होंने कभी मेरी खोज-ख�र भी ली थी या नहीं। आइआइटी, कानपुर में इंजीबिनयरिरडग में एडमिमशन मिमल जाने के �ाद मेरी �हुत इच्छा थी बिक मैं अपने घर जाऊं लेबिकन संकट वही था, मैं ही क्यों झुकंू। मैं �हुत रोया था लेबिकन घर नहीं गया था। घर की कोई ख�र नहीं थी मेर े पास। मेरी �हुत इच्छा थी बिक कम-से-कम अपने गॉड�ादर हैड मास्टर साह� से ही मिमलने 'ला जाऊं लेबिकन हो नहीं पाया था। मैं जानता था बिक वे इतने �रसों से उनके मन पर भी इस �ात का �ोझ तो होगा ही बिक उनके ससुर ने मेरे साथ इस तरह का व्यवहार करके मुझे घर छोड़ने पर मज़�ूर कर दिदया था तो मैं कहां गया होऊंगा। मैंने अपने व'न का मान रखा था। उन्हीं के आशीवा#द से इंजीबिनयर होने जा रहा था। त� मैंन े �हुत सो' कर उन्हें एक

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}ीटिटंग काड# भेज दिदया था। सिस�# अपना नाम सिलखा था, पता नहीं दिदया था। �ाद में घर जाने पर ही पता 'ला था बिक वे मेरा काड# मिमलने से पहले ही गुज़र 'ुके थे। अगले 'ार छ: साल तक मैं खूद को जस्टी�ाई करता रहा बिक मुझे कुछ कर के दिदखाना है। आप हैरान होंगी मालबिवका जी बिक इन �रसों में मुझे शायद ही कभी �ुस#त मिमली हो। मैं हमेशा खटता रहा। कुछ न कुछ करता रहा। �च्चों को पढ़ाता रहा। आपको �ताऊं बिक मैंने �ेशक �ीटेक और एमटैक बिकया है, पीए' डी की है, लेबिकन गुरूद्वारे में रहते हुए, अमृतसर में भी और �ाद में आइआइटी कानपुर में पढ़ते हुए भी मैं �रा�र ऐसे काम धंधे भी सीखता रहा और करता भी रहा जो एक कम पढ़ा-सिलखा आदमी जानता है या रोज़ी-रोटी कमाने के सिलए सीखता है। मैं ज़रा-सी भी Vुस#त मिमलने पर ऐसे काम सीखता था। मुझे 'ारपाई �ुनना, 'प्पलों की मरम्मत करना, जूते तैयार करना, कपड़े रंगना, �च्चों के खिखलौने �नाना या कारपेंटरी का मेरा खानदानी काम ये �ीसिसयों धंधे आते हैं। मैं बि�जली की सारी बि�गड़ी 'ीजें दुरुस्त कर सकता हंू। �ेशक मुझे पतंग उड़ाना या बिक्रकेट खेलना नहीं आता लेबिकन मैं हर तरह का खाना �ना सकता हूं और घर की रंगाई-पुताई �खू�ी कर सकता हंू। इतने लम्�े अरसे में मैंने शायद ही कोई बि�ल्म देखी हो, कोई आवारागद� की हो या पढ़ाई के अलावा और बिकसी �ात के �ारे में सो'ा हो लेबिकन ज़रूरत पड़ने पर मैं आज भी छोटे से छोटा काम करने में बिह'कता नहीं। साथ में पढ़ने वाले लड़के अक्सर छेड़ते - ओये, तू जिजतनी भी मेहनत करे, अपना माथा �ोड़े या दुबिनया भर के धं्ैाधे करे या सीखे, मजे़ तेरे बिहस्से में न अ� सिलखे हैं और न �ाद में ही तू मजे़ ले पायेगा। तू त� भी �ीवी �च्चों के सिलए इसी तरह खटता रहेगा। त� तो मैं उनकी �ात मज़ाक में उड़ा दिदया करता था, लेबिकन अ� कई �ार लगता है, गलत वे भी नहीं थे। मेरे बिहस्से में न तो मेरी पसंद का जीवन आया है और न घर ही। अपना कहने को कुछ भी तो नहीं है मेरे पास। एक दोस्त तक नहीं है। मैं रुका हंू। देख रहा हंू, मालबिवका जी बि�ना पलक झपकाये ध्यान से मेरी �ात सुन रही हैं। शायद इतने अचे्छ श्रोता के कारण ही मैं इतनी देर तक अपनी बिनतांत व्यसिक्तगत �ातें उनसे शेयर कर पा रहा हंू।

- दो�ारा घर जाने के �ारे में कुछ �ताइये, वे कहती हैं।उन्हें संक्षेप में �ताता हूं दो�ारा घर जाने से पहले की �े'ैनी की, अकु लाहट की �ातें और घर से एक �ार बि�र से �ेघर हो कर लौट कर आने की �ात।

- और गुड्डी?- मुझे लगता है मैंने ज़िज़ंदगी में जिजतनी गलबितयां की हैं, उनमें से जिजस गलती के सिलए मैं खुद को

कभी भी मा� नहीं कर पाऊंगा, वह थी बिक घर से दो�ारा लौटने के दिदन अगर मैं गुड्डी को भी अपने साथ �ं�ई ले आता तो शायद ज़िज़ंदगी के सारे हादसे खत्म हो जाते। मेरी ज़िज़ंदगी ने भी �ेहतर रुख सिलया होता और मैं गुड्डी को �'ा पाता। उसकी पढ़ाई सिलखाई पूरी हो पाती, लेबिकन ....

- अपने प्रेम प्रसंगों के �ारे में कुछ �ताइये।- मेरा बिवश्वास कीजिजये, इस सिसर दद# का मेरे प्रेम प्रसंगों के होने या न होने से कोई सं�ंध नहीं है।

लगता है आपसे आपके प्रेम प्रसंग सुनने के सिलए आपको कोई रिरश्वत देनी पडे़गी। 'सिलए एक काम करते हैं, कल हम लं' एक साथ ही लेंगे। वे हॅसी हैं - घ�राइये नहीं, लं' के पैसे भी मैं कन्सलटेंसी में जोड़ दंूगी। कबिहये, ठीक रहेगा?

- अ� आपकी �ात मैं कैसे टाल सकता हंू।- आप यहीं आयेंगे या आपको आपके घर से ही बिपक-अप कर लूं?- जैसा आप ठीक समझें।- आप यहीं आ जायें। एक साथ 'लेंगे।

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- 'लेगा, भला मुझे क्या एतराज हो सकता है।मालबिवका जी लं' के सिलए जिजस जगह ले कर आयी हैं, वह शहरी माहौल से �हुत दूर वुड�ोड# के इलाके में है। भारतीय रेस्तरां है यह। नाम है 'ोर �ाज़ार। �ेशक लंदन में है लेबिकन रेस्तरां के भीतर आ जाने के �ाद पता ही नहीं 'लता, हम लंदन में हैं या 'ंडीगढ़ के �ाहर हाइवे के बिकसी अचे्छ से रेस्तरां में �ैठे हैं। जगह की तारी� करते हुए पूछता हूं म ैं - ये इतनी शानदार जगह कैसे खोज ली आपने ? मुझे तो आज तक इसके �ारे में पता नहीं 'ल पाया।हंसती हैं मालबिवका जी - घर से �ाहर बिनकलो तो कुछ मिमले।

�हुत ही स्वादिदष्ट और रुसि'कर भोजन है। खाना खाते समय मुझे सहसा गोल्डी की याद आ गयी है। उसके साथ ही भटकते हुए मैंने �ं�ई के अलग-अलग होटलों में खाने का असली स्वाद सिलया था। पता नहीं क्यों गोल्डी के �ारे में सो'ना अच्छा लग रहा है। उसकी याद भी आयी तो कहां और कैसी जगह पर। कहां होगी वह इस समय? इच्छा होती है मालबिवका जी को उसके �ारे में �ताऊं। मैं �ताऊं उन्हें, इससे पहले ही उन्होंने पूछ सिलया है -बिकसके �ारे में सो' रहे हैं दीप जी? क्या कोई खास थी?�ताता हूं उन्हें - मालबिवका जी, कल आप मेरे प्रेम प्रसंगों के �ारे में पूछ रही थीं।

- मैं आपको यहां लायी ही इससिलए थी बिक आप अपने प्रेम प्रसंगों के �ारे में खुद ही �तायें। मेरा मिमशन स�ल रहा, आप बि�लकुल सहज हो कर उस लड़की के �ारे में �तायें जिजस की याद आपको यह स्वादिदष्ट खाना खाते समय आ गयी है। ज़रूर आप लोग साथ-साथ खाना खाने नयी-नयी जगहों पर जाते रहे होंगे।

- अक्सर तो नहीं लेबिकन हां, कई �ार जाते थे। - क्या नाम था उसका ?- गोल्डी, वह हमारे घर के पास ही रहने आयी थी।

मैं मालबिवका जी को गेल्डी से पहली मुलाकात से आखिखरी तय लेबिकन न हो पायी मुलाकात की सारी �ातें बिवस्तार से �ताता हंू। इसी सिसलसिसले में अलका दीदी और देवेद्र जी का भी जिज़क्र आ गया है। मैं उनके �ारे में भी �ताता हंू। हम खाना खा कर �ाहर आ गये हैं। वाबिपस आते समय भी वे कोई न कोई ऐसा सवाल पूछ लेती हैं जिजससे मेरे अतीत का कोई नया ही पहलू खुल कर सामने आ जाता है। �ातें घूम बि�र कर कभी गोलू पर आ जाती हैं तो कभी गुड्डी पर। मेरी एक �ात खत्म नहीं हुई होती बिक उसे दूसरी तर� मोड़ देती हैं। मैं समझ नहीं पा रहा हंू, वे मुझमें और मुझसे जुड़ी भूली बि�सरी �ातों में इतनी दिदल'स्पी क्यों ले रही हैं। वैसे एक �ात तो है बिक उनसे �ात करना अच्छा लग रहा है। कभी बिकसी से इतनी �ातें करने का मौका ही नहीं मिमला। हर �ार यही समझता रहा, सामने वाला कहीं मेरी व्यथा कथा सुन कर मुझ पर तरस न खाने लगे। इसी डर से बिकसी को अपने भीतर के अंधेरे कोनों में मैंने झांकने ही नहीं दिदया। मालबिवका जी की �ात ही अलग लगती है। व े बि�लकुल भी य े नहीं जतलातीं बिक व े आपको छोटा महसूस करा रही हैं या आप पर तरस खा रही हैं।ज� उन्होंने मुझे घर पर �ॉप करने के सिलए गाड़ी रोकी है तो मुझे बि�र से गोल्डी की �ातें याद आ गयी हैं। मैंने यूं ही मालबिवका जी से पूछ सिलया है - भीतर आ कर इस �ंदे के हाथ की कॉ�ी पी कर कुछ कमेंट नहीं करना 'ाहेंगी?

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उन्होंने हँसते हुए गाड़ी का इंजन �ंद कर दिदया है और कह रही हैं - मैं इंतज़ार कर रही थी बिक आप कहें और मैं आपके हाथ की कॉ�ी पीने के सिलए भीतर आऊं। 'सिलये, आज आपकी मेहमाननवाज़ी भी देख ली जाये। वे भीतर आयी हैं। �ता रही हैं -गौरी के मम्मी पापा वाले घर में तो कई �ार जाना हुआ लेबिकन यहां आना नहीं हो पाया। आज आपके �हाने आ गयी।

- आपसे पहले परिर'य हुआ होता तो पहले ही �ुला लेते। खैर, खुश आमदीद। ज� तक मैं कॉ�ी �नाऊं, वे पूरे फ्लैट का एक 'क्कर लगा आयी हैं।पूछ रही हैं वे - मैं गौरी के एस्थेदिटक सैंस से अच्छी तरह से परिरसि'त हंू, घर की ये साज-सज्जा कम से कम उसकी की हुई तो नहीं है और न लंदन में इस तरह की इंटीरिरयर करने वाली एजेंसिसयां ही हैं। आप तो छुपे रुस्तम बिनक ले। मुझे नहीं पता था, आप ये स� भी जानते हैं। �हुत खू�। }ेट।मैं क्या जवा� दंू - �स, ये तो स� यूं ही 'लता रहता है। ज� भी मैं अपने घर की कल्पना करता था तो सो'ता था, �ैडरूम ऐसे होगा हमारा और �ंइगरूम और स्टडी ऐसे होंगे। अ� जो भी �न पड़ा...।

- क्यों, क्या इस घर से अपने घर वाली भावना नहीं जुड़ती क्या?- अपना घर न समझता तो ये स� करता क्या? मैंने कह तो दिदया है, लेबिकन मैं जानता हूं बिक

उन्होंने मेरी �दली हुई टोन से ताड़ सिलया है, मैं स' नहीं कह रहा हंू । - एक और व्यसिक्तगत सवाल पूछ रही हूं, गौरी से आपके सं�ंध कैसे हैं?

मैं हँस कर उनकी �ात टालने की कोसिशश करता हू ं - आज के इन्टरव्यू का समय समाप्त हो 'ुका है मैडम। हम प्रो}ाम के �ाद की ही कॉ�ी ले रहे हैं।

- �हुत शाबितर हैं आप, ज� आपको जवा� नहीं होता तो कैसा �दिढ़या कमर्सिशंयल ब्रेक लगा देते हैं। खैर, �' के कहां जायेंगे। अभी तो हमने आधे सवाल भी नहीं पूछे।मालबिवका जी के सवालों से मेरी मुसिक्त नहीं है। बिपछले महीने भर से उनसे �ी'-�ी' में मुलाकात होती ही रही है। हालांबिक उन्होंने इलाज या योगाभ्यास के नाम पर अभी तक मुझे दो-'ार आसन ही कराये हैं लेबिकन उन्होंने एक अलग ही तरह की राय देकर मुझे एक तरह से 'ौंका ही दिदया है। उन्होंने मुझे डायरी सिलखने के सिलए कहा है। डायरी भी आज की नहीं, �ल्किल्क अपने अतीत की, भूले बि�सरे दिदनों की। जो कुछ मेरे साथ हुआ, उसे ज्यों का त्यों दज# करने के सिलए कहा है। अल�त्ता, उन्होंने मुझसे गौरी के साथ मेरे सं�ंधों में 'ल रही खटास के �ारे में राई रत्ती उगलवा सिलया है। �ेशक उन सारी �ातों पर अपनी तर� से एक शब्द भी नहीं कहा है। इसके अलावा ससुराल की तर� से मेरे साथ जो कुछ भी बिकया गया या बिकस तरह से सिशसिशर ने मेरे कदिठन वक्त में मेरा साथ दिदया, ये सारी �ातें मैंने डायरी में �ाद में सिलखी हैं, उन्हें पहले �तायी हैं। डायरी सिलखने का मैंने यही तरीका अपनाया है। उनसे दिदन में आमने-सामने या �ोन पर जो भी �ात होती है, वही डायरी में सिलख लेता हूं। मेरा सिसरदद# अ� पहले की तुलना में का�ी कम हो 'ुका है। गौरी भी हैरान है बिक मात्र दो-'ार योग आसनों से भला इतना भयंकर सिसरदद# कैसे जा सकता है। लेबिकन मैं ही जानता हूं बिक ये सिसरदद# योगासनों से तो नहीं ही गया है। अ� मुझे मालबिवका जी का इलाज करने का तरीका भी समझ में आ गया है। मैंने उनसे इस �ारे में ज� पूछा बिक आप मेरा इलाज क� शुरू करेंगी तो वे हँसी थीं - आप भी अचे्छ-खासे सरदार हैं। ये स� क्या है जो मैं इतने दिदनों से कर रही हंू। ये इलाज ही तो 'ल रहा है आपका। आप ही �ताइये, आज तक आपका न केवल सिसरदद# गाय� हो रहा है �ल्किल्क आप ज्यादा उत्साबिहत और खुश-खुश नज़र आने लगे हैं। �ेशक

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कुछ 'ीज़ों पर मेरा �स नहीं है लेबिकन जिजतना हो सका है, आप अ� पहले वाली हालत में तो नहीं हैं। है ना यही �ात?

- तो आपकी बिनगाह में मेरे सिसरदद# की वज़ह क्या थी?- अ� आप सुनना ही 'ाहते हैं तो सुबिनये, आपको दरअसल कोई �ीमारी ही नहीं थी। आपके

साथ तीन-'ार तकलीVें एक साथ हो गयी थीं। पहली �ात तो ये बिक आप ज़िज़ंदगी भर अकेले रहे, अकेले जूझते भी रहे और कुढ़ते भी रहे। संयोग से आपने अपने आस-पास वालों से ज� भी कुछ 'ाहा, या मांगा, 'ूंबिक वो आपकी �ंधी �ंधायी जीवन शैली से मेल नहीं खाता था, इससिलए आपको हमेशा लगता रहा, आप छले गये हैं। आप कभी भी व्यावहारिरक नहीं रहे इससिलए आपको सामने वाले का पक्ष हमेशा ही गलत लगता रहा। ऐसा नहीं है बिक आपके साथ ज्यादबितयां नहीं हुईं होंगी। वो तो हुई ही हैं लेबिकन उन स�को देखने-समझने और उन्हें जीवन में ढालने के तरीके आपके अपने ही थे। दरअसल आप ज़िज़ंदगी से कुछ ज्यादा ही उम्मीदें लगा �ैठे थे इससिलए स� कुछ आपके खिखलाV होता 'ला गया। जहां आपको मौका मिमला, आप पलायन कर गये और जहां नहीं मिमला, वहां आप सिसरदद# से पीबिड़त हो गये। आप कुछ हद तक वहम रोग जिजसे अं}ेजी में हाइपोकाँबि�याक कहते हैं, के रोगी होते 'ले जा रहे थे। दूसरी दिदक्कत आपके साथ यह रही बिक आप कभी भी बिकसी से भी अपनी तकली�ें शेयर नहीं कर पाये। करना 'ाहते थे और ज� करने का वक्त आया तो या तो लोग आपको सुनने को तैयार नहीं थे और जहां तैयार थे, वहां आप तरस खाने से �'ना 'ाहते हुए उनसे झूठ-मूठ के बिकस्से सुना कर उन्हें भी और खुद को भी �हलाते रहे। क्या गलत कह रही हूं मैं?

- माई गॉड, आपने तो मेरी सारी पोल ही खोल कर रख दी। मैंने तो कभी इस बिनगाह से अपने आपको देखा ही नहीं।

- तभी तो आपका यह हाल है। क� से दर-�दर हो कर भटक रहे हैं और आपको कोई राह नहीं सूझती।

- आपने तो मेरी आंखें ही खोल दीं। मैं अ� तक बिकतने �ड़े भ्रम में जी रहा था बिक हर �ार मैं ही सही था।

- वैसे आप हर �ात गलत भी नहीं थे लेबिकन आपको ये �ताता कौन। आपने बिकसी पर भी भरोसा ही नहीं बिकया कभी। आपको �े'ारा �नने से एलज> जो थी। है ना..।

- आपको तो सारी �ातें �तायी ही हैं ना..।- तो राह भी तो हमने ही सुझायी है। - उसके सिलए तो मैं आपका अहसान ज़िज़ंदगी भी नहीं भूलूंगा।- अगर मैं कहंू बिक मुझे भी सिस�# इसी शब्द से सि'ढ़ है तो..?- ठीक है नहीं कहेंगे।

मालबिवका जी से ज� से मुलाकात हुई है, ज़िज़ंदगी के प्रबित मेरा नज़रिरया ही �दल गया है। मैंने अ� अपने �ारे में भी सो'ना श्जारू कर दिदया है और अपने आ�जव�शन अपनी डायरी में सिलख रहा हंू। मैं एक और 'ाट# �ना रहा हूं बिक मैंने ज़िज़ंदगी में क�-क� गलत �ैसले बिकये और �ाद में धोखा खाया या क� क� कोई �ैसला ही नहीं बिकया और अ� तक पछता रहा हूं। ये डायरी एक तरह से मेरा कन्�ैशन है मेरे ही सामने और मैं इसके आधार पर अपनी ज़िज़ंदगी को �ेहतर तरीके से संवारना 'ाहता हंू। �ेशक मुझे अ� तक सिसरदद# से का�ी हद तक आराम मिमल 'ुका है और मैं अपने आपको मानसिसक और शारीरिरक रूप से स्वस्थ भी महसूस कर रहा हूं बि�र भी गौरी से मेरे सं�ंधों की पटरी नहीं �ैठ पा

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रही है। ज� से उसने देखा है बिक मुझे सिसरदद# से आराम आ गया है मेरे प्रबित उसका लापरवाही वाला व्यवहार बि�र श्जारू हो गया है। मैं एक �ार बि�र अपने हाल पर अकेला छोड़ दिदया गया हंु। स्टोस# जाता हूं लेबिकन उतना ही ध्यान देता हूं जिजतने से काम 'ल जाये। ज्यादा मारामारी नहीं करता। मैं अ� अपनी तर� ज्यादा ध्यान देने लगा हूं। �ेशक मेर े पास �हुत अमिधक पाउंड नहीं �'े हैं बि�र भी मैंने मालबिवका जी को �हुत आ}ह करके एक शानदार ओवरकोट दिदलवाया है।

इसी हफ्ते गौरी की �ुआ की लड़की पुष्पा की शादी है। मैन'ेस्टर में। हांडा परिरवार की सारी �हू �ेदिटयां आज सवेरे-सवेरे ही बिनकल गयी हैं। हांडा परिरवार में हमेशा ऐसा ही होता हे। ज� भी परिरवार में शादी या और कोई भी आयोजन होता है, सारी मबिहलाए ंएक साथ जाती हैं और दो-तीन दिदन खू� जश्न मनाये जाते हैं। हम पुरुष लोग परसों बिनकलेंगे। मैं सिशसिशर के साथ ही जाऊंगा।

अभी दिदन भर के काय#क्रम के �ारे में सो' ही रहा हंू बिक मालबिवका जी का �ोन आया है। उन्होंने सिस�# तीन ही वाक्य कहे हैं - मुझे पता है गौरी आज यहां नहीं है। �ल्किल्क पूरा हफ्ता ही नहीं है। आपका मेरे यहां आना क� से टल रहा है। आज आप इनकार नहीं करेंगे और शाम का खाना हम एक-साथ घर पर ही खायेंगे। �नाऊंगी मैं। पता सिलखवा रही हंू। सीधे पहंु' जाना। मैं राह देखूंगी। और उन्होंने �ोन रख दिदया है।अ� तय हो ही गया है बिक मैं अ� घर पर ही रहूं और कई दिदन �ाद एक �ेहद खू�सूरत, सहज और सुकूनभरी शाम गुजारने की राह देखूं। कई दिदन से उन्हीं का यह प्रस्ताव टल रहा है बिक मैं एक �ार उनके गरी�खाने पर आऊं और उनकी मेहमाननवाजी स्वीकार करंू।

मौसम ने भी आखिख़र अपना रोल अदा कर ही सिलया। �रसात ने मेरे अचे्छ-ख़ासे सूट की ऐसी-तैसी कर दी। ��# के कारण सारे रास्ते या तो �ंद मिमले या टै्रबि�क 'ींदिटयों की तरह रेंग रहा था। �ीस मिमनट की दूरी तय करने में दो घंटे लगे। मालबिवका जी के घर तक आते-आते �ुरा हाल हो गया है। सारे कपड़ों का सत्यानास हो गया। सिसर से पैरों तक गंदी ��# के पानी में सिलथड़ गया हूं। जूतों में अंदर तक पानी भर गया है। सद� के मारे �ुरा हाल है वो अलग। वे भी क्या सो'ेंगी, पहली �ार बिकस हाल में उनके घर आ रहा हंू। उनके दरवाजे की घंटी �जायी है। दरवाजा खुलते ही मेरा हुसिलया देख कर वे पहले तो हँसी के मारे दोहरी हो गयी हैं लेबिकन तुंत ही मेरी �ांह पकड़ कर मुझे भीतर खीं' लेती ह ैं - जल्दी से अंदर आ जाओ। त�ीयत खरा� हो जायेगी। मैं भीगे कपड़ों और गीले जूतों के साथ ही भीतर आया हूं। उन्होंने मेरा रेनकोट और ओवरकोट वगैरह उतारने में मदद की है। हँसते हुए �ता रही हैं - मौसम का मूड देखते हुए मैं समझ गयी थी बिक आप यहां बिकस हालत में पहंु'ेंगे। �ेहतर होगा, आप पहले 'ेंज ही कर लें। इन गीले कपड़ों में तो आपके �ाजे �ज जायेंगे। �ाथरूम तैयार है और पानी एकदम गम#। वैसे आप �ाथ लेंगे या हाथ मुंह धो कर फे्रश होना 'ाहेंगे। वैस े इतनी सद� म ें बिकसी भले आदमी को नहान े के सिलए कहना मेरा ख्याल है, �हुत ज्यादती होगी।

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- आप ठीक कह रही हैं लेबिकन मेरी जो हालत है, उसे तो देख कर मेरा ख्याल है, नहा ही लूं। पूरी तरह फे्रश हो जाउं गा।€

- तो ठीक है, मैं आपके नहाने की तैयारी कर देती हंू, कहती हुई वे भीतर के कमरे में 'ली गयी हैं। मैं अभी गीले जूते उतार ही रहा हंू बिक उनकी आवाज आयी है

- �ाथरूम तैयार है।वे हंसते हुए वाबिपस आयी हैं - मेरे घर में आपकी कद काठी के लायक कोई भी �ैसिसंग गाउन या कुता# पायजामा नहीं है। बि�लहाल आपको ये शाम मेरे इस लुंगी-कुत� में ही गुज़ारनी पडे़गी। 'सिलये, �ाथरूम तैयार है।

एकदम खौलते गरम पानी से नहा कर ताज़गी मिमली है। फे्रश हो कर फं्रट रूम में आया तो मैं हैरान रह गया हंू। सामने खड़ी हैं मालबिवका जी। मुसकुराती हुई। एयर होस्टेस की तरह हाथ जोडे़। अणिभवादन की मुद्रा में। एक �हुत ही खू�सूरत �ुके उनके हाथ में है - हैप्पी �थ#डे दीप जी। मैं दिठठक कर रह गया हंू। यह लड़की जो मुझे ढंग से जानती तक नहीं और जिजसका मुझसे दूर दूर तक कोई नाता नहीं है, बिकतने जतन से और प्यार से मेरा जनमदिदन मनाने का उपक्रम कर रही हैं। और एक गौरी है ..क्या कहंू, समझ नहीं पाता।

- हैप्पी �थ# डे बिडयर दीप। वे बि�र कहती हैं और आगे �ढ़ कर उन्होंने �ुके मुझे थमाते-थमाते हौले से मेरी कनपटी को 'ूम सिलया है। मेरा 'ेहरा एकदम लाल हो गया है। गौरी के अलावा आज तक मैंने बिकसी औरत को छुआ तक नहीं है। मैं बिकसी तरह थैंक्स ही कह पाता हूं। आज मेरा जनमदिदन है और गौरी को यह �ात मालूम भी थी। वैसे यहां मेरा यह 'ौथा साल है और आज तक न तो गौरी ने मुझसे कभी पूछने की ज़रूरत समझी है और न ही उसे कभी �ुस#त ही मिमली है बिक पूछे बिक मेरा जनमदिदन क� आता है, या कभी जनमदिदन आता भी है या नहीं, तो आज भी मैं इसकी उम्मीद कैसे कर सकता था, ज�बिक गौरी को हर �ार मैं न केवल जनमदिदन की बिवश करता हूं �ल्किल्क उसे अपनी हैसिसयत भर उपहार भी देने की कोसिशश करता हंू। गोल्डी से मुलाकात होने से पहले तक तो मेरे सिलए यह तारीख़ सिस�# एक तारीख़ ही थी। उसी ने इस तारीख़ को एक नरम, गुदगुदे अहसास में �दला था। गोल्डी के �ाद से ज� भी यह तारीख़ आती है, ख्याल तो आता ही है। �ेशक सारा दिदन मायूसी से ही गुज़ारना पड़ता है। मैं हैरान हो रहा हंू, इन्हें कैसे पता 'ला बिक आज मेरा जनमदिदन है। मेरे सिलए एक ऐसा दिदन जिजसे मैं कभी न तो याद करने की कोसिशश करता हूं और न ही इसे आज तक सेलेब्रेट ही बिकया है। मैं झ्टंैापी सी हँसी हँसा हंू और पूछता हंू - आपको कैसे पता 'ला बिक आज इस �दनसी� का जनमदिदन है।

- आप भी कमाल करते हैं दीप जी, पहली �ार आप ज� आये थे तो मैंने आपका हैल्थ काड# �नवाया था। वह डेटा उसी दिदन मेरे कम्प्यूटर में भी �ीड हो गया और मेरे दिदमाग में भी। - कमाल है !! बिकतने तो लोग आते हेंगे जिजनके हैल्थ काड# �नते होंगे हर रोज़। स�के �ायोडाटा �ीड कर लेती हैं आप अपने दिदमाग में।

- सिस�# �ायोडाटा। �थ# डेट तो बिकसी बिकसी की ही याद रखती हूं । समझे। और आप भी मुझसे ही पूछ रहे हैं बिक मुझे आपके जनमदिदन का कैसे पता 'ला!!

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Page 109: 24 ¹¸÷¸Ÿ ¸£, 1992— ˆ¾Å¥¸½¿”£ ‡ˆÅ ¸¸£ ¹ûÅ£ ¨¸ú Ÿ ... mangal.doc · Web view[उपन य स] - स रज प रक श 24 स तम बर, 1992।

मैं उदास हो गया हंू। एक तर� गौरी है जिजसे मेरा जनमदिदन तो क्या, हमारी शादी की तारीख तक याद नहीं है। और एक तर� मालबिवका जी हैं जिजनसे मेरी कुछेक ही मुलाकातें हैं। �ाकी तो हम �ोन पर ही �ातें करते रहे हैं और इन्हें ......। मैं कुछ कहूं इससे पहले ही वे �ोल पड़ी है - डोंट टेक इट अदरवाइज़। आज का दिदन आपके सिलए एक खास दिदन है और आज आप मेर े ख़ास मेहमान हैं। आज आपके 'ेहरे पर सि'ंता की एक भी लकीर नजर नहीं आनी 'ाबिहये.. ओ के !! रिरलैक्स नाउ और एजंाय यूअर सेल्�। त� तक मैं भी ज़रा �ाकी 'ीजें देख लूं।मैं अ� ध्यान से कमरा देखता हंू। एकदम भारतीय शैली में सज़ा हुआ। कहीं से भी यह आभास नहीं मिमलता बिक मैं इस वक्त यहां लंदन में हूं। पूरे कमरे में दसिसयों एक से �ढ़ कर एक लैम्प शेड्स कमरे को �हुत ही रूमानी �ना रहे हैं। पूरा का पूरा कमरा एक उत्कृष्ट कलात्मक अणिभरुसि' का जीवंत साक्षात्कार करा रहा है। कोई सो�ा वगैरह नहीं है। �ैठने का इंतजाम नी'े ही है। एक तर� गदे्द की ही ऊं'ाई पर रखा सीडी 'ेंजर और दूसरी तर� बिहन्दी और अं}ेजी के कई परिरसि'त और खू� पढे़ जाने वाले ढेर सारे टाइटल्स। 'ेंजर के ही ऊपर एक छोटे से शेल्� में कई इंबिडयन और वेस्टन# क्लासिसकल्स के सीडी। मैं मालबिवका जी की पसंद और रहन सहन के �ारे में सो' ही रहा हूं बिक वे मेरे सिलए एक बिगलास लेकर आयी हैं - मैं जानती हूं, आप नहीं पीते। वैसे मैं कहती भी नहीं लेबिकन जिजस तरह से आप ठंड में भीगते हुए आये हैं, मुझे डर है कहीं आपकी त�ीयत न खरा� हो जाये। मेरे कहने पर गरम पानी में थोड़ी-सी ब्रांडी ले लें। दवा का काम करेगी। मैं उनके हाथ से बिगलास ले लेता हंू। मना कर ही नहीं पाता। तभी मैं देखता हूं वे पूरे कमरे में ढेर सारी �ड़ी-�ड़ी रंगीन मोम�णित्तयां सजा रही हैं। मैं कुछ समझ पाऊं इससे पहले ही व े इशारा करती ह ैं - आओ ना, जलाओ इन्हें। म ैं उनकी मदद स े एक -एक करके सारी मोम�णित्तयां जलाता हूं। कुल 'ौंतीस हैं। मेरी उम्र के �रसों के �रा�र। सारी मोम�णित्तयां जिझलमिमलाती जल रही हैं और खू� रोमांदिटक माहौल पैदा कर रही हैं । उन्होंने सारी लाइटें �ुझा दी हैं। कहती हैं - हम इन्हें �ुझायेंगे नहीं। आखिखर तक जलने देंगे। ओ के !! मैं भावुक होने लगा हंू..। कुछ नहीं सूझा तो सामने रखे गुलदस्ते में से एक गुला� बिनकाल कर उन्हें थमा दिदया है - थैंक यू वेरी म' मालबिवका जी, मैं इतनी खुशी �रदाश्त नहीं कर पाऊंगा। स'मु' मैं .. ...। मेरा गला रंुध गया है।

- जना� अपनी ही खुसिशयों के सागर मे गोते लगाते रहेंगे या इस ना'ीज को भी जनमदिदन के मौके पर शुभकामना के दो शब्द कहेंगे।

- क्या आपका भी आज ही जनमदिदन है, मेरा मतल� .. आपने पहले क्यों नहीं �ताया?- तो अ� �ता देते हैं सर बिक आज ही इस �ंदी का भी जनमदिदन है। मैं इस दिदन को लेकर �हुत

भावुक हूं और मैं आज के दिदन अकेले नहीं रहना 'ाहती थी। हर साल का यही रोना है। हर साल ही कम्�ख्त यह दिदन 'ला आता है और मुझे खू� रुलाता है। इस साल मैं रोना नहीं 'ाहती थी। कल देर रात तक सो'ती रही बिक मैं बिकसके साथ यह दिदन गुजारंू। अ� इस पूर े देश में मुझे जो शख्स इस लायक नजर आया, खुशबिकस्मती से वह भी आज ही के दिदन अपना जनमदिदन मनाने के सिलए हमारे जैसे बिकसी पाट#नर की तलाश में था। हमारा शुबिक्रया अदा कीजिजये जना� बिक ......और वे ज़ोर से खिखलखिखला दी हैं। मैंने संजीदा हो कर पूछा है - आपके सिलए तो पां'-सात मोम�णित्तयां कम करनी पड़ेंगी ना !!

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- नहीं डीयर, अ� आपसे अपनी उम्र क्या छुपानी !! हमने भी आपके �रा�र ही पापड़ �ेले हैं जना�। वैसे वो दिदन अ� कहां �ुर हो गये ह ैं !! ये क्या कम है बिक तुम इनमें दो 'ार मोम�णित्तयां और नहीं जोड़ रहे हो !!

- ऐसी कोई �ात नहीं है। 'ाहो तो मैं ये सारी मोम�णित्तयां �ेशक अपने नाम से जला देता हूं लेबिकन अपनी उम्र आपको दे देता हंू। वैसे भी मेरी ज़िजंदगी �ेकार जा रही है। आपके ही बिकसी काम आ सके तो !! मैंने �ात अधूरी छोड़ दी है।

- नो थैंक्स !! अच्छा तुम एक काम करो दीप, धीरे-धीरे अपनी ब्रांडी सिसप करो। और लेनी हो तो गरम पानी यहां थम#स में रखा है। �ॉटल भी यहीं है। और उन्होंने अपना छोटा-सा �ार कैबि�नेट खोल दिदया है।

- त� तक मैं भी अपना �थ#डे �ाथ ले कर आती हंू।मैं उनका सीडी कलेक्शन देखता हूं - सिस�# इंबिडयन क्लासिसक्स हैं। मैं 'ेंजर पर भूपेन्दर की ग़ज़लों की सीडी लगाता हंू। कमरे में उसकी सोज़ भरी आवाज गूंज रही है - यहां बिकसी को मुकम्मल जहां नहीं मिमलता। कभी ज़मीं तो कभी आसमां नहीं मिमलता। स' ही तो है। मेरे साथ भी तो ऐसा ही हो रहा है। कभी पैरों तले से ज़मीं गाय� होती है तो कभी सिसर के ऊपर से आसमां ही कहीं गुम हो जाता है। कभी यह बिवश्वास ही नहीं होता बिक हमारे पास दोनों जहां हैं। आज पता नहीं कौन से अचे्छ करमों का �ल मिमल रहा है बिक बि�न मांगे इतनी दौलत मिमल रही है। ज़िज़ंदगी भी बिकतने अजी�-अजी� खेल खेलती है हमारे साथ। हम ज़िज़ंदगी भर गलत दरवाजे ही खटखटाते रह जाते हैं और कोई कहीं और �ंद दरवाजों के पीछे हमारे इंतज़ार में पूरी उम्र गुज़ार देता है। और हमें या तो ख�र ही नहीं मिमल पाती या इतनी देर से ख़�र मिमलती है बिक त� कोई भी 'ीज़ मायने नहीं रखती। �हुत देर हो 'ुकी होती है।

�ाहर अभी भी ��# पड़ रही है लेबिकन भीतर गुनगुनी गरमी है। मैं गाव तबिकये के सहारा लेकर अधलेटा हो गया हूं और संगीत की लहरिरयों के साथ डू�ने उतराने लगा हंू। ब्रांडी भी अपना रंग दिदखा रही है। दिदमाग में कई तरह के अचे्छ �ुरे ख्याल आ रहे हैं। खुद पर अVसोस भी हो रहा है, लेबिकन मैं मालबिवका जी के शानदार मूड और हम दोनों के जनमदिदन के अद्भतु संयोग पर अपने भारी और मनहूस ख्यालों की काली छाया नहीं पड़ने देना 'ाहता। मुझे भी तो ये शाम अरसे �ाद, बिकतनी तकलीVों के सVर अकेले तय करने के �ाद मिमली है। पता नहीं मालबिवका जी भी क� से इस तरह की शाम के सिलए तरस रही हों। इन्हीं ख्यालों म ें और ब्रांडी के हलके-हलके नशे म ें पता नहीं क� झपकी लग गयी होगी। अ'ानक झटका लगा है। महसूस हुआ बिक मालबिवका जी मेरी पीठ के पीछे घुटनों के �ल �ैठी मेरे �ालों में अपनी उंगसिलयां बि�रा रही हैं। पता 'ल जाने के �ावजूद मैंने अपनी आंखें नहीं खोली हैं। कहीं यह मुलायम अहसास बि�खर न जाये। तभी मैंने अपने माथे पर उनका 'ंु�न महसूस बिकया है। उनकी भरी-भरी छाबितयों का द�ाव मेरी पीठ पर महसूस हो रहा है। मैंने हौले से आंखें खोली हैं। मालबिवका जी मेरी आंखों के सामने हैं। मुझ पर झुकी हुई। वे अभी-अभी नहा कर बिनकली हैं। गरम पानी, खुश�ूदार सा�ुन और उनके खुद के �दन की मादक महक मेरे तन-मन को सरा�ोर कर रही है। ज़िज़ंदगी में यह पहली �ार हो रहा है बिक गौरी के अलावा कोई और स्त्राú मेरे इतने बिनकट है। मेरे संस्कारों ने ज़ोर मारा है - ये मैं क्या कर रहा हंू.. लेबिकन इतने सुखद माहौल में मैं टाल गया हंू। .. जो कुछ हो रहा है और जैसा हो रहा है होने दो। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा .. । मैं कुछ पा ही तो रहा हंू। खोने के सिलए मेरे पास है ही क्या।

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तभी मालबिवका ने मेरी पीठ पर झुके झुके ही मेरे 'ेहरे को अपने कोमल हाथों में भरा है और मेरी दोनों आंखों को �ारी-�ारी से 'ूम सिलया है। उनका कोमल स्पश# और सुकोमल 'ुं�न मेरे भीतर तक ऊष्मा की तरंगें छोड़ते 'ले गये। मैंने भी उसी तरह लेटे-लेटे उन्हें अपने ऊपर पूरी तरह झुकाया है, उनकी गरदन अपनी �ांह के घेरे में ली है और हौले से उन्हें अपने ऊपर खीं' कर उनके होठों पर एक आत्मीयता भरी मुहर लगा दी है - हैप्पी �थ#डे डीयर।हम दोनों का�ी देर से इसी मुद्रा में एक दूसरे के ऊपर झुके हुए नन्हें-नन्हें 'ुम्�नों का आदान-प्रदान कर रहे हैं। मैं सुख के एक अनोखे सागर में गोते लगा रहा हूं। यह एक बि�लकुल ही नयी दुबिनया है, नये तरह का अहसास है जिजसे मैं शादी के इन 'ार �रसों में एक �ार भी महसूस नहीं कर पाया था।मालबिवका अभी भी मेरी पीठ की तर� �ैठी हैं और उनके घने और कुछ-कुछ गीले �ाल मेरे पूरे 'ेहरे पर सिछतराय े हुए हैं। उनमें स े उठती भीनी भीनी खुश�ू मुझे पागल �ना रही है। उन्होंन े सिसल्क का वनपीस गाउन पहना हुआ है जो उनके �दन पर बि�सल-बि�सल रहा है। हम दोनों ही �ेका�ू हुए जा रहे हैं लेबिकन इससे आगे �ढ़ने की पहल हममें से कोई भी नहीं कर कर रहा है। तभी मालबिवका ने खुद को मेरी बिगरफ्त में से छुड़वाया है और उठ कर कमरे में जल रहे इकलौते टै�ल लैम्प को भी �ुझा दिदया है। अ� कमर े म ें 'ौंतीस मोम�णित्तयों की जिझलमिमलाती और कांपती रौशनी ह ै जो कमर े के माहौल को नशीला, नरम और मादक �ना रही है। मैं उनकी एक-एक अदा पर दीवाना होता 'ला जा रहा हंू। जानता हंू ये मेरी नैबितकता के खिखला� है लेबिकन मैं ये भी जानता हूं आज मेरी नैबितकता के सारे के सारे �ंधन टूट जायेंगे। मेरे सामने इस समय मालबिवका हैं और वे इस समय दुबिनया का स�से �ड़ा स' हैं। �ाकी स� कुछ झूठ है। �ेमानी है।मैंने उनके दोनों कानों की लौ को �ारी-�ारी से 'ूमते हुए कहा है - मेरे जनमदिदन पर ही मुझे इतना कुछ परोस देंगी तो मेरा हाजमा खरा� नहीं हो जायेगा। कहीं मुझे पहले मिमल गयी होतीं तो !!जवा� में उन्होंने अपनी हँसी के सारे मोती एक ही �ार में बि�खेर दिदये हैं - देखना पड़ता है न बिक सामने वाला बिकतना भूखा प्यासा है। वैसे मेरे पीछे पागल मत �नो। मैं एक �हुत ही �ुरी और �दनाम औरत हंू। कहीं मेरे 'ंगुल में पहले �ंस गये होते तो अ� तक कहीं मंुह दिदखाने के काबि�ल भी न होते।

- आपके जैसी लड़की �दनाम हो ही नहीं सकती। मैंने उन्हें अ� सामने की तर� खीं' सिलया है और अपनी �ाहों के घेरे मे ले सिलया है। मेरे हाथ उनके गाउन के �ीते से खेलने लगे हैं।उन्होंने गाउन के नी'े कुछ भी नहीं पहना हुआ है और हालांबिक वे मेरे इतने बिनकट हैं और पूरी तरह प्रस्तुत भी, बि�र भी मेरी बिहम्मत नहीं हो रही, इससे आगे �ढ़ सकंू । वे मेरा संको' समझ रही हैं और शरारतन मेरी उंगसिलयों को �ार-�ार अपनी उंगसिलयों में �ंसा लेती हैं। आखिखर मैं अपना एक हाथ छुड़ाने में स�ल हो गया हूं और गाउन का �ीता खुलता 'ला गया है। मालबिवका ने अपनी आंखें �ंद कर ली हैं और झूठी सिससकारी भरी है

- मत करो दीप प्लीज। मैंने इसरार बिकया है - जरा देख तो लेने दो।

- और अगर इन्हें देखने के �ाद आपको कुछ हो गया तो !!- शत# �द लो, कुछ भी नहीं होगा। उनकी �हुत आनाकानी करने के �ाद ही मैं उनका गाउन

उनके कंधों के नी'े कर पाया हंू।और म ैं शत# हार गया हंू। मैंन े जो कुछ देखा है, मैं अपनी आंखों पर यकीन नहीं कर पा रहा हूं। मालबिवका का अनावृत सीना मेरे सामने है। मैंने �ेशक गौरी के अलावा बिकसी भी औरत को इस तरह से

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नहीं देखा है, लेबिकन जो कुछ मेरे सामने है, मैं कभी उसकी कल्पना भी नहीं कर सकता था। मैंने न तो बि�ल्मों में, न तस्वीरों में और न ही बिकसी और ही रूप में बिकसी भी स्त्राú के इतने बिवराट, उदार, संतुसिलत, सुदृढ़ और ख्�ासूरत उरोज देखे हैं। मैं अबिवश्वास से उन गोरे-सि'ट्टे दाग रबिहत और सुडौल गोलाधÀ की तर� देखता रह गया हूं और पागलों की तरह उन्हें अपने हाथों में भरने की नाकाम कोसिशशें करने लगा हूं। उन्हें दीवानों की तरह 'ूमने लगा हंू। मालबिवका ने अपनी अंैाखें �ंद कर ली हैं। वे मेरे सुख के इन खू�सूरत पलों में आड़े नहीं आना 'ाहतीं!! वे अपनी इस बिवशाल सम्पदा का मोल जानती रही होंगी तभी तो वे मुझे उनका भरपूर सुख ले लेने दे रही हैं। मैं �ार-�ार उन्हें अपने हाथों में भर-भर कर देख रहा हूं। उन्हें देखते ही मुझ जैसे नीरस और शुष्क आदमी को कबिवता सूझने लगी है। कहीं स'मु' कबिव होता तो पता नहीं इन पर बिकतने महाकाव्य र' देता!मैं एक �ार बि�र जी भर कर देखता हूं - वे इतने �ड़े और सुडौल हैं बिक दोनों हाथों में भी नहीं समा रहे। मैं उन्हें देख कर, छू कर और अपने इतने पास पा कर बिनहाल हो गया हूं। अ� तक मैं ज� भी मालबिवका से मिमला था, उन्हें टै्रक सूट में, �ाम#ल सूट में या साड़ी के धऊपर लाँग कोट पहने ही देखा था। शाम को भी उन्होंने हाउसकोट जैसा कुछ पहना हुआ था और उनके कपड़े कभी भी जरा-सा भी यह आभास नहीं देते थे बिक उनके नी'े बिकतनी वैभवशाली सम्पदा छुपी हुई है। वे इस समय मेरे सामने अनावृत्त �ैठी हुई हैं। घुटने मोड़ कर। वज्रासन में। सामिधका की-सी मुद्रा में। उनका पूरा अनावृत्त शरीर मेरे एकदम बिनकट है। पूरी तरह तना हुआ। बिनरंतर और �रसों के योगाभ्यास से बिनखरा और संवारा हुआ। कहीं भी रत्ती भर भी अमिधकता या कमी नहीं। एक मूर्गितं की तरह सां'े में ढला हुआ। ऐसी देह जिजसे इतने बिनकट देख कर भी मैं अपनी आंखों पर बिवश्वास नहीं कर पा रहा हंू। ..वे आंखें �ंद बिकये हुए ही मुझसे कहती हैं - अपने कपड़े उतार दो और मेरी तरह वज्रासन लगा कर �ैठ जाओ। कुता# उतारने में मुझे संको' हो रहा है, लेबिकन वे मुझे पु'कारती हैं - डरो नहीं, मेरी आंखें �ंद हैं। मैं वज्रासन में �ैठने की कोसिशश करता हूं लेबिकन उन्हीं के ऊपर बिगर गया हूं। वे खिखलखिखलाती हैं और मुझे अपने सीने से लगा लेती हैं। उनके जिजस्म की आं' मेरे जिजस्म को जला रही है। कुछ ब्रांडी का नशा है और �ाकी उनकी दिदपदिदपाती देह का। इतनी सारी मोम�णित्तयों की जिझलमिमलाती रौशनी में उनकी देह की आभा देखते ही �नती है। उन्होंने अभी भी अपनी आंखें शरारतन �ंद कर रखी हैं और �ंद आंखों से ही मुझे हैरान-परेशान देख कर मजे ले रही हैं। तभी मैं उठा हूं और �ुके के सभी �ूलों को बिनकाल कर उन �ूलों की सारी की सारी पंखुबिड़यां उनके गोरे सि'टे्ट सुडौल �दन पर बि�खेर दी हैं। उन्होंने अ'ानक आंखें खोली हैं और पखुंबिड़यों की वषा# में भीग-सी गयी हैं। उनके �दन से टकराने के �ाद पंखुबिड़यों की खुश�ू कई गुना �ढ़ कर सारे कमरे में �ैल गयी है।वे खुशी से 'ीख उठी हैं। मैंने उन्हें गदे्द पर सिलटाया है और हौले हौले उनके पूरे �दन को 'ूमते हुए एक-एक पंखुड़ी अपने होठों से हटा रहा हूं। मैं जहां से भी पंखुड़ी हटाता हंू, वहीं एक ताजा गुला� खिखल जाता है। थोड़ी ही देर में उनकी पूरी काया दहकते हुए लाल सुख# गुला�ों में �दल गयी है। उनके पास लेट गया हूं और उन्हें अपने सीने से लगा सिलया है। उन्होंने भी अपनी �ाहों के घेरे में मुझे �ांध सिलया है। समय थम गया है। अ� इस पूरी दुबिनया में सिस�# हम दो ही �'े हैं। �ाकी स� कुछ खत्म हो 'ुका है। हम एक दूसरे में घुलमिमल गये हैं। एकाकार हो गये हैं।

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�ाहर अभी भी लगातार ��# पड़ रही है और खिखड़बिकयों के �ाहर का तापमान अभी भी शून्य से कई बिड}ी नी'े है लेबिकन कमरे के भीतर लाखों सूय� की गरमी माहौल को उते्तजिजत और तपाने वाला �नाये हुए है।आज हम दोनों का जनम दिदन है और हम दोनों की उम्र भी �रा�र है। दो 'ार घंटों का ही �क# होगा तो होगा हममें। हम अपनी अलग-अलग दुबिनया मे अपने अपने तरीके से सुख-दुख भोगते हुए और तरह-तरह के अनुभव �टोरते हुए यहां आ मिमले हैं �ेशक हम दोनों की राहें अलग रही हैं। हमने आज देश, काल और समय की सभी दूरिरयां पाट लीं हैं और अनैबितक ही सही, एक ऐसे रिरश्ते में �ंध गये हैं जो अपने आप में अद्भतु और अकथनीय है। मुझे आज पहली �ार अहसास हो रहा है बिक सैक्स में कबिवता भी होती है। उसमें संगीत भी होता है। उसमें लय, ताल, रंग, नृत्य की सारी मुद्राए ंऔर इतना आनन्द, तृन्विप्त, सम्पूण#ता का अहसास और सुख भी हुआ करते हैं। मैं तो जैसे आज तक गौरी के साथ सैक्स का सिस�# रिर'ुअल बिनभाता रहा था।हम दोनों एक साथ ही एक नयी दुबिनया की सैर करके एक साथ ही इस खू�सूरत ख्वा�गाह में लौट आये हैं। पूरी तरह से तृप्त, बि�र भी दो�ारा वही स� कुछ एक �ार बि�र पा लेने की, उसी उड़ान पर एक �ार बि�र सहयात्री �न कर उड़ जाने की उत्कट 'ाह सिलये हुए।हम अभी भी वैसे ही साथ साथ लेटे हुए हैं। एक दूसरे को महसूस करते हुए, छूते हुए और एक दूसरे की नजदीकी को, ऊष्मा को अपने भीतर तक उतारते हुए। यह पूरी रात ही हम दोनों ने एक दूसरे की �ाहों में इसी तरह गुजार दी है। हमने इस दौरान एक दूसरे के �हुत से राज़ जाने हैं, �ेवकूबि�यां �ांटी हैं, जख्म सहलाये हैं और उपलल्कि¡यों के सिलए एक दूसरे को �धाई दी है। हमने आधी रात को खाना खाया है। खाया नहीं, �ल्किल्क मनुहार करते हुए, लाड़ लड़ाते हुए एक दूसरे को अपने हाथों से एक-एक कौर खिखलाया है। मालबिवका नशीली आवाज में पूछ रही है - यहां आकर अ�सोस तो नहीं हुआ ना !!

- हां, मुझे अ�सोस तो हो रहा है।- बिकस �ात का ?- यहां पहले ही क्यों नही आ गया मैं।- बि�र आओगे!!

मैंने उसके दोनों उरोजों पर 'ुं�न अंबिकत करते हुए जवा� दिदया है - आप हर �ार इसी तरह स्वागत और सत्कार करेंगी तो जरूर आऊंगा।

- अगर तुम हर �ार मेर े कपड़े उतारोग े तो �ा�ा, �ाज आये हम ! हमें कपड़े उतारन े वाले मेहमान नहीं 'ाबिहये !!

- अच्छी �ात है, नहीं उतारेंगे कपडे़, लेबिकन आयेंगे जरूर हम। इस खज़ाने की देखभाल करने बिक कोई इन्हें लूट तो नहीं ले गया है।

- ज� इसका असली रखवाला ही भाग गया तो कोई क� तक लुटेरों और उच्चकों से रखवाली करता बि�रे !!

- तुमने कभी �ताया नहीं वो कौन �दनसी� था जो इतनी धन दौलत छोड़ कर 'ला गया। उस आदमी में जरा सा भी सौंदय# �ोध नहीं रहा होगा।

- तुम मेरी जिजस दौलत को देख-देख कर इतने मोबिहत हुए जा रहे हो, मैं तुम्हें �ता नहीं सकती बिक इन्होंने मुझे बिकतनी बिकतनी तकली� दी है। इन्हीं की वजह से मैं यहां परदेस में अकेली पड़ी हुई हूं।

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- कभी तुमने �ताया नहीं।- तुमने पूछा ही क�।- तो अ� �ता दो, तुम्हारे बिहस्से में ऊपर वाले ने कौन कौन से हादसे सिलखे थे।- कोई एक हो तो �ताऊं भी। यहां तो ज� से होश संभाला है, रोजाना ही हादसों से दो 'ार

होना पड़ता है। - मुझे नहीं मालूम था तुम्हारा स�र भी इतना ही मुल्किश्कल रहा है, अपने �ारे में आज स� कुछ

बिवस्तार से �ताओ ना..- रहने दो। क्या करोगे मेरी तकली�ों के �ार े म ें जान कर। ये तो हर बिहन्दुस्तानी औरत की

तकली�ें हैं। स� के सिलए एक जैसी।- अच्छा तकली�ों के �ारे में मत �ताओ, अपने �'पन के �ारे में ही कुछ �ता दो।- �हुत 'ालाक हो तुम। तुम्हें पता है, एक �ार �ात शुरू हो जाये तो सारी �ाते खुलती 'ली

जायेंगी।- ऐसा ही समझ लो।- तो ठीक है। मैं तुम्हें अपने �ारे में �हुत कुछ �ताऊंगी, लेबिकन मेरी दो तीन शत� हैं।- तुम्हारे �ताये बि�ना ही सारी शत� मंजूर हैं।- पहली शत# बिक ये सारी �णित्तयां भी �ंद कर दो। मुझे बि�लकुल अंधेरा 'ाबिहये। - हो जायेगा अंंैंधेरा। दूसरी शत#।- तुम मेरे एकदम पास आ जाओ, मेरे ही कम्�ल में। जैसे मैं लेटी हूं वैसे ही तुम लेट जाओ। - मतल� .. सारे कपडे़?

- कहा न जैसे मैं लेटी हूं वैसे ही.. और कोई हरकत नहीं 'ाबिहये। 'ुप'ाप, छत की तर� देखते हुए लेटे रहना। और ख�रदार। लेना-देना का�ी हो 'ुका। अ� कोई भी हरकत नहीं होगी।

- नहीं होगी हरकत, लेबिकन ये मेहमानों के कपड़े उतारने वाली �ात कुछ हजम नहीं हुई। वैसे भी मांगे हुए कपडे़ हैं ये।

- 'ुप रहो और तीसरी शत# बिक तुम मेरी पूरी �ात खतम होने तक बि�लकुल भी नहीं �ोलोगे। हां हूं भी नहीं करोगे। सिस�# सुनोगे और कभी भी न तो इसका बिकसी से जिजक्र करोगे और न ही अभी या कभी �ाद में मुझसे इस �ारे में और कोई सवाल करोगे, न मुझ पर तरस खाओगे। �ोलो मंजूर हैं ये सारी शत�।

- ये तो �हुत ही आसान शत� हैं। और कुछ ?- �स और कुछ नहीं। अ� मैं ज� तक न कहंू तुम एक भी शब्द नहीं �ोलोगे।

मैंने मालबिवका की शत� भी पूरी कर दी हैं। सारी �णित्तयां �ुझा दी हैं लेबिकन भारी परदों की जिझर्रिरंयों से �ाहर की पीली �ीमार रोशनी अंदर आ कर जैसे अंधेरे को बिडस्ट�# कर रही है। मैं मालबिवका की �गल में आ कर लेट गया हूं। उन्होंने हाथ �ढ़ा कर मेरा हाथ अपनी नाणिभ पर रख दिदया है।धीरे धीरे अंंैंधेरे में उनकी आवाज उभरती है।

- मेरा घर का नाम बिनक्की है। तुम भी मुझे इस नाम से �ुला सकते हो। ज� से यहां आयी हूं, बिकसी ने भी मुझे इस नाम से नहीं पुकारा। एक �ार मुझे बिनक्की कह कर �ुलाओ प्लीज़ ..मैं �ारी-�ारी उनके दोनों कानों में हौले से बिनक्की कहता हूं और उनके दोनों कान 'ूम लेता हूं। बिनक्की खुश हो कर मेरे होंठ 'ूम लेती है।

- हां तो मैं अपने �'पन के �ारे में �ता रही थी।

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Page 115: 24 ¹¸÷¸Ÿ ¸£, 1992— ˆ¾Å¥¸½¿”£ ‡ˆÅ ¸¸£ ¹ûÅ£ ¨¸ú Ÿ ... mangal.doc · Web view[उपन य स] - स रज प रक श 24 स तम बर, 1992।

- मेरे �'पन का ज्यादातर बिहस्सा गुरदासपुर में �ीता। पापा आम> में थे इससिलए कई शहरों में आना-जाना तो हुआ लेबिकन हमारा हैडक्वाट#र गुरदासपुर ही रहा। मैं मां-�ाप की इकलौती संतान हंू। मेरा �'पन �हुत ही शानदार तरीके से �ीता लेबिकन अभी आठवीं स्कूल में ही थी बिक पापा नहीं रहे। हम पर मुसी�तों का पहाड़ टूट पड़ा। हम जिजस लाइ� स्टाइल के आदी थे, रातों-रात हमसे छीन ली गयी। मज़�ूरन मम्मी को जॉ� की तलाश में घर से �ाहर बिनकलना पड़ा। मम्मी ज्यादा पढ़ी-सिलखी नहीं थीं इससिलए भी परेशाबिनयां ज्यादा हुईं। लेबिकन वे �हुत बिहम्मत वाली औरत थीं इससिलए स�कुछ संभाल ले गयीं। हालांबिक मेरी पढ़ाई तो पूरी हुई लेबिकन हम लगातार द�ावों म ें रहने को मज�ूर थे। य े द�ाव आर्सिथंक भी थे और मानसिसक भी। ये मम्मी की बिहम्मत थी बिक हमारी हर मुल्किश्कल का वे कोई न कोई हल ढंूढ ही लेती थी। उसने मुझे कभी महसूस ही न होने दिदया बिक मेरे सिसर पर पापा का साया नहीं है। वही मेरे सिलए मम्मी और पापा दोनों की भूमिमका �खू�ी बिनभाती रही।और उन्हीं दिदनों मेरी ये समस्या शुरू हुई। वैसे तो मुझे पीरिरयड्स शुरू होने के समय से ही लगने लगा था बिक मेरी ब्रेस्ट्स का आकार कुछ ज्यादा ही तेजी से �ढ़ रहा है लेबिकन एक तो वो खाने-पीने की उम्र थी और दूसरे शरीर हर तरह के 'ेंजेस से गुजर रहा था इससिलए ज्यादा परवाह नहीं की थी लेबिकन सोलह-सत्रह तक पहंु'ते पहंु'ते तो यह हालत हो गयी थी बिक मैं देखने में एक भरपूर औरत की तरह लगने लगी थी। कद काठी तो तुम्हारे सामने ही है। समस्या यह थी बिक ये आकार में �ढ़ते ही जाते। हर पद्रह दिदन में ब्रेज़री छोटी पड़ जाती। मुझे �हुत शरम आती। सारा तामझाम ख'>ला तो था ही, मुझे आकवड# पोजीशन में भी डाल रहा था। मम्मी ने ज� मेरी यह हालत देखी तो डॉक्टर के पास ले गयी। मम्मी ने शक की बिनगाह से देखते हुए पूछा भी बिक कहीं मैं गलत लड़कों की संगत में तो नहीं पड़ गयी हूं।डाक्णटर ने अच्छी तरह से मेरा मुआइना बिकया था और हँसते हुए कहा था - दूसरी लड़बिकयां इन्हें �ड़ा करने के तरीके पूछने आती हैं और तुम इन्हें �ढ़ता देख परेशान हो रही हो। गो, रिरलैक्स एडं एजंाय। कुछ नहीं है, सिस�# हामÀन की साइबिकल के बिडस्ट�# हो जाने के कारण ऐसा हो रहा है। तुम बि�लकुल नाम#ल हो।लेबिकन न मैं नाम#ल हो पा रही थी, और न एजंाय ही कर पा रही थी। मेरी हालत खरा� थी। सहेसिलयां तो मुझ पर हँसती ही थीं, कई �ार टी'स# भी हँसी मज्öैााक करने से �ाज़ नहीं आती थीं। मोहल्ले की भाभी और दीदीनुमा शादीशुदा लड़बिकयां मज़ाक-मज़ाक में पूछतीं - ज़रा हमें भी �ताओ, कौन से तेल से मासिलश करती हो। मेरी हालत खरा� थी। मैं बिकतना भी सीना ढक कर 'लती, मोटे, डाक# कपड़े के दुपटे्ट सिसलवाती और �हुत एहबितयात स े ओढ़ती लेबिकन गली-मौहल्ल े के दुष्ट लड़कों की पैनी बिनगाह स े भला कैस े �' पाती..। आते जाते उनके घदिटया जुमले-सुनने पड़ते।मुझे अपने आप पर रोना आता बिक मैं सारी ज़िज़ंदगी बिकस तरह इनका �ोझ उठा पाउं गी€ !! वैसे देखने में इनकी शेप �हुत ही शानदार थी और नहाते समय मैं इन्हें देख-देख कर खुद भी मुग्ध होती रहती, लेबिकन घर से बिनकलते ही मेरी हालत खरा� होने लगती। तन को छेदती लोगों की नंगी बिनगाहें, अश्लील जुमले और मेरी खुद की हालत। �ीएससी करते-करते तो मेरी यह हालत हो गयी थी बिक मैं बे्रजरी के बिकसी भी साइज की सीमा से �ाहर जा 'ुकी थी। मम्मी �ाजार से स�से �ड़ा साइज ला कर बिकसी तरह से जोड़ -तोड़ कर मेरे सिलए गुज़ारे लायक ब्रेज़री �ना कर देती। मम्मी भी मेरी वजह से अलग परेशान रहती बिक मैं यह खज़ाना उठाये-उठाये कहां भटकंूगी!! पता नहीं, कैसी ससुराल मिमले और कैसा पबित मिमले।�दबिकस्मती से न तो ससुराल ही ऐसी मिमली और न पबित ही कद्रदान मिमला।

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जिजन दिदनों �लबिवन्दर से मेरी शादी की �ात 'ली, त� वह यहीं लंदन से ख़ास तौर पर शादी करने के सिलए इंबिडया आया हुआ था। वे लोग मेरठ के रहने वाले थे। हमें �ताया गया था बिक �लबिवन्दर का लंदन में इंबिडयन हैंडीक्राफ्ट्स का अपना कारो�ार है। मिमडलसैक्स में उसका अपना अपाट#मेंट है, कार है और ढेर सारा पैसा है। वे लोग बिकसी छोटे परिरवार में रिरश्ता करना 'ाहते थे जहां लड़की पढ़ी-सिलखी हो ताबिक पबित के कारो�ार में हाथ �ंटा सके और �ाद में 'ाहे तो अपने परिरवार को भी अपने पास लंदन �ुलवा सके। �लबिवन्दर देखने में अच्छा-ख़ासा स्माट# था और �ात'ीत में भी का�ी तेज़ था। जिजस वक्त हमारे रिरश्ते की �ात'ीत 'ल रही थी तो हमें �लबिवन्दर के, उसके गुणों के, कारो�ार के और खानदान के �हुत ही शानदार सब्ज�ाग दिदखाये गये थे। हमारे पास न तो ज्यादा पड़ताल करने का कोई ज़रिरया था और न ही वे लोग इसका कोई मौका ही दे रहे थे। वे तो सगाई के दिदन ही शादी करने के मूड में थे बिक वहां उसके कारो�ार का हजा# हो रहा है। मेरी मम्मी के हाथ-पांव �ूल गये थे बिक हम इतनी जल्दी�ाजी में सारी तैयारिरयां कैसे कर पायेंगे। इससे भी हमें �लबिवन्दर ने ही उ�ारा था।एक दिदन उसका �ोन आया था। उसने मम्मी को अपनी 'ाशनीपगी भाषा में �ताया था बिक मालबिवका के सिलए बिकसी भी तरह के दहेज की जरूरत नहीं है। लंदन में उसके पास स� कुछ है। �हुत �ड़ी पाट�-वाट� देने की भी जरूरत नहीं है। वे लोग पां' आदमी लेकर डोली लेने आ जायेंगे, बिकसी भी तरह की टीम- टाम की भी ज़रूरत नहीं हैं।मम्मी ने अपनी मज़�ूरी जतलायी थी - इतनी �ड़ी बि�रादरी है। लोग क्या कहेंगे बि�न �ाप की �ेटी को पहने कपड़ों में बिवदा कर दिदया। त� रास्ता भी �लबिवन्दर ने ही सुझाया था - त� ऐसा कीजिजये मम्मी जी, बिक आप लोग शादी के �ाद एक छोटी-सी पाट� तो रख ही लीजिजये, �ाकी आप मालबिवका को उसका घर-संसार �साने के सिलए जो कुछ भी देना 'ाहती हैं, उसका एक �ाफ्ट �नवा कर उसे दे देना। वही उसका स्त्राú धन रहेगा और उसी के पास रहेगा। मेरे पास स� कुछ है। आपके आशीवा#द के सिसवाय कुछ भी नहीं 'ाबिहये।मम्मी �े'ारी अकेली और सीधी सादी औरत। उसकी झांसापट्टी में आ गयी। उसके �ाद तो यह हालत हो गयी बिक हर दूसरे दिदन उसका �ोन आ जाता और वह मम्मी को एक नयी पट्टी पढ़ा देता। मम्मी खुश बिक देखो बिकतना अच्छा दामाद मिमला है बिक जो इस घर की भी पूरी जिजम्मेवारी संभाल रहा है। इन दिदनों वही उनका सगा हो गया था। उसने अपने शालीन व्यवहार से हमारा मन जीत सिलया था।मेरी ससुराल वाले �हुत खुश थे बिक उनके घर में इतनी सुंदर और पढ़ी सिलखी �हू आयी है। शादी से पहले ही यह ख�र पूरे ससुराल में �ैल 'ुकी थी बिक आने वाली �हू के एसेट्स कुछ ज्यादा ही वज़नदार हैं। औरतों और लड़बिकयों का मेरे पास बिकसी न बिकसी �हाने से आना तो बि�र भी 'ल जाता था, लेबिकन ज� गली मुहल्ले के हर तरह के लड़के और जवान रिरश्तेदार �ार-�ार �लबिवन्दर के पास बिकसी न बिकसी �हाने से आकर मेरे एसेट्स की एक झलक तक पाने के सिलए आसपास मंडराते रहते तो हम दोनों को �हुत खरा� लगता। वैसे �लबिवन्दर मन ही मन �हुत खुश था बिक उसकी �ीवी इतनी अच्छी है बिक उसे बिकसी न बिकसी �हाने से देखने के सिलए सारा दिदन सारा दोस्तों का जमघट लगा ही रहता है। शुरू के कई दिदन तो गहमा गहमी में �ीत गये। सारा दिदन मेहमानों के आने जाने में दिदन का पता ही नहीं 'लता था। लेबिकन तीन 'ार दिदन �ाद ज� हम हनीमून पर गये तो वहां �लबिवन्दर की खुशी देखते ही �नती थी। उसके बिहसा� से उन दिदनों उस बिहल स्टेशन पर जिजतने भी हनीमून वाले जोड़े घूम रहे थे, उन स�से खू�सूरत मैं ही थी। मुझे देखने के सिलए राह 'लते लोग एक �ार तो जरूर ही दिठठक कर खड़े हो जाते थे। मुझे भी तसल्ली हुई थी बिक 'लो, मेरी एक �हुत �ड़ी समस्या सुलझ गयी। कम से कम इस फं्रट पर तो कॉम्पलैक्स पालने की जरूरत नहीं है।

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Page 117: 24 ¹¸÷¸Ÿ ¸£, 1992— ˆ¾Å¥¸½¿”£ ‡ˆÅ ¸¸£ ¹ûÅ£ ¨¸ú Ÿ ... mangal.doc · Web view[उपन य स] - स रज प रक श 24 स तम बर, 1992।

रात को �लबिवन्दर मेरी बि�गर की �हुत तारी� करता। मेरे पूरे �दन को 'ूमता, मेरे उरोजों को 'ूमता, सहलाता और अपने हाथों में भरने की कोसिशश करता। सारा दिदन होटल में हम दोनों पे्रम के गहरे सागर में गोते लगाते रहते।हनीमून से लौट कर भी उसके स्नेह में कोई कमी नहीं आयी थी। अल�त्ता, �लबिवन्दर के घर आने वाले लोगों की संख्या �हुत �ढ़ गयी थी। लोग बिकसी न बिकसी �हाने से मेरे एसेट्स की एक झलक पाने के सिलए मौके तलाशते, घूर घूर कर देखते। मेरी ननंदें, जिजठाबिनयां और आस पास की भाणिभयां वगैरह भी वही सवाल पूछतीं, जो बिपछले आठ सालों से मुझसे तरह तरह से पूछे जा रहे थे। कुल मिमला कर अपने नये जीवन की इतनी शानदार शुरूआत से मैं �हुत खुश थी। मैं मम्मी को �ोन पर अपने समा'ार देती और उन्हें �ताती बिक मेरी ससुराल बिकतनी अच्छी है।लेबिकन सच्चाई �हुत ही जल्दी अपने असली रंग दिदखाने लगी थी। �लबिवन्दर ने घर पर यह नहीं �ताया था बिक उसने खुद ही दहेज के सिलए मना बिकया है और उसके �जाये मां से मेरे नाम पर पां' लाख का �ाफ्ट हासिसल कर रखा है। मां ने अपनी ज़िज़ंदगी भर की �'त ही उसे सौंप दी थी। �ाकी जो �'ा था, वह मेरे कपड़े गहनों पर ख'# कर दिदया था। �ेशक मेरे रूप और गुणों के, मेरे लाये कीमती कपड़ों और गहनों के गुणगान दो 'ार दिदन तक ऊं'े स्वर में बिकये जाते रहे लेबिकन जल्दी ही दहेज के नाम पर कुछ भी न पाने का मलाल उनसे मेरी और मेरे परिरवार की �ुराइयां कराने लगा। मैं नयी थी और अकेली थी, स�के मुंह कैसे �ंद करती। एक - आध �ार मैंने �लबिवन्दर से कहा भी बिक तुम कम से कम अपने मां-�ाप को तो �ता सकते हो बिक तुम खुद ही दहेज के सिलए मना कर आये थे और उसके �दले नकद पैसे ले आये हो तो वह हंस कर टाल गया - ये मूरख लोग ठहरे। इनकी �ातें सुनती रहो और करो वही जो तुम्हें अच्छा लगता है। इन्हें और कोई तो काम है नहीं। �लबिवन्दर ने शादी के एक हफ्ते के भीतर ही एक ज्वांइट खाता खुलवाया था और मुझे दहेज के नाम पर मिमला पां' लाख का �ाफ्ट जमा करा दिदया गया था। �लबिवन्दर ने मुझे उस खाते का नम्�र देने का ज़रूरत ही नहीं समझी थी और न 'ेक �ुक वगैरह ही दी थी। मुझे खरा� तो लगा था लेबिकन मैं 'ुप रह गयी थी। शादी के एक हफ्ते केध अंदर पबित पर अबिवश्वास करने की यह कोई �हुत �ड़ी वज़ह नहीं थी।�लबिवन्दर शादी के एक महीने तक वहीं रहा था और लंदन की अपनी योजनाए ंमुझे समझाता रहा था। उसने �ताया था बिक अपनी एक �ुआ के ज़रिरये पां' साल पहले लंदन पहुं'ा था और सिस�# पां' �रसों में ही उसने अपना खुद का अच्छा-ख़ासा कारो�ार खड़ा कर सिलया है। मेरे पासपोट# के सिलए एप्लाई करा दिदया गया था और �लबिवन्दर वहां पहंु'ते ही मुझे वहीं �ुलवा लेने की कोसिशश करने वाला था।लंदन के सिलए बिवदा होने से पहले वाली रात वह �हुत ही भावुक हो गया था और कहने लगा था - तुम्हें यहा ं अकेले छोड़ कर जाने का जरा भी मन नहीं है, लेबिकन क्या बिकया जाये। टे्रवल डौक्यूमेंट्स की �ामÖसिलटी तो पूरी करनी ही पडे़गी।उसके जाते ही मेरे सामने कई तरह की परेशाबिनयां आ खड़ी ह़ुई थीं। मुझे दहेज में कुछ भी न लाने के सिलए ससुराल वालों ने सताना शुरू कर दिदया बिक मैं कैसी कंगली आयी हूं बिक सामान के नाम पर एक सुई तक नही लायी हूं। मुझे �हुत खरा� लगा। �लबिवन्दर ने खुद ही तो कहा था बिक उन्हें सामान नहीं 'ाबिहये। आखिखर ज� पानी सिसर के ऊपर से जाने लगा तो मुझे भी अपना मुंह खोलना ही पड़ा - आप ही का संदेश ले कर तो �लबिवन्दर मम्मी के पास गया था बिक हमें कुछ भी नहीं 'ाबिहये और जो कुछ भी देना है वह �ाफ्ट के जरिरये दे दिदया जाये। लेबिकन वहां तो मेरी �ात सुनने के सिलए कोई तैयार ही नहीं था। ज� मैंने ज्वांइट खाते में जमा कराये गये पां' लाख के �ाफ्ट की �ात की तो दूसरी ही सच्चाइयां मेरे सामने आने लगी थीं। हमारा खाता धो पोंछ कर सा� बिकया जा 'ुका था। उसने मेरी जानकारी के बि�ना मेरे �ाफ्ट के पूरे पैसे बिनकलवा सिलये थे और मुझे हवा तक नहीं लगने दी थी बिक वह खाता बि�लकुल सा�

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करके जा रहा है। यह तो �ाद में पता 'ला था बिक उसने उन में से आधे पैसे तो अपने घर वालों को दे दिदये थे और �ाकी अपने पास रख सिलये थे। उसने अपने घर वालों के साथ यही झूठ �ोला बिक वह ये पैसे लंदन से कमा कर लाया था और शादी में ख'# करने के �ाद जो कुछ भी �'ा है, वह दे कर जा रहा है। वह हमारे पैसों के �ल पर अपने घर में अपनी शानदार इमेज �ना कर मुझे न केवल कंगला �ना गया था �ल्किल्क हम लोगों को सुनाने के सिलए अपने घर वालो को एक स्थायी बिकस्सा भी दे गया था। मेरे तो जैसे पैरों के तले से जमीन ही खिखसक गयी थी। मम्मी को यह �ात नहीं �तायी जा सकती थी। अ� तो मेरे सामने यह संकट भी मंडराने लगा था बिक पता नहीं �लबिवन्दर लंदन गया भी है या नहीं और मुझे कभी �ुलवायेगा भी या नहीं। मैं अजी� दुबिवधा में �ंस गयी थी। कहती बिकसे बिक मैं कैसी भ्ंैावर में �ंस गयी हूं। इतना �ड़ा धोखा कर गया था �लबिवन्दर मेरे साथ। उसे अगर मेरे पैसों की ज़रूरत थी भी तो कम से कम मुझे �ता तो देता। मम्मी ने ये पैसे हमारे सिलए ही तो दिदये थे। वक्त पड़ने पर हमारे ही काम आने थे। �लबिवन्दर जाते समय न तो वहां का पता दे गया था और न ही कोई �ोन नम्�र ही। यही कह गया था बिक पहुं'ते ही अपना अपाट#मेंट �दलने वाला है। सिशफ्ट करते ही अपना नया पता दे देगा। उसने अपनी पहंु' का पत्र भी पूरे एक महीने �ाद दिदया था। मैं �ता नहीं सकती बिक यह वक्त मेरे सिलए बिकतना मुल्किश्कल गुजरा था। ससुराल में तो �लबिवन्दर के जाते ही स�की आंखें पलट गयी थीं और स� की नजरों में मैं ही दोषी थी, हालांबिक घर पर आने वाले ऐसे मेहमानों की कोई कमी नहीं थी जो आ कर पूछते बिक मुझे �लबिवन्दर के बि�ना कोई तकली� तो नहीं है। मैं स� समझती थी लेबिकन कर ही क्या सकती थी। �लबिवन्दर ने महीने भर �ाद भेजे अपने पहले खत में सिलखा था बिक वह यहां आते ही अपने बि�जिजनेस की कुछ परेशाबिनयों में �ंस गया है और अभी मुझे जल्दी नहीं �ुलवा पायेगा।उसने जो पता दिदया था वह बिकसी के केयर ऑ� था। उसने जो पत्र मुझे सिलखा था उसमें �हुत ही भावुक भाषा का प्रयोग करते हुए अVसोस जाबिहर बिकया था बिक वह मेरे बि�ना �हुत अकेलापन महसूस करता है लेबिकन 'ाह कर भी मुझे जल्दी �ुलवाने के सिलए कुछ भी नहीं कर पा रहा है।इस पत्र में कुछ भी ऐसा नहीं था जिजससे मुझे तसल्ली मिमलती। पता मिमल जाने के �ाद सिस�# एक ही रास्ता यह खुला था बिक मैं उससे पूछ सकती थी बिक आखिखर उसने मेरे साथ ऐसा धोखा क्यों बिकया बिक मेर े पास मेर े पां' लाख रुपयों में से एक हजार रुपये भी नहीं छोड़े बिक मैं अपनी दिदन प्रबितदिदन की शापिपंग ही कर सकंू। मैंने उसे एक कड़ा पत्र सिलखा था बिक उसके इस व्यवहार से मुझे बिकतनी तकली� पहुं'ी है।मैंने उसे सिलखा था बिक मैं उसके सुख दुख में हमेशा उसके साथ रहंूगी लेबिकन उसे ऐसा नहीं करना 'ाबिहये था बिक अपने परिरवार की नज़रों में मेरी इमेज इतनी खरा� हो।एक महीने तक उसका कोई जवा� नहीं आया था। मेरे पास इस �ात का कोई जरिरया नहीं था बिक मैं �लबिवन्दर से सम्पक# कर पाती। मैं मम्मी के पास जाना 'ाहती थी ताबिक कुछ वक्त उनके साथ गुजार सकंू लेबिकन रोज़ाना �लबिवन्दर के ख़त के इंतज़ार में मैं अटकी रह जाती थी।उसके पत्र के इंतज़ार में मुझे �हुत लम्�ा लम्�ा अरसा गुज़ारना पड़ रहा था। इधर मेरी ससुराल वालों के ताने और जली कटी �ातें। मैं अकेली पड़ जाती और. जवा� नहीं दे पाती थी। एक तो वहां करने धरने के सिलए कुछ नहीं होता था और दूसरे �लबिवन्दर की नीयत का कुछ पता नहीं 'ल पा रहा था। पूरे दो महीन े के लम्� े इंतज़ार के �ाद उसका 'ार लाइनों का पत्र आया था। उसन े इस �ात पर गहरा अVसोस जाबिहर बिकया था बिक वह अपने बि�जिजनेस की परेशाबिनयों के 'क्कर में मुझे उन पैसों की �ा�त नहीं �ता सका था। उसने सिलखा था बिक मुझे बि�ना �ताये उसे ये पैसे बिनकलवाने पडे़। उसने सिलखा था बिक दिदल्ली की ही एक पाट� से बिपछला कुछ लेन देन �काया था। ज� मैं उसके पास अगला सामान �ुक कराने गया तो उसने सा� मना कर दिदया बिक ज� तक बिपछले भुगतान नहीं हो जाते, आगे कुछ भी नहीं

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मिमलेगा। मेरे सामने संकट था बिक उसके सामान के बि�ना दुकान 'लानी मुल्किश्कल हो जाती। मज�ूरन तुम्हारे खाते में से उसे 'ैक दे देना पड़ा। मैने इस �ारे में तुम्हें इससिलए नहीं सिलखा बिक यहां आते ही मैं बि�जिजनेस संभलते ही इनका इंतज़ाम करके तुम्हारे खाते में वाबिपस जमा करा देने वाला था। तुम्हें पता ही न 'लता और खाते में पैसे वाबिपस जमा हो जाते, लेबिकन स्थिस्थबितयां हैं बिक बिनयंत्रण में ही नहीं आ पा रही हैं।इस �ार भी उसने केयर ऑ� का ही पता दिदया था।�ेशक यह सि'ट्ठी मेरी ससुराल वालों की बिनगाह में मुझे इस इल्ज़ाम से �री करती थी बिक मैं कंगली नहीं आयी थी और मेरे लाये पां' लाख रुपये आडे़ वक्त में �लबिवन्दर के ही काम आ रहे हैं। लेबिकन पता नहीं मेरी ससुराल वाले बिकस मिमट्टी के �ने हुए थे बिक मुझे इस इल्ज़ाम से �री करने के �जाये दूसरे और ज्यादा गंभीर इल्ज्öैााम से घेर सिलया - कैसी कुलच्छनी आयी है बिक आते ही महीने भर के भीतर हमारे �लबिवन्दर का 'ला 'लाया बि�जिजनेस 'ला गया। पता नहीं, परदेस में कैसे अकेले संभाल रहा होगा। देखो बि�'ारे ने पता भी तो अपने बिकसी दोस्त का दिदया है। पता नहीं �े'ारे का अपना घर भी �'ा है या नहीं।अ� मेरे सिलए हालत यह हो गयी थी बिक न कहते �नता था न रहते। मैं 'ारों तर� से मिघर गयी थी। मेरा स�से �ड़ा संकट यही था बिक कहीं मम्मी को ये सारी �ातें पता न 'ल जायें। वे बि�'ारी तो कही की न रहेंगी। उन्हें ये स� �ताने का मतल� होता, उन्हें अपनी ही बिनगाहों में छोटा �नाना, जो मैं बिकसी भी कीमत पर नहीं कर सकती थी।अ� मेरे पास एक ही उपाय �'ता था बिक मैं ससुराल की जली-कटी �ातों से �'ने के सिलए कुछ दिदनों के सिलए मम्मी के पास लौट आऊं और लंदन में स्थिस्थबितयों के सुधरने का इंतज़ार करंु ।मैंने �लबिवन्दर का हौसला �ढ़ाते हुए उसे एक लम्�ा पत्र सिलखा। मैं उसे अपने प्रबित उसके घर वालों के व्यवहार के �ारे में सिलख कर और परेशान नहीं करना 'ाहती थी। मुझे यह भी पता नहीं था बिक उसके घर वाले उसे मेरे �ारे में क्या क्या सिलखते रहे हैं। मैंने उसे सिलखा बिक वह अपना ख्याल रखे और मेरी बि�लकुल भी सि'ंता न करे और बिक मैं लंदन में उसकी स्थिस्थबित सुधरने तक अपनी मम्मी के पास ही रहना 'ाहंूगी। वह अगला पत्र मुझे मम्मी के पते पर ही सिलखे। और त� मैं मम्मी के घर लौट आयी थी।यह लौटना हमेशा के सिलए लौटना था।मम्मी को यह समझाना �हुत ही आसान था बिक �लबिवन्दर ज� तक मेरे टे्रवल डॉक्यूमेंट्स तैयार करा के नहीं भेज देता, मैं उन्हीं के पास रहना 'ाहंूगी। मम्मी को इस �ात से खुशी ही होनी थी बिक ससुराल में अकेले पडे़ रहने के �जाये मैं इंबिडया में अपना �ाकी समय उनके साथ गुजार रही हंू। मम्मी को न तो मैंने पैसों की �ा�त कुछ �ताया था और न ही ससुराल में अपने प्रबित व्यवहार के �ारे में ही। �ेकार में ही उन्हें परेशान करने का कोई मतल� नहीं था। मैंने अपना वक्त गुज़ारने के सिलए योगा कलासेस ज्वाइन कर लीं। इससे वकत तो ठीक-ठाक गुज़र जाता था साथ ही अपनी सेहत को ठीक रखने का ज़रिरया भी मिमल गया था। जीवन के कुछ अथ# भी मिमलने लगे थे।इस पूरे वक्त के दौरान मेरे पास �लबिवन्दर के बिगने 'ुने पत्र ही आये थे। उनमें वही या उस से मिमलती-जुलती दूसरी समस्याओं के �ारे में सिलखा होता। मैं उसके हर अगले पत्र के साथ सो' में डू� जाती बिक आखिखर इन समस्याओं का कहीं अंत भी होगा या नहीं और मैं क� तक उसके महीने दो महीने के अंतराल पर आने वाले ख़तों के इंतजार में अपनी ज़िज़ंदगी का स�से खू�सूरत दौर यंू ही गंवाती रहंूगी।उसे गये छः महीने होने को आये थे और अभी तक उम्मीद की एक बिकरण भी कहीं नज़र नहीं आ रही थी। उधर मेरे ससुराल वाले मुझे पूरी तर� भुला �ैठे थे। मैं योगाभ्यास का कोस# पूरा कर 'ुकी थी। वक्त

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काटने की नीयत से मैंने त� योगा टी'र की टे्रपिनंग लेनी शुरू कर दी थी। साथ ही साथ ने'ुरोपैथी का भी कोस# ज्वाइन कर सिलया। वैसे योगाभ्यास से एक Vायदा ज्öैारूर हुआ था बिक अ� मैं झल्लाती या भड़कती नहीं थी और धैय# से इंतजार करती रहती थी बिक जो भी होता है अगर मेरे �स में नहीं है तो वैसा ही होने दो। मेरा शरीर भी योगाभ्यास से थोड़ा और बिनखर आया था। इस �ी' मेरा पासपोट# �न कर आ गया था। मैंने इसकी इत्तला �लबिवन्दर को दे दी थी लेबिकन उसका कोई जवा� ही नहीं आ रहा था। मैं इधर परेशान होने के �ावजूद कुछ भी नहीं कर पा रही थी। मेरे पास उससे सम्पक# करने का कोई ज़रिरया ही नहीं था। उन्हीं दिदनों हमारे ही पड़ोस के एक लड़के की पोस्टिस्टंग उसके ऑबि�स की लंदन शाखा में हुई। जाने से पहले वह मेरे पास आया था बिक अगर मैं �लबिवन्दर को एक खत सिलख दंू और उसे एयरपोट# आने के सिलए कह दंू तो उसे नये देश में शुरूआती दिदक्कतों का सामना नहीं करना पडे़गा। मेरे सिलए इससे अच्छी �ात क्या हो सकती थी बिक इतने अरसे �ाद �लबिवन्दर के पास सीधे ही संदेश भेजने का मौका मिमल रहा था। मैंने �लबिवन्दर को उसके �ारे में बिवस्तार से खत सिलख दिदया था। त� मैंने �लबिवन्दर के सिलए ढेर सारी 'ीजें �नायी थीं ताबिक उन्हें हरीश के हाथ भेज सकंू। मेरे पत्र के साथ मम्मी ने भी �लबिवन्दर को एक लम्�ा पत्र सिलख दिदया था। हरीश के लंदन जाने की तारीख से कोई दसेक दिदन पहले �लबिवन्दर का पत्र आ गया था। वह कुछ अलग ही कहानी कह रहा था।सिलखा था �लबिवन्दर ने। कैसे सिलखूं बिक मेरे बिकतने दुर्दिदंन 'ल रहे हैं। एक मुसी�त से पीछा छुड़ाया नहीं होता बिक दूसरी गले लग जाती है। मैंने तुम्हें पहले नहीं सिलखा था बिक कहीं तुम परेशान न हो जाओ, लेबिकन हुआ यह था बिक इंबिडया से जो कन्साइनमेंट आया था उसमें पाट� ने मुझसे पूरे पैसे ले लेने के �ावजूद �दमाशी से अपने ही बिकसी क्लायेंट से सिलए कुछ ऐसा सामान भी रख दिदया था जिजसे यहां लाने की परमिमशन नहीं है। उसने सो'ा था बिक ज� मैं कन्साइनमेंट छुड़वा लूंगा तो आराम से अपनी पाट� को कह कर मुझस े वो सामान मंगवा लेगा। कहीं कुछ गड़�ड़ हो गयी तो सा� मुकर जायेगा। और �दबिकस्मती से हुआ भी यही। वह माल पकड़ा गया है और इलज़ाम मुझ पर है क्योंबिक ये सामान मेरे ही गोडाउन में मिमला है।मेरी कोई स�ाई नहीं मानी गयी है। यहां के कानून तुम्हें मालूम नहीं है बिक बिकतनी सख्ती �रती जाती है। अ� पता नहीं क्या होगा मेरा। इसी सि'ंता के 'लते कई दिदनों से अंडर}ाउंड हो कर मारा-मारा बि�र रहा हूं और घर भी नहीं गया हूं। अपने कान्टैक्ट्स की मदद से मामला रVा दVा कराने के 'क्कर में हूं। अ� संकट ये है बिक इम्पोरिरयम ख्ले तो कुछ कारो�ार हो लेबिकन मुझे डर है बिक कहीं इम्पोरिरयम के खुलते ही पुसिलस मुझे बिगरफ्तार न कर ले। तुम भी सो'ती होवोगी बिक बिकस पागल से रिरश्ता �ंधा है बिक अभी तो हाथों की मेंहदी भी नहीं उतरी बिक ये स� 'क्कर शुरू हो गये। लेबिकन सि'ंता मत करो बिडयर, स� ठीक हो जायेगा। एक अच्छा वकील मिमल गया है। है तो अपनी तर� का लेबिकन यहां के कानूनों का अच्छा जानकार है और कोई न कोई रास्ता बिनकाल ही लेगा। मैं मामले से तो �' ही जाऊंंगा। मेरा तो कई लाख का माल इस 'क्कर में �ंसा हुआ है वो भी रिरलीज हो जायेगा। �स एक ही दिदक्कत है। उसकी �ीस कुछ ज्यादा ही तगड़ी है। ये समझ लो बिक अगर यहीं इंतज़ाम करना पड़ा तो कम से कम प'ास लोगों के आगे हाथ �ैलाने पड़ें। मेरी स्थिस्थबित तुम समझ पा रही होगी। अंडर}ाउंड होने के कारण मैं स�के आगे हाथ जोड़ने भी नहीं जा सकता। पहले से ही तुम्हारा देनदार हूं और ऊपर से ये मुसी�त। मैं तुम्हारी तर� ही उम्मीद भरी बिनगाह से देख सकता हंू। क्या बिकसी तरह एक डेढ़ लाख का इंतज़ाम हो पायेगा। जानता हंू। तुम्हारे या मम्मी जी के सिलए सिलए यह रकम �हुत �ड़ी है। आप लोग अभी पहले ही इतना ज्यादा कर 'ुके हैं। लेबिकन मैं स' कहता हूं, इस मामले से बिनकलते ही स� कुछ ठीक हो जायेगा और मैं बिनशं्िै'त हो कर तुम्हें और मम्मी जी को यहां �ुलवाने के सिलए कोसिशश कर सकंूगा। अ� तक

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तुम्हारा पासपोट# भी आ गया होगा। एक ख़ास पता दे रहा हंू। पैसे 'ाहे इंबिडयन करेंसी में हो या पाउंड्स में, इसी पते पर णिभजवाना। ये पैसे रिरज़व# �ैंक की परमिमशन के बि�ना णिभजवाये नहीं जा सकते इससिलए तुम्हें कोई और ही जरिरया ढंूढना होगा। मैं जानता हूं यह मामला मुझे खुद ही सुलटाना 'ाबिहये था और तुम्हें इसकी तत्ती हवा भी नहीं लगने देनी 'ाबिहये थी, लेबिकन मुसी�तें बिकसी का दरवाजा खटखटा कर तो नहीं ही आतीं। मम्मी जी को मेरी पैरी पौना कहना। जो भी डेवलपमेंट होगा तुम्हें तुंत सिलखूंगा।पत्र पढ़ कर मैं �हुत परेशान हो गयी थी। समझ में नहीं आ रहा था बिक ये क्या हो रहा है। स' में हो भी रहा है या कोई नाटक 'ल रहा है। कैसे पता 'ले बिक स' क्या है। एक �ात तो थी बिक अगर मामला झूठा भी हो तो पता नहीं 'ल सकता था और स' के �ारे में पता करने का कोई ज़रिरया ही नहीं था। इतने महीनों के �ाद मैंने मम्मी को पहली �ार �लबिवन्दर के पहले के पत्रों के �ारे में �ताया था। मम्मी भी यह और बिपछले पत्र पढ़ कर �हुत परेशान हो गयी थी। बि�ना पूरी �ात जाने एक डेढ़ लाख रुपये और भेजने की भी हम बिहम्मत भी नहीं जुटा पा रहे थे। वैसे भी कहीं न कहीं से इंतज़ाम ही करना पड़ता। मेरी शादी में ही मम्मी अपनी सारी �'त ख'# कर 'ुकी थी।हम दोनों सारी रात इसी मसले के अलग-अलग पहलुओं के �ारे में सो'ती रही थीं। हमारे सामने कभी इस तरह की स्थिस्थबित ही नहीं आयी थी बिक इतनी माथा पच्ची करनी पड़ती। आखिखर हम इसी नतीजे पर पहुं'े थे बिक मेरा पासपोट# आ ही 'ुका है। क्यों न मैं खुद ही लंदन जा कर स� कुछ अपनी आंखों से देख लंू। आगे-पीछे तो जाना ही है। पता नहीं �लबिवन्दर क� �ुलवाये या �ुलवाये भी या नहीं। आखिखर रिरश्तेदारी के भी सवाल गाहे �गाहे उठ ही जाते थे बिक सात-आठ महीने से लड़की घर �ैठी हुई है। ले जाने वाले तो महीने-पद्रह दिदन में ही साथ ले जाते हैं। अभी इस तरह से जाने से स' का भी पता 'ल जायेगा। सो'ा था हमने बिक कोसिशश की जाये तो हफ्ते भर में टूरिरस्ट वीसा तो �न ही सकता है। साथ देने के सिलए हरीश है ही सही। �लबिवन्दर को एक और तार भेज दिदया जायेगा बिक वह रिरसीव करने आ जाये।मेरे सारे गहने या तो �े'े गये या बिगरवी वगैरह रखे गये। जहां जहां से भी हो सकता था हमने पैसे जुटाये। दिटकट और दूसरे इंतजाम करने के �ाद मेरे पास लंदन लाने के सिलए लगभग एक लाख तीस हजार रुपये इकटे्ठ हो गये थे। तय बिकया था बिक तीस हज़ार मम्मी के पास रखवा दंूगी और एक लाख ही ले कर 'लूंगी। मुझे �हुत खरा� लग रहा था बिक मैं एक ही साल में दूसरी �ार मम्मी की सारी पूंजी बिनकलवा कर ले जा रही थी। और कोई उपाय भी तो नहीं था। हमने जान�ूझ कर �लबिवन्दर के घर वालों को इसकी ख�र नहीं दी थी। मेरी बिकस्मत अच्छी थी बिक हरीश की कम्पनी की मदद से मुझे टूरिरस्ट वीजा वक्त पर मिमल गया था और मैं हरीश के साथ उसी फ्लाइट से लंदन आ सकी थी।और इस तरह मैं हमेशा के सिलए लंदन आ गयी थी। लंदन, जिजसके �ारे में मैं बिपछले छः सात महीने से लगातार सपने देख रही थी। कभी सो'ा भी नहीं था बिक कभी देश की सीमाए ंभी पार करने का मौका मिमलेगा। मन में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे। दुआ कर रही थी बिक �लबिवन्दर के साथ स� ठीक-ठाक हो और वह हमें एयरपोट# लेने भी आया हो। अगर कहीं न आया हो तो.. इस के �ारे में मैं डर के मारे सो'ना भी नहीं 'ाहती थी।हम लंदन पहंु'े तो यहां एक और सदमा मेरा इंतज़ार कर रहा था।हीथ्रो पर का�ी देर तक हम दोनों �लबिवन्दर इंतजार करते खड़े रहे थे और ज� उस जैसी शक्ल का कोई भी आदमी का�ी देर तक नज़र नहीं आया तो हमने }ाउंड स्टा� की मदद से एनाउंसमेंट भी करवाया लेबिकन वह कहीं नहीं था। �लबिवन्दर के 'क्कर में उस �े'ारे ने अपने ऑबि�स में बिकसी को ख�र नहीं की थी। मैं तो एकदम घ�रा गयी थी। एकदम अनजाना देश और पबित महाशय का ही कहीं दिठकाना नहीं। पता नहीं उसे पत्र और तार मिमले भी हैं या नहीं, लेबिकन उसने जो पता �ाफ्ट भेजने के

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सिलए दिदया था, उसी पर तो भेजे थे पत्र और तार। मन ही मन डर भी रही थी बिक कहीं और कोई गड़�ड़ न हो गयी हो। अ� मेरे पास इस के अलावा और कोई उपाय नहीं था बिक मैं वह रात हरीश के साथ ही कहीं गुजारंू और अगले दिदन तड़के ही �लबिवन्दर की खोज ख�र लूं।संयोग से हरीश के पास वाइएमसीए के हास्टल का पता था। हम वहीं गये थे। एडवांस �ुपिकंग न होने के कारण हमें तकली� तो हुई लेबिकन दो दिदन के सिलए हमें दो कमरे मिमल गये थे। इतनी साध पालने के �ाद आखिखर मैं अपने होने वाले शहर लंदन आ पहंु'ी थी और अपनी पहली ही रात अपने पबित के बि�ना एक गेस्ट हाउस में गुज़ार रही थी। संयोग से हरीश के पास एक पूरा दिदन खाली था और उसे ऑबि�स अगले दिदन ही ज्वाइन करना था। हम दोनों अगले दिदन बिनकले थे। अपने पबित को खोजने। एकदम नया और अनजाना देश, अलग भाषा और संस्कृबित और यहां के भ्झागोल से बि�लकुल अनजाने हम दोनों। हमें वाइएमसीए से लंदन की गाइड �ुक मिमल गयी थी और रिरसेप्शबिनस्ट ने हमें बिवलेसडन }ीन स्टेशन तक पहंु'ने के रास्ते के �ारे में, �स रूट और टे्रन रूट के �ारे में �ता दिदया था। रिरसेप्शबिनस्ट ने साथ ही आगाह भी कर दिदया था बिक आप लोग यहां बि�लकुल नये हैं और ये इलाका काले हस्थिब्शयों का है। ज़रा संभल कर जायें। हमें वह घर ढंूढने में �हुत ज्यादा तकलीV हुई। हमें अभी इस देश में आये हुए पद्रह - सोलह घंटे भी नहीं हुए थे और हम सात समन्दर पार के इतने �ड़े और अनजान शहर में �लबिवन्दर के सिलए मारे-मारे बि�र रहे थे। उस पर गुस्सा भी आ रहा था और रह रह कर मन आंशकाओं से भर भी जाता था बिक �लबिवन्दर बि�लकुल ठीक हो और हमें मिमल जाये।आखिखर दो तीन घंटे की मशक्कत के �ाद हम वहां पहंु'े थे और का�ी देर तक भटकने के �ाद हमें वह घर मिमला था। रिरसेप्शबिनस्ट ने सही कहा था, 'ारो तर� हब्शी ही हब्शी नज़र आ रहे थे। गंदे, गलीज और शक्ल से ही डरावने। म ैं अपनी जिज़दंगी म ें एक साथ इतने हब्शी देख रही थी। उन्ह ें देखते ही उ�काई आती थी।ये घर मेन रोड से बिपछवाड़े की तर� की गंदी गसिलयों में डेढ कमरे का छोटा सा �लैट था। ज� हरीश ने दरवाजे की घंटी �जायी तो का�ी देर �ाद एक लड़के ने दरवाजा खोला। वह नशे में धुत्त था। उसी कमरे में 'ार पां' लोग अस्त व्यस्त हालत में पसरे हुए शरा� पी रहे थे। 'ारों तर� सिसगरेट के टोटे, बि�खरे हुए मैले कु'ैले कपड़े और शरा� की खाली �ोतलें। लगता था महीनों से कमरे की स�ाई नहीं हुई थी। कमरा एकदम ठंडा था। हरीश ने ही �ात संभाली - हमें �लबिवन्दर जी से मिमलना है। उन्होंने हमें यहीं का पता दे रखा है। हरीश ने एक अच्छी �ात यह की बिक वहां �लबिवन्दर को न पा कर और माहौल को गड़�ड़ देखते ही उसने मेरा परिर'य �लबिवन्दर की पत्नी के रूप में न देकर अपनी मिमत्र के रूप में दिदया।सारे लड़के छोटा-मोटा धंधा करने वाले इंबिडयन ही लग रहे थे। हमें देखते ही वे लोग थोड़ा बिडस्ट�# हो गये थे। जिजस लड़के ने दरवाजा खोला था, उसने हमें अंदर आने के सिलए तो कह दिदया था लेबिकन अंदर कहीं �ैठने की जगह ही नहीं थी। हम वहीं दरवाजे के पास खडे़ रह गये थे। का�ी देर तक तो वे एक दूसरे के ही पूछते रहे बिक ये लोग कौन से �लबिवन्दर को पूछ रहे हैं। उसके काम धं्ैाधे के �ारे में भी वे पक्के तौर पर कुछ नहीं �ता पाय े बिक वह क्या करता है। ज� मैंन े उन्ह ें उसकी शक्ल सूरत के �ार े म ें और मिमडलसैक्स में उसके इंबिडयन हैंडीक्रा�ट्स के इम्पोरिरयम के �ारे में �ताया तो वे स� के स� हँसने लगे - मैडम कहीं आप मेरठी वैल्डर बि�ल्ली को तो नहीं पूछ रहे। ज� मैंने हां कहा - येस येस हम उसी का पूछ रहे हैं, लेबिकन उसने तो �ताया था.. उसका वो इम्पोरिरयम ??

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मैंने बिकसी तरह �ात पूरी की थी। जवा� में वह बि�र से हंसने लगा था - वो बि�ल्ली तो जी यहां नहीं रहता। कभी कभार आ जाता है। शायद इंबिडया से बिकसी डौक्यूमेंट्स का इंतजार था उसे। �ता रहा था यहीं के पते पर आयेगा।

- लेबिकन आपका वह बि�ल्ली. .. वह करता क्या है? मैंने दो�ारा पूछा था। जवा� में एक दूसरा लड़का हंसने लगा था - �ताया न वैल्डर है। पता नहीं आपका बि�ल्ली वही है। दरअसल अपने घर वालों की नजर में हम स� के स� बिकसी न बिकसी शानदार काम से जुडे़ हुए हैं। ये जो आप संजीव को देख रहे हैं, एम ए पास है और अपनी इंंबिडया में लोग यही जानते हैं बिक ये यहां पर एक �हुत �ड़ी कम्पनी में माक� टिटंग मैनेजर है ज�बिक अससिलयत में ये यहां पर सु�ह और शाम के वक्त लोगों के घरों में सब्जी की होम बिडलीवरी करता है। अपने परिर'य के जवा� में संजीव नाम के लड़के ने हमें तीन �ार झुक कर सलाम �जाया। तभी दूसरा लड़का �ी' में �ोल पड़ा - जी मुझे इंबिडया में लोग हष# कुमार के नाम से जानते हैं। उनके सिलए मैं यहां एक मेबिडकल लै� एनासिलस्ट हंू, लेबिकन मैं लंदन का हैश एक �ग#र कान#र में वेटर का काम करता हूं और दो सौ �ीस पाउंड हफ्ते के कमाता हंू। क्यों ठीक है ना और दिटप ऊपर से। गुजारा हो जाता है। यह कहते हुए उसने अपने बिगलास की �'ी-खु'ी शरा� गले से नी'े उतारी और जोर जोर से हंसने लगा। पहले वाले लड़के ने त� अपनी �ात पूरी की थी - और मैं प्रीतम सिसंह इंबिडया में घर वालों की नज़र में कम्प्यूटर प्रो}ामर और यहां की स'ाई में स�का प्यारा प्रैटी द वाशरमैन। मैं �ेसमेंट लांडरी 'लाता हंू और गोरों के मैले जांबिगये धोता हंू। यह कहते हुए उसके मंुह पर अजी�-सा कसैलापन उभर आया था और उसने अपना बिगलास एक ही घूंट में खाली कर दिदया था।का�ी हील हुज्ज़त के �ाद ही उन्होंने माना बिक �लबिवन्दर वहीं रहता है लेबिकन उसके आने-जाने का कोई दिठकाना नहीं है।मेरी आंखों के आगे दिदन में ही तारे ना'ने लगे थे। इसका मतल� - हम ठगे गये हैं। जिजस �लबिवन्दर को मैं जानती हूं और जिजस बि�ल्ली का ये लोग जिजक्र कर रहे हैं वो दो अलग अलग आदमी हैं या एक ही हैं। दोनों ही मामलों में मुसी�त मेरी ही थी। तभी उनमें से एक लड़के की आवाज सुनायी दी थी - वैसे ज� उसके पास इंबिडया से लाये पैसे थे तो अकेले ऐश करता रहा लेबिकन ज� खतम हो गये तो इधर उधर मारा मारा बि�रता है। ज� कहीं दिठकाना नहीं मिमलता तो कभी कभार यहां 'क्कर काट लेता है । वो भी अपनी डाक के 'क्कर में।मेरा तन-मन सुलगने लगा था। अ� वहां खडे़ रहने का कोई मतल� नहीं था। मैंने हरीश को इशारा बिकया था 'लने के सिलए। ज� हम वाबिपस 'लने लगे थे तो उन्हीं में से एक ने पूछा था - कोई मैसेज है बि�ल्ली के सिलए तो मैंने पलट कर गुस्से में जवा� दिदया था - हां है मैसेज। कहीं अगर मिमले आपको आपका बि�ल्ली या हमारा बि�ल्ली कभी अपनी डाक लेने आये तो उससे कह दीजिजये बिक इंबिडया से उसकी �ीवी मालबिवका उसके सिलए उसके डौक्यूमेंट्स ले कर आ गयी है। उसे ज़रूरत होगी। मैं वाइएमसीए में ठहरी हुई हूं। आ कर ले जाये।वे स� के स� अ'ानक ठगे रहे गये थे। अ� अ'ानक उन्हें लगा था बिक नशे में वे क्या भेद खोल गये हैं। अ� स�का नशा बिहरण हो 'ुका था लेबिकन बिकसी को नहीं सूझा था बिक सच्चाई सुन कर कुछ रिरएक्ट ही कर पाता। 'लते समय मैं एकदम 'ुप थी। कुछ भी नहीं सूझ रहा था मुझे। मुझे बि�लकुल पता नहीं 'ला था बिक हम हॉस्टल क� और कैसे पहुं'े थे।कमरे में पहंु'ते ही मैं बि�स्तर पर ढह गयी थी। अरसे से रुकी मेरी रुलाई �ूट पड़ी थी।

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तो यह था तस्वीर का असली रंग। मैं यहां न आयी होती तो उसकी कहानी पर रत्ती भर भी शक न करती क्योंबिक वह मुझे हनीमून के दौरान ही अपने कारो�ार के �ारे में इतने बिवस्तार से सारी �ातें �ता 'ुका था। अ� मुझे समझ में आ रहा था बिक उसने त� अपने इस सो कॉल्ड धंधे के �ारे में इतनी लम्�ी लम्�ी और �ारीक �ातें क्यों �तायीं थीं।अ� स� कुछ सा� हो 'ुका था बिक हम छले जा 'ुके थे और मेरी शादी पूरे दहेज के साथ अ� एक याद न बिकये जा सकने वाले भदे्द मज़ाक में �दल 'ुकी थी। मेरा कौमाय#, मेरा सुहाग, मेरा हनीमून, मेरी हसरतें, मेरी खुसिशयां, मेरे छोटे छोटे सपने, �लबिवन्दर जैसे झूठे और मक्कार आदमी के साथ �ांटे गये बिनतांत अंतरंग क्षण, मेरे सारे अरमान स� कुछ एक भयानक धोखा सिसद्ध हो 'ुके थे। मैं अपनी रुलाई रोक नहीं पा रही थी। मुझे अपने ही तन से मिघन्न आने लगी थी। अपने आप पर �ुरी तरह से गुस्सा आने लगा था बिक मैंने यह सोने जैसा तन उस धोखे�ाज, झूठे और �रे�ी आदमी को सौंपा था। मेरे शरीर पर उसने हाथ बि�राये थे और मैंने उस आदमी को, जो मेरा पबित कहलाने लायक बि�लकुल भी नहीं था, एक �ार नहीं �ल्किल्क कई कई �ार अपना शरीर न केवल सौंपा था, �ल्किल्क जिजसकी भोली भाली �ातों के जाल में �ंसी मैं कई कई महीनों से उसके पे्रम में पागल �नी हुई थी। अ� उन पलों को याद करके भी मुझे मिघन्न होने लगी थी। मेरा मन �ुरी तरह छलनी हो 'ुका था। मैं दहाड़ें मार कर रोना 'ाहती थी, लेबिकन यहां इस नये और अपरिरसि'त माहौल में मैं खुल कर रो भी नहीं पा रही थी। यहां कोई सीन बिक्रयेट नहीं करना 'ाहती थी। मैं गुस्से से लाल पीली हो रही थी। हरीश थोड़ी देर मेरे कमरे में �ैठ कर मुझे एकांत देने की नीयत से अपने कमरे में 'ला गया था। उस �े'ारे को भी समझ में नहीं आ रहा था बिक अ'ानक ये स� क्या हो गया था।मुझे मम्मी के सिलए भी अVसोस हो रहा था। उन्हें �ोन करके इस स्टेज पर ये �ातें �ता कर परेशान नहीं करना 'ाहती थीं। अ� इसमें उनका क्या कुसूर बिक उनका देखा-भाला जमाई खोटा बिनकल गया था। उन्होंने तो उससे सिस�# दो-'ार मुलाकातें ही की थीं और उसके शब्दजाल में ही �ंसी थी। मैं मूरख तो न केवल उसकी �ातों में �ंसी थी, उसे अपना स� कुछ न्यौछावर कर आयी थी। अपना सुहाग भी और पां' लाख रुपये भी। मम्मी से �ड़ा कुसूर तो मेरा ही था। अ� सज़ा भी मुझ अकेली को ही भोगनी थी।उस सारी रात मैं अकेली रोती छटपटाती करवटें �दलती रही। �ार �ार मुझे अपने इस शरीर से घृणा होने लगती बिक मेरा इतना सहेज कर संभाल कर रखा गया शरीर दूबिषत बिकया भी तो एक झूठे और मक्कार आदमी ने। पता नहीं मुझसे पहले बिकतनी लड़बिकयों के साथ खिखलवाड़ कर 'ुका होगा। अ� यह �ात जिजस बिकसी को भी �तायी जाये, हमारा ही मज़ाक उड़ायेगा बिक तुम्हीं लोग लंदन का छोकरा देख कर लार टपकाये उसके आगे पीछे हो रहे थे। हमने तो पहले ही कहा था, �ाहर का मामला है, लड़के को अच्छी तरह ठोक �जा कर देख लो, लेबिकन हमारी सुनता ही कौन है। अ� भुगतो।अ� मेरा स�से �ड़ा संकट यही था बिक मैं इस परदेस में अकेली और �ेसहारा बिकसके भरोसे रहंूगी। इतनी जल्दी वाबिपस जाने का भी तो नहीं सो'ा जा सकता था। क्या जवा� दंूगी स�को बिक मैं लुटी बिपटी न शादीशुदा रही, न कंुवारी। मैं सो'-सो' के मरी जा रही थी बिक क्या होगा मेरा अ�। पता नहीं �लबिवन्दर से मुलाकात भी हो पायेगी या नहीं और मिमलने पर भी कभी �लबिवन्दर जैसे �ेईमान और झूठे आदमी से पै' अप हो पायेगा या नहीं या बि�र मैं हमेशा हमेशा से आधी कंुवारी और आधी शादीशुदा वाली हालत में उसका या उसके सुधरने का उसका इंतजार करते करते �ूढ़ी हो जाऊंगी। मुझे ये सो' सो' कर रोना आ रहा था बिक जिजस आदमी के अपने पेपस# का दिठकाना नहीं है, रहने खाने और काम का ठौर नहीं है, अगर उससे कभी समझौता हो भी गया तो मुझे कहां रखेगा और कहां से खिखलायेगा।

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वहां तो बि�र भी मम्मी थी और स� लोग थे, लेबिकन यहां सात समंदर पार मेरा क्या होगा। मैं भी कैसी मूरख ठहरी, न आगा सो'ा न पीछा, लपकी लपकी लंदन 'ली आयी।वह पूरी रात मैंने आंंैंखों ही आंखों में काट दी थी और एक पल के सिलए भी पलकें नहीं झपकायीं थीं। हॉस्टल में हमारा यह तीसरा दिदन था। आखिखरी दिदन। �ड़ी मुल्किश्कल से हमें एक और दिदन की मोहलत मिमल पायी थी। इतना ज़रूर हो गया था बिक अगर हम 'ाहते तो आगे की तारीखों की एडवांस �ुपिकंग करवा सकते थे लेबिकन अभी एक �ार तो हॉस्टल खाली करना ही था। हमारा पहला दिदन तो �लबिवन्दर को खोजने और उसे खोने में ही 'ला गया था। वहां से वाबिपस आने के �ाद मैं कमरे से बिनकली ही नहीं थी। हरीश �े'ारा खाने के सिलए कई �ार पूछने आया था। उसके �हुत जिजद करने पर मैंने सिस�# सूप ही सिलया था। अगले दिदन वह अपने ऑबि�स 'ला गया था लेबिकन दिदन में तीन-'ार �ार वह �ोन करके मेरे �ारे में पूछता रहा था। मुझे उस पर तरस भी आ रहा था बिक �े'ारा कहां तो �लबिवन्दर के भरोसे यहां आ रहा था और कहां मैं ही उसके गले पड़ गयी थी। जिजस दिदन हमें हॉस्टल खाली करना था, उसी शाम को वाबिपस आने पर उसने दो तीन अच्छी ख�र ें सुनायी थीं। उसके सिलए }ीन�ोड# इलाके म ें एक गुजराती परिरवार के साथ पेइंग गेस्ट के रूप में रहने का इत्ंैाज़ाम हो गया था। लेबिकन उसने एक झूठ �ोल कर मेरा काम भी �ना दिदया था। उसने वहां �ताया था बिक उसकी �ड़ी �हन भी एक प्रोजैक्ट के सिसलसिसले में उसके साथ आयी हुई है पद्रह �ीस दिदन के सिलए। बि�लहाल उसी घर में उसके सिलए भी एक अलग कमरे का इंतज़ाम करना पडे़गा ताबिक वह अपना प्रोजेक्ट बि�ना बिकसी तकलीV के पूरा कर सके। �ी'-�ी' म ें उस े काम के सिसलसिसले म ें �ाहर भी जाना पड़ सकता है। हरीश की अक्लमंदी स े ये इंतज्öैााम हो गये थे और हमें अगले दिदन ही वहां सिशफ्ट कर जाना था।मैं दोहरी दुबिवधा में �ंस गयी थी। एक तर� हरीश पर ढेर सारा प्यार आ रहा था जो मेरी इतनी मदद कर रहा था और दूसरी तर� �लबिवन्दर पर �ुरी तरह गुस्सा भी आ रहा था बिक देखो, हमें यहां आये तीसरा दिदन है और अ� तक जना� का पता ही नहीं है।दो तीन दिदन के इस आत्म मंथन के �ी' मैं भी तय कर 'ुकी थी बिक मैं अ� यहा ं स े वाबिपस नहीं जाऊंगी। �लबिवन्दर या नो �लबिवन्दर, अ� यही मेरा काय# क्ष्टात्र रहेगा। तय कर सिलया था बिक काम करने के �ारे में यहां के कानूनों के �ारे में पता करंूगी और सारे काम कानून के बिहसा� से ही करंूगी।अ� संयोग से हरीश ने रहने का इंतजाम कर ही दिदया था। अभी तो मेरे पास इतने पैसे थे बिक ठीक-ठाक तरीके से रहते हुए बि�ना काम बिकये भी दो तीन महीने आराम से काटे जा सकते थे।हम अभी रिरसेप्शन पर बिहसा� कर ही रहे थे, तभी वह आया था। �ुरी हालत थी उसकी। बि�खरे हुए �ाल। �ढ़ी हुई दाढ़ी और मैले कपडे़। जैसे कई दिदनों से नहाया ही न हो। मैं उसे सात आठ महीने �ाद देख रही थी। अपने पबित को, �लबिवन्दर को। वह मेरी तर� खाली खाली बिनगाहों से देख रहा था।उसने मेरी तर� देखा, हरीश की तर� देखा और हमारे सामान की तर� देखा जैसे तय कर रहा हो, इनमें से कौन-कौन से �ैग मेरे हो सकते हैं। बि�र उसने बि�ना कुछ पूछे ही दो �ैग उठाये और हौले से मुझसे कहा - 'लो।मैं हैरान - ये कै सा आदमी है, जिजसमें शम# हया नाम की कोई 'ीज ही नहीं है। जिजस हालत में मुझसे सात महीने �ाद मिमल रहा है, 'ार दिदन से मैं लंदन में पड़ी हुई हूं, मेरी ख�र तक लेने नहीं आया और अ� सामान उठाये आदेश दे रहा ह ै - 'लो। कैसे व्यवहार कर रहा है। हरीश भी उसका व्यवहार देख कर हैरान था। हरीश की हैरानी का कारण यह भी था बिक �लबिवन्दर के दोनों हाथों में उसी के �ैग थे। �लबिवन्दर पूरी बिनश्चिशं्चतता से �ैग उठाये �ाहर की तर� 'ला जा रहा था। मैं समझ नहीं पा रही थी बिक

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क्या कहंू और कैसे कहूं बिक हे मेरे पबित महाशय, क्या यही तरीका है एक सभ्य देश के सभ्य नागरिरक का आपके देश में पहली �ार पधारी पत्नी का स्वागत करने का।मुझे गुस्सा भी �हुत आ रहा था और रुलाई भी �ूटने को थी - क्या मैं इसी शख्स का इतने महीनों से गुरदासपुर में इंतज़ार कर रही थी बिक मेरा बिपया मुझे लेने आयेगा और मैं उसके साथ लंदन जाऊंगी।�लबिवन्दर ने ज� देखा बिक मैं उसके पीछे नहीं आ रही हूं �ल्किल्क वहीं खड़ी उसका तमाशा देख रही हूं तो दोनों �ैग वहीं पर रखे, वाबिपस पलटा और मेरे एकदम पास आ कर �ोला - घर 'लो, वहीं आराम से सारी �ातें करेंगे। और वह मेरे जवा� का इंतज़ार बिकये बि�ना बि�र �ैगों की तर� 'ल दिदया। मैं दुबिवधा में थी, ख्शा होऊं बिक मेरा पबित मुझे लेने आ गया है या रोऊंं बिक जिजस हाल में आया है, न आया होता तो अच्छा होता। उधर हरीश हैरान परेशान मेरे इशारे का इंतज़ार कर रहा था।मैंने यही �ेहतर समझा बिक आगे पीछे एक �ार तो �लबिवन्दर के साथ जाना ही पडे़गा। उसका पक्ष भी सुने बि�ना मुसिक्त नहीं होगी तो इसे क्यों लटकाया जाये। जो कुछ होना है आज बिनपट ही जाये। उसके साथ �ाकी जीवन गुज़ारना ह ै तो आज ही से क्यों नहीं और अगर नहीं गुज़ारना ह ै तो उसका भी �ैसला आज ही हो जाये।मैंने हरीश से �ुस�ुसा कर कहा - सुनो हरीश

- जी दीदी- आज तो मुझे इनके साथ जान े ही दो। जो भी Vैसला होगा म ैं तुम्ह ें �ोन पर �ता दंूगी।

अल�त्ता पेइंग गेस्ट वाली मेरी �ुपिकंग कैं सिसल मत करवाना।- ठीक है दीदी, मैं आपके �ोन का इंतज़ार करंूगा। �ेस्ट ऑ� लक, दीदी।

हम दोनों आगे �ढे़ थे। हमें आते देख �लबिवन्दर की आंखों में बिकसी भी तरह की 'मक नहीं आयी थी। उसने बि�र से �ैग उठा सिलये थे। मुझे हंसी भी आ रही थी - देखो इस शख्स को, 'ौथे दिदन मेरी ख�र लेने आया है। न हैलो न और कोई �ात, �स �ैग उठा कर खड़ा हो गया है।मैंने हरीश का झूठा परिर'य कराया था - ये हरीश है। मेरी �ुआ का लड़का। हमारी शादी के वक्त �ं�ई में था। यहां नौकरी के सिलए आया है।�लबिवन्दर ने एक शब्द �ोले बि�ना अपना हाथ आगे �ढ़ा दिदया था।हरीश ने त� अपने �ैग �लबिवन्दर के हाथ से सिलये थे और अपना हाथ मेरी तर� �ढ़ा दिदया था - 'लता हंू दीदी। अपनी ख�र देना। ओके जीजाजी, कहते हुए वह तेज़ी से �ाहर बिनकल गया था।मिमनी कै� में �ैठा �लबिवन्दर लगातार �ाहर की तर� देखता रहा था। पूरे रास्ते न तो उसने मेरी तर� देखा था और न ही उसने एक शब्द ही कहा था। मैं उम्मीद कर रही थी और कुछ भी नहीं तो कम से कम मेरा हाथ ही द�ा कर अपने आप को मुझसे जोड़ लेता। मैं त� भी उसके सारे स'-झूठ मान लेती। पता नहीं क्या हो गया है इसे। इतने अजनबि�यों की तरह व्यवहार कर रहा है। मिमनी कै� बिवलेसडन }ीन जैसी ही बिकसी गंदी �स्ती में पहुं' गयी थी। वह �ाइवर को गसिलयों में दायें �ायें मुड़ने के सिलए �ता रहा था।आखिखर हम आ पहंु'े थे।क्या कहती इसे - मेरा घर.. ..मेरी ससुराल .. ..या एक और पड़ाव....।. �लबिवन्दर ने दरवाजा खोला था। सामान अंदर रखा था। मैं उम्मीद कर रही थी अ� तो वह आगे �ढ़ कर मुझे अपने गले से लगा ही लेगा और मुझ पर 'ुं�नों की �ौछार कर देगा। मेरे सारे शरीर को 'ूमते- 'ूमते खडे़-खड़े ही मेरे कपडे़ उतारते हुए मुझे सो�े या पलंग की तर� ले जायेगा और उसके �ाद.. मैं यही उम्मीद कर सकती थी.. 'ाह सकती थी और इस तरह के व्यवहार के सिलए तैयार भी थी। आखिख़र हम नव बिववाबिहत पबित पत्नी थे

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और पूरे सात महीने �ाद मिमल रहे थे, लेबिकन उसने ऐसा कुछ भी नहीं बिकया था और रसोई में 'ाय �नाने 'ला गया था।मैंने देखा था, यह घर भी उन लड़कों वाले उस घर की तरह ही था लेबिकन उसकी तुलना में सा�-सुथरा था और सामान भी �ेहतर और ज्यादा था। मैं सो' ही रही थी बिक अगर यह घर �लबिवन्दर का है तो उसने उस गंदे से घर का पता क्यों दिदया था। लेबिकन दो मिमनट में ही मेरी शंका का समाधान हो गया था। यह घर भी �लबिवन्दर का नहीं था। जरूर उसके बिकसी दोस्त का रहा होगा और इसका इंतज़ाम करने में ही �लबिवन्दर को दो तीन दिदन लग गये होंगे। ज� मैं �ाथरूम में गयी तो �ाथरूम ने पूरी पोल खोल दी थी। वहा ं एक नाइट गाउन टंगा हुआ था। �लबिवन्दर नाइट गाउन नहीं पहनता, यह �ात उसने मुझे हनीमून के वक्त ही �ता दी थी। वह रात को सोते समय बिकसी भी मौसम में �बिनयान और पैंट पहन कर ही सोता था। �ाथरूम में ही रखे शैम्पू और दूसरे पर�यूम उसकी 'ुगली खा रहे थे। ये दोनों 'ीजें ही �लबिवन्दर इस्तेमाल नहीं करता था।कमरे में लौट कर मैंने ग़ौर से देखा था, वहां भी कई 'ीजें ऐसी थीं जो �लबिवन्दर की नहीं हो सकती थीं। बिकता�ों के रैक में मैंने जो पहली बिकता� बिनकाल कर देखी उस पर बिकसी राजेन्दर सोनी का नाम सिलखा हुआ था। दूसरी और तीसरी बिकता�ें भी राजेन्दर सोनी की ही थीं।�लबिवन्दर अभी भी रसोई में ही था। वहां से बिडब्�े खोलने �ंद करने की आवाजें आ रही थीं। मुझे इतने तनावपूण# माहौल में भी हँसी आ गयी। जरूर 'ाय पत्ती 'ीनी ढंूढ रहा होगा।आखिखर वह 'ाय �नाने में स�ल हो गया था। लेबिकन शायद खाने के सिलए कुछ नहीं खोज पाया होगा। वह अ� मेरे सामने �ैठा था। मैं इंतज़ार कर रही थी बिक वह कुछ �ोले तो �ात �ने। लेबिकन वह मुझसे लगातार नज़रें 'ुरा रहा था।�ात मैंने ही शुरू की थी- ये क्या हाल �ना रखा है। तुम तो अपने �ारे में ज़रा-सी भी लापरवाही पसंद नहीं करते थे।

- क्या �ताउं€, बिकतने महीने हो गये, इन मुसी�तों की वजह से मारा-मारा बि�र रहा हंू। अपने �ारे में सो'ने की भी �ुस#त नहीं मिमल रही है। तुम.. तुम.. अ'ानक .. इस तरह से .. बि�ना �ताये..।

- तुम्हें अपनी परेशाबिनयों से �ुस#त मिमले तो दुबिनया की कुछ ख�र भी मिमले .. मैंने तुम्हें दो तार डाले, दो खत डाले। वहां हम हीथ्रो पर एक घंटा तुम्हारा इंतज़ार करते रहे। एनाउंसमेंट भी करवाया और तुम्हें खोजने वहां तुम्हारे उस पते पर भी गये। और तुम हो बिक आज 'ौथे दिदन मिमलने आ रहे हो। इस पर भी तुमने एक �ार भी नहीं पूछा... कैसी हो.. मेरी तकलीV का ज़रा भी ख्याल नहीं था तुम्हें।

- स' में मैं मुसी�त में हूं। मेरा बिवश्वास तो करो मालबिवका, मैं �ता नहीं सकता, मुझे आज ही पता 'ला बिक ....

- झूठ तो तुम �ोलो मत.. तुम हमेशा से मुझसे झूठ �ोलते रहे हो। एक के �ाद दूसरा झूठ।- मेरा यकीन करो, डीयर, मुझे स'मु' आज ही पता 'ला।- स' �ताओ तुम्हारा असली परिर'य क्या है, और तुम्हारा घर कहा ं है। कोई घर है भी या

नहीं,.. मुझे गुस्सा आ गया था।इतनी देर में वह पहली �ार हँसा था - तुम तो स्कॉटलैंड याड# की तरह जिज़रह करने लगी।

- तो तुम्हीं �ता दो स' क्या है।- स' वही है जो तुम जानती हो।- तो जो कुछ तुम्हारे उन ल�ंगे दोस्तों ने �ताया, वो बिकसका स' है।

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- तुम भी उन शराबि�यों की �ातों में आ गयीं। क्या है बिक उन लोगों का खुद का कोई काम धंधा है नहीं, न कुछ करने की नीयत ही है। �स जो भी उनकी मदद न करे उसके �ारे में उलटी सीधी उड़ा देते हैं। अ� पता नहीं मेरे �ारे में उन्होंने तुम्हारे क्या कान भरे हैं।

- तो ये वैल्डर बि�ल्ली कौन है।- बि�ल्ली ... अच्छा वो ...था एक। अ� वाबिपस इंबिडया 'ला गया है। लेबिकन तुम उसके �ारे में

कैसे जानती हो।- मुझे �ताया गया है तुम्हीं बि�ल्ली वैल्डर हो।- �कवास है।- ये घर बिकसका है?- क्यों .. अ� घर को क्या हो गया...मेरा ही है। मैं तुम्हें बिकसी और के घर क्यों लाने लगा।- तो �ाथरूम में टंगा वो नाइट गाउन, शैमू्प, पर�यूम्स और ये बिकता�ें.. .. कौन है ये राजेन्दर

सोनी?हकलाने लगा �लबिवन्दर - वो क्या है बिक ज� से बि�जिजनेस के 'क्करों में �ंसा हंू, काम एकदम �ंद पड़ा है। कई �ार खाने तक के पैसे नहीं होते थे मेरे पास, इसीसिलए एक पेइंग गेस्ट रख सिलया था।

- �लबिवन्दर, तुम एक के �ाद एक झूठ �ोले जा रहे हो। क्यों नहीं एक ही �ार सारे झूठों से परदा हटा कर मुक्त हो जाते।

- यकीन करो बिडयर मेरा, मैं स' कर रहा हूं।- तकली� तो यही है बिक तुम मुझसे कभी स' �ोले ही नहीं। यहीं तुम्हारे इस घर में आ कर मुझे

पता 'ल रहा है बिक मकान मासिलक के कपड़े तो अटै'ी में रहते हैं और पेइंग गेस्ट के कपड़े अलमारिरयों में रखे जाते हैं। मकान मासिलक रसोई में 'ाय और 'ीनी के बिडब्�े ढंूढने में दस मिमनट लगा देता है और अपने ही घर में मेहमानों की तरह जूते पहने �ैठा रहता है।

- तुम्हें सिलखा तो था मैंने बिक क� से अंडर}ाउंड 'ल रहा हंू। कभी कहीं सोता हंू तो कभी कहीं।- मैं तुम्हारी सारी �ातों पर यकीन कर लूंगी। मुझे अपने शो रूम के पेपस# दिदखा दो।- वो तो शायद बिवजय के यहां रखे हैं। वह बि�र से हकला गया था।- लेबिकन शो रूम की 'ा�ी तो तुम्हारे पास होगी।- नहीं, वो वकील के पास है।- तुम्हारे पास अपने शोरूम का पता तो होगा। मुझे गुस्सा आ गया था - कम से कम टैक्सी में

�ैठे �ैठे दूर से तो दिदखा सकते हो। मैं उसी में तसल्ली कर लूंगी।- दिदखा दंूगा,. तुम इतने महीने �ाद मिमली हो। इन �ातों में समय �र�ाद कर रही हो। मेरा यकीन

करो। मैं तुम्हें सारी �ातों का यकीन करा दंूगा। अ� यही तुम्हारा घर है और तुम्हें ही संभालना है। यह कहते हुए वह उठा था और इतनी देर में पहली �ार मेरे पास आ कर �ैठा था। उस समय मैं उस शख्स से प्यार करने और उसे खुद को प्यार करने देने की बि�लकुल मनस्थिस्थबित में नहीं थी। यहां तक बिक उसका मुझे छूना भी नागवार गुज़र रहा था। मैंने उसका �ढ़ता हुआ हाथ झटक दिदया था और एक आसान सा झूठ �ोल दिदया था - अभी मैं इस हालत में नहीं हूं। मेरे पीरिरयड्स 'ल रहे हैं।वह 'ौंक कर एकदम पीछे हट गया था और बि�र अपनी जगह जा कर �ैठ गया था। उसे इतना भी नहीं सूझा था बिक पीरिरयड्स में सैक्स की ही तो मनाई होती है, अरसे �ाद मिमली �ीवी का हाथ थामने, उसे अपने सीने से लगाने और 'ूमने से कुछ नहीं होता। मैंने भी तय कर सिलया था, ज� तक वह अपनी असली पह'ान नहीं �ता देता, मैं उसे अपने पास भी नहीं �टकने दंूगी। �ेशक उस वक्त मैं सैक्स के

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सिलए �ुरी तरह तड़प रही थी और मन ही मन 'ाह रही थी बिक वह मुझसे ज�रदस्ती भी करे तो मैं मना नहीं करंूगी। लेबिकन वह तो हाथ खीं' कर एकदम पीछे ही हट गया था।मेरा वहां यह तीसरा दिदन था। ये तीनों दिदन वहां मैंने एक मेहमान की तरह काटे थे। ज� घर के मासिलक की हालत ही मेहमान जैसी हो तो मैं भला कैसे सहज रह सकती थी। हम आम तौर पर इस दौरान 'ुप ही रहे थे। इन तीन दिदनों में मैंने उससे कई �ार कहा था, 'ले शो रूम देखने, वकील से मिमलने या बिवजय के यहां शो रूम के पेपस# देखने लेबिकन वह लगातार एक या दूसरे �हाने से टालता रहा।मैं तीन दिदन से उसकी लंतराबिनयां सुनते सुनते तंग आ 'ुकी थी। हम इस दौरान दो एक �ार ही �ाज़ार की तर� गये थे। सामान लेने और �ाहर खाना खाने और दो एक �ार �ोन करने। मम्मी को अपनी पहुं' की ख�र भी देनी थी। क� से टाल रही थी। मैंने मम्मी को सिस�# यही �ताया बिक यहां स� ठीक ठाक है और मैं �ाकी �ातें बिवस्तार से पत्र में सिलखंूगी। �लबिवन्दर की अ� तक की सारी �ातें उसके खिखलाV जा रही थीं लेबिकन बि�र भी वह �ताने को तैयार नहीं था बिक उसकी अससिलयत क्या है। वह हर �ार एक नया �हाना �ना देता। एकाध �ार �ोन करने के �हाने �ाहर भी गया लेबिकन लौट कर यही �ताया बिक वो घर पर नहीं है, �ाहर गया है, कल आयेगा या परसों आयेगा। आखिखर तंग आ कर मैंने उसे अल्टीमेटम दे दिदया था - अगर कल तक तुमने मुझे अपनी अससिलयत का कोई सु�ूत नहीं दिदखाया तो मेरे पास यह मानने के अलावा और कोई 'ारा नहीं होगा बिक तुम और कोई नहीं, बि�ल्ली वैल्डर ही हो और तुम मुझसे लगातार झूठ �ोलते रहे हो। त� मुझे यहां इस तरह रोकने का कोई हक नहीं रहेगा।पूछा था उसने - कहां जाओगी मुझे छोड़ कर..।जवा� दिदया था मैंने - ज� सात समंदर पार करके यहां तक आ सकती हूं तो यहां से कहीं और भी जा सकती हंू।

- इतना आसान नहीं है यहां अकेले रहना। मैं आदमी हो कर नहीं संभाल पा रहा हूं...।- झूठे आदमी के सिलए हर जगह तकली�ें ही होती हैं।- तुम मुझे �ार �ार झूठा क्यों सिसद्ध करने पर तुली हुई हो। मैं तुम्हें कैसे यकीन दिदलाऊं,..- दुकान के, घर के, कारा�ार के पेपस# दिदखा दो.. मैं यकीन कर लूंगी और न केवल अपने सारे

आरोप वाबिपस लूंगी �ल्किल्क तुम्हें मुसी�तों से �ाहर बिनकालने के सिलए अपनी जान तक लड़ा दंूगी। पता नहीं तुम्हारा पासपोट# भी असली है या नहीं। कहीं 'ोरी छुपे तो नहीं आये हुए हो यहां ?

- वक्त आने दो। सारी 'ीजें दिदखा दंूगा।- मैं उसी वक्त का इंतजार कर रही हंू।- यू आर टू बिडबि�कल्ट ।लेबिकन तीसरी रात वह टूट गया था। हम दोनों अलग अलग सो रहे थे। रोजाना इसी तरह सोते

थे। मैं उसे अपने पास भी नहीं �टकने दे रही थी। वह अ'ानक ही आधी रात को मेरे पास आया था और मेरे सीने से लग कर �ूट-�ूट कर रोने लगा था। उसका इस तरह रोना मुझे �हुत अखरा था लेबिकन शायद वह भी थक 'ुका था और अपना खोल उतार कर मुक्त हो जाना 'ाहता था। 'लो, कहीं तो ��# बिपघली थी। मैंने उसे पु'कारा था, 'ुप कराया था और उसके �ालों में उंगसिलयां बि�राने लगी थी।उसने त� कहा था - हम स� कुछ भुला कर नये सिसरे से ज़िज़ंदगी नहीं शुरू कर सकते क्या। मैं मानता हंू, मैं तुमसे कुछ �ातें छुपाता रहा हंू, लेबिकन इस समय मैं स'मु' मुसी�त में हूं और अगर तुम भी मेरा साथ नहीं दोगी तो मैं बि�लकुल टूट जाउं गा। और वह ��क ��क कर रोने लगा था।€उस रात मैंने उसे स्वीकार कर सिलया था और कहा था - ठीक है। तुम अ� 'ुप हो जाओ। इस �ारे में हम �ाद में �ात करेंगे।

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�ेशक उसमें अ� पहले वाला जोश खरोश नहीं रह गया था। शायद उसकी मानसिसक हालत और कुछ हद तक आर्सिथंक हालत भी इसके सिलए जिजम्मेवार थी। शायद यह डर भी रहा हो बिक कहीं मैं स'मु' 'ली ही न जाऊं। अगले दिदन उसके व्यवहार में �हुत तब्दीली आ गयी थी और वह सहजता से पेश आ रहा था। कई दिदन �ाद उसने शेव की थी और ढंग से कपड़े पहने थे। मुझे घुमाने ले गया था और �ाहर खाना खिखलाया था। एक ही �ार के सैक्स से और अपने झूठ से मुसिक्त पा कर वह नाम#ल हो गया था। मैं इंतज़ार कर रही थी बिक वह अपने �ारे मे स� कुछ स' स' �ता देगा लेबिकन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। वह ऐसे व्यवहार कर रहा था मानो कुछ हुआ ही न हो। इसके �जाये उसने रात को बि�स्तर पर आने पर पहला सवाल यही पूछा - मैंने तुम्हें कुछ पैसों के �ारे में सिलखा था, कुछ इंतज़ाम हो पाया था क्या....।मैं हैरान हो गयी थी। कल रात तो नये सिसरे से ज़िज़ंदगी श्जारू करने की �ात कही जा रही थी और अ�..कहीं कल रात का नाटक मुझसे पैसे बिनकलवाने के सिलए ही नाटक तो नहीं था।बि�र भी कहा था मैंने - अपने वकील से मिमलवा दो। मैं उसकी �ीस का इंतजाम भी कर दंूगी।

- नहीं, दरअसल मैं कोई नया धंधा शुरू करना 'ाहता था।- क्यों, मैंने छेड़ा था - वो इम्पोरिरयम यंू ही हाथ से जाने दोगे?- अ� छोड़ो भी उस �ात को। कहा न... कुछ नया करना 'ाहता हंू। कुछ मदद कर पाओगी।

अ� आया था ऊंट पहाड़ के नी'े। मैंने उस वक्त तो उसे सा� मना कर दिदया था बिक �ड़ी मुल्किश्कल से हम बिकराये के लायक ही पैसे जुटा पाये थे। �स, बिकसी तरह मैं आ पायी हूं। वह बिनराश हो गया था। मैं जानती थी, अगर उसे मैं सारे पैसे सौंप भी दंू तो भी कोई क्रांबित नहीं होने वाली है। �हुत मुल्किश्कल था अ� उस पर बिवश्वास कर पाना। अ� इस परदेस में कुल जमा यही पूंजी मेरे पास थी। अगर कहीं ये भी उसके हत्थे 'ढ़ गयी तो मैं तो कहीं की न रहंूगी। मन का एक कोना यह भी कह रहा था पैसा पबित से �ढ़ कर तो नहीं है। अ� ज� उसने मा�ी मांग ही ली है तो क्यें नहीं उसकी मदद कर देती। आखिखर रहना तो उसी के साथ ही है। जो कुछ कमायेगा, घर ही तो लायेगा। अ� ये तो कोई तुक नहीं है बिक पैसे घर में �ेकार पडे़ रहें और घर का मरद काम करने के सिलए पंूजी के सिलए मारा मारा बि�रे ....।और इस तरह मैंने उस पर एक और �ार बिवश्वास करके उसे पां' सौ पाउंड दिदये थे। नोट देखते ही उसकी आंखें एकदम 'मकने लगीं थीं। कहा था मैंने उससे - �स, यही स� कुछ है मेरे पास। इसके अलावा मेरे पास एक धेला भी नहीं है। अगर कहीं कल के दिदन तुम मुझे घर से बिनकाल दो तो मेरे पास पुसिलस को �ोन करने के सिलए एक सिसक्का भी नहीं है।

- तुम �ेकार में शक कर रही हो। मैं भला तुम्हें घर से क्यों बिनकालने लगा। तुमने तो आकर मेरी अंधेरी ज़िज़ंदगी में नयी रौशनी भर दी है। अ� देखना इन पां' सौ पाउंडों के बिकतने हज़ार पाउंड �ना कर दिदखाता हंू।लेबिकन इस �ार भी मैंने ही धोखा खाया था। वह पैसे लेने के �ाद कई दिदन तक सारा सारा दिदन गाय� रहता लेबिकन ये सारे पैसे पां'- सात दिदन में ही अपनी मंजिज़ल तलाश करके �लबिवन्दर से बिवदा हो गये थे। कारण वही मिघसे बिपटे थे। जो काम हाथ में सिलया था, उसका अनुभव न होने के कारण घाटा हो गया था। एक �ार बि�र वह नये सिसरे से �ेकार था।इधर वह अ� मुझे पहले की तरह ही खू� प्यार करने लगा था, इधर मैंने एक �ात पर गौर बिकया था बिक वह रात के वक्त लाइटें जला कर मेरा पूरा शरीर �हुत देर तक बिनहारता रहता और उसकी खू� तारी� करता। मुझे �हुत शरम आती लेबिकन अच्छा भी लगता बिक मैं अभी उसकी नज़रों से उतरी नहीं हंू।

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लेबिकन इसकी स'ाई भी जल्दी ही सामने आ गयी थी। एक दिदन वह एक �दिढ़या कैमरा ले कर आया था और अलग-अलग पोज में मेरी �हुत सारी तस्वीरें खीं'ीं थीं। ज� तस्वीरें डेवलप हो कर आयी थीं तो वह �हुत खुश था। तस्वीरें �हुत ही अच्छी आयी थीं। एक दिदन वह ये सारी तस्वीरें लेकर कहीं गया था तो �हुत खुश खुश घर लौटा था।�ताया था उसने - एक ऐड एजेंसी को तुम्हारी तस्वीरें �हुत पसंद आयी हैं। वे तुम्हें मॉडसिलंग का 'ांस देना 'ाहते हैं। अगर तुम्हारी तस्वीरें सेलेक्ट हो जायें तो तुम्हें मॉडसिलंग का एक �हुत �ड़ा एसाइनमेंट मिमल सकता है। लेबिकन उसके सिलए एक �ोटो सैशन उन्हीं के स्टूबिडयो में कराना होगा। क्या कहती हो... हाथ से जाने दें यह मौका क्या....।यह मेरे सिलए अनहोनी �ात थी। अच्छा भी लगा था बिक यहां भी खू�सूरती के कद्रदान �सते हैं। अपनी बि�गर और 'ेहरे मोहरे की तारी� �रसों से देखने वालों की बिनगाह में देखती आ रही थी। एक से �ढ़ कर एक कम्पलीमेंट पाये थे लेबिकन मॉडसिलंग जैसी 'ीज के सिलए गुरदासपुर जैसी छोटी जगह में सो'ा भी नहीं जा सकता था। अ� यहां लंदन में मॉडसिलंग का प्रस्ताव.. वह भी आने के दस दिदन के भीतर.. रोमां' भी हो रहा था और डर भी था बिक इसमें भी कहीं धोखा न हो। वैसे भी �लबिवन्दर के �ारे में इतनी आसानी से बिवश्वास करने को जी नहीं 'ाह रहा था। �लबिवन्दर ने मेरी दुबिवधा देख कर तसल्ली दी थी - कोई जल्दी�ाजी नहीं है.. आराम से सो' कर �ताना.. ऐसे मामलों में हड़�ड़ी ठीक नहीं होती। मैं भी इस �ी' सारी 'ीजें देख भाल लूं।मैंने भी सो'ा था - देख सिलया जाये इसे भी.. �लबिवन्दर साथ होगा ही। कोई ज�रदस्ती तो है नहीं। काम पसंद न आया तो घर वाबिपस आ जाऊंगी।जम#न �ोटो}ा�र की आंखें मुझे देखते ही 'मकने लगीं थीं। तारी� भरी बिनगाहों से मुझे देखते हुए उसने कहा था - यू आर }ेट, स' ए प्रॅटी �ेस एडं पर�ैक्ट बि�गर.. आइ �ैट यू बिवल �ी एन इंसटैंट बिहट। वैलकम माय बिडयर.. मुझे रोमां' हो आया था। अपनी तारी� में आज तक �ीसिसयों कम्पलीमेंट सुने थे लेबिकन कभी भी बिकसी अजन�ी ने पहली ही मुलाकात में इतने सा� शब्दों में कुछ नहीं कहा था।मुझे अंदर स्टूबिडयो में ले जाया गया था। �लबिवन्दर देर तक उस अं}ेज �ोटो}ा�र से �ात करता रहा था। ज� मुझे मेकअप के सिलए ले जाया जाने लगा तो �लबिवन्दर ने मुझे गुडलक कहा था और �ेशरमी से हँसा था - अ� तो तुम टॉप क्लास मॉडल हो। हमें भूल मत जाना। मुझे उसका इस तरह हँसना �हुत खरा� लगा था। लेबिकन माहौल देख कर मैं 'ुप रह गयी थी।�ोटा}ा�र की असिसस्टेंट ने मेरा मेक अप बिकया था। उसके �ाद एक और लड़की आयी थी जिजसने मुझे एक पैकेट पकड़ाते हुए कहा - ये कॉस्ट्यूम है। 'ेंज रूम में जा कर पहन लीजिजये। मैं कुछ समझी थी और कुछ नहीं समझी थी। लेबिकन ज� भीतर जा कर पैकेट खोल देखा तो मेरे तो होश ही उड़ गये थे। दो इंं' की पट्टी की नीले रंग की ब्रा थी और तीन इं' की पैंटी। अ� सारी �ातें मेरी समझ में आ गयी थीं - �लबिवन्दर का मेरे शरीर को कई कई दिदन तक घूरते रहना, उसकी हँसी, मेरे �ोटो खीं'ना और यहां तक घेर-घार का लाना और उसकी कुदिटल हँसी हँसते हुए कहना - अ� तो तुम टॉप क्लास मॉडल हो। हमें भूल मत जाना।मैं सपने में भी नहीं सो' सकती थी बिक मेरा अपना पबित इतना बिगर भी सकता है बिक अभी मुझे आये हुए 'ार दिदन भी नहीं हुए और मेरी नंगी तस्वीरें खिखं'वाने ले आया है। पैसों की हेरा�ेरी बि�र भी मैं �रदाश्त कर गयी और उसे मा� भी कर दिदया था लेबिकन उसकी ये हरकत..मैं गुस्से से लाल पीली होते हुए 'ेंज रूम से �ाहर आयी थी और �लबिवन्दर को पूछा था।

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�ोटो}ा�र ने �दले में मुझसे ही �हुत ही प्यार से पूछा था - कोई प्राब्लम है मैडम? लेबिकन ज� मैंने �लबिवन्दर को ही �ुलाने के सिलए कहा तो उसने �ताया था - आपके हस�ैंड ने यहां से एक �ोन बिकया था। उन्हें अ'ानक ही एक पाट� से मिमलने जाना पड़ा। उन्हें दो एक घंटे लग जायेंगे। वे कह गये थे बिक अगर उन्हें देर हो जाये तो आप घर 'ली जायें। डोंट वरी मैडम, वे घर की 'ा�ी दे गये हैं। हमारी कार आपको घर छोड़ आयेगी।यह सुनते ही मेरी रुलाई �ूट पड़ी थी। यह क्या हो रहा था मेरे भगवान, मेरा अपना पबित मुझसे ऐसे काम भी करवा सकता है। इससे तो अच्छा होता मैं यहां आती ही नहीं।�ोटो}ा�र यह सीन देख कर घ�रा गया था। उसने तुंत अपनी असिसस्टैंट को �ुलाया था। वह मुझे भीतर ले गयी थी। पूछा था - आपकी त�ीयत तो ठीक है। मैं उसे कैसे �ताती बिक अ� तो कुछ भी ठीक नहीं रहा। वह देर तक मेरी पीठ पर हाथ �े रती रही थी। ज� मैं कुछ संभली थी तो उसने बि�र पूछा था - �ात क्या है। मैं उसे अपनी दोस्त ही समझूं और पूरी �ात �ताऊं। वह मेरी पूरी मदद करेगी।त� मैंने �ड़ी मुल्किश्कल से उसे सारी �ात �तायी थी। यह भी �ताया था बिक यहां आये हुए मुझे दस दिदन भी नहीं हुए हैं और मेरा पबित मुझसे झूठ �ोल कर यहां ले आया है। मुझे जरा सा भी अंंदाजा होता बिक मुझे ल्किस्वमिमंग कॉस्ट्यूम्स के सिलए मॉडसिलंग करनी है तो मैं आती ही नहीं। उसने पूरे धैय# के साथ मेरी �ात सुनी थी और जा कर अपने �ॉस को �ताया था। उसका धैय# देख कर लगता था उसे इस तरह की सिस'ुएशन से पहले भी बिनपटना पड़ा होगा। �ोटो}ा�र ने त� मुझे अपने 'ैम्�र में �ुलाया था और उस लड़की की मौजूदगी में मुझसे कई कई �ार मा�ी मांगी थी बिक कम्यूबिनकेशन गैप की वजह से मुझे इस तरह की अपमानजनक स्थिस्थबित से गुजरना पड़ा। त� उसी ने मुझे �ताया था बिक �लबिवन्दर खुद ही उनके पास मेरी तस्वीरें ले कर आया था और इस तरह का प्रोपोजल रखा था बिक मेरी वाइ� बिकसी भी तरह की मॉडसिलंग के सिलए तैयार है।- अगर हमें पहले पता होता मिम. �लबिवन्दर ने आपसे झूठ �ोला है तो...खैर.. डोंट वरी, हम आपकी मज> के बि�ना कुछ भी नहीं करेंगे। �स, एक ही प्राब्लम है बिक मिमस्टर �लबिवन्दर जाते समय हमसे इस एसाइनमेंट के सिलए एडवांस पैसे ले गये हैं। वो तो खैर कोई �हुत �ड़ी प्राब्लम नहीं है। बि�र भी मेरा एक सजेशन है। अगर आपको मंजूर हो। आप एक काम करें मैडम। जस्ट ए हम्�ल रिरक्वेस्ट। आप इसी साड़ी में ही, या इस एल�म में जो भी कपड़े आपको }ेस�ुल लगें, उनमें कुछ �ोटो}ाफ्स ख्'ांवा लें। जस्ट फ्यू ब्यूटी�ुल �ोटो}ाफ्स ऑ� ए }ेस�ुल एडं �ोटोजेबिनक �ेस। ओनली इ� यू लाइक। हमारा एसाइनमेंट भी हो जायेगा और आपकी मॉडसिलंग भी। हम इस �ार े म ें मिम. �लबिवन्दर को कुछ नहीं �तायेंगे। आइ सिथंक इसमें आपको कोई एतराज नहीं होगा।उसने त� मुझे कई एल�म दिदखाये और �ताया था बिक `उस` तरह की �ोटो}ा�ी तो वे कम ही करते हैं, ज्यादातर �ोटो}ा�ी वे नाम#ल �ेसेस में ही करते हैं। उस लड़की ने भी मुझे समझाया था बिक मेरे जैसी खू�सूरत लड़की को इस प्रोपोजल के सिलए ना नहीं कहनी 'ाबिहये।और इस तरह मॉडसिलंग का मेरा पहला एसाइनमेंट हुआ था। तकरी�न तीस 'ालीस �ोटो खीं'े गये थे। कहीं कोई ज�रदस्ती नहीं, कोई भद्दापन नहीं था, �ल्किल्क हर �ोटो में मेरे भीतरी सौन्दय# को ही उभारने की कोसिशश की गयी थी। �ोटो}ा�र की असिसस्टैंट हँस भी रही थी बिक रोने के �ाद मेरा 'ेहरा और भी उजला हो गया था। मुझे वहां पूरा दिदन लग गया था लेबिकन �लबिवन्दर वाबिपस नहीं आया था। 'लते समय �ोटो}ा�र ने मुझे डेढ़ सौ पाउंड दिदये थे। एसाइनमेंट की �ाकी रकम। उन्होंने त� �ताया था बिक कुल तीन सौ पाउंड �नते थे मेरे जिजसमें से डेढ़ सौ पाउंड �लबिवन्दर पहले ही ले 'ुका है। उन्होंने यह भी पूछा था बिक वह इनकी कॉपी मुझे बिकस पते पर णिभजवाये। मैंने उनसे अनुरोध बिकया था बिक पहली �ात तो वह इनकी एक भी कॉपी �लबिवन्दर को न दें और न ही उसे इस �ोटो सैशन के �ारे में

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�तायें। दूसरे इनकी कॉपी मैं �ाद में कभी भी मंगवा लूंगी। उन्होंने मेरी दोनों �ातें मान ली थीं और एक रसीद मुझे दे दी थी ताबिक मैं बिकसी को भेज कर �ोटो मंगवा सकंू। ज� मैं 'लने लगी थी तो उन्होंने एक �ार बि�र मुझसे मा�ी मांगी थी और कहा था बिक मैं उनके �ारे में कोई भी �ुरा ख्याल न रखूं और उन्हें बि�र सेवा का मौका दंू। उन्होंने एक �ार बि�र अनुरोध बिकया था बिक वे मुझे दो�ारा अपने स्टूबिडयो में एक और �ोटो सैशन के सिलए देख कर �हुत खुश होंगे।'लते 'लते उन्होंने जिझझकते हुए मुझे एक �ंद सिल�ा�ा दिदया था और कहा था - इसे मैं घर जा क र ही खोलंू। यही सिल�ा�ा लेकर �लबिवन्दर आया था और वे पूरा का पूरा पैकेट मुझे लौटा रहे हैं। उन्होंने बिहन्दुस्तानी तरीके से हाथ जोड़ कर मुझे बिवदा बिकया था। मैं आते समय सो' रही थी बिक एक तर� यहां ऐसे भी लोग हैं जो सच्चाई पता 'लने पर पूरी इन्साबिनयत से पेश आते हैं और दूसरी तर� मेरा अपना पबित मुझे �ाज़ार में �े'ने के सिलए छोड़ गया था.. मैंने सो' सिलया था अ� उसके घर में एक मिमनट भी नहीं रहना है।मैंन े घर पहंु'ते ही सिल�ा�ा खोल कर देखा था - सिल�ा�ा खोलते ही मेरा सिसर घूमन े लगा था - �लबिवन्दर �ोटो}ाफ्स के जो पैकेट वहां दे कर आया था उसमें मेरी सोते समय और नहाते समय ली गयी कुछ न्यूड तस्वीरें थीं। मेरी जानकारी के बि�ना खीं'ी गयी नंगी और अधनंगी तस्वीरें। मुझे पता ही नहीं 'ल पाया बिक उसने ये तस्वीरें क� खीं'ी थीं। छी मैं सपने में भी नहीं सो' सकती थी बिक मेरा अपना पबित इतना नी' और घदिटया इन्सान हो सकता है बिक मेरी दलाली तक करने 'ला गया। मैं ज़ोर ज़ोर से रोने लगी थी।हम हनीमून में भी और यहां सं�ंध ठीक हो जाने के �ाद हम ऐसे ही बि�ना कपड़े पहने सो जाते थे। नये शादीशुदा पबित पत्नी में ये स� 'लता ही रहता है। इसमें कुछ भी अजी� नहीं होता। अपनी ये तस्वीरें देखते हुए मुझे यही लगा था बिक उसने ये तस्वीरें मेरे सो जाने के �ाद या नहाते समय 'ुपके से ले ली होंगी। स', बिकतना मिघनौना हो जाता है कई �ार मरद बिक अपनी ही ब्याहता की नंगी तस्वीरें �ाहर �े'ने के सिलए दिदखाता बि�रे।मेरी बिकस्मत अच्छी थी बिक वह उस भले �ोटो}ा�र के पास ही गया था जिजसने न केवल मेरा मान रखा �ल्किल्क ईमानदारी से पूरा का पूरा कवर भी लौटा दिदया है। मैंने रोते-रोते सारे के सारे �ोटो �ाड़ कर उनकी सि'ंदिदयां �ना दी थीं।तभी मैंने घड़ी देखी थी। पां' �जने वाले थे। हरीश अभी ऑबि�स में ही होगा। मैं तंुत लपकी थी। मेरी बिकस्मत �हुत अच्छी थी बिक हरीश �ोन पर मिमल गया था। वह �स, बिनकलने ही वाला था। मैंने रंुधी आवाज में उससे कहा था - यहां स� कुछ खत्म हो 'ुका है। मुझे घर छोड़ना है। अभी और इसी वक्त। मुझे तुंत मिमलो।उसने त� मुझे दिदलासा दी थी - मैं ज़रा भी न घ�राऊं। सिस�# यह �ता दंू बिक मेरे घर के स�से बिनकट कौन सा ट्यू� स्टेशन पड़ता है। मुझे इतना ही पता था बिक हम ज� भी कहीं जाते थे से ही टे्रन पकड़ते थे। मैंने होंस्लो वेस्ट स्टेशन का ही नाम �ता दिदया था। हरीश ने मुझे एक मिमनट होल्ड करने के सिलए कहा था। शायद अपने बिकसी साथी से पूछ रहा था बिक उसे मुझ तक पहंु'ने में बिकतनी देर लगेगी। हरीश ने त� मुझे एक �ार बि�र आश्वस्त बिकया था बिक मैं होंस्लो वेस्ट स्टेशन पहुं' कर साउथ }ीन�ोड# स्टेशन का दिटकट ले लूं और प्लेट�ाम# नम्�र एक पर एटं्री पांइट पर ही उसका इंतज़ार करंू। उसे वहां तक पहुं'ने में प'ास मिमनट लगेंगे। वह बिकसी भी हालत में छः �जे तक पहंु' ही जायेगा। ओके।

मैं लपक कर �लबिवन्दर के अपाट#मेंट में पहंु'ी थी। संयोग से वह अभी तक नहीं आया था। बिकतना शाबितर आदमी है यह !! मैंने सो'ा था, मुझे अंधी खाई में धकेलने के �ाद मुझसे आंखें मिमलाने की बिहम्मत भी नहीं हैं उसमें। मैंने अपने �ैग उठाये थे। दरवाजा �ंद बिकया था और एक टैक्सी ले कर

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स्टेशन पहंु' गयी थी। बिकतनी अभागी थी मैं बिक हफ्ते भर में ही मेरा घर मुझसे छूट रहा था। मैंने ऐसे घर का सपना तो नहीं देखा था। रास्ते में मैंने �लबिवन्दर के घर की 'ा�ी टैक्सी में से �ाहर �ैं क दी थी। होता रहे परेशान और खाजता रहे मुझे।स्टेशन पहंु' कर भी मेरी धुकधुकी �ंद नहीं हो रही थी। कहीं �लबिवन्दर ने मुझे देख सिलया तो गज� हो जायेगा। घर तो खैर मैं त� भी छोड़ती लेबिकन मैं अ� उस आदमी की शक्ल भी नहीं देखना 'ाहती थी और न ही उसे यह हवा लगने देना 'ाहती थी बिक मैं कहां जा रही हूं। एक अच्छी �ात यह हुई थी बिक उसने न तो हरीश से मिमलते वक्त और न ही �ाद में ही उसके �ारे में ज्यादा पूछताछ की थी।हरीश वक्त पर आ गया था। उसके साथ उसका वही कलीग था जिजसने उसे पेइंग गेस्ट वाली जगह दिदलवायी थी। हरीश ने मेरे �ैग उठाये थे और हम बि�ना एक भी शब्द �ोले टे्रन में �ैठ गये थे।और इस तरह मेरा घर मुझसे छूट गया था। मेरी शादी के सिस�# सात महीने और ग्यारह दिदन �ाद। इस अरसे में से भी मैंने सिस�# सैंतीस दिदन अपने पबित के साथ गुज़ारे थे। इन सैंतीस दिदनों में से भी तीन दिदन तो हमने आपस में ढंग से �ात भी नहीं की थी। सिस�# 'ौंतीस दिदन की सैक्स�ुल और सक्सैस�ुल लाइ� थी मेरी और मैं एक अनजान देश की अनजान राजधानी में पहुं'ने के एक हफ्ते में ही सड़क पर आ गयी थी।इतना कहते ही मालबिवका मेर े गले से सिलपट कर �ूट �ूट कर रोने लगी है। उसका यह रोना इतना अ'ानक और ज़ोर का है बिक मैं हक्का �क्का रह गया हंू। मुझे पहले तो समझ में ही नहीं आया बिक अपनी कहानी सुनाते-सुनाते अ'ानक उसे क्या हो गया है। अभी तो भली 'ंगी अपनी दास्तान सुना रही थी।मैं उसे अपने सीने से भीं' लेता हूं और उसे 'ुप कराता हूं - रोओ नहीं बिनक्की। तुम तो इतनी �हादुर लड़की हो और अपने को इतने शानदार तरीके से संभाले हुए हो। ज़रा सो'ो, तुम्हें अगर उसी दलाल के घर रहना पड़ता तो..तो तुम्हारी ज़िज़ंदगी ने क्या रुख सिलया होता ..। कई �ार आदमी के सिलए गलत घर में रहने से �ेघर होना ही �ेहतर होता है। 'ीयर अप मेरी �च्ची..। यह कर मैं उसका आसंुओं से तर 'ेहरा 'ुम्�नों से भर देता हंू।वह अभी भी रोये जा रही है। मैं उसके �ालों में उंगसिलयां बि�राता हंू। गाल थपथपाता हूं।अ'ानक वह अपना सिसर ऊपर उठाती है और रोते-रोते पूछती है - तुम्हीं �ताओ दीप, मेरी गलती क्या थी? मैं कहां गलत थी जो मुझे इतनी �ड़ी सज़ा दी गयी। 'ौ�ीस-प'ीस साल की उम्र में, ज� मेरे हाथों की मेंहदी भी ढंग से सूखी नहीं थी, शादी के सात महीने �ाद ही न मैं शादीश्जादा रही न कंुवारी, न घर रहा मेरा और न परिरवार। मेरी प्यारी मम्मी और देश भी मुझसे छूट गये। मुझे ही इतना खरा� पबित क्यों मिमला बिक मैं ज़िज़ंदगी भर के सिलए अकेली हो गयी..। मैं इतने �ड़े जहान में बि�लकुल अकेली हूं दीप.... �हुत अकेली हू ं ... इतनी �ड़ी दुबिनया म ें मेरा अपना कोई भी नहीं ह ै दीप.. ..। म ैं तुम्ह ें �ता नहीं सकती, अकेले होने का क्या मतल� होता है। वह ज़ार ज़ार रोये जा रही है।मैं उसे 'ुप कराने की कोसिशश करता हूं - रोओ नहीं बिनक्की, मैं हूं न तुम्हारे पास.. इतने पास बिक तुम मेरी सांसें भी महसूस कर सकती हो। तुम तो जानती ही हो, हमारी हथेली बिकतनी भी �ड़ी हो, देने वाला उतना ही देता है जिजतना उसे देना होता है। अ� 'ाहे लंदन हो या तुम्हारा गुरदासपुर, तुम्हें इस आग से गुज़र कर कंुदन �नना ही था।

- दीप मुझे छोड़ कर तो नहीं जाओगे? वह गुनगुने उजाले में मेरी तर� देखती है। - नहीं जाऊंगा �स, देखो मैं भी तो तुम्हारी तरह इतना अके ला हंू। मुझे भी तो कोई 'ाबिहये

जो .. जो मेरा अकेलापन �ांट सके। हम दोनों एक दूसरे का अकेलापन �ांटेंगे और एक सुखी संसार �नायेंगे।

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- प्रामिमस ?- हां गॉड प्रामिमस। मैं उसके होठों पर एक मोहर लगा कर उसकी तसल्ली कर देता हूं - अ� 'ुप

हो जाओ, देखो हम बिकतने घंटों से इस तरह लेटे हुए हैं। �हुत रात हो गयी है। अ� सोयें क्या ?वह अ'ानक उठ �ैठी है - क्या मतल�? बिकतने �जे हैं?

- अरे ये तो सु�ह के साढे़ आठ �ज रहे हैं। इसका मतल� हम दोनों बिपछले कई घंटों से इसी तरह लेटे हुए आपके साथ आपके �'पन की गसिलयों में घूम रहे थे।

- ओह गौड, मैं इतनी देर तक �ोलती रही और तुमने मुझे टोका भी नहीं .. आखिखर उसका मूड संभला है।

- टी'रजी ने �ोलने से मना जो कर रखा था।- �ातें मत �नाओ ज्यादा। कॉ�ी पीओगे?- न �ा�ा, मुझे तो नींद आ रही है।- मैं अपने सिलये �ना रही हंू। पीनी हो तो �ोल देना। और वह कॉ�ी �नाने 'ली गयी है। सुरमई

अंंधेरे उजाले में सामने रखे शोकेस के शीशे में रसोई में से उसका अक्स दिदखायी दे रहा है।कॉ�ी पीते हुए पूछता हंू मालबिवका से - कभी दो�ारा मुलाकात हुई �लबिवन्दर से?

- नो क्वेश्चंस प्लीज़।- लेबिकन ये अधूरी कहानी सुना कर तरसाने की क्या तुक है। �ेशक कहानी का वत#मान मेरे

सामने है, और मेरे सामने खुली बिकता� की तरह है लेबिकन �ी' में जो पने्न गाय� हैं, उन पर क्या सिलखा था, यह भी तो पता 'ले। मैं उसके नरम �ाल सहलाते हुए आ}ह करता हंू ।

- मैंने कहा था ना बिक अ� और कोई सवाल नहीं पूछोगे।- अच्छा एक काम करते हैं। तुम पूरी कहानी एक ही पैरा}ा� में, नट शैल में �ता दो। बि�र गॉड

प्रॉमिमस, हम ज़िज़ंदगी भर इस �ारे में �ात नहीं करेंगे। अगर ये �ी' की खोई हुई कबिड़यां नहीं मिमलेंगी तो मैं हमेशा �े'ैन होता रहंूगा।

- ओ. के.। मैं सिस�# दस वाक्यों में कहानी पूरी कर दंूगी। टोकना नहीं।- ठीक है। �ताओ।- तो सुनो। �लबिवन्दर और उसके कई साथी जाली पासपोट# और वीज़ा ले कर यहां रह रहे थे। वे

लोग पता नहीं बिकतने देशों की अवैध तरीके से यात्रा करेन के �ाद वे इंगलैंड पहुं'ते थे। शादी के एक महीने तक भी वह इसी 'क्कर में वह वहां रुका था बिक एजंेंट की तर� से }ीन सिसग्नल नहीं मिमल रहा था। कुछ साल पहले स�को यहां से वाबिपस भेज दिदया गया था। उसे मेरे �ारे में आखिखर पता 'ल ही गया था। उसने दो-एक मैसेज णिभजवाये, दोस्तों को णिभजवाया, समझौता कर लेने के सिलए, लेबिकन खुद आ कर मिमलन े की बिहम्मत नहीं जुटा पाया था। ज� व े लोग पकड़े गय े तो उसन े बि�र संदेश णिभजवाया था बिक मैं उसे बिकसी तरह छ�ड़वा लूं लेबिकन मैं सा� मुकर गयी थी बिक इस आदमी से मेरा कोई परिर'य भी है। शुरू शुरू में �हुत मुल्किश्कलें सामने आयीं। रहने, खाने, इज्ज़त से जीने और अपने आपको संभाले रहने में लेबिकन बिहम्मत नहीं हारी। पहले तो मैं हरीश वाली जगह ही पेइंग गेस्ट �न कर रहती रही, बि�र कई जगहें �दलीं। पापी पेट भरने के सिलए कई उलटे सीधे काम बिकये। स्कूलों में पढ़ाया, दफ्तरों, �ैक्टरिरयों, दुकानों में काम बिकया, �ेरोजगार भी रही, भूखी भी सोयी। एक दिदन अ'ानक एक इंबिडयन स्कूल में योगा टी'र की वेकें सी बिनकली तो एप्लाई बिकया। 'ुन ली गयी। इस तरह योगा टी'र �नी। धीरे धीरे आत्म बिवश्वास �ढ़ा। धीरे धीर े क्लांइट्स �ढे़ तो कम्पबिनयें वगैरह में जा कर क्लासेस लेनी शुरू कीं।

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अलग से भी योगा क्लासेस 'लानी शुरू कीं। घर खरीदा, हैल्थ सेंटर खोला, �डे़ �डे़ }ाहक मिमलने शुरू हुए तो स्कूल की नौकरी छोड़ी। कई }ुप मिमले तो हैल्थ सेंटर में स्टा� रखा। काम �ढ़ाया। रेट्स �ढ़ाये और अपने तरीके से घर �नाया, सजाया और ठाठ से रहने लगी। ज़िज़ंदगी में कई दोस्त मिमले लेबिकन बिकसी ने भी दूर तक साथ नहीं दिदया। अकेली 'ली थी, अकेली रहंूगी और ... अ'ानक उसकी आवाज़ भरा# गयी है।

- और क्या? मैं हौले से पूछता हंू । - इस परदेस में कभी अपने अपाट#मेंट में अकेली मर जाऊंगी और बिकसी को पता भी नहीं

'लेगा।- ऐसा नहीं कहते। अ� मैं हंू न तुम्हारे पास।- यह तो वक्त ही �तायेगा। कह कर मालबिवका ने करवट �दल ली है।

मैं समझ पा रहा हंू, अ� वह �ात करने के मूड में नहीं है। मैं उसके �ालों में उंगसिलयां बि�राते हुए उसे सुला देता हूं।ज़िज़ंदगी बि�र से उसी ढर� पर 'लने लगी है। �ेशक मालबिवका के साथ गुज़ारे उन �ेहतरीन और हसीन पलों ने मेरी वीरान ज़िज़ंदगी को कुछ ही वक्त के सिलए सही, खुसिशयों के सातवें आसमान पर पहुं'ा दिदया था, लेबिकन बि�र भी हम दोनों त� से नहीं मिमले हैं। हम दोनों को ही पता है, वे पल दो�ारा नहीं जीये जा सकते। उन मधुर पलों की याद के सहारे ही �ाकी ज़िज़ंदगी काटी जा सकती है। हमने �ोन पर कई �ार �ात की है, लेबिकन उस मुलाकात का जिज़क्र भी नहीं बिकया है। सिसरदद# से लगभग मुसिक्त मिमल 'ुकी है और मैं बि�र से स्टोस# में पूरा ध्यान देने लगा हूं। मालबिवका ने पे्रम का जो अनूठा उपहार दिदया है मुझे, उसकी स्मजिÙत मात्र से मेरे दिदन �हुत ही अच्छी तरह से गुज़र जाते है। कहीं एक जाने या रहने या उन खू�सूरत पलों को दोहराने की �ात न उसने की है और न मैंने ही इसका जिज़क्र छेड़ा है। गौरी के साथ सं�ंधों में जो उदासीनता एक �ार आ कर पसर गयी है, उसे धो पोंछ कर �ुहारना इतना आसान नहीं है। इस �ात को भी अ� बिकतना अरसा �ीत 'ुका है ज� उसके पापा ने मुझसे कहा था बिक वे पैसों के �ारे में गौरी को �ता देंगे और मेरे साथ �ेहतर तरीके से पेश आने के सिलए उसे समझा भी देंगे लेबिकन दोनों ही �ातें नहीं हो पायी हैं। मैं अभी भी अक्सर ठन ठन गोपाल ही रहता हूं। हम दोनों ही अ� �हुत कम �ात करते हैं। सिस�# काम की �ातें। ज� उसे ही मेरी परवाह नहीं है तो मैं ही अपना दिदमाग क्यों खरा� करता रहंू। सिस�# भरपूर सैक्स की 'ाह ही उसे मुझसे जोड़े हुए है। मालबिवका ने ज� से मेरी परेशाबिनयों के कारणों के �ारे में मुझे �ताया है, मैंने अपने मन पर बिकसी भी तरह का �ोझ रखना कम कर दिदया है, ज� 'ीजें मेर े �स में नहीं हैं तो मैं ही क्यों कुढ़ता रहूं। ज� से संगीत और डायरी का साथ श्जारू हुआ है, ये ही मेरे दोस्त �न गये हैं। मालबिवका के साथ गुज़ारे उस खू�सूरत दिदन की यादें तो हैं ही मेरे साथ।इस महीने मुझे यहां पां' साल पूरे हो जायेंगे। इस पूरे समय का लेखा-जोखा देखता हूं बिक क्या खोया और क्या पाया। �ेशक देश छूटा, �ं�ई की आज़ाद ज़िज़ंदगी छूटी, प्रायवेसी छूटी, अलका और देवेद्र जी का साथ छूटा और अचे्छ रुत�े वाली नौकरी छूटी, गुड्डी वाला हादसा हुआ, लेबिकन �दले में �हुत कुछ देखने सीखने को मिमला ही है। �ेशक श्जारू शुरू के सालों में गलत�हमिमयों में जीता रहा, कुढ़ता रहा और अपनी सेहत खरा� करता रहा। लेबिकन अ� स� कुछ बिनथर कर शांत हो गया है। मैं अ� इन सारी 'ीजों को लेकर अपना दिदमाग खरा� नहीं करता।

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गौरी ने अपने पापा का संदेश दिदया ह ै - आपको यहां पां' साल पूरे होने को हैं और आपकी बिब्रदिटश सिसटीजनसिशप के सिलए एप्लाई बिकया जाना है। बिकसी दिदन बिकसी के साथ जा कर ये सारी �ाम�सिलटीज पूरी कर लें। पूछा है मैंने गोरी से - क्या क्या मांगते हैं वो, तो उसने �ताया है - वो तो मुझे पता नहीं, आप कापÀरेट ऑबि�स में से बिकसी से पूछ लें या बिकसी को साथ ले जायें। सिशसिशर के साथ ही क्यों नहीं 'ले जाते। उसको तो पता ही होगा। आपका पासपोट# और दूसरे पेपस# वगैरह मैं लॉकर से बिनकलवा रखंूगी।और इस तरह पां' साल �ाद मेरे सारे सर्दिटबंि�केट्स, पासपोट# और दूसरे कागज़ात मेरे हाथ में वाबिपस आये हैं। अगर ये कागज पहले ही मेरे पास ही होते तो आज मेरी ज़िज़ंदगी कुछ और ही होती। सिशसिशर ने रास्ते में पूछा है - तो जना�, हम इस समय कहां जा रहे हैं ?

- तय तो यही हुआ था बिक बिब्रदिटश सिसदिटजनसिशप के सिलए जो भी �ाम�सिलदिटज हैं, उन्हें पूरा करने के सिलए आप मुझे ले कर जायेंगे।

- ये आपके हाथ में क्या है? पता नहीं सिशसिशर आज इस तरह से �ात क्यों कर रहा है।- मेरे सर्दिटंबि�केट्स और पासपोट# वगैरह हैं। इनकी तो जरूरत पडे़गी ना!!- अच्छा, एक �ात �ताओ, ये कागज़ात और कहां कहां काम आ सकते हैं ?- कई जगह काम आ सकते हैं। सिशसिशर तुम ये पहेसिलयां क्यों �ुझा रहे हो। सा� सा� �ताओ,

क्या कहना 'ाह रहे हो। - मैं अपने बिप्रय मिमत्र को सिस�# ये �ताना 'ाह रहा हूं बिक ज� जा ही रहे हैं तो इमी}ेशन ऑबि�स

के �जाये बिकसी भी ऐसी एअरलांइस के दफ्तर की तर� जा सकते हैं जिजसके हवाई जहाज आपको आपके भारत की तर� ले जाते हों। �ोलो, क्या कहते हो? सारे पेपस# आपके हाथ में हैं ही सही। वह अ'ानक गम्भीर हो गया ह ै - देखो दीप, मैं तुम्हें बिपछले पां' साल से घुटते और अपने आपको मारते देख रहा हंू। तुम उस मिमट्टी के नहीं �ने हो जिजससे मेरे जैसे घर जवांई �ने होते हैं। अपने आपको और मत मारो दीप, ये पहला और आखिखरी मौका है तुम्हारे पास, वाबिपस लौट जाने के सिलए। तुम पां' साल तक कोसिशश करते रह े यहा ं के बिहसा� से खुद को ढालने के सिलए लेबिकन अ�सोस, न हांडा परिरवार तुम्हें समझ पाया और न तुम हांडा परिरवार को समझ कर अपने सिलए कोई �ेहतर रास्ता �ना पाये। और नुकसान में तुम ही रहे। अभी तुम्हारी उम्र है। न तो कोई जिजम्मेवारी है तुम्हारे पीछे और न ही तुम्हारे पास यहां साधन ही हैं उसे पूरा करने के सिलए। आज पां' साल तक इतनी मेहनत करने के �ाद भी तुम्हारे पास प'ास पाउंड भी नहीं होंगे। सो' लो, तुम्हारे सामने पहली आज़ादी तुम्हें पुकार रही है। उसने कार रोक दी है - �ोलो, कार बिकस तर� मोडं़ू?

- लेबिकन ये धोखा नहीं होगा? गौरी के साथ और ..- हां �ोलो, �ोलो बिकसक साथ ..- मेरा मतल� .. इस तरह से 'ोरी छुपे..- देखो दीप, तुम्हारे साथ क्या कम धोखे हुए है जो तुम गौरी या हांडा एम्पायरके साथ धोखे की

�ात कर रहे हो। इन्हीं लोगों के धोखों के कारण ही तुम बिपछले पां' साल से ये दोयम दज� की ज़िज़ंदगी जी रहे हो। न 'ैन है तुम्हारी ज़िज़ंदगी में और न कोई कहने को अपना ही है। और तुम इन्हीं झूठे लोगों को धोखा देने से डर रहे हो। जाओ, अपने घर लौट जाओ। न यह देश तुम्हारा है न घर। वहीं तुम्हारी मुसिक्त है।

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- तुम सही कह रहे हो सिशसिशर, ये पां' साल मैंने एक ऐसा घर �नाने की तलाश में गंवा दिदये हैं जो मेरा था ही नहीं। मैं अ� तक बिकसी और का घर ही संवारता रहा। वहां मेरी हैसिसयत क्या थी, मुझे आज तक नहीं पता, यहां से लौट जाऊं तो कम से कम मेरी आज़ादी तो वाबिपस मिमल जायेगी। मुझे भी लग रहा है, जो कुछ करना है, अभी बिकया जा सकता है। सिसटीजनसिशप के नाटक से पहले ही मैं वाबिपस लौट सकता हंू। लेबिकन मेरे पास तो बिकराये की �ात दूर, एयरपोट# तक जाने के सिलए कै� के पैसे भी नहीं होंगे। - देखा, मैंने कहा था न बिक हांडा परिरवार ने तुम्हें पां' साल तक एक �ंधुआ मजदूर �ना कर ही तो रख छोड़ा था। बिकराये की सि'ंता मत करो। तुम हां या ना करो, �ाकी मुझ पर छोड़ दो। - नहीं सिशसिशर, तुमने पहले ही मेरे सिलए इतना बिकया, तुमने गुड्डी के सिलए प'ास हज़ार रुपये भेजे और मुझे �ताया तक नहीं, मैं ज़रा नाराज़गी से कहता हूं। - तो तुम्हें पता 'ल ही गया था। अ� ज� गुड्डी ही नहीं रही तो उन पैसों का जिजक्र मत करो। यार, अगर मैं तुम्हें इस नरक से बिनकाल पाया तो वही मेरा ईनाम होगा। दरअसल अगर तुमने भी मेरी तरह खाना कमाना और ऐश करना श्जारू कर दिदया होता तो मैं तुम्हें कभी भी यहां से इस तरह 'ोरी छुपे जाने के सिलए न कहता। मैं भी तुम्हारी तरह इस घर का दामाद ही हंू। सारी 'ीजें समझता हंू। इसी घर की वज़ह से मेरा यहा ं का और वहा ं इंबिडया का घर 'ल रह े हैं। लेबिकन तुम जैसे शरी� और �हुत इंटैसिलजेंट आदमी को इस तरह घुटते हुए और नहीं देख सकता। तुम्हारे सिलए 'ीजें यहां कभी भी नहीं �दलेंगी। और तुम दो�ारा बिवद्रोह करोगे नहीं। मौका भी नहीं मिमलेगा। तुम्हें पता है बिक तुम अगर उनसे कहो बिक तुम एक �ार घर जाना 'ाहते हो तो वे तुम्हें इज़ाजत भी नहीं देंगे। - ठीक है, मैं वाबिपस लौटंूगा। - गुड, तो हम बि�लहाल वाबिपस 'लते हैं। गौरी को �ता देना, डाम्यूमेंट्स स�मिमट कर दिदये हैं। काम हो जायेगा। इस �ी' तुम एक �ार बि�र सो' लो, क� जाना है। मैं एक दो दिदन में तुम्हारे सिलए ओपन दिटकट ले लूंगा। �ाकी इंतज़ाम भी कर लेंगे इस �ी'। लेबिकन एक �ात तय हो 'ुकी बिक तुम यहां की सिसटीजनसिशप के सिलए एप्लाई नहीं कर रहे हो। 'ाहो तो इस �ी' अपने पुराने ऑबि�स को अपने पुराने जॉ� पर वाबिपस लौटने के �ारे में पूछ सकते हो। हालांबिक उम्मीद कम है लेबिकन 'ांस सिलया जा सकता है। बिकस पते पर वहां से जवा� मंगाना है, वो मैं �ता दंूगा। - लेबिकन अगर तुम पर कोई �ात आयी तो ? मैंने शंका जताई है। - वो तुम मुझ पर छोड़ दो। वह हँसा ह ै - मैं हांडा परिरवार का खाता पीता दामाद हंू, उनका 'ौकीदार नहीं जो यह देखता बि�रे बिक उनका कौन सा घर जवाईं खूंटा तुड़ा कर भाग रहा है और कौन नहीं। समझे। तुम जाओ तो सही। �ाकी मुझ पर छोड़ दो।और हम आधे रास्ते से ही लौट आये हैं।मैं तय कर 'ुका हूं बिक वाबिपस लौट ही जाऊं। �ेशक खाली हाथ ही क्यों न लौटना पडे़। अ� सवाल यही �'ता है बिक मैं मालबिवका से बिकया गया वायदा पूरा करते हुए उसे भी साथ ले कर जाऊं या अकेले भागूं? हालांबिक इस �ारे में हमारी दो�ारा कभी �ात नहीं हुई है। संयोग ही नहीं �ना।मालबिवका से इस �ारे में �ात करने का यही मतल� होगा बिक त� उसे भी ले जाना होगा। मालबिवका जैसी शरी� और संघष� से तपी खू�सूरत और देखी-भाली लड़की पा कर मुझे ज़िज़ंदगी में भला और बिकस 'ीज की 'ाह �ाकी रह जायेगी। लेबिकन बि�र सो'ता हंू, �हुत हो 'ुके घर �सान े के सपने।

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बि�लहाल मुझे अपनी ज़िज़ंदगी में कोई भी नहीं 'ाबिहये। अकेले ही जीना है मुझे। मालबिवका भी नहीं। कोई भी नहीं। मैं इन सारी मानसिसक उथल पुथल में ही उलझा हुआ हूं बिक मालबिवका का �ोन आया है -

- �हुत दिदनों से तुमने याद भी नहीं बिकया। - ऐसी कोई �ात नहीं है मालबिवका, �स यूं ही उलझा रहा। तुम कैसी हो? तुम्हारी आवाज़ �हुत

डू�ी हुई सी लग रही है। स� ठीक तो है ना..। - लेबिकन ऐसी भी क्या �ेरुखी बिक अपनों को ही याद न करो।- बि�लीव मी, मैं स'मु' �ात करना और मिमलना 'ाह रहा था। �ोलो, क� मिमलना है? - रहने दो दीप, जो 'ाहते तो आ भी तो सकते थे। कम से कम मुझसे मिमलने के सिलए तो तुम्हें

अपाइंटमेंट की ज़रूरत नहीं पड़नी 'ाबिहये।- मानता हंू मुझसे 'ूक हुई है। 'लो, ऐसा करते हैं , कल लं' एक साथ लेते हैं।- ठीक है, तो कल मिमलते हैं। कह कर उसने �ोन रख दिदया है।

लेबिकन इस �ार मैं जिजस मालबिवका से मिमला हूं वह बि�लकुल ही दूसरी मालबिवका है। थकी हुई, कुछ हद तक टूटी और बि�खरी हुई। मैं उसे देखते ही रह गया हूं। ये क्या हाल �ना सिलया है मालबिवका ने अपना। लगता है महीनो �ाद सीधे बि�स्तर से ही उठ कर आ रही है। ख्दा पर गुस्सा भी आ रहा है बिक इतने दिदनों तक उसकी खोज ख�र भी नहीं ले पाया।

- ये क्या हाल �ना रखा है। तुम्हारी सूरत को क्या हो गया है? मैं घ�रा कर पूछता हंू।- मैंने उस दिदन कहा था न बिक बिकसी दिदन मैं अकेली अपने अपाट#मेंट में मर जाऊंगी और बिकसी

को ख�र तक नहीं मिमलेगी। वह �ड़ी मुल्किश्कल से कह पाती है। - लेबिकन तुम्हें ये हो क्या गया है? मैं उसकी �ांह पकड़ते हुए कहता हूं। उसका हाथ �ुरी तरह

थरथरा रहा है।- अ� क्या करोगे जान कर। इतने दिदनों तक मैं ही तुम्हारी राह देखती रही बिक कभी तो इस

अभाबिगन ..- ऐसा मत कहो डीयर, मैंने उसके मुंह पर हाथ रख कर उसे रोक दिदया है - तुम्हीं ने तो मुझे यहां

नयी जिज़दंगी दी थी और जीवन के नये अथ# समझाये थे। मैं भला..- इसीसिलए मौत के मुंह तक जा पहुं'ी इस �दनसी� को कोई पूछने तक नहीं आया। मैं ही

जानती हंू बिक मैंने ये �ीमारी के दिदन अकेले कैसे गुज़ारे हैं। - मुझे स'मु' नहीं पता था बिक तुम �ीमार हो वरना.. - मैं �हुत थक गयी हंू। वह मेरी �ांह पकड़ कर कहती है - मुझे कहीं ले 'लो दीप। यहां स�

कुछ समेट कर वाबिपस लौटना 'ाहती हंू। �ाकी ज़िज़ंदगी अपने ही देश म ें बिकसी पहाड़ पर गुजारना 'ाहती हंू। 'लोगे?

मेरे पास हां या ना कहने की गुंजाइश नहीं है। मालबिवका ही तो है जिजसने मुझे इतने दिदनों से मज�ूती से थामा हुआ है वरना मैं तो क� का टूट बि�खर जाता।मैं उसे आश्वस्त करता हंू - ज़रूर 'लेंगे। कभी �ैठ कर योजना �नाते हैं। बि�लहाल तो मैंने उससे थोड़ा समय मांग ही सिलया है। देखूंगा, क्या बिकया जा सकता है। मालबिवका भी अगर मेरे साथ जाती है तो उसे अपना सारा ताम-झाम समेटने में समय तो लगेगा ही, उसके साथ जाने में मेरा जाना त� गुप्त भी नहीं रह पायेगा। मेरा तो जो होगा सो होगा, उसने इतने �रसों में जो इमेज

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�नायी है.. वो भी टूटेगी। सारी �ातें सो'नी हैं। त� सिशसिशर को भी बिवश्वास में लेना पडे़गा। उसके सामने मालबिवका से अपने रिरश्ते को भी कु�ूल करना पडे़गा। मेरी भी �नी �नायी इमेज टूटेगी। �ेशक वह इन स� कामों के सिलए प्रेरिरत करता रहा है। सिशसिशर ने पूरी गोपनीयता से योजना �नायी है। देहरादून न जाने की भी उसी ने सलाह दी है। ओपन दिटकट आ गया है। पेमेंट सिशसिशर ने ही बिकया है। सिशसिशर ही ने मेरे सिलए थोड़ी �हुत शॉपिपंग की है। मैं वैसे भी गौरी के बिनकलने के �ाद ही बिनकलता हंू। शाम तक उसे भी पता नहीं 'लेगा। घर से खाली हाथ ही जाना है। मेरा यहां है ही क्या जो लेकर जाऊं।मैं मालबिवका के �ारे में आखिखर तक कुछ भी तय नहीं कर पाया हूं। खरा� भी लग रहा बिक कम से कम मालबिवका को तो अंधेरे में न रखूं लेबिकन बि�र सो'ता हंू, मालबिवका को साथ ले जाने का मतल� .. मेरे जाने का एक नया ही मतल� बिनकाला जायेगा और.. स� कुछ बि�र से .. एक �ार बि�र.. स� कुछ..! वाबिपस लौट रहा हंू। तो यह घर भी छूट गया। एक �ार बि�र �ेघर- �ार हो गया हूं। देखें, इस �ार की वापसी में मेरे बिहस्से में क्या सिलखा है .. .. ..।

इबित

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